प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा
प्रबंधित कराई गई सामग्री
राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र
द्वारा निर्मित एंव संचालित वेबसाइट
हंगरी के प्रधानमंत्री की भारत की राजकीय यात्रा के अवसर पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए मीडिया बयान का पाठ नीचे दिया गया है:-
"प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन की पहली भारत यात्रा के अवसर पर उनका स्वागत करते हुए मुझे खुशी हो रही है। मैं दोनों देशों के बीच संबंधों को घनिष्ठ बनाने के प्रति उनकी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के लिए सराहना करता हूं। भारत और हंगरी के संबंध परंपरागत दृष्टि से घनिष्ठ और मित्रतापूर्ण रहे हैं, क्योंकि लोगों के बीच सांस्कृतिक लगाव और परस्पर संबंधों का हमारा विशेष इतिहास रहा है।
आज बहुत सारी बातें हैं जो हमारे देशों को एक साथ खड़ा करती हैं। भारत की तरह हंगरी भी एक बढ़ता हुआ लोकतंत्र है। बदलते हुए मध्य यूरोप के केंद्र और यूरोपीय संघ के सदस्य के रूप में हंगरी एक गतिशील अर्थव्यवस्था है। भारतीय निवेशकों की हिस्सेदारी हंगरी में निरंतर बढ़ रही है। अपने अपने तरीके से हमारे दोनों देश, अफगानिस्तान में सुरक्षा और विकास में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं। हंगरी आतंकवाद से निपटने के लिए एकजुट वैश्विक कार्रवाई का समर्थक रहा है। ये सब बातें हमारे संबंधों की मजबूती को आधार प्रदान करती हैं।
प्रधानमंत्री ओर्बन और मैंने आज अत्यंत लाभदायक विचार विमर्श किया है। बातचीत में हमने अपने संबंधों के समूचे परिदृश्य की समीक्षा की है। हम इस बात से सहमत हैं कि परस्पर पूरक शक्तियों के विस्तार, भारत के विशाल और उभरते हुए बाजार तथा हंगरी की यूरोपीय संघ की सदस्यता से हम अपने आर्थिक संबंधों का व्यापक विस्तार कर सकते हैं।
संयुक्त आर्थिक समिति द्वारा किए गए कार्य का हम स्वागत करते हैं, जिसकी बैठक इसी सप्ताह के शुरू में हुई थी, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्युटिकल्स, आटो कम्पोनेंट्स, स्वास्थ्य देखभाल, पर्यटन, ऊर्जा, इंजीनियरी सामान और खाद्य प्रसंस्करण सहित कई अन्य क्षेत्रों की पहचान प्राथमिकता क्षेत्रों के रूप में की गई थी। मैं प्रधानमंत्री ओर्बन से इस बात के लिए भी सहायता चाहता हूं कि वे भारत और यूरोपीय संघ के बीच प्रस्तावित व्यापक आधार वाले व्यापार एवं निवेश समझौते को शीघ्र अंतिम मुकाम पर पहुंचाने में योगदान करें। इस समझौते से भारत और हंगरी के बीच व्यापार एवं निवेश का प्रभाव बढ़ेगा।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारा सहयोग अत्यंत लाभदायक रहा है। दोनों देश संयुक्त कार्यनीतिक अनुसंधान कोष में 10-10 लाख यूरो का वार्षिक अंशदान करते हैं जिससे दोनों देशों को फायदा हुआ है। आज हमारे बीच यह सहमति हुई है कि इस कोष में अब दोनों देश 20-20 लाख यूरो का योगदान करेंगे। इससे उच्च प्रौद्योगिकी लक्ष्यों वाली नई परियोजनाएं शुरू की जा सकेंगी।
हमने रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की है। हंगरी के पास रक्षा उद्योग के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी है और वह हमारे रक्षा आधुनिकीकरण के प्रयासों में भरोसेमंद भागीदार बन सकता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के अंतर्गत भारत की स्थाई सदस्यता के मुद्दे सहित अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में हंगरी के समर्थन की भारत सराहना करता है। 2008 में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के भारत के साथ सिविल परमाणु सहयोग के फैसले में भी हंगरी ने भारत का समर्थन किया था। मैं प्रधानमंत्री ओर्बन से अपील करता हूं कि वे परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और अन्य बहुराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं की पूर्ण सदस्यता भारत को दिलाने में सहयोग करेंगे।
जैसा कि मैंने शुरू में कहा कि भारत और हंगरी के बीच सुदृढ़ सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। हंगरी में भारतविद्या के क्षेत्र में विद्वत्ता की सराहनीय परंपरा रही है। हम फेलोशिप और आदान-प्रदान के जरिए अपने संबंधों के इस महत्वपूर्ण आयाम को निरंतर मजबूत बनाने के प्रयास करते रहेंगे। मुझे विश्वास है कि 2013-15 की अवधि के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के अंतर्गत जिन गतिविधियों की योजना बनाई गई है उनसे हमारे सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री ओर्बन और मैंने व्यापक क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में बातचीत की है। हम दोनों यह भलीभांति समझते हैं कि आतंकवाद और उग्रवाद भारत और हंगरी जैसे आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्रों के प्रति एक साझा खतरा है। हमने महसूस किया है कि आतंकवाद के खिलाफ एक वैश्विक नियामक फ्रेमवर्क तैयार करने की आवश्यकता है और हम इस बारे में परस्पर सहयोग बढ़ाने के बारे में सहमत हैं।
मैं, आपसी संबंधों के विस्तार और उन्हें गहरा करने के लिए प्रधानमंत्री ओर्बन के साथ मिल कर काम करने का इच्छुक हूं।"