भाषण [वापस जाएं]

May 28, 2013
टोक्यो, जापान


निप्पॉन केदानरेन की ओर से आयोजित भोज में प्रधानमंत्री का वक्तव्य

जापान के वाणिज्यिक संघ निप्पॉन केदानरेन की ओर से आज आयोजित भोज में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के वक्तव्य का मूल पाठ इस प्रकार है:

निप्पॉन केदानरेन में लौटकर मुझे बेहद खुशी हो रही है। मैंने हमेशा उद्योगपतियों के साथ विचार विमर्श को अहमियत दी है और भारत-जापान आर्थिक सहयोग के बारे में अपने विचार साझा किए हैं।

भारत के आर्थिक विकास में जापान का व्यापक योगदान रहा है। पिछले कई वर्षों से जापान सबसे बड़ा द्विपक्षीय दानदाता रहा है और उसकी ओर से मिल रही सहायता के लिए हम उसके आभारी हैं। जापान ने दिल्ली मैट्रो और अब फ्रेट कॉरीडोर जैसी हमारी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ढांचागत परियोजनाओं में हमारी वित्तीय सहायता की है।

जापान ने आर्थिक सुधारों के बाद की अवधि में भारतीय उद्योग के आधुनिकीकरण में भी अहम भूमिका निभाई। मारूति-सुजुकी भागीदारी भारत में घर-घर में चर्चित है। ऐसे ही कई और भी उदाहरण है।

अक्तूबर, 2010 की मेरी पिछली जापान यात्रा के बाद से हमारी अर्थव्यवस्थाओं ने बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना किया है।

जापान को फुकुशिमा में अभूतपूर्व आपदा झेलनी पड़ी है। आप ने उस चुनौती का सामना दृढ़ता और निश्चय के साथ किया और इस समस्या से निपटने का आपका तरीका बेहद सराहनीय रहा है। जहां तक आर्थिक पक्ष की बात है, वर्तमान आर्थिक पूर्वानुमान तथा जापान के कारोबारियों में भरोसा बढ़ना सकारात्मक घटनाक्रम हैं। जापान की सफलता में भारत और दुनिया के सशक्त आर्थिक एवं रणनीतिक हित हैं।

दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के सामने मौजूद कठिन परिस्थितियों से भारत भी अछूता नहीं रहा है। अंतर्राष्ट्रीय कारकों और घरेलू दबावों की वजह से पिछले साल हमारी विकास दर घटकर पाँच प्रतिशत रह गई। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, लेकिन आर्थिक विकास के मोर्चे पर हमने घरेलू दबावों का सामना डटकर किया है।

पिछले साल की पाँच प्रतिशत विकास दर को अस्थायी मंदी के रूप में देखा जाना चाहिए। पिछले साल की पाँच प्रतिशत विकास दर सहित पिछले एक दशक से ज्यादा अर्से से भारतीय अर्थव्यवस्था की औसत विकास दर आठ प्रतिशत रही है, जिन आर्थिक मूलभूत तत्वों की वजह से ऐसा संभव हुआ था, वे आज भी बरकरार है। हमें यकीन है कि हम आठ प्रतिशत विकास दर पर लौट सकते हैं।

अपने विकास की सभी संभावनाओं का पता लगाने तथा विकास को समावेशी और धारणीय बनाने के लिए भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना में कई कार्यों की रूपरेखा तैयार की गई है। हमारी जनता त्वरित विकास के फायदों का स्वाद चख चुकी है और वह इससे कम में संतुष्ट नहीं होगी। मैं आप लोगों को भरोसा दिलाता हूं कि हमारी सरकार हमारी अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक हित के लिए कड़े और मुश्किल फैसले लेने के लिए प्रतिबद्ध है।

हाल के महीनों में हमने अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के लिए कई कदम उठाए हैं। हमने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करना शुरू किया है और वित्तीय समावेशन के लिए मध्यम अवधि के रास्ते का खाका तैयार किया है। हम विशेष तंत्रों के गठन के माध्यम से बुनियादी ढांचे से जुड़ी बड़ी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी लाए हैं, ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि विभिन्न विनियामक मंजूरियों की वजह से विलंब न हो। हमने निवेश के लिए लाभ बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। हमने बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्रों, विद्युत विनिमय और नागरिक उड्डयन जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश को उदार बनाया है तथा हमारी उसे और ज्यादा तर्कसंगत एवं सरल बनाने की योजना है। हमने वित्तीय बाजारों में और भी कई सुधारों की शुरूआत की है। केन्द्रीय बैंक ने संकेत दिया है कि वह नये बैंकों का लाइसेंस प्रदान करने की प्रक्रिया का विस्तार शुरू करेगा।

इन प्रयासों के परिणाम स्वरूप हमें उम्मीद है कि वर्ष 2013-14 में विकास दर पिछले वर्ष के मुकाबले काफी अच्छी, तकरीबन छह प्रतिशत या उसके आसपास रहेगी। वर्ष 2014-15 में हम और भी बेहतर करेंगे।

विकास के लिए हमारी रणनीति में बुनियादी ढांचे में भारी निवेश शामिल है। गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे की कमी भारत में प्रतिस्पर्धा के उच्चस्तर हासिल करने की दिशा में अकेली बहुत बड़ी रूकावट है। हमने 12वीं पंचवर्षीय योजना में बुनियादी ढांचे में करीब दस खरब अमरीकी डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है, जिसमें से आधा निजी क्षेत्र और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से आएगा।

भारत के विकास से विदेशी निवेश की संभावनाओं में वृद्धि होगी। हम अपने देश की अर्थव्यवस्था के विकास में विशेषकर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचागत क्षेत्रों में विदेशी निवेश का स्वागत करते हैं। मुझे उम्मीद है कि जापानी व्यापार जगत भारत की ओर से प्रस्तुत किए जा रहे निवेश के अवसरों का भरपूर लाभ उठाएगा।

दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने की व्यापक संभावना है। एशियाई लोकतांत्रिक देश होने के नाते हमारे मूल्य साझा हैं। दोनों देशों की सरकारों के बीच बहुत सहज रिश्ते हैं। दोनों देशों की जनता में अत्यधिक सद्भावना है।

इन समानताओं को देखते हुए, मेरा मानना है कि हमने क्षमता से बहुत कम काम किया है। मुझे बताया गया है कि जापान की कंपनियां भारत को सबसे भरोसेमंद दीर्घकालिक स्थल मानती हैं। हालांकि जापान की ओर से एशिया में किए जाने वाले कुल निवेश का महज चार प्रतिशत ही भारत में लगाया जाता है। मुझे यकीन है कि आप इस बात से सहमत होंगे कि यह प्रतिशत कहीं ज्यादा होना चाहिए। अपनी ओर से हम इस वायदे को हकीकत में बदलने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे।

अब, मैं कुछ ऐसे क्षेत्रों की चर्चा करूंगा, जहां भारत और जापान एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं और जो संबंधों को बढ़ाने का आधार बन सकते हैं।

भारत और जापान की भागीदारी में दो महत्वपूर्ण परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, इनमें मुंबई और दिल्ली के बीच वेस्टर्न डेटिकेटेड रेल फ्रेट कॉरीडोर तथा दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा शामिल है। दोनों परियाजनाओं में अच्छी प्रगति हो रही है।

दिल्ली और मुबंई के बीच वेस्टर्न डेटिकेटेड रेल फ्रेट कॉरीडोर के 2017 तक बनकर तैयार होने का कार्यक्रम नियत किया गया है। परियोजना के पहले चरण के लिए लोक निर्माण संबंधी खरीद अग्रिम अवस्था में पहुंच चुकी है और निर्माण जल्द ही शुरू होने वाला है। डीएफसी परियोजना के चरण-दो के लिए अभियांत्रिकी सेवा परामर्श पहले ही लिया जा चुका है। मुझे उम्मीद है कि निर्माण कार्यों से जुड़ी जापान की कंपनियां दोनों चरणों में व्यापक भागीदारी करेंगी।

दिल्‍ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना भी अच्‍छी प्रगति कर रही है। यह नियोजन से क्रियान्‍वयन के चरण में पहुंच चुकी है। मुझे यह कहते खुशी हो रही है कि आपने जो भी सिफारिशें की थीं, वे क्रियान्वित हो चुकीं हैं। जेआईसीए ने परियोजना के लिए 1.5 बिलियन डॉलर और जेबीआईसी ने 3 बिलियन डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है। जेबीआईसी को डीएमआईसी विकास निगम में 26 प्रतिशत की इक्विटी दी गई है, जिससे इस महत्‍वपूर्ण परियोजना में वह वैश्विक रणनीतिक भागीदारी बन गई है।

इस परियोजना में प्रधानमंत्री आबे ने विशेष रूचि दिखाई है। मुझे विश्‍वास है, इससे भविष्‍य के स्‍मार्ट और धारणीय औद्योगिक शहर, शहरीकरण और हमारी युवा जनसंख्‍या के लिए रोजगार के अवसर सृजन करने की चुनौतियों का मुकाबला कर सकेंगे।

जापान द्वारा परियोजना के लिए दी गई 4.5 बिलियन अमरीकी डॉलर की किस्‍त से अनेक परियोजनाएं क्रियान्‍वयन के लिए सूचीबद्ध हैं। हम प्राथमिकता क्षेत्र की डीएमआईसी परियोजनाओं को ऋण की समस्‍या का समाधान कर चुके हैं। विदेशी मुद्रा में ऋण लेने के प्रतिबंध में ढील दी गयी है। दीर्घकालिक विनिमय से जुड़ी कुछ समस्‍याएं बची हुई हैं। इन समस्‍याओं के हल के लिए नवोन्‍मेषी सुझावों पर विचार करने के लिए हम तैयार हैं। मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि जापानी बैंकों को मेट्रोपोलिटन क्षेत्रों में शाखाएं खोलने के लिए लाइसेंस दिए जा चुके हैं।

मुझे इस बात की भी जानकारी है कि जापान ने मुंबई-अहमदाबाद उच्‍च गति रेल मार्ग की विस्‍तृत परियोजना रिपोर्ट के लिए वित्‍तीय और तकनीकी सहायता की पेशकश की है। यह एक महत्वाकांक्षी परियोजना है और हमें इस बारे में ढांचागत ज़रूरतों, वाणिज्यिक क्षमता, समग्र राष्‍ट्रीय प्राथमिकता और उपलब्‍ध वित्‍तीय संसाधनों के आधार पर अपना दृष्टिकोण बनाना होगा। हम चाहते हैं कि संयुक्‍त संभाव्‍यता अध्‍ययन के लिए भारत और जापान संयुक्‍त रूप से वित्‍त पोषण करें।

चेन्‍नई-बेंगलूरू औद्योगिक गलियारा भारत में अनेक जापानी कं‍पनियों के लिए आधार है। यह भविष्‍य में विस्‍तारित जापानी औद्योगिक सहयोग पर ध्‍यान केन्द्रित कराता है। मुझे खुशी है कि इस गलियारे के लिए व्‍यापक एकीकृत मास्‍टर प्‍लान का प्रारंभिक अध्‍ययन पूरा हो चुका है और परियोजना का दूसरा चरण शुरू होने वाला है।

वर्तमान का 18 बिलियन डॉलर का अमरीकी व्‍यापार हमारी क्षमता के साथ न्‍याय नहीं है। हमें अपने व्‍यापक आर्थिक भागीदारी समझौते की भरपूर क्षमता से अपने व्‍यापार का विस्‍तार और उसे और अधिक व्‍यापक तथा संतुलित बनाना होगा। मुझे उम्‍मीद है कि भारत की फार्मास्‍युटीकल्‍स और आईटी सेवाओं की मजबूत भारतीय कंपनियों के लिए जापान खुलेपन का रवैया अपनाएगा। मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि नवम्‍बर 2012 में किया गया सामाजिक सुरक्षा समझौता भारतीयों और जापानियों के लिए लाभकारी होगा, जो एक-दूसरे के देश में रहते और काम करते हैं।

पिछले कुछ वर्षों से भारत-जापान ऊर्जा संवाद में लगे हुए हैं ताकि हाईड्रोकार्बन्‍स की निश्चित, विश्‍वसनीय, सुरक्षित और सुलभ आपूर्ति सहित ऊर्जा सुरक्षा की साझा चुनौतियों का सामना किया जा सके। भारत में सौर ऊर्जा उत्‍पादन, स्‍वच्‍छ कोयला प्रौद्योगिकी और भूरे कोयले के उन्‍नयन के क्षेत्र में जापानी निवेश का स्‍वागत किया जाएगा। हम गैस हाईड्रेट आरएनडी केन्‍द्र की स्‍थापना में जापानी सहयोग की अपेक्षा करते हैं।

ऊर्जा संवाद का यह परिणाम निकला है कि इस वर्ष सितम्‍बर में भारत में जापान की अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। मुझे विश्‍वास है कि यह बड़ी संख्‍या में जापानी कंपनियों को अपने उत्‍पादों और प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन तथा भारतीय कंपनियों के लिए भागीदारी बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगा।

भारत और जापान दोनों तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) के बड़े आयातक हैं। मुझे खुशी है कि भारत और जापान की अनुसंधान संस्‍थाएं एशियाई आयातकों के लिए एलएनजी की कीमत पर अध्‍ययन कर रहीं हैं, जो इस वर्ष के अंत तक पूरा हो जाएगा।

भारत के औद्योगिक विकास और बड़ी युवा जनसंख्‍या के लिए अवसर और रोजगार प्रदान करने के लिए कौशल विकास एक मुख्‍य राष्‍ट्रीय प्राथमिकता है। हम भारत में कौशल विकास केन्‍द्र की स्‍थापना में उसी तरह का निकट सहयोग चाहते हैं जिस तरह वह हैदराबाद में नये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थानों में कर रहा है।

भारत-जापान भागीदारी दोनों देशों के लिए आज जितनी महत्‍वपूर्ण है, उतनी पहले कभी नहीं थी। यह संभावनाओं से ओतप्रोत है। दोनों देशों के बीच मजबूत वाणिज्यिक भागीदारी संबंधों में मील का पत्‍थर साबित होगी। यह दोनों देशों के आर्थिक विकास में ही योगदान नहीं देगा, बल्कि भारत और जापान के रणनीतिक हित में भी होगा। यह एशिया और अन्‍य क्षेत्रों में स्‍थायी समृद्धि में भी योगदान देगा।

मैं निप्‍पन केदानरेन को अ‍तीत में भारत-जापान सहयोग बढ़ाने के लिए धन्‍यवाद देता हूं और आग्रह करता हूं कि यह सहयोग जारी रखें, जो दोनों देशों के आपसी हित में है।