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नई दिल्ली में आज प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने राज्य अल्पसंख्यक आयोगों के सम्मेलन मे भाषण दिया। उनके इस संबोधन का मूल पाठ नीचे दिया जा रहा है:-
"मुझे एक बार फिर से इस बहुत महत्वपूर्ण सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में शामिल होने पर बहुत खुशी है। इस अवसर पर मैं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को यह वार्षिक सम्मेलन आयोजित करने पर बधाई देता हूं। मैं अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय आयोग का यह वार्षिक सम्मेलन आयोजित करने के लिए अभिनंदन करता हूं क्योंकि यह हमारे विभिन्न राज्यों के अल्पसंख्यक आयोगों के प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाने की भूमिका निभाता है।
बहुलता भारत की सभ्यता और संस्कृति का मूल मंत्र रहा है। सिर्फ सहिष्णुता ही नहीं, धार्मिक सद्भाव भारत की धर्मनिरपेक्षता का प्रमुख आधार है, इसीलिए भारतीय संविधान में कई तरह के ऐसे अधिकार शामिल किए गये हैं जो सभी नागरिकों के हितों की रक्षा करने के लिए हैं। इनमें धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं। हर सरकार का यह भी पवित्र कर्तव्य है कि वह अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा देने के हरसंभव प्रयास करे और सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को समान अवसर उपलब्ध कराये।
इस उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए कुछ संस्थागत प्रबंध किए गये हैं जिनके जरिए हमारे संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए जो भी सुरक्षात्मक उपाय किए गये हैं, उन्हें लागू किया जा सके और उनका परिपालन हो सके। केन्द्र और राज्य कानूनों तथा सरकार की नीतियों तथा प्रशासनिक स्कीमों में इसकी व्यवस्था की गई है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना केन्द्र सरकार द्वारा 1992 में एक कानून के जरिए की गई थी। मुझे इस बात की खुशी है कि अनेक राज्यों ने भी ऐसे कदम उठाए हैं। फिलहाल 17 राज्य अल्पसंख्यक आयोग विभिन्न राज्यों में मौजूद हैं और मैं समझता हूं कि ऐसे आयोगों की स्थापना अन्य राज्यों में भी सक्रियता से विचाराधीन हैं।
हाल के वर्षों में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राज्यों के अल्पसंख्यक आयोगों ने संविधान की गारंटी के अनुसार अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनके हितों की रक्षा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ताकि वे किसी लोकतंत्रीय राष्ट्र के समान नागरिकों की तरह रह सकें। मैं इस अवसर पर इन उपलब्धियों के लिए आयोगों को बधाई देता हूं।
इन आयोगों ने बहुमत वाले समुदायों की जिम्मेदारी सबके ध्यान में लाने की दिशा में बहुत अच्छा काम किया है ताकि अल्पसंख्यकों के अधिकार सुनिश्चित किए जा सकें। धार्मिक सद्भाव बनाये रखने के लिए, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों समुदायों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि स्वीकार्यता और सद्भाव का माहौल बनाया जा सके। देश के अधिकांश भागों में अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच सद्भावपूर्ण संबंध हैं। हालांकि, ऐसी घटनाएं भी हुईं हैं जहां इन संबंधों की कड़ी परीक्षा हुई है, खासतौर से बाद में। इन इक्का-दुक्का घटनाओं से हमारे देश और समाज की छवि मलिन हुई है। इनके कारण प्रभावित लोगों को तकलीफ होती है। इन घटनाओं के चलते हमारे समाज के बहुत बड़े भाग की क्षमता प्रभावित होती है और खासतौर से देश की तेज आर्थिक प्रगति में बाधा पड़ती है।
केन्द्र सरकार ने भी अनेक ऐसे संस्थान कायम किए हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि अल्पसंख्यकों को पर्याप्त रक्षा के उपाय उपलब्ध कराये जाएं जो अवसरों के विकास में सबको उपलब्ध रहें। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (एनएमडीएफसी) अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को रियायती दरों पर रोजगार गतिविधियों के लिए रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराता है। अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों का राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया गया है जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा कर सके और उनकी पंसद के शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने के अधिकारों की रक्षा कर सके। पिछड़े अल्पसंख्यकों के शिक्षा संस्थानों की रक्षा के लिए मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान (एमएईएफ) अनेक शैक्षिक स्कीमें बनाता और उन्हें लागू करता है। सैन्ट्रल वक्फ काउंसिल सरकार को राज्य वक्फ बोर्डों तथा देश की वक्फ संपत्ति के ठीक प्रशासन मामलों के बारे में कानून बनाने पर सरकार को सलाह देती है। पिछड़े वर्गों से संबंधित राष्ट्रीय आयोग धार्मिक अल्पसंख्यकों समेत पिछड़े वर्गों की सामाजिक एंव शैक्षिक पिछड़ेपन की स्थिति की छानबीन करता है इनमें धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं।
मेरा ख्याल है कि सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों को सामाजिक एवं आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए वे सभी सर्वश्रेष्ठ उपाय किए हैं जो संभव हैं। अल्पसंख्यकों के लिए नया 15 सूत्री कार्यक्रम सरकार ने 2006 में जारी किया था। इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों का कल्याण, रक्षा और विकास सुनिश्चित करना है। इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य इस बात को सुनिश्चित करने पर है कि विभिन्न विकास स्कीमों के लाभ अल्पसंख्यकों और खासतौर से जिन इलाकों में इनकी संख्या ज्यादा है, वो समान रूप से उपलब्ध कराये जाएं। जहां भी संभव है, विभिन्न गरीबीशमन स्कीमों के 15 प्रतिशत लक्ष्य और आवंटन अल्पसंख्यकों के लिए किए जाने की जरूरत है। सरकार ने भी अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व तार्किक रूप से किये जाने की आशा की जाती है ताकि सरकार और सरकारी उपक्रमों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
पिछले नौ वर्षों की हमारी कोशिशों के स्पष्ट परिणाम दिखाई दिए हैं, लेकिन इस दिशा में काफी कुछ और किए जाने की जरूरत है। बैंकों द्वारा अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता क्षेत्र में ऋण देने में वृद्धि करने की जरूरत है और इसे 2007-08 के लगभग 59,000 करोड़ से बढ़ाकर 2012-13 तक 1,85,000 करोड़ रुपये करने की आवश्यकता है। केन्द्र सरकार और केन्द्रीय सरकार के उपक्रमों में भर्ती 2006-07 के 6.9 प्रतिशत से बढ़ाकर 2012-13 तक 7.4 प्रतिशत करने की जरूरत है। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत लगभग 11.5 लाख अल्पसंख्यक लाभार्थियों को 2006-07 से लेकर 2012-13 तक लाभ पहुंचाया गया है। इन्दिरा गांधी आवास योजना के अंतर्गत 22 लाख मकान अल्पसंख्यकों के लिए 75,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाये गये हैं। इसी तरह से अल्पसंख्यक समुदायों के बड़ी संख्या में स्त्री पुरूष और बच्चे सर्वशिक्षा अभियान, आईसीडीएस और स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के अंतर्गत लाभ प्राप्त कर चुके हैं। अल्पसंख्यक समुदायों के लिए हमने बड़ी-बड़ी छात्रवृत्ति योजनाएं भी लागू की हैं।
मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी है कि हम प्राइवेट सेक्टर को काफी हद तक उनके कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी कार्यक्रम से लाभान्वित करने के लिए समझाने-बुझाने में कामयाब रहे हैं।
इन उपायों की सफलता काफी हद तक राज्यों के सहयोग पर निर्भर करती है। अगर केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें तो इन कार्यक्रमों को लागू करना अधिक प्रभावी हो सकता है। मेरा ख्याल है कि अल्पसंख्यक आयोगों को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। ऐसा करते हुए भी ये नतीजे हासिल किए जा सकेंगे और मैं उनके मौजूदा प्रतिनिधियों से आग्रह करता हूं कि वह इस दिशा में अपनी कोशिशें पहले के मुकाबले दोगुनी और जोरदार कर दें।
सभी अल्पसंख्यक समुदाय एक समान नहीं होते। सामाजिक और आर्थिक विकास के कार्यक्रमों से कुछ समुदायों ने तो फायदा उठाने की दिशा में बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन कुछ अल्पसंख्यक समुदायों ने और खासतौर से मुस्लिम समुदाय ने देश के कुछ भागों में विकास में एक जैसी भागीदारी नहीं की है। हाल ही में, सच्चर कमेटी ने जो आंकड़े हमारी सरकार को पेश किए हैं उनसे यह बात स्पष्ट हो गई है।
किसी भी लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार के लिए यह उचित होता है कि वह असंतुलन और असमानताएं दूर करें। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमने सच्चर कमेटी की 76 में से 72 सिफारिशें मंजूर कर ली हैं और संबद्ध मंत्रालयों द्वारा 43 फैसले किए जा चुके हैं जिनके जरिए 72 सिफारिशें लागू की जा रहीं हैं। बाकी चार सिफारिशों के बारे में कार्रवाई जा रही है, लेकिन यह मामला अदालत में है। सच्चर कमेटी ने अनेक ऐसे सरोकार उठाये हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री के नये 15 सूत्री कार्यक्रम के जरिए मंजूर किया जा चुका है।
मैं बहु क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम का इस संदर्भ में खासतौर से उल्लेख करूंगा जिसकी शुरूआत 2008-09 में सच्चर समिति की सिफारिशों के अनुसरण में देश के उस 90 जिलों में किया गया जहां पर अल्पसंख्यक वर्ग के समुदाय की अधिकता है। इन कार्यक्रमों के लिए 11वीं योजना के दौरान 3,700 करोड़ रुपये की निधियां आवंटित की जा चुकी हैं जिसे 12वीं योजना के दौरान बढ़ाकर रुपये 5,800 करोड़ कर दिया। 2013-14 से जिला स्तर से ब्लॉक स्तर को इन कार्यक्रमों के नियोजन और कार्यान्वयन की यूनिट बना दिया गया और अब 710 अल्पसंख्यक बहुल ब्लॉकों को लाभान्वित किया जा रहा है। इसके अलावा 66 अल्पसंख्यकों का बहुतायत वाले कस्बों की, इस कार्यक्रम के अंतर्गत पहचान की गई है। इस कार्यक्रम के शुरू किए जाने से अब तक अनेक विकास कार्य किए जा चुके हैं जिनमें स्कूल भवन, होस्टल, प्रारंभिक स्वास्थ्य केन्द्र, आंगनवाड़ी केन्द्र, आईटीआई और पॉलिटेक्निक का निर्माण शामिल हैं।
सच्चर कमेटी की जो सिफारिशें मंजूर की जा चुकी हैं उनके कार्यान्वयन की प्रगति की समय-समय पर अल्पसंख्यक मंत्रालय समीक्षा करता है। सचिवों की समिति हर छह महीने बाद भी इसकी समीक्षा करती है और प्रगति की रिपोर्ट केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत करती है।
मेरे विचार में यह याद रखना बहुत महत्वपूर्ण हैं कि बहु-सांस्कृतिक समाज और सहिष्णुता हमारी परंपरा में शामिल रहा है। भारत जैसे एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए सदियों से यह जीवन शैली रही है। हमें उन लोगों से सावधान रहना है, जो इन परंपराओं के खिलाफ और भारत के धर्मनिरपेक्ष विचार के विरुद्ध धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करने की कोशिश करते हैं।
एक देश के रूप में एकता में ही हमारी शक्ति निहित है। हमें उन ताकतों के खिलाफ चौकस रहना है, जो धर्म, भाषा और संस्कृति के रूप में हमारी विविधता से फायदा उठाना चाहते हैं।
अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के अल्पसंख्यकों आयोगों को सतर्क रह कर अपनी भूमिका निभानी चाहिए और माकूल उपायों और अल्पसंख्यकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार के उपायों की सिफारिश करके सरकार के हाथ मज़बूत करने चाहिए। इससे भारतीय संविधान के रचनाकारों का सपना साकार करने में हमें मदद मिलेगी और हम ऐसे राष्ट्र का निर्माण करने में प्रतिबद्ध होंगे जो समतावादी विकास और भारतीय समाज के हर वर्ग को समानता के आधार पर आगे बढ़ने के अवसर देगा।
जहां तक राज्यों का संबंध है, उन्हें अल्पसंख्यकों की बुनियादी जरूरतों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्यचर्या, आवास और रोजगार की जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए और इस बात पर बल देना चाहिए कि सुशासन और सामाजिक आर्थिक विकास की प्रक्रियाओं में अल्पसंख्यकों की भागीदारी हो।
इन शब्दों के साथ, मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि मैं इस उद्घाटन समारोह का एक अंग बना। इस महत्वपूर्ण सम्मेलन के निष्कर्षों की जानकारी पाकर मुझे बहुत खुशी होगी। मेरी कामना है कि इस दिशा में आपके प्रयास सफल हों।
धन्यवाद, जयहिन्द।"