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हुमायूं के मकबरे का जीर्णोद्धार पूर्ण होने पर प्रधानमंत्री का संबोधन निम्नानुसार है:-
"लगभग पांच हजार साल पुराने भारतीय इतिहास की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करने वाले इस स्थान पर उपस्थित होकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। प्रसिद्ध वास्तुवित फ्रैंक गैरी ने एक बार कहा था कि अंत में सभ्यता का चरित्र उसके भवन निर्माण में प्रदर्शित होती है। यह स्थान हमारी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण बिन्दु है और आगाखान ट्रस्ट ऑफ कल्चर द्वारा लगभग सात सालों के कठिन परिश्रम के बाद पूरे हुए इस जीर्णोद्धार कार्यक्रम जिसमें भारतीय पूरातत्व सर्वेक्षण और सर डोरावजी ट्रस्ट का सहयोग भी शामिल है। इसके पूरा होने पर आप सब लोगों के साथ इस समारोह में उपस्थिति होना मेरा सौभाग्य है।
भारत दुनियाभर में सांस्कृतिक विरासत के सबसे धनी देशों में से एक है और इस विरासत के संरक्षण और मरम्मत के लिए प्रायोगिक और नये उपाय ढूंढे जा रहे हैं। मुझे याद है कि वर्ष की नवम्बर 2004 में इसी स्थान पर वास्तुविदता के लिए आगाखान पुरस्कार प्रदान करते समय मैंने अपने संबोधन में आशा व्यक्त की थी कि ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण और मरम्मत के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र मिलकर काम करेंगे।
हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के 150वें सालाना समारोह में मैंने भारत में संरक्षण के प्रति इन ऐतिहासिक स्थलों के आस-पास रहने वाले समुदायों के सामाजिक और आर्थिक् आवश्यकताओं पर ध्यान केन्द्रित कर संरक्षण नीति बनाने पर जोर दिया था। यहीं एक दीर्घकालीक उपाय है, जिससे हम अपनी सांस्कृतिक विरासत के इस विशाल कार्य को पूरा कर सकते हैं।
मैंने जैसा आज देखा और सुना है उससे मुझे यह लगता है कि हमने इस महान विरासत के संरक्षण के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी के प्रयासों का आदर्श मिल गया है। इस संरक्षण शुरुआत के पीछे समान रूप से सोचने वाली सार्वजनिक और निजी संस्थाओं की भागीदारी, हमारी राष्ट्रीय विरासत के संरक्षण के प्रति चिंता और स्थानीय समुदायों को साथ लेकर और पारदर्शी रूप से काम करने की क्षमता है। मैं आशा व्यक्त करता हूं कि यहां सफल हुई इस भागीदारी से सरकार और नागरिक संगठन, हमारी सभी विश्व धरोहर स्थलों के संरक्षण में इसी प्रकार की भागीदारी करने को प्रोत्साहन मिलेगा।
मुझे आशा है कि हमारी धरोहर को संरक्षित करने के इन प्रयासों से स्थानीय स्तर पर विकास गतिविधियों जैसे आधारभूत ढांचे में सुधार, सामुदायिक भागीदारी, रोजगार सृजन, स्थानीय कला और शिल्प का विकास, पर्यावरण संरक्षण और भूदृश्य के साथ जोड़ा जा सकेगा।
हुमायूं के मकबरे के इस जीर्णोद्धार कार्यक्रम से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में बढो़त्तरी होगी। जिससे हमें अधिक आय प्राप्त होगी।
इस कार्यक्रम से हजरत निजामुद्दीन बस्ती के निवासियों को स्वास्थ्य, शिक्षा पेयजल, सफाई के क्षेत्रों में बेहतर शहरी आधारभूत ढांचे का लाभ भी मिलेगा। इस कार्यक्रम के द्वारा हम स्थानीय समुदायों को संरक्षण में भागीदार बनाने और उन्हें व्यवसायिक प्रशिक्षण देने के महत्वपूर्ण लक्ष्यों में भी सफल रहे हैं। इसी प्रकार से भारत में सही मायनों में संरक्षण सफल हो सकता है।
हमारी देश की विरासत के संरक्षण और जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी संस्थाओं की नहीं हो सकती। विशेषतौर पर वहां जहां हमारी विरासत बहुत अधिक फैली हुई हो और इससे वर्तमान के विकास कार्यों पर से ध्यान हटने का जोखिम हो। इस लिए इन प्रयासों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी, जो इन विरासतों का परितंत्र हो महत्वपूर्ण है।
मैं आगाखान ट्रस्ट फॉर कल्चर, भारतीय पूरातत्व संरक्षण और सर डोरावजी टाटा ट्रस्ट को उनकी इस शुरुआत में मिली सफलता के लिए बधाई देता हूं, जिसने हमारे सभी संसाधनों और प्रयासों को एक साथ लाकर दुनियाभर के सामने एक उदहारण पेश किया है। मैं व्यक्तिगत रूप से श्री आगाखान को भारत और विश्वभर में सांस्कृतिक केन्द्रों के संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए उनका धन्यवाद देता हूं। भारतीय विरासत की संरक्षण के लिए उनका प्रयास सराहनीय है और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम भविष्य में भी इस भागीदारी को जारी रखेंगे।
इन शब्दों के साथ मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूं और एक अच्छी शाम की आशा व्यक्त करता हूं।"