भाषण [वापस जाएं]

June 25, 2013
श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर


कश्मीरी शायर गुलाम अहमद महजूर की स्‍मृति में जारी होने वाले डाक टिकट विमोचन अवसर पर प्रधानमंत्री का वक्‍तव्‍य

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज श्रीनगर में शायर-ए-कश्‍मीर गुलाम अहमद महजूर की स्‍मृति में डाक टिकट विमोचन समारोह को संबोधित किया, जिसका मूल पाठ नीचे दिया जा रहा है:-

"मुझे बेहद खुशी है कि हम आज एक ऐसी जिम्मेदारी को पूरा कर रहे हैं जो बहुत पहले पूरी हो जानी चाहिए थी।

कश्मीर को अहलेज़ौक ने जन्नते बेनजीर कहा है। इसकी वजह सिर्फ इसका ज़ाहिरी हुस्न ही नहीं बल्कि उसमें सदियों से मौजूद आला इख़लाक़ी और रूहानी कदरें भी शामिल हैं। जब हम कश्मीर के माज़ी पर नज़र डालते हैं तो हमें ऐसी तमाम अज़ीम शख्सियतें दिखाई देती हैं जिन्होंने अपने-अपने अंदाज़ में उन आला उसूलों और यूनिवर्सल वैल्यूज (Universal values) को बढ़ावा दिया जो इंसानियत के जौहर को निखारती हैं।

मैं मिसालें देने पर आऊँ तो बात बहुत लंबी हो जाएगी, इसलिए इख्तिसार से काम लेते हुए माज़ी की दो अहम और अज़ीम शख्सियतों का ही ज़िक्र करूँगा। मेरी मुराद लल्ला आरिफा या लल्लेश्वरी और शेख नूरूद्दीन वली से है, जो कश्मीर और कश्मीरियत की रूह के दो बड़े किरदार हैं। और अगर मैं यह कहूँ कि कश्मीर का दिल आज भी इन दो अज़ीम शख्सियतों के साथ धड़कता है तो यह गलत न होगा।

यह ऐसी ही अज़ीम हस्तियों की रूहानी और इख़लाकी तालीम का नतीजा है कि तारीख़ के मुश्किल तरीन मराहिल में भी कश्मीरियों ने आपसी लगाव, भाई-चारे और communal harmony की एक काबिले फ़ख्र मिसाल कायम की। 1947 के मुश्किल वक्त में भी कश्मीरियों ने तवाज़ुन नहीं खोया और आपसी हमदर्दी की शमा को बुझने नहीं दिया। यही वजह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को चारों तरफ फैले हुए अंधेरे में सिर्फ कश्मीर में ही रोशनी की किरन दिखाई दी।

इस मुश्किल दौर में शायरों, अदीबों और दानिशवरों ने भी अपना रोल बखूबी निभाया। इनमें शायरे कश्मीर, गुलाम अहमद महजूर सरे फ़ेहरिस्त हैं। महजूर साहब ने जहॉँ एक तरफ अपनी इंकलाबी नज़्मों और गीतों से लोगों में जबरदस्त जोश और जज्बा पैदा किया और उनके दिलों में समाजी, सियासी और इकतिसादी निजात हासिल करने की उमंग पैदा की, वहीं उन्होंने आपसी भाई- चारे और ‘जिओ और जीने दो’ के पैगाम को हर खासो आम तक पहुँचाने की भी कोशिश की। जहॉँ उन्होंने एक नई सुबह और ताज़ा बहार को पैदा करने की बात की, वहीं उन्होंने अहले वतन को यह याद दिलाना भी जरूरी समझा कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों को दूध और शक्कर की तरह घुल मिलकर रहना चाहिए। इन्हीं खूबियों की वजह से उनको कश्मीर के कौमी शायर का रुतबा भी दिया गया।

मेरे लिए यह बहुत खुशी का मुकाम है कि हमारी सरकार ने इस बड़े शायर और कश्मीरियत की अलामत के एहतेराम में एक खूसूसी डाक टिकट जारी करने का फैसला किया है। यह कश्मीर के एक बहुत बड़े सपूत को और इंसानी भाईचारे के ताल्लुक़ से कश्मीर की रौशन कद्रों को हमारा सलाम है।

मैं इस मौके पर आपको यह बताना भी जरूरी समझता हूँ कि कश्मीर के आला इंसानी उसूलों और आफ़ाक़ी कद्रों को न सिर्फ़ हमारी हुकूमत बल्कि पूरा मुल्क इज्जत और एहतेराम की नज़रों से देखता है। हमारी हुकूमत कश्मीरी जुबान और अदब, और कश्मीरी कल्चर को फरोग देने के लिए हर तरह की मदद और तआबुन देने का इरादा रखती है। हम चाहते हैं कि आपके कल्चर की खुशबू कश्मीर से बाहर पूरे मुल्क और पूरी दुनियाभर में फैले।

यह मेरी खुशकिस्मती है कि आपने मुझे इस खुसूसी डाक टिकट जारी करने की तकरीब में शरीक होने का मौका दिया। मुझे आप लोगों के दरम्यान यहां आकर बहुत खुशी हुई है। शुक्रिया और जय हिन्द।"