भाषण [वापस जाएं]

February 2, 2014
कोलकाता (पश्चिम बंगाल)


कोलकाता में इंडियन म्‍यूजियम के द्विशताब्‍दी समारोह में प्रधानमंत्री का भाषण

कोलकाता में इंडियन म्‍यूजियम के द्विशताब्‍दी समारोह में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के भाषण का अनूदित पाठ इस प्रकार है:-
 
"कोलकाता में इंडियन म्‍यूजियम के द्विशताब्‍दी समारोह में भाग लेकर मुझे बेहद प्रसन्‍नता हो रही है। मुझे कुछ समय पहले यहां फिर से नए रूप में प्रस्‍तुत की गई नायाब वस्‍तुओं को देखकर काफी अच्‍छा लगा। मैं इस म्‍यूजियम को नया और उत्‍तम रूप देने में किए गए कठिन परिश्रम के लिए म्‍यूजियम के निदेशक और उनके सहयोगियों की सराहना करता हूं।

इस म्‍यूजियम की स्‍थापना 1814 में की गई थी और यह ऐतिहासिक उतार-चढ़ाव के बीच पूरे 200 साल तक लगातार मौजूद रहा। भारत में ऐसा म्‍यूजियम पहली बार बना और शायद यह एशिया प्रशांत क्षेत्र में विशाल म्‍यूजियम। यह विश्‍व के सबसे विशाल म्‍यूजियम स्मिथसोनियन इंस्‍टीट्यूशन से भी पुराना है। कोलकाता में म्‍यूजियम की स्‍थापना न केवल अन्‍य संग्रहालयों अपितु राष्‍ट्रीय महत्‍व के कई संस्‍थानों के लिए आदर्श बन गई।

यह विडम्‍बना है कि पश्चिमी शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों ने इंडियन म्‍यूजियम की उस समय स्‍थापना की जब हमारा देश अंग्रेजों के शासन के शिकंजे में आने लगा था। इसके बावजूद ये प्रबुद्ध व्‍यक्ति ज्ञान के युग के सूत्रधार बने। 18वीं शताब्‍दी का भारत सामयिक पश्चिमी विद्वानों के लिए रोचक विषय था और वे भारत के ऐतिहासिक अतीत, पुरातन संस्‍कृति और वैज्ञानिक उपलब्धियों का अध्‍ययन करने के इच्‍छुक थे। यह भी कहा जा सकता है कि इंडियन म्‍यूजियम की स्‍थापना भारत जैसे देश की विविध और व्‍यापक विरासत को प्रदर्शित करने की ऐतिहासिक जरूरत थी।

समय की बौद्धिक शैली के अनुरूप इंडियन म्‍यूजियम की स्‍थापना की गई। लंदन में 1660 में रॉयल सोसाइटी की स्‍थापना की गई थी। इसके सौ साल के बाद सर विलियम जोन्‍स ने कलकत्‍ता में एशियाटिक सोसाइटी की स्‍थापना की। इससे भारत की समृद्ध सांस्‍कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की पश्चिम द्वारा व्‍यापक खोज की यात्रा की शुरुआत हुई।

भारत की गहरी, समृद्ध और विविध सांस्‍कृतिक परंपराओं ने शीघ्र इन विद्वानों के प्रारंभिक आश्चर्य को और अधिक सराहनीय और श्रेष्‍ठ बना दिया। डेनमार्क के वन‍स्‍पतिविद् डा. नेथेलियन वालिच ने 1814 में महसूस किया की एशियाटिक सोसाइटी एक बेहतरीन सार्वजनिक संग्रहालय भी बन सकती है। उन्‍होंने कहा कि इस देश के प्राकृतिक इतिहास की जिस तरह अनदेखी की गई है, वह चिंताजनक है और ऐसा प्रतीत होता है कि सुधार के उपाय के रूप में अब एक सार्वजनिक संग्रहालय की जरूरत है। इस आभास से इंडियन म्‍यूजियम की स्‍थापना का मार्ग प्रशस्‍त हुआ।

म्यूजियम बनाना एक ऐसी परियोजना का भाग था, जो कुछ विद्वानों की 20वीं शताब्‍दी के आखिर की सोच यानी अंग्रेजियत के ज्ञान को समर्पित थी। इससे इंडियन म्‍यूजियम के अलावा भारतीय भू सर्वेक्षण, भारतीय सर्वेक्षण, पुरातत्‍व सर्वेक्षण और भारत की जनगणना जैसी महान संस्‍थाओं की स्‍थापना हुई। इस प्रकार एक ऐसी प्रक्रिया को गति मिली जिससे भारत की दोबारा खोज से संबंधित संस्‍थागत प्रादुर्भाव की शुरुआत हुई। यह शुरुआत हालांकि गुलामी के दौर से संबंधित थी लेकिन इस प्रक्रिया ने भारतीयों को अपने इतिहास और परंपराओं के प्रति अधिक सजग और संवेदनशील बना दिया था। म्‍यूजियम को शीघ्र भारतीयों और इससे लाभ उठाने वालो से मदद मिलने लगी। शुरू-शुरू में काली किशन बहादुर और बेगम सुमरू जैसे जाने-माने लोगों ने म्‍यूजियम के लिए सहायता दी। इसकी स्‍थापना से देश के लोगों में स्‍वाभाविक देशभक्ति और गर्व की भावना का संचार हुआ। र‍बीन्‍द्रनाथ टेगौर ने इसकी अभिव्‍यक्ति करते हुए कहा कि इतिहास के पुनर्जागरण के महान अंकुर त‍ब मिले जब लोगों ने अतीत के भंडार में अचानक सोच के अंकुर की खोज की।

इंडियन म्‍यूजियम में आज हमारे देश की कला और पुरावस्‍तुओं का बेहतरीन अपार भंडार है। ईसा पूर्व दूसरी शताब्‍दी के बरहुत की मूर्तियां इंडियन म्‍यूजियम में सचमुच अद्भुत संकलन हैं। वस्‍त्रों का संकलन भी शानदार है। यह एक ऐसा संग्रहालय है जिस पर प्रत्‍येक भारतीय गर्व कर सकता है। इस गर्व का औचित्‍य बताने के लिए हमें इसकी सराहना करनी होगी और मानना होगा कि समय के बीतने के साथ विश्‍वभर में संग्रहालयों की भूमिका और उद्देश्‍य में परिवर्तन आया है। 19वीं शताब्‍दी में संग्रहालयों को कलात्‍मक वस्‍तुओं का भंडारण ही माना जाता था। इनको एकत्रित करना और भंडारण करना संग्रहालयों के अस्तित्‍व के औचित्‍य के लिए पर्याप्‍त था। 17वीं शताब्‍दी में संग्रहालय शब्‍द का महज अर्थ था एक ऐसा भवन जिसमें पुरावस्‍तुओं, प्राकृतिक इतिहास, कला जैसी पुरानी वस्‍तुओं को रखा जा सके। इस प्रकार संग्रहालय इन वस्‍तुओं को रखने का महज स्‍थान बन गया था। समय बीतने के साथ संग्रहालय शब्‍द का अर्थ बदला और इसे नयी पहचान मिली। इसे कला को सीखने की इच्‍छा को स‍मर्पित भवन के रूप में देखा गया। संग्रहालय शब्‍द को दोहरी पहचान बनी और समाज में संग्रहालय की भूमिका महत्‍वपूर्ण बन गई। इसमें न केवल संकलन है अपितु यह सीखने और सीखने के प्रसार का संस्‍थान है।

आधुनिक भारत के निर्माता दरअसल भारत के ऐतिहासिक अतीत से अवगत थे और वे इसकी समृद्धता और इसके मूल्‍य तथा भावी पीढि़यों के लिए इसकी उत्‍सुक्‍ता से भी परिचित थे, इसके अलावा उन्‍हें महत्‍वपूर्ण संस्‍थान निर्माण करने की प्रासंगिकता का भी ज्ञान था। यह जानकर आश्‍चर्य नहीं होता कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सांस्‍कृकि और शैक्षणिक संस्‍थानों के निर्माण पर विशेष रूप से ध्‍यान केंद्रित किया। स्‍वतंत्रा के दो वर्ष बाद नई दिल्‍ली में राष्‍ट्रीय संग्रहालय बनाया गया। राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली में इस संग्रहालय का नामकरण नेहरु स्‍मारक संग्रहालय और पुस्‍तकालय के रूप में किया गया जो कि बैाद्धिक और शैक्षणिक गतिविधियों को बड़ा केन्‍द्र है।

कुल मिलाकर हमारे संग्रहालय देश के समृद्ध अतीत की जानकारी के प्रसार में सफल रहे हैं। यह भी जानना जरूरी है कि क्‍या संग्रहालयों को अपने दृष्टिकोण और नीतियों को इस तरह नहीं बदलना होगा कि वह संग्रहालय के विस्‍तृत आयाम और मायनों के अनुरूप बन सकें।

इसलिए मैं इंडियन म्‍यूजियम के प्रबंधकों का आह्वान करता हूं कि वह परिवर्तन और विकास के प्रतिनिधि के रूप में काम करें। इंडियन म्‍यूजियम आज अपनी नई यात्रा की शुरुआत कर रहा है और इसे ज्ञान के संवाहक की भूमिका के बारे में गंभीर रूप से मनन करना होगा। वर्तमान विश्‍व में संग्रहालय का केवल संकलन का केन्‍द्र बन जाना प्रर्याप्‍त नहीं है। किसी भी संग्रहालय के लिए अपने यहां के संकलन का विश्‍लेषण और दस्‍तावेजीकरण करना होगा, इसके अलावा अन्‍य संग्रहालयों के संकलन का तुलनात्‍मक अध्‍ययन और ऐसे उन महान संग्रहालयों के साथ सहयोग करना होगा जहां के संकलन से उसके बारे में बहुमूल्‍य जानकारी मिलती है।

इसके लिए सबसे ज्‍यादा जरूरी है कि प्रशिक्षित कार्मिक तैयार किए जाएं। दुर्भाग्‍य की बात है कि संग्रहालय विज्ञान के विषय की हमारे देश में अनदेखी की गई है। इस कमी को दूर करने के लिए इंडियन म्‍यूजियक को अग्रणी भूमिका निभानी होगी। ऐसा करते हुए इंडियन म्‍यूजियम न केवल अपने संकलन को समृद्ध बनाएगा अपित देशभर के अन्‍य संग्रहालयों की मदद भी करेगा।

यह एक ऐसा संबंधित आयाम है जिसे मस्‍तिष्‍क में रखा जाना जरूरी है। विश्‍व भर के संग्रहालय अब पर्यटन के महत्‍वपूर्ण केन्‍द्र भी बन गए हैं। हमारे समय के कई महान नगर अपने श्रेष्‍ठ संग्रहालयों की वजह से जाने जाते हैं। संग्रहालयों को देखने के लिए लोग हजारों मील से चलकर आते हैं। संग्रहालयों को देखने से ज्ञान समृद्ध होता है और यह एक अनूठा अनुभव भी होता है। संग्रहालयों में संकेतकों, दस्‍तावेजीकरण और श्रेणीकरण के लिए बडी सहायता की जरूरत है। संग्रहालयों को आकर्षक स्‍थान बनाया जाना जरूरी है जहां दर्शक बिना किसी तनाव के आभास कर सके और कुछ सीख सकें। इंडियन म्‍यूजियम के लिए इसी प्रकार के बुनियादी ढांचे की जरूरत है, ताकि यह विश्‍व के सग्रहालयों में एक बनकर अपना समुचित स्‍थान बना सके। संग्रहालय में नवीनीकरण का काम पूरा किया गया है, जो कि अच्‍छी शुरुआत है। मैं जोरदार अपील करता हूं कि संग्रहालय में बहुभाषी गाइड तैनात किए जाएं, जिससे दर्शकों को संग्रहालय में प्रदर्शित प्रमुख वस्‍तुओं की विस्‍तृत और सटीक जानकारी मिल सकेगी।

संग्रहालय का यह उद्देश्‍य होना चाहिए कि यह कोलकाता में आने वाले किसी भी दर्शक और खासतौर पर विदेशी दर्शक के लिए आकर्षण का विशेष केन्‍द्र बने। इसे दर्शकों को ऐसे कुछ घंटे व्‍य‍तीत करने का अवसर देना चाहिए, जिससे वह उत्‍सुक्‍तापूर्ण शिक्षा और ज्ञान की अपनी प्‍यास मिटा सकें। इसके अलावा भारतीय कला, मूर्तिकला और अन्‍य ऐतिहासिक कलात्‍मक श्रेष्‍ठ वस्‍तुओं को देखकर हमारी असाधारण और समृद्ध परंपराओं की झलक देख सकें। संग्रहालय का संकलन ऐसा अनुभव प्रदान करने के लिए तैयार दिखता है।

अंत में मैं यह तथ्‍य बताना चाहता हूं कि इंडियन म्‍यूजियम को दरअसल आम भाषा में जादूगर कहा जाता है। जादू शब्‍द के अर्थ में जादू और हैरत दोनों शामिल हैं। अब चुनौती है कि इन दोनों आयामों को विस्‍तृत किया जाए और संग्रहालय के स्‍थान को अधिक आकर्षक बनाया जाए, क्‍योंकि जादू जैसे हैरतपूर्ण आभास से ही इंडियन म्‍यूजियम अगले 200 वर्ष तक भी प्रासंगिक बना रहेगा।

मैं इन शब्‍दों के साथ एक बार फिर इस म्‍यूजियम की बहुमूल्‍य विरासत के संरक्षण और इसके आधुनिकीकरण के लिए किए गए कठिन परिश्रम के वास्‍ते इंडियन म्‍यूजियम के निदेशक और कर्मचा‍रियों को पुन: बधाई देना चाहता हूं। इस शुभ अवसर पर मैं आपसे आग्रह करता हूं कि इंडियन म्‍यूजियम को और अधिक जीवंत और अंतरसंवादी स्‍थान बनाकर इसके जादू को अधिक विस्‍तृत बनाएं ताकि यहां आने वाले दर्शक भारत के इस संग्रहालय के ऐसे आश्‍चर्य के आभास से आनंदित हो सकें, जो सदैव बना रहेगा।

जय हिन्‍द।"