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14 फरवरी, 2014 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित राज्यपालों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए भाषण का अनुदित पाठ इस प्रकार है:-
''मैं अपने वक्तव्य के शुरू में ही यह कहना चाहता हूं कि इस सम्मेलन में अधिक समय बिताना मुझे अच्छा लगता लेकिन संसद का सत्र जारी रहने और कुछ अन्य तात्कालिक मामलों की वजह से मेरे लिए ऐसा करना संभव नहीं है। किंतु, मेरे कार्यालय ने पिछले दो दिनों में हुए विचार विमर्श को रिकार्ड किया है और हम इस सम्मेलन में दिए गए सुझावों पर गौर करेंगे। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, हम राज्यपालों की सलाह को महत्व देते हैं। हमारा मानना है कि व्यापक ज्ञान और अनुभव रखने वाले पुरुष एवं महिलाएं होने के अलावा, राज्यपाल ऐसी बेजोड़ स्थिति में भी हैं, जहां से वे निकट एवं तटस्थ होकर राज्य सरकारों के कार्यों पर निगरानी रख सकते हैं और उनका विश्लेषण कर सकते हैं।
मुझे यकीन है कि यहां हुआ विचार विमर्श सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले राज्यपालों के लिए अत्यंत लाभदायक होगा। मैं भलीभांति समझता हूं कि इस सम्मेलन में मेरी कैबिनेट के 8 सहयोगियों ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं, जिनमें अर्थव्यवस्था की स्थिति, राज्यपालों की भूमिका, सुरक्षा और विदेशों के साथ संबंध जैसे मुद्दे शामिल थे।
ये मुद्दे प्रतिभागी राज्यपालों के लिए मामलों को बेहतर ढंग से समझने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय संदर्श विकसित करने में भी सहायक होने चाहिएं। मुझे नहीं लगता कि कार्य सूची में वर्णित विषयों पर मेरे सहयोगी जो कुछ पहले कह चुके हैं, उसके अलावा मुझे कुछ और कहने की आवश्यकता है। इसलिए मैं कुछ व्यापक विषयों पर बल देने तक अपने को सीमित रखूंगा, जिन्हें मैं महत्वपूर्ण मानता हूं।
अनेक वर्षों तक तीव्र वृद्धि के बाद हमारी अर्थव्यवस्था में पिछले दो वर्षों में कमी आई है। रुपया कमजोर होने और अन्य घरेलू तथा विदेशी घटकों का भी अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विपरीत असर पड़ा है। किंतु, भविष्य के प्रति आशावान होने के हमारे पास कई कारण हैं। मेरी सरकार द्वारा किए गए अनेक उपायों के कारण आर्थिक वृद्धि बहाल होने के संकेत हैं। हमारे प्रयासों में बेहतर मानसून भी सहायक रहा है। उम्मीद है कि अंतिम आंकड़े जारी होने के समय चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से अधिक रहेगी। हमें उम्मीद है कि हमने जो सुधार के उपाय शुरू किए हैं, उनसे परवर्ती वर्षों में वृद्धि दर में बढ़ोत्तरी करने में मदद मिलेगी।
जहां तक आंतरिक सुरक्षा का प्रश्न है जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर और वामपंथी उग्रवाद से पीड़ित क्षेत्रों सहित वर्ष 2013 के दौरान देश में समग्र स्थिति में सुधार आया है। हिंसा का रास्ता छोड़कर हमारे संविधान के दायरे के भीतर समस्याओं का समाधान निकालने के लिए बातचीत के इच्छुक गुटों के साथ बातचीत करने की हमारी नीति पूर्वोत्तर में कारगर सिद्ध हुई है। वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ दो तरफा नीति अपनाने का हमारा दृष्टिकोण भलीभूत हुआ है और उसके उत्साहजनक परिणाम दिखाई दिए हैं। इस नीति में लम्बे और स्थाई अभियान चलाना और साथ ही वामपंथी उग्रवाद से संबंधित विकास एवं शासन के मुद्दों पर ध्यान देना शामिल है। हमने वामपंथी उग्रवाद को कम करने और उससे लड़ने के लिए जो उपाय किए हैं उनमें वामपंथी उग्रवाद से सर्वाधिक प्रभावित, चुने हुए और पिछड़े 88 जिलों के लिए समेकित कार्य योजना बनाना, सड़क और दूरसंचार संपर्क में सुधार, अनुसूचित जनजाति और अन्य वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम के अंतर्गत वन अधिकार प्रदान करने की प्रक्रिया में तेजी लाना, पुलिस स्टेशनों को सुदृढ़ करना, विशेषज्ञ बलों का निर्माण और अतिरिक्त केन्द्रीय बलों की तैनाती शामिल हैं। हमें इन प्रयासों को जारी रखने और अधिक गहन बनाने की आवश्यकता है। हमें केन्द्र और राज्यों के बीच और राज्यों को परस्पर समन्वय सुनिश्चित करना होगा क्योंकि ऐसा करना हमारे प्रयासों की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हमारी सरकार ने आतंकवाद से निपटने के लिए भी अनेक उपाय किए हैं। इनमें अवैध गतिविधियां निवारण अधिनियम, केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की संख्या में वृद्धि, बहु एजेंसी सेंटर (एमएसी) और अनुषंगी बहु एजेंसी सेंटर (एसएमएसी) को सुदृढ़ बनाना, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के चार नए केन्द्र स्थापित करना, तटीय सुरक्षा में वृद्धि करना, राष्ट्रीय जांच एजेंसी की स्थापना और नैटग्रिड का निर्माण शामिल है। वर्ष 2013 के दौरान उग्रवादी हिंसा में कमी आई है। पिछले वर्ष आतंकवादी ताकतों के खिलाफ लड़ने में जबरदस्त सफलता प्राप्त हुई और कुछ कुख्यात उग्रवादियों को गिरफ्तार किया जा सका।
आगे बढ़ने से पहले मैं तीन अन्य मुद्दों का उल्लेख करना चाहूंगा, जो हम सब के लिए चिंता का विषय हैं। इनमें पहला यह है कि पिछले वर्ष, विशेष कर कुछ राज्यों में, सांप्रदायिक गड़बड़ी की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई। सभी राज्य सरकारों को इस स्थिति में बदलाव के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे। राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार दोनों के लिए यह अनिवार्य है कि वे सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी उपाय करें। यह सुनिश्चित करना भी अनिवार्य है कि दोषी व्यक्तियों को अवश्य दंड मिले और सांप्रदायिक गड़बड़ी की घटनाएं खत्म होने पर उनके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का पता लगाया जाए। राज्यपालों को सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने में विशेष रुचि लेनी चाहिए।
दूसरा मुद्दा हमारे समाज और देश में महिलाओं की स्थिति से संबंधित है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं विशेष रूप से चिंता की बात है। हमारी सरकार ने यह मुद्दा हल करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इन उपायों में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 शामिल है। इसका उद्देश्य महिलाओं के प्रति यौन हमले के मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करना और उनके लिए अधिक दंड का प्रावधान करना है। इसके अतिरिक्त महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा, विशेषकर सार्वजनिक स्थलों पर उनकी सुरक्षा बढ़ाने के लिए प्रशासनिक उपाय भी किए गए हैं। कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर रोक लगाने और उनकी पहचान के लिए नया कानून भी बनाया गया है। किंतु एक समाज के नाते हमें इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। मैं सभी राज्यपालों से अनुरोध करता हूं कि वे राज्य सरकारों पर दबाव डालें कि वे महिलाओं से संबंधित मुद्दों के समाधान पर अधिक ध्यान दें।
तीसरा मुद्दा देश के कुछ भागों में अन्य भागों से आने वाले लोगों के प्रति बढ़ती अहसष्णिुता और पक्षपात की घटनाओं से संबद्ध है। हाल ही में देश की राजधानी में एक ऐसी घटना हुई, जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबद्ध एक विद्यार्थी को निरर्थक हिंसा का शिकार होना पड़ा। किसी भी सभ्य समाज में ऐसी घटनाएं बर्दाश्त नहीं की सकती और जो लोग ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं, उनके साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए। यह जरूरी है कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करें कि देश के सभी भागों में नागरिक अपने को सुरक्षित महसूस करें चाहे वे किसी भी क्षेत्र से संबद्ध हों। पूर्वोत्तर के हमारे भाई बहनों को समस्याओं का सामना करने के विशेष मुद्दे पर हमारी सरकार ने हाल ही में एक समिति बनाई है जो इन मुद्दों की जांच करेगी और सुधार के उपाय सुझाएगी।
जहां तक बाहरी सुरक्षा का प्रश्न है, हम अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे और शांतिपूर्ण सह अस्त्वि के संबंध बनाए रखने के प्रति वचनबद्ध हैं। किंतु, हमें अपनी सुरक्षा के बाहरी आयामों की जानकारी है और ऐसे किसी भी खतरे का मुकाबला करने के प्रति हम संकल्पबद्ध हैं। इस सिलसिले में मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि जम्मू कश्मीर में इस वर्ष घुसपैठ की घटनाओं में मामूली वृद्धि के बावजूद हमारे सशस्त्र बल सतर्क रहे हैं और उन्होंने तत्काल कार्रवाई करके यह सुनिश्चित किया है कि घुसपैठ की घटनाएं पिछले वर्षों की तुलना में कम रहें।
अपनी सुरक्षा के आंतरिक और बाहरी खतरों का समाधान करने के लिए हमें अपने सशस्त्र बलों और पुलिस बलों की क्षमताओं को निरंतर सुदृढ़ करना होगा। हम सीमावर्ती क्षेत्रों में महत्वपूर्ण ढांचागत सुविधाएं विकसित करने के अनेक उपाय भी कर रहे हैं।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे देश के पिछड़े और गरीब जिलों में गरीबी और अभाव असंतोष के प्रमुख कारण हैं। इनमें से काफी जिलें अनुसूचित क्षेत्रों में हैं। इसलिए हमें ऐसे इलाकों और देश के अधिक विकसित भागों में रहने वाले लोगों के बीच बढ़ती सामाजिक, आमदनी और विकास की असमानताओं का तुरंत समाधान करने की जरूरत है। काम-काज की संवैधानिक स्कीम के अंतर्गत राज्यपालों को अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन और तेजी से विकास की विशेष जिम्मेदारी दी गई है। देश के जन-जातीय लोगों की काफी पुरानी मांग और अपेक्षाएं पूरी करने में संवैधानिक व्यवस्था की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा बल दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होगा। पूर्वोत्तर के छठी अनुसूची के क्षेत्रों में नियमित चुनाव और कोष तथा काम-काज के अधिक विकेंद्रीकरण से जन-जातीय परिषदों को मजबूत किया गया है। 5वीं अनुसूची के क्षेत्रों में पंचायत (अनुसूची क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम (पीईएसए) से जनता को स्थानीय शासन और सामुदायिक संसाधनों पर नियंत्रण में अधिक भागीदारी मिली है। अनुसूचित जनजाति और अन्य वन निवासियों (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम के अंतर्गत वन अधिकारों को शामिल किए जाने से हमारे जन-जातीय भाइयों और बहनों को काफी सशक्त बनाया गया है। हमें हालांकि इन कानूनों को सही मायने में अमल में लाने के लिए कुछ अधिक काम करना होगा जिनमें अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन संस्थानों में कोष, काम-काज और अधिकारियों में विकेंद्रीयकरण, राज्य के अंतर्गत आने वाले विषयों के कानूनों, नियमों और निर्देशों का पीईएसए के प्रावधानों के अनुरूप अनुपालन सुनिश्चित करना और वन अधिकारों को पीईएसए में शामिल करने की प्रक्रिया पूर्ण करना शामिल है। मैं राज्यपालों से इन कार्यों को संपन्न करने के लिए सभी आवश्यक उपायों के माध्यम से योगदान देने का आग्रह करता हूं।
छठे अनुसूचित क्षेत्रों के विकास के संदर्भ में मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि हमारी सरकार पूर्वोत्तर पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रही है। जैसा कि आपको मालूम है पूर्वोत्तर सामाजिक आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से बड़ी संख्या में परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है। ये परियोजनाएं विशेष रूप से रेल, सड़क, वायु यातायात और दूर संचार के क्षेत्र से संबंधित हैं। राज्यपाल पूर्वोत्तर परिषद के सदस्य भी हैं। उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए क्षेत्रीय योजना इकाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के 2020 के दृटिकोण को परिषद ने तैयार किया है। यह दृष्टिकोण पूर्वोत्तर क्षेत्र के समग्र विकास और प्रगति का साफ खाका है। पूर्वोत्तर में परियोजना प्रबंधन सक्षमताओं को हालांकि विस्तृत करने के लिए अधिक प्रयासों की जरूरत है लेकिन इसके अलावा क्षेत्र की वर्तमान विशेष कठिनाइयों को दूर करने के लिए नवोन्मेषी समाधान की भी जरूरत है। सरकार इन मुद्दों पर विचार कर रही है। जैसा कि आपको मालूम होगा कि पूर्वोत्तर राज्यों के काफी समय से लंबित मुद्दों के जल्द समाधान के तौर-तरीके तय करने के लिए अधिकार प्राप्त मंत्री समूह और सचिवों की समिति का गठन किया गया है। योजना आयोग, पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास का मंत्रालय और पूर्वोत्तर परिषद के बीच तालमेल में सुधार लाने के लिए राज्यपालों द्वारा दिए गए सुझावों पर भी गंभीरतापूर्वक जांच की जाएंगी।
सम्मेलन की कार्यसूची में एक मुद्दा आपदा प्रबंधन है जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारे देश में बड़ी संख्या में प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं की आशंका बनी रहती है। इसके अलावा विश्व भर में मौसम की गंभीर स्थिति बार-बार उत्पन्न हो रही हैं। भूकम्प, बाढ़, सूखा, चक्रवात, जमीन धंसने और औद्योगिक आपदाओं से लोगों को काफी कष्ट झेलने पड़े हैं और इनसे निपटने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी। हमने अपने देश में दो प्रमुख आपदाओं से हुए नुकसान का सामना किया। उत्तराखंड में अचानक बाढ़ की त्रासदी से व्यापक नुकसान हुआ और फेलिन चक्रवाती तूफान से ओडिशा और आंध्र प्रदेश पर विपरीत असर पड़ा। हमारे देश ने आपदा से निपटने की तैयारियों और आपदा प्रबंधन से संबंधित पर्याप्त तंत्र के विकास में काफी प्रगति की है। आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के लागू होने के बाद ऐसा किया गया। इस दिशा में उठाए गए कदमों में राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण और अधिकांश राज्यों में राज्य और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन, राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय आपदा त्वरित कार्य बल और कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राज्य आपदा त्वरित कार्य बल का गठन शामिल है। इसके अलावा राष्ट्रीय और राज्य स्तर के आपदा त्वरित कार्य बल कोष के लिए आपदा प्रबंधन के अंतर्गत राशि प्रदान करने के तंत्र को संस्थागत रूप दिया गया। हाल में ओडिशा और आंध्र प्रदेश में आए चक्रवाती तूफान से निपटने में हमारे समन्वित प्रयासों ने यह सिद्ध कर दिया कि हमने हाल के वर्षों में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। इससे आपदाओं से निपटने में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और जिला प्राधिकरणों की विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल और निकट सहयोग के महत्व को भी रेखांखित होता है।
ये सभी मानते हैं कि आपदा का ज्यादा असर कई मायनों में गरीब लोगों पर होता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी आपदा प्रबंधन सक्षमताओं में और सुधार लाए। आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर व्यय की गई राशि से आपदा के बाद के राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के व्यय में कमी लाई जा सकती है। इसलिए अपनी विकास प्रक्रियाओं के भाग में आपदा जोखिम कटौती के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत हैं। इसके अलावा आपदा से बचाव, क्षति में कमी और तैयारियों से संबंधित गतिविधियों को बेहतर बनाने की भी जरूरत है।
एक सम्मेलन में उच्च शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई यह ऐसा विषय है जिसमें महामहिम राष्ट्रपति जी ने विशेष रूचि ली। इस विषय पर हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा आयोजित कुलपतियों की बैठक में भी चर्चा की गई थी। इसलिए मैं कुछ प्रमुख बिंदुओं पर जोर देते हुए संक्षेप में कुछ कहना चाहूंगा। हमने पिछले 10 वर्षों मे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। हमने उच्च शिक्षा के कई नए संस्थान स्थापित किए हैं और समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के लिए उच्च शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के लिए काम किया है। इनके अनुकूल परिणाम निकले हैं और पिछले 10 वर्षों मे सकल नामांकन अनुपात में काफी सुधार आया है। अब हमें गुणवत्ता की कमी को खास तौर पर दूर करना होगा क्योंकि उच्च शिक्षा प्रणाली के बड़े भाग में कमियां हैं। मैं राज्यपालों से आग्रह करूंगा कि वे इस मुद्दे के समाधान में विशेष रूप से मदद दे भले ही वे राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होने के नाते अन्य मुद्दों पर ध्यान देते रहें। मैं राज्यपालों से यह भी अनुरोध करूंगा कि वे अल्पसंख्यक समुदायों और समाज के अन्य उपेक्षित वर्गों की महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करने में विशेष रूचि लें।
अब मैं भारत के विदेशों के साथ संबंध पर कुछ कहना चाहूंगा। तेजी से एक-दूसरे पर निर्भर और समग्र होते विश्व के विदेशी वातावरण का भारत की सुरक्षा और आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण असर पड़ता है। हमारे पडोस के घटनाक्रम हमारे लिए खास तौर पर महत्व रखते हैं और ये घटनाक्रम सीमांत क्षेत्रों के राज्यों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
हमारे लिए विदेशी वातावरण जटिल है और इसमें आर्थिक अनिश्चितताएं, राजनीतिक अस्थिरताएं और सुरक्षा की चुनौतियां शामिल हैं। इन सब के बावजूद हमने विश्व और खास तौर पर अपने पडोसियों के साथ सम्पर्क और संबंध मजबूत किए हैं ताकि अपने राष्ट्रीय आर्थिक सुधार और सुरक्षित, शांतिपूर्ण, स्थिर विदेशी वातावरण विकसित करने का प्राथमिक उद्देश्य पूरा किया जा सके।
हमने अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में अपनी आवाज को कारगर बनाया है। हमने विश्व के सभी प्रमुख देशों के साथ सशक्त सामरिक भागीदारी बनाई है। हमारी सरकार की महत्वूपर्ण उपलब्धियों में वैश्विक परमाणु व्यवस्था में समायोजन, उच्च प्रौद्योगिकी तक बढ़ती हमारी पहुंच, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधरे स्वरूप में भारत की स्थाई सदस्यता के लिए व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन, नई आर्थिक साझेदारी के समझौते और व्यापार तथा जलवायु परिवर्तन की वार्ताओं में देश की हितों की रक्षा प्रमुख हैं। इन सभी प्रयासों में हमारा यह लक्ष्य रहा है कि सशक्त, समृद्ध और सुरक्षित भारत के सपने को साकार किया जाए।
मैं महामहिम राष्ट्रपति जी को इस महत्वपूर्ण सम्मेलन के आयोजन के लिए हार्दिक धन्यवाद देता हूं। महामहिम राष्ट्रपति जी ने जो नई पहल की है उनसे हमें फायदा हुआ है। हम उनसे लगातार मार्गदर्शन की अपेक्षा करते हैं। मैं सभी राज्यपालों के अपने-अपने राज्यों की प्रगति और विकास के प्रयासों की सफलता की कामना भी करता हूं।"