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प्रधानमंत्री ने आज नई दिल्ली में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के 9वें स्थापना दिवस पर उपस्थित जनों को संबोधित किया। इस अवसर पर दिये गए उनके भाषण का मूल पाठ नीचे दिया जा रहा है:-
''राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के 9वें स्थापना दिवस पर आयोजित इस समारोह में भाग लेने पर मुझे बहुत खुशी हो रही है।
अब से करीब साढ़े तीन महीने पहले उत्तराखंड को भारी त्रासदी का सामना करना पड़ा। इनमें बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान हुआ और सार्वजनिक मूल सुविधाओं को हानि पहुंची। कारण था बारिश और बाढ़ जो उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे भारत में तबाही मचाया करती हैं और आपदा का रूप धारण कर लेती हैं। इन्हें रोकने और ऐसी आपदाओं का दुष्प्रभाव सीमित रखने की जरूरत है। यह बात सचमुच ही बहुत महत्वपूर्ण है कि हम उत्तराखंड की घटनाओं से सही सबक सीखें।
आगे बढ़ने से पहले मैं, केन्द्र और राज्य सरकारों की उन विभिन्न एजेंसियों, स्वैच्छिक संगठनों और आम जन की सराहना करता हूं, जिन्होंने उत्तराखंड के राहत और बचाव कार्यों में हाथ बटाया। इन सब ने मिलकर मुश्किल हालात में लोगों की जानमाल की रक्षा की।
मैं भारतीय वायुसेना के उन बहादुर नर, नारियों को भी श्रद्धांजलि देता हूं, जिन्होंने दूसरे लोगों की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, राष्ट्रीय आपदा उत्तर बल, नागरिक प्रशासन, वायुसेना और विमान सेवा के बहादुर चालक और पूरा समाज भी उनमें शामिल है, जिन्होंने दूसरों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की। उन्होंने अनुकरणीय साहस और प्रतिबद्धता का परिचय दिया, जो हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। मुझे ये देखकर बहुत खुशी हो रही है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कुछ बहादुर नर-नारियों को आज सम्मानित किया है।
उत्तराखंड में तुरंत राहत और बचाव कार्यों के बाद आपदा के बाद वाली अवधि करीब-करीब पूरी हो चुकी है, लेकिन पुनर्निर्माण, पुनर्वास और लोगों को फिर से काम पर बहाल करने की योजनाएं अभी पूरी नहीं हुई हैं। इस काम में उत्तराखंड सरकार की केन्द्र सरकार हर तरह से मदद करने को प्रतिबद्ध है। इस काम के लिए मंत्रिमंडल की एक समिति भी गठित की गई है, जिसका एक मात्र काम है उत्तराखंड के पुनर्निर्माण और पुनर्वास में हर तरह की सहायता देना। योजना आयोग विभिन्न मंत्रालयों से सलाह मशविरा करके उत्तराखंड को एकमुश्त सहायता देने के लिए काम कर रहा है।
हमारे देश में तरह -तरह के प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाएं आती रहती हैं। हम सब को मालूम है कि अतीत में इनके कारण कितनी तबाही हो चुकी है। इसके अलावा हाल के वर्षों में, पूरी दुनिया में मौसम के कारण होने वाली तकलीफों की मात्रा और बारंबारता बढ़ गई है। इसका हमारी अर्थव्यवस्था और सतत विकास पर गंभीर असर पड़ा है, क्योंकि इस काम में दुर्लभ संसाधन लगाने पड़े हैं और इस तरह से इन आपदाओं के भयानक परिणाम टाले गए हैं। इसीलिए, अब यह उचित जान पड़ता है कि हम पिछले तजुर्बों से सीख लें और अपने आप को ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए तैयार करें और इन घटनाओं के दुष्परिणामों को रोकें। ये भी महत्वपूर्ण है कि हम अपनी राष्ट्रीय मुख्य धारा की विकास पहल को आपदा निवारण रणनीतियों से एकीकृत करें। हम सब का यह मिलाजुला प्रयास होना चाहिए कि पूरे देश में संस्थानों और समुदायों में मिलाकर जो पर्याप्त क्षमता सुनिश्चित की है, उसे आपदाओं के दुष्परिणाम कम करने में लगाए जाएं। ऐसा करते हुए हमें अपने समाज के कमजोर वर्गों का खासतौर से ध्यान रखना है, जिन पर इस तरह की आपदाओं का ज्यादा असर पड़ता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को काम करते हुए अब आठ वर्ष पूरे हो रहे हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि स्थापना के बाद से इस संस्था ने आपदाओं का सामना करने के लिए पर्याप्त संस्थागत तंत्र विकसित किये हैं और इन्हें स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक स्थापित कर दिया गया है। राष्ट्रीय स्तर के एनडीएमए से लेकर राज्य स्तर और ज़िला स्तर के प्राधिकरणों की विभिन्न राज्यों और संघ-शासित प्रदेशों में बड़ी संख्या में स्थापना की गई है। इस दौरान राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय आपदा उत्तर बल की स्थापना भी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर की गई है। इनके लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के प्रयास भी तय कर दिये गए हैं।
देश की आपदा प्रबंधन क्षेत्र में सर्वोच्च संस्था होने के नाते एनडीएमए की कुछ महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ हैं, जिनका निर्वाह करना उसके लिए जरूरी है। इनका निर्धारण आपदा प्रबंधन संबंधी हमारी नीतियों में ही नहीं, बल्कि राज्य प्राधिकरणों के लिए मार्गदर्शन नियम बनाने हेतु भी किया गया है और राज्य योजनाओं में इनका परिपालन करना भी जरूरी है। इनकी एक समन्वयक भूमिका है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस संबंध में जो नीतियां और योजनाएं बनाई गई हैं, उन्हें लागू किया जा सके। इनके अनुसार आपदा प्रबंधन प्रयासों के लिए निधियां जुटाने और इन्हें रोकने के अन्य उपाय करने की सिफ़ारिशें की गईं। आपदा प्रबंधन क्षमता निर्माण और आपदा शमन के भी प्रयास किये जाने चाहिए। यह एक बहुत बड़ा काम है और खासतौर से भारत जैसे विशाल देश में, जहां तरह - तरह की आपदाएं आती रहती हैं। तथापि, एनडीएमए ने ये सभी काम पिछले आठ वर्षों में बखूबी पूरे किये हैं।
एनडीएमए की पूरे देश में आपदा तैयारियों के लिए जागरूकता और तंत्र स्थापना के प्रयास भी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में इस प्राधिकरण ने वर्ष 2011-12 के दौरान भूकम्प तैयारियों का अभ्यास किया। यह अभ्यास 2012-13 के दौरान उत्तर पश्चिम के कई राज्यों में बहु-राज्यीय अभियान के तौर पर किया गया। अपने देश के पूर्वोत्तर राज्यों में भी चालू वित्त वर्ष के दौरान एक ऐसी ही मुहिम चलाई जाएगी। इस प्रकार के अभ्यासों से हमारी तैयारियों की परख ही नहीं होती, बल्कि उन कमियों का भी पता चलता है, जो ऐसी आपदाओं का सामना करने पर सामने आती हैं।
लेकिन देश को आपदाओं के मामले में सुनमय बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने और शमन क्षमता निर्माण का काम पूरा किया जाना है। हमारी संचार व्यवस्था में भी सुधार की जरूरत है, ताकि आपदा संबंधी चेतावनी गाँवों तक अविलंब पहुँचाई जा सके। हमारे पंचायती राज निकायों और स्थानीय समुदायों की क्षमता भी और बढ़ाई जाने की जरूरत है, क्योंकि यही निकाय किसी आपदा की स्थिति में पहले राहत कार्य करने वाले होते हैं। हकीकत यह है कि आपदा का खतरा कम करने की नीतियां हमारी विकास प्रक्रियाओं का एक अभिन्न अंग होनी चाहिए। 12वीं योजना के दस्तावेज में इस बात को मान्यता दी गई है और इस पर खासतौर से जोर दिया गया है।
आपदा प्रबंधन असल में एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें बड़ी संख्या में हितधारकों के सक्रिय और समन्वित भागीदारी की जरूरत होती है। इन हितधारकों में केन्द्र और राज्य सरकारें, पंचायती राज निकाय, सामाजिक संगठन, स्थानीय समुदाय और सामान्य नागरिक शामिल हैं। मैं राज्य सरकारों से आग्रह करुंगा की वे अपने-अपने जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को सशक्त बनाएं और यह सुनिश्चित करें कि उनकी राज्य स्तर की आपदा प्रबंधन योजनाएं और मानक संचालन प्रक्रियाएं कारगर बनाई जाएं तथा उन्हें नियमित रूप से परखा जाए और अद्यतन बनाया जाए। केन्द्र सरकार इस काम में उन्हें हर संभव समर्थन और सहायता देगी। एनडीएमए आपदाओं का सामना करने के लिए अपनी तैयारी को सशक्त बनाएगा और आपदा निवारण शमन आदि के लिए तैयार रहेगा। इस बात की भी कोशिशें की जाएगी कि ऐसे कार्यक्रमों और नीतियों का विकास किया जाए, जो यह सुनिश्चित कर सकें कि हमारे प्रशासन का ढांचा आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार रहे।
इन शब्दों के साथ आइए, एक बार फिर हम उन बहादुर लोगों को श्रद्धांजलि दें जिन्होंने उत्तराखंड में भारतीय लोगों की सेवा करते हुए अपने प्राण निछावर किए। मैं एनडीएमए को भी अपनी शुभकामनाएँ देता हूं।''