भाषण [वापस जाएं]

May 30, 2013
बैंकॉक, थाइलैंड


थाइलैंड के प्रधानमंत्री इंगलक शिनावात्रा द्वारा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के सम्मान में दिए गए भोज के अवसर पर प्रधानमंत्री का भाषण

थाइलैंड के प्रधानमंत्री इंगलक शिनावात्रा द्वारा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के सम्मान में दिए गए भोज के अवसर पर प्रधानमंत्री के भाषण का मूल पाठ नीचे दिया जा रहा है:-

"मैं अपने तथा अपने प्रतिनिधिमंडल का स्नेहपूर्ण स्वागत और उदारतापूर्ण सत्कार के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देता हूं।

महामहिम, आपने जिस तरह 2011 की प्राकृतिक आपदा और वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर से थाइलैंड की परिश्रमी जनता को निकाला, हम उसकी प्रशंसा करते हैं। थाइलैंड ने विकास के मामले में लंबी छलांग लगाकर एक बार फिर सुवर्णभूमि की प्राचीन प्रतिष्ठा को साकार कर दिया है।

हम दोनों देशों के बीच संबंधों के प्रति आपकी गहरी व्यक्तिगत वचनबद्धता तथा इसे तेजी और निश्चय के साथ प्रगाढ़ करने के आपके कदम की सराहना करते हैं। पिछले वर्ष हमारे गणतंत्र दिवस समारोह में सम्मानित मुख्य अतिथि के रूप में आपकी भारत की सरकारी यात्रा से हमारे संबंधों को नया स्तर हासिल हुआ। हमारे संबंधों और हमारे क्षेत्र के लिए आपके साथ काम करना मेरे लिए सम्मान की बात है।

मदाम प्रधानमंत्री जी, इस व्यस्त शहर में आने वाला कोई भी आगंतुक हमारी महान सभ्यता, संस्कृति और वाणिज्य की अमिट छाप को नहीं भुला सकता। भगवान बुद्ध के संदेश और रामायण की साझी शिक्षा ने हमें भावात्मक रूप से दयालु बनाया है। मेरी यात्रा के मौके पर भारत की ओर से नरेश को विशेष उपहार के रूप में प्रस्तुत बोधि वृक्ष का पौध भी भारत में उपजे और थाइलैंड में पोषित विचार का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे संबंधों में आगे की राह दिखाता है।

आज हम दो आधुनिक राष्ट्र संक्रमण काल में हैं और अपनी जनता के जीवन को बदलना चाहते हैं। मुझे विश्वास है कि हमारी साझी विरासत, साझे मूल्य और समान महत्वकांक्षा हमें साझे प्रयास के मजबूत सहयोगी के रूप में खड़ा करेगी।

हम बदलाव का अनुभव कर रहे एशिया का हिस्सा हैं, हम अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हैं, लेकिन परिवर्तन द्वारा आवश्यक रूप से लाई जाने वाली अनिश्चतताओं और चुनौतियों के प्रति चिंतित भी हैं। एशिया को शांति, बहुलवाद और सह-अस्तित्व जैसी सभ्यता मूलक विरासत से प्राचीन बुद्धिमत्ता और विवेक मिला है। एशिया के पास ऊर्जा और युवाओं का उत्साह है जो सहयोग, समन्वय और साझी समृद्धि द्वारा परिभाषित भविष्य का रूप देगा। 1927 में बैंकॉक के दुसित पैलेस में अपने भाषण में भारत के कवि रविन्द्र नाथ टैगौर ने कहा था कि एशिया आत्म प्राप्ति के लिए फिर से आत्म चेतना पा रहा है। भारत और थाइलैंड को अपने हित और क्षेत्र की जनता की भलाई के लिए इस महती कार्य के प्रति फिर से समर्पित करना होगा।

मुझे खुशी है कि हमने आज सहयोग, मजबूत संपर्क और वाणिज्य की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है। हमने द्विपक्षीय सक्रियता को मजबूत करने तथा क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने का निश्चय किया है। हम विज्ञान और टेक्नोलॉजी के लाभों का उपयोग करेंगे तथा शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन के माध्यम से अपने संबंधों का पोषण करेंगे। हम क्षेत्रीय आर्थिक तालमेल और संपर्क बढ़ाने के लिए एक साथ काम करेंगे। हम आसियान को केन्द्र में रखकर खुली संतुलित और नियम आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था स्थापित करेंगे। हम भारत-आसियान साझेदारी, बिम्सटेक और मेकॉग गंगा सहयोग को भी मजबूती प्रदान करेंगे।

हमारे गहरे और समृद्ध असाधारण संबंध हमारी जनता और हमारे क्षेत्र के हित में है। भगवान बुद्ध ने संदेश दिया था कि उत्कृष्ट मित्र और सहयोगी पवित्र जीवन के सार हैं।

इस ऐतिहासिक शांति मैत्री भवन में मैं आपकी, नरेश और महारानी के स्वास्थ्य और सुखी जीवन तथा थाइलैंड की जनता की प्रगति और समृद्धि और भारत-थाइलैंड मित्रता की कामना करता हूं।"