भाषण [वापस जाएं]

September 5, 2013
सेंट पीटर्सबर्ग, रूस


सेंट पीटर्सबर्ग के जी-20 शिखर सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री का संबोधन

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का सेंट पीटर्सबर्ग की जी-20 शिखर बैठक में दिये गए भाषण का मूल पाठ:-

मेरे लिए ये खुशी की बात है कि इस सुन्‍दर और ऐतिहासिक शहर में आने का मुझे मौका मिला है। मैं भी अन्‍य वक्‍ताओं की तरह राष्‍ट्रपति पुतिन को उन शानदार प्रबंधों के लिए धन्‍यवाद देता हूं, जो उन्‍होंने हमारे स्‍वागत में किये हैं।

हमारे सामने बृहत एजेंडा है, लेकिन मैं अपनी टिप्‍पणियां कुछ प्रमुख मुद्दों तक ही सीमित रखूंगा।

दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था अच्‍छी हालत में नहीं है। कुछ अच्‍छी ख़बरें इस संबंध में हैं। कुछ औद्योगिक देशों से ख़बरें आई हैं कि उन्‍होंने वृद्धि दर सुदृढ़ बनाई है, लेकिन वह व्‍यापक आधार वाली नहीं है। कुल‍ मिलाकर यूरोजोन की संभावनाएं अनिश्चित बनी हुई हैं। सभी औद्योगीकृत देशों में बेरोजगारी बहुत अधिक है और इसमें जल्‍दी राहत मिलने की गुंजाइश नहीं है। उभरते बाजारों की स्थिति हाल तक अच्‍छी थी और स्थिति ने वैश्विक स्थिति कोसामान्‍य होने में ताकत दी। अब उभरते बाजार मंदी में हैं।

जी-20 अंतर्राष्‍ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर चर्चा का प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंच है। मेरे विचार में हमें इस बात पर अपने विचार करना चाहिए कि हम वैश्विक विकास दर उतनी ज्‍यादा क्‍यों प्राप्‍त नहीं कर पाए, जितनी हमें उम्‍मीद थी।

वित्‍तीय मजबूती जरूरी थी, लेकिन शुरू में तय लक्ष्‍य बहुत महत्‍वाकांक्षी थे। निजी क्षेत्र को मिलाकर देखा जाए तो हमें मांग में कमी दिखाई देती है जिससे विकास दर धीमी हुई और बेरोजगारी बढ़ी है। इन नकारात्‍मक प्रभावों की संभावना थी, लेकिन इन्‍हें औद्योगिक देशों में सुदृढ़ ढांचागत सुधारों के कारण मिट जाना चाहिए था। इन देशों को बढ़ी हुई उत्‍पादकता और उसके जरिए अधिक निजी निवेश प्राप्‍त करना था। पर, ऐसा नहीं हुआ या फिर उतना व्‍यापक नहीं हुआ, जितनी उम्‍मीद की गई थी अथवा जिस गति की उम्‍मीद थी उस गति से नहीं हुआ।

मांग निरंतर कम होने के चलते औद्योगिक देशों को गैर-परंपरागत मौद्रिक प्रसार पर अभूतपूर्व ढंग से भरोसा करना पडा। ऐसा सहमत नीतिगत तालमेल प्रक्रिया से नहीं हुआ। यह बात आंतरिक निर्णय प्रक्रियाओं से उभरी और व्‍यक्तिगत देशों में देखी गई, जो अपने संबद्ध आर्थिक परिणामों पर प्रतिक्रिया कर रहे थे।

विकसित देशों में गैर-परंपरागत मौद्रिक प्रसार की नीति कुछ सफल रही, लेकिन इसके कुछ परिणाम भी दिखाई दिए। जिस समय इस नीति का प्रसार किया जा रहा था, उस समय पूंजी प्रवाह में बढ़त दिखाई दी, जो उभरते बाजारों में देखी गई। इससे कुछ देशों को अन्‍य देशों की मुद्राओं के दबाव को कम करने और अपने चालू खाते घाटे की भरपाई में मदद मिली। अब जबकि बाजारों की गति उलटी दिशा में बढ़ने की उम्‍मीद की जा रही है, हम उभरते बाजारों से काफी ज्‍यादा बाहरी प्रवाह देख रहे हैं। अधिकांश उभरते बाजार आजकल परिवर्तनीय विनिमय दरों पर संचालन कर रहे हैं, अत: वे विभिन्न स्‍तर के मुद्रा अवमूल्‍यन का अनुभव कर रहे हैं, जिससे बहुतों को समस्‍याओं का सामना भी करना पड़ रहा है।

परंपरागत दृष्टिकोण यह रहा है कि पूंजी अस्थिरता के कारण तब तक चिंता की कोई बात नहीं होनी चाहिए, जब तक विनिमय दरें लचीली हैं। अब इस दृष्टिकोण पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सीमा पार से अब ज्‍यादा मात्रा में चीजें आ रही हैं, जिससे न केवल विनिमय दर होती है बल्कि उससे ऋण मात्रा और संपदा मूल्‍य भी प्रभावित होते हैं। औद्योगिक देशों में इस प्रकार के प्रवाह के कारण अधिक परिवर्तनशीलता आई है और यह वैश्विक वित्‍तीय संकट से पहले आई है। इसके कारण स्‍टॉक मार्केट और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव आजकल के बाजारों में देखी जा रही है।

इन समस्‍याओं से संकेत मिलता है कि जी-20 की नीतिगत समन्‍वय प्रक्रिया को मौद्रिक नीति पर ज्‍यादा ध्‍यान देने की जरूरत है। मैं मानता हूं कि इसके कारण विशेष चुनौतियां पैदा हो रही हैं। केन्‍द्रीय बैंक विचित्र तरीक से अपनी स्‍वतंत्रता की रक्षा कर रहे हैं और उनका घरेलू उद्देश्‍य पर ध्‍यान केंद्रित करते हुए सीमित अधिकार हैं। मौद्रिक नीति के पूंजी प्रवाह पर पड़ने वाले प्रभाव का पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल हो जाता है, क्‍योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि बाजार किस तरह की प्रतिक्र‍िया करता है। इस प्रतिक्रिया का पूर्वानुमान लगाना भी हमेशा संभव नहीं होता। लेकिन अगर हम निश्चित रूप से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण देशों की वित्‍तीय नीति के साथ तालमेल की जरूरत की बात मंजूर कर लें, तो आरक्षित देशों की मुद्राओं को मौद्रिक नीति में शामिल करने की बराबर जरूरत महसूस होती है। इस मुद्दे पर निश्‍चय ही व्‍यापक सलाह म‍शविरे और कारगर संचार की गुंजाइश है। हमारे वित्‍त मंत्रियों को इन उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए परस्‍पर मूल्‍यांकन प्रक्रिया को सु‍दृढ़ बनाने के तौर-तरीके तय करने चाहिए।

भारत पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान मुद्रा संबंधी अस्थिरता से प्रभावित रहा है। इसका एक कारण यह था कि 2012-13 के दौरान हमारा चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्‍पाद का 4.8 प्रतिशत था। जब तक प्रवाह पर्याप्‍त रहा आसानी से इसका वित्‍त पोषण कर लिया गया। लेकिन तब ऐसा करना एक समस्‍या बन गई, जब इस प्रकार का प्रवाह रुक गया। हमने ऐसे कदम उठाए हैं, जिनके अनुसार 2013-14 के दौरान चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्‍पाद के 3.7 प्रतिशत के बराबर रखा जा सकेगा। हम इसे बाद में और घटाकर 2.5 प्रतिशत के स्‍तर पर लाना चाहते हैं। इस बीच, हम ऐसे कदम उठा रहे हैं कि घाटे का वित्‍त पोषण किया जा सके और इसके लिए ऐसा आर्थिक माहौल बनाया जा सके, जो विदेशी मुद्रा प्रवाह का हितैषी हो।

हम अपनी खुली अर्थव्‍यवस्‍था को पहले के स्‍तर पर लाने के लिए प्रयास करते रहेंगे। इसके लिए हमने अनेक सुधारों की शुरूआत की है और भविष्‍य में और भी सुधार करना चाहते हैं। जो सुधार भविष्‍य में किए जाने हैं वे ज्‍यादा मुश्किल हैं और सब्सिडी वाली व्‍यवस्‍था के नियंत्रण से संबंधित हैं तथा वित्‍तीय क्षेत्र के सुधार हैं। हम इन सभी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नये गवर्नर ने बैंक नियमों में महत्‍वपूर्ण परिवर्तनों के संकेत दिये हैं। इनके चलते सुधार प्रक्रिया में तेजी आ सकेगी।

विकास को स्थिर करने के हमारे प्रयासों में बहुत मदद मिलेगी यदि बाहरी माहौल स्थिर हो और विकास समर्थक हो। इस संदर्भ में जी-20 को महत्‍वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस शीर्ष बैठक से स्‍पष्‍ट संकेत जाने चाहिए कि हम वृद्धि दर पूर्ववत करने के लिए सामूहिक रूप से काम करने को प्रतिबद्ध हैं। अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले कार्यों में सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए यही एक तरीका है। हमें अपने प्रयास, खासतौर से विशाल उद्योगों का विकास फिर से व्यवस्थित करने पर केन्द्रित करना चाहिए, इससे पूरी दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने में मदद मिलेगी।

अनेक देशों के लिए वित्‍तीय मजबूती महत्‍वपूर्ण है और इसे मध्‍यम अवधि का उद्देश्‍य बनाए रखना होगा। लेकिन सही रास्‍ते पर बने रहते हुए हमें इसका अनुसरण करना है और ऐसा करते हुए इस बात का ध्‍यान रखना है कि कई देशों में मांग कमजोर है। हम अपनी ओर से इस बात को सुनिश्चित करने के लिए पक्‍का इरादा कर चुके हैं कि राजकोषीय घाटा उस स्‍तर से ज्‍यादा नहीं होने दिया जाएगा, जिसका संकेत दिया जा चुका है।

विकासशील देशों में रोजगार सृजन की नीति में वे कारगर प्रयास शामिल होने चाहिए जिनके जरिए जनशक्ति को ऐसे कौशलों से लैस किया जा सके कि उन्‍हें रोजगार मिल सके। इस क्षेत्र में हम अंतर्राष्‍ट्रीय अनुभवों से लाभ उठा सकते हैं। इनमें औद्योगीकृत देशों से मिलने वाले तजुर्बे शामिल हैं। हमें बेहतर ढंग से काम करने वाले श्रम बाजारों की भी जरूरत है और यह विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों के लिए जरूरी है।

उच्‍च कौशल सम्‍पन्‍न अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम की एक देश से दूसरे देश में आवाजाही वैश्विक एकीकरण में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इन मुद्दों पर जब तक अंतर्राष्‍ट्रीय समझौते विकसित नहीं हो जाते, तब तक इस क्षेत्र में बाधक उपायों को दूर करने के लिए हमें जो कुछ भी संभव हो, अवश्‍य करना चाहिए।

आइए, अब हम वित्‍त व्‍यवस्‍था के सुधार के मुद्दे पर बात करें। यह हमारे एजेंडा का बहुत महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा बन गया है। मैं इसके लिए वित्‍त स्थिरता बोर्ड को बधाई देता हूं, क्योंकि उन्‍होंने इस दिशा में अच्‍छी प्रगति की है और पूंजी आवश्‍यकता के विवरण तय किये हैं तथा नई पूंजी पर्याप्‍तता मानक पूरे करने के लिए देशों से प्रतिबद्धता प्राप्‍त की है।

कुछ अन्‍य क्षेत्र हैं जो ज्‍यादा जटिल हैं और इन पर काम चल रहा है। इनमें उन मार्गदर्शक नियमों का विकास शामिल है, जो पूंजी पर्याप्‍तता और शैडो बैंकिंग सिस्‍टम को विनियमित करने के उद्देश्‍य किये जा रहे हैं। हमें एक ऐसी रूपरेखा भी विकसित करने की जरूरत है, जो इस बड़ी समस्‍या पर नियंत्रण पाने के लिए जरूरी है, इसके लिए हमें वित्‍तीय संस्‍थानों की पहचान करनी होगी तथा इन संस्‍थानों की बेहतर व्‍यवस्‍था का डिज़ाइन बनाना होगा और सीमा और एक अंतर्राष्‍ट्रीय तंत्र विकसित करना होगा जो समस्‍याओं का समाधान करें। इन सभी क्षेत्रों में अच्‍छा काम हुआ है, लेकिन इनमें प्रगति होनी अभी बाकी है। हमें इन प्रयासों को पूरा करने और सफल बनाने के लिए मेहनत से काम करना है।

विकासशील देशों की नजर से हमें इस संदर्भ में चौकसी बरतने की सलाह भी देनी होगी। वित्‍तीय व्यवस्‍था की स्थिरता बढ़ाने के लिए जो भी नियम बनाए जाएं उनसे विकासशील देशों को संचालन में कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए। अगर हम कुल पूंजी प्रवाह की स्थिरता को नियंत्रित नहीं कर सकते, तो कम से कम इस अस्थिरता को बढ़ाने वाला कोई काम बैंकिंग व्‍यवस्‍था के जरिए नहीं करना चाहिए।

अब जबकि हम बेहतर ढंग से नियमित वित्‍तीय व्‍यवस्‍था के जरिए काम कर रहे हैं, हमें वित्‍तीय समावेशन का भी ध्‍यान रखना चाहिए। भारत में इस समय हम एक बड़ी कवायद में लगे हुए हैं। इसका उद्देश्‍य है हमारी बहुत बड़ी ग्रामीण जनसंख्‍या को बैंकों की सुविधा देना। इसके लिए बायोमीट्रिक प्रकार की अनोखी पहचान व्यवस्था का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। इससे पहचान में सुविधा होती है और व्‍यक्ति को बैंकिंग करेस्‍पोंडेंट्स के जरिए अपना बैंक खाता संचालित करने में सहायता मिलती है। इस काम में सूचना टेक्‍नॉलोजी और मोबाइल कनेक्‍टीविटी का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। आधुनिक टेक्‍नोलोजी और सांस्‍थानिक नवाचार के जरिए हम हजारों लाखों व्‍यक्तियों को बैंकों से जोड़ रहे हैं और ये काम कुछ ही वर्षों के अंदर पूरा किया जा रहा है।

वित्‍तीय समावेशन का एक महत्‍वपूर्ण पक्ष है लघु और औसत दर्जे के उद्यमों को ऋण सुविधा प्रदान करना। मैंने देखा है कि इस तरह की ऋण सुविधा प्रदान करने के लिए अनेक औद्योगिक देश सरकारी उपायों का सहारा ले रहे हैं। पहले कई विकासशील देश इस प्रकार की ऋण नीतियों की आलोचना किया करते थे। उनका आधार ये होता था कि इनके कारण बैंकिंग के काम में बाधा आती है। अब जबकि इस प्रकार के उपायों की ज्‍यादा जरूरत महसूस की जा रही है, हमें इस क्षेत्र में तजुर्बा बांटने की जरूरत है। हम सबका एक मात्र उद्देश्‍य है कि सबको वित्‍तीय समावेशन में बैंकिंग संचालनों के जरिए शामिल किया जाए।

अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय संस्‍थानों में सुधार हमारे एजेंडा में प्रमुख विषय रहा है। 14वें कोटा रिव्‍यू के जरिए एक समझौता विकसित किया गया था, जिससे विकासशील देशों की मतदान की भूमिका में सुधार होगा और इसके जरिए अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्राकोष के बोर्ड में उन्‍हें बेहतर प्रतिनिधित्‍व मिल सकेगा। हमने उम्‍मीद की थी कि सेंट पीटर्सबर्ग शीर्ष बैठक में बढ़े हुए कोटे का पुष्टीकरण किया जा सकेगा। लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। हमें ऐसे प्रयास करने चाहिए कि जल्‍दी से जल्‍दी पुष्टीकरण की यह प्रक्रिया पूरी हो ताकि 15वां कोटा रिव्‍यू जनवरी, 2014 तक पूरा किया जा सके, जैसा कि मूल रूप से सोचा गया था।

आइये, अब हम उस विकास की बात करें, जो हमारे एजेंडे में सियोल शीर्ष बैठक के समय शामिल किया गया था। विभिन्‍न स्‍तंभों के अंतर्गत काफी उपयोगी काम किया जा चुका है, लेकिन इन सब में उन देशों द्वारा ज्‍यादा कार्रवाई करने की जरूरत है और यह काम इन्‍हें खुद ही करना होगा। लेकिन जी-20 की यह शीर्ष बैठक उन क्षेत्रों का मूल्‍यवर्धन कर सकती है, जहां सक्रिय अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग की जरूरत है।

इस संदर्भ में सबसे महत्‍वपूर्ण पहल है विकासशील देशों में मूल सुविधाओं में पूंजी निवेश को बढ़ावा देना। उभरते बाजारों में मूल सुविधाओं में ज्‍यादा निवेश से इन देशों में अधिक तेजी से विकास संभावनाएं बढ़ेंगी, जिससे अल्प अवधि में अत्‍यधिक जरूरी वैश्विक मांग में सहायता मिलेगी।

लोस कोबोस शीर्ष बैठक में हमने अपने वित्‍त मंत्रियों को इस बात की संभावनाएं तलाश करने के निर्देश दिये थे कि इस मामले में जी-20 किस तरह से सहायता कर सकता है। इसमें बहुपक्षीय विकास बैंकों द्वारा अधिक सक्रिय भूमिका निभाना शामिल है। लेकिन इन प्रयासों के नतीजे हमें अभी तक नहीं दिखाई दिए। इस दिशा में हम लोग कई तरह के कार्य कर सकते हैं। विकसित देशों ने दिखा दिया है कि गैर-परंपरागत मौद्रिक नीति किस तरह से ज्‍यादा प्रभावशाली ढंग से काम कर सकती है। हमें इस गैर-परंपरागत विकास वित्‍त पेाषण में और नये-नये तरीके शामिल करने की जरूरत है।

विश्‍व बैंक और एशियाई विकास बैंक इस उद्देश्‍य के लिए एक खास खिड़की खोल सकते हैं कि मूल सुविधाओं के विकास में किस तरह से सहायता की जा सकती है। इनमें चल रही परियोजनाओं का वित्‍त पोषण शामिल है, जो पूंजी प्रवाह की अस्थि‍रता के चलते एकाएक निधियों की कमी के कारण मुश्किलों का सामना कर रही है। इस खिड़की तक पहुंच सामान्‍य देशों की सीमा से आगे बढ़कर होनी चाहिए। इसका उद्देश्‍य यह होना चाहिए कि ऐसा तंत्र विकसित किया जाए कि मूल सुविधा वित्‍त पोषण के लिए पूंजी निवेश प्रवाह बढ़े।

अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय संस्‍थानों को विकासशील देशों के महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में शामिल करने से इन क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में निजी पूंजी को आकर्षित किया जा सकता है। अनेक क्षेत्रों में अंतर्राष्‍ट्रीय वित्‍तीय संस्‍थानों ने बढि़या काम किया है और मूल सुविधा वित्‍त पोषण इस क्षेत्र में निजी पूंजी की भागीदारी बढ़ सकती है।

बहुराष्‍ट्रीय विकास बैंकों में और खासतौर से विश्‍व बैंक, आईएफसी और एशियाई विकास बैंक को महत्‍वपूर्ण ढंग से शामिल करने से उभरते बाजारों में मूल सुविधा पूंजी निवेश को बढ़ावा मिलेगी और उनमें अतिरिक्‍त पूंजी लगाई जा सकेगी। मुझे उम्‍मीद है कि जी-20 शीर्ष बैठक ऐसे संकेत देगी कि हम इस प्रकार की पूंजी उपलब्‍ध कराने को इच्‍छुक हैं।

एक और क्षेत्र जिसमें अंतर्राष्‍ट्रीय कार्रवाई की जरूरत है, वह है दोहा राउन्‍ड का फिर से सशक्‍तीकरण। व्‍यापार संबंधी बातचीत का यह पहला दौर था और इसे स्‍पष्‍ट शब्‍दों में विकास दौर कहा गया। अब यह मंदी का शिकार हो गया है और इससे पहले अंतर्राष्‍ट्रीय तथा औद्योगिक देश अल्‍प अ‍वधि के आर्थिक पुनर्जीवन और बेरोजगारी घटाने जैसी समस्‍याओं में उलझ गए। हमें इस संबंध में भी फिर से वार्ता करने और किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की जरूरत है।

भारत का पक्‍का विश्‍वास है कि विश्व व्‍यापार संगठन को सुदृढ़ बनाना एक खुली अर्थव्‍यवस्‍था के लिए सतत प्रतिबद्धता और महत्‍वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए महत्‍वपूर्ण है। हम अपने सुरक्षात्‍मक उपायों को गतिहीन बनाने के इच्‍छुक हैं। लेकिन इस संदर्भ में मैं आप सब से अनुरोध करूंगा कि आप दोहा राउन्‍ड में और प्रगति दिखाने के लिए कदम उठाएं। हम बाली में होने वाले मंत्री स्‍तर के सम्‍मेलन के रचनात्‍मक परिणामों की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं, ताकि सभी देश मुख्‍य एजेंडे के विषयों पर तेजी से आगे बढ़ सकें।

मैंने एजेंडा के अनेक विषयों पर टिप्‍पणी नहीं की है। इसका कारण है समय की कमी। मैं महसूस करता हूं कि हमारे शेरपाओं की चर्चा के जो परिणाम आए हैं, उनसे हमारे दृष्टिकोण की झलक मिलती है।

अंत में मैं आप सबको और रूस के राष्‍ट्रपति को उस काम के लिए बधाई देता हूं, जो सेंट पीटर्सबर्ग शीर्ष बैठक की सफलता के लिए किया गया है और जिसके कारण दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था के सामने मौजूद अनेक मुद्दों पर सहमति बनाने में मदद मिलेगी।