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आज नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एनआईटी) के निदेशकों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा दिये गए भाषण का मूल पाठ इस प्रकार है:-
"मैं आदरणीय राष्ट्रपति जी को यह सम्मेलन आयोजित करने और उच्च शिक्षा से संबंधित मुद्दों में सक्रिय रूचि लेने के लिए धन्यवाद देते हुए अपने शब्दों की शुरूआत करता हूं। पिछले वर्ष फरवरी में उन्होंने केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मेलन भी बुलाया था और मैं समझता हूं कि दूसरा सम्मेलन भी जल्दी ही आयोजित किया जाएगा। मुझे विश्वास है कि इन पहलों से हमारे देश में उच्च शिक्षा को काफी लाभ पहुंचेगा तथा इससे उच्च शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में दूसरों को भी प्रयास करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
एनआईटी राष्ट्रीय महत्व के संस्थान हैं। ये देश की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था की तकनीकी मानव शक्ति आवश्यकताओं के लिए काफी योगदान करते हैं। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि वर्ष 2012-13 में इनमें 15,000 से अधिक स्नातक और लगभग 11,000 स्नातकोत्तर छात्रों ने प्रवेश लिया था। इनसे भारतीय प्रौद्योगिक संस्थानों जैसे प्रमुख संस्थानों द्वारा शिक्षित किये गए इंजीनियर स्नातकों की गुणवत्ता के बराबर ही इंजीनियरिंग स्नातक तैयार करने की आशा है।
यह इन संस्थानों की एक आकर्षक यात्रा ही है कि आज हम इन्हें राष्ट्रीय औद्योगिक संस्थान के रूप में जानते हैं। छठे दशक की शुरूआत में इन संस्थानों में से 8 संस्थान रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में शुरू किये गए थे। इन संस्थानों को चलाने का खर्च केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा बराबर –बराबर अनुपात में उठाया गया था। 1986 तक रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। वर्ष 2003-04 में इन 17 कॉलेजों को राष्ट्रीय प्रौद्योगिक संस्थानों में परिवर्तित कर दिया गया। आज एनआईटी की कुल संख्या 30 हो गई है।
इन वर्षों में एनआईटी से पासिंग आउट इंजीनियरिंग स्नातकों की संख्या में कई गुणा वृद्धि हुई है। इसी तरह इन पर आने वाला खर्च भी बढ़ा है, जिसे अब केन्द्र सरकार पूरी तरह वहन कर रही है। उदाहरण के तौर पर एनआईटी पर खर्च होने वाली राशि 2002 से 2012 की अवधि में 491 करोड़ से बढ़कर 1050 करोड़ से अधिक हो गई है। मुख्य बात यह है कि एनआईटी अब पहले से कहीं अधिक सीमा तक स्वायत्तशासी हो गए हैं।
इन सभी परिवर्तनों के पीछे महत्वपूर्ण आकांक्षाएं-एनआईटी में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना, उनमें और देश के प्रमुख संस्थानों के बीच अंतर को कम करना, उद्योग के साथ सहयोग और भागीदारी को बढ़ावा देना है। ये आकांक्षाएं कुछ हद तक पूरी हुई हैं। आज न केवल एनआईटी में पढ़ने वाले छात्रों की कुल संख्या में पिछले वर्षों की तुलना में काफी वृद्धि हुई है, बल्कि इन संस्थानों द्वारा दी गई पीएचडी उपाधियों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हुई है। एनआईटी ने विदेशी छात्रों की डायरेक्ट एडमिशन स्कीम के अधीन विदेशों से भी छात्रों को आकर्षित करना शुरू किया है। लेकिन एनआईटी प्रणाली को अभी लंबा रास्ता तय करना है।
एनआईटी के लिए निर्धारित किये गये लक्ष्यों में सबसे कठिन संकाय की गुणवत्ता को अर्जित करना है। यह खुशी की बात है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने निश्चित मानकों को पूरा करने की शर्त पर एनआईटी के लिए आईआईटी के बराबर वेतन लागू किया है। प्रत्येक पदोन्नति स्केल पर सीधी भर्ती के प्रावधान से संकाय को अनुसंधान और औद्योगिक सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा मिलेगी। मुझे विश्वास है कि इन पहलों से एनआईटी में शैक्षिक और अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
एनआईटी के कामकाज की समीक्षा के लिए बनी काकोडकर समिति की एक सिफारिश में अनुसंधान और शिक्षण को मजबूत बनाने की बात कही गई थी। इस सिफारिश को “प्रशिक्षु-शिक्षक” योजना के जरिए लागू करना था। इस योजना के तहत सभी एनआईटी के अव्वल 15 प्रतिशत छात्र तथा अन्य केन्द्रीय वित्त पोषित तकनीकी संस्थानों (सीएफटीआई) का चयन आईआईटी में पीएचडी कार्यक्रम के लिए होगा और साथ-साथ इन चयनित लोगों की ठेके पर नियुक्ति एनआईटी में पढ़ाने के लिए की जाएगी। ऐसे चयनित लोग यह कार्य स्नातकोत्तर सह पीएचडी उपाधि के लिए पढ़ाई जारी रख सकते हैं। मैं आग्रह करुंगा की इस सिफारिश पर सावधानीपूर्वक तेजी से विचार हो।
मैं यह समझता हूं कि काकोडकर समिति ने समय-समय पर एनआईटी के बाहरी संस्थागत मूल्याकंन की भी सिफारिश की है। मैं मानता हूं की यह अच्छी सिफारिश है, जिससे शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता बढ़ेगी। मैं विभिन्न एनआईटी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स से आग्रह करुंगा की वे तेजी से इस सिफारिश पर कार्रवाई करें।
मैंने पहले भी कई अवसरों पर कहा है संयुक्त प्रगतिशील गठवंधन सरकार ने शिक्षा पर विशेष जोर दिया है। पिछले 9 वर्षों में सभी स्तरों-प्राथमिक माध्यमिक तथा उच्च-पर शिक्षा प्रणाली का अप्रत्याशित विस्तार हुआ है। 11वीं योजना में 65 नये केन्द्रीय संस्थान स्थापित किये गये। इनमें 21 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 8 आईआईटी, 7 भारतीय प्रबंध संस्थान, 5 इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एण्ड रिसर्च, 2 स्कूल ऑफ प्लानिंग एण्ड आर्किटेक्चर तथा 10 एनआईटी शामिल हैं। योजना अवधि में उच्च शिक्षा में नामांकन 166 लाख से बढ़कर 260 लाख हो गया। 2006-07 में जहां सकल नामांकन अनुपात 12.3 प्रतिशत था जो 2011-2012 में बढ़कर 17.9 प्रतिशत हो गया है। ११वीं योजना में इंजीनियरिंग क्षेत्र में नामांकन में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
यह सभी प्रयास इस विचार से प्रेरित हैं कि कुशल कार्य बल देश की सामाजिक आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक है। हमारी आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा युवाओं-युवतियों का है। इस आबादी का पूर्ण लाभ लेने के लिए शिक्षा तक पहुंच बढाने तथा शिक्षा की गुणवत्ता बनाये रखना आवश्यक है।
12वीं योजना में विस्तार, समानता, तथा उत्कृष्ठता पर जोर बना रहेगा और इसके साथ ही 12वीं योजना के लाभों को मजबूत करते हुए उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष बल होगा।
हमारे देश में जहां तक विज्ञान और टेक्नलोजी में उच्च शिक्षा की बात है, आगे चुनौतियां बड़ी हैं। आज हम कहां खड़े हैं इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि अनुसंधान में वैज्ञानिक प्रकाशन में हमारा योगदान 2010 में मात्र 3.5 प्रतिशत था। जबकि 2007 में चीन का हिस्सा 21 प्रतिशत था। पेटेन्ट के लिए पूरी दुनिया में दिये आवेदनों में से भारतीयों की ओर से 2010 में मात्र 0.3 प्रतिशत आवेदन दिये गये। वैश्विक अनुसंधान व विकास में भारत का निवेश 2.2 प्रतिशत हैं जो कि चीन के 9.2 प्रतिशत और अमेरिका के 32.4 प्रतिशत से काफी कम है। एनआईटी के निदेशकों को इस हालत मे सुधार के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना होगा।
आज मैं आपसे यह विचार साझा करना चाहता था। मुझे विश्वास है की सम्मेलन में विचार-विमर्श के दौरान अन्य मुद्दे आयेंगे। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि आदरणीय राष्ट्रपति जी के कुशल निर्देशन में यह सम्मेलन में भाग लेने वाले लोग एनआईटी के कामकाज सुधारे के उपाय सुझाएगें जिससे देश के उच्च शिक्षा प्रणाली मे सुधार होगा। मैं इस सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।"