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जापान-भारत संघ, जापान-भारत संसदीय मैत्री संघ और अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री आदान-प्रदान परिषद को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सम्बोधित किया, जिसके मूल पाठ का हिन्दी रूपान्तरण निम्न प्रकार से है :-
''इस कमरे में बैठे हुए भारत मित्रों के बीच में आकर मुझे अपार खुशी हो रही है। मैं मोरी-सान की मौजूदगी से बहुत खुश हूं और अपने को सम्मानित महसूस कर रहा हूं।
मोरी-सान मेरे अच्छे दोस्त हैं। वे भारत के भी अच्छे दोस्त हैं। जापान का प्रधानमंत्री होने के नाते मोरी - सान ने दोनों देशों और वहां के नागरिकों के बीच मौजूद प्राचीन संबंधों के नए चरण की आधारशिला रखी थी। इसलिए भारत में हमें उन्हें पद्मभूषण जैसे अपने राष्ट्रीय सम्मान से नवाजते हुए बहुत गौरव की अनुभूतिहुई।
सूर्योदय वाले इस द्वीप में एक सदी पहले एशिया का प्रादुर्भाव आरंभ हुआ था। उसके बाद से ही जापान ने हमें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। उभरते हुए एशिया के बारे में भारत और जापान का समान दृष्टिकोण है। पिछले कई दशकों के दौरान भारत और जापान दोनों ने साझा मूल्यों और साझा हितों पर आधारित नए संबंध कायम किए। एक आधुनिक ज्ञान आधारित औद्योगिक शक्तिके रूप में जापान का उदय भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। हमारे महान राष्ट्रीय नेताओं ने भी जापान से प्रेरणा प्राप्त की। दार्शनिक स्वामी विवेकानन्द, महाकविरबीन्द्रनाथ टैगौर, इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैया, देशभक्त सुभाषचन्द्र बोस और राष्ट्र निर्माता जवाहरलाल नेहरू तथा अन्य कई नेताओं ने 19वीं और 20वीं सदियों में जापान द्वारा प्राप्त की गई उपब्धियों से बहुत प्रेरणा ली।
अभी हाल में भारत की सतत और मजबूत आर्थिक उन्नतिने दोनों देशों के बीच सहयोग और साथ काम करने के लिए नए अवसर खोले हैं। भारत को जापान की प्रौद्योगिकी और निवेश की जरूरत है। इसके बदले भारत जापान को उसकी प्रगतिऔर समृद्धिके लिए लगातार बढ़ते अवसर प्रदान करने के लिए सदैव तैयार है, ताकिजापानी कम्पनियों का विकास हो सके और भूमंडलीकरण के दौर में वे आगे बढ़ सकें।
इस वर्ष टोक्यो में मुझे पहले मेहमान के रूप में आमंत्रित करके प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने मुझे बहुत सम्मानित किया। दुर्भाग्य से अपनी व्यस्तताओं की वजह से मैं उस समय जापान की यात्रा नहीं कर पाया था।
चेरी ब्लॉसम के फूल खिलने के मौसम के दौरान मैंने जापान आने का अवसर खो दिया था लेकिन वसंत ऋतु में यहां आकर मुझे बहुत खुशी हो रही है, और मुझे भरोसा है कि हमारे संबंधों का एक महान भविष्य है। मुझे विश्वास है कि दोनों देशों के नागरिकों के बीच मित्रता, व्यापार में साझेदारी और रक्षा तथा सामरिक प्रतिबद्धताओं के बीच हमारे योगदान के फूल प्रधानमंत्री एबे के नेतृत्व में खूब फले-फूलेंगे।
इस अवसर पर मुझे अगस्त 2007 में प्रधानमंत्री एबे द्वारा हमारी संसद को किए गए शानदार सम्बोधन की याद आ रही है। उन्होंने 'दो महासागरों का महासंगम' का उल्लेख किया था, यानी प्रशांत महासागर और हिंद महासागर। उसने हमारे द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम दिया। प्रधानमंत्री एबे और मैं, दोनों मिलकर अपनी सामरिक साझेदारी को मजबूत बनाएंगे, अपने आर्थिक योगदान को नई गति देंगे और क्षेत्रीय तथा वैश्विक हितों संबंधी संवाद को गहरा बनाएंगे।
भारत-प्राशांतिक क्षेत्र इस समय गहरे सामाजिक और आर्थिक बदलावों को देख रहा है, जिसकी गति इस समय मानव इतिहास में बहुत तेज है। इस क्षेत्र ने पिछली आधी सदी के दौरान आजादी, अवसर और समृद्धि में अभूतपूर्व विकास देखा है।
इसके साथ ही इस क्षेत्र के सामने कई चुनौतियां मौजूद हैं और तमाम अनसुलझे मुद्दे तथा कई अनसुलझे सवाल विद्यमान हैं। एक-दूसरे पर निर्भरता, समृद्धि के बावजूद ऐतिहासिक मतभेद भी मौजूद हैं जिन्हें पूरी तरह से मिटाया नहीं गया है। इसके अलावा स्थिरता और सुरक्षा के लिए खतरे भी मौजूद हैं।
इन सभी बदलावों के बीच इस सदी में एशिया में एक नई दिशा बनाने के लिए अपार अवसर भी मौजूद हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था और उसके विकास की जिम्मेदारी इस क्षेत्र के कंधों पर है। इसलिए इस क्षेत्र का भविष्य इस सदी में दुनिया की भावी रूप-रेखा तय करेगा। भारत और जापान इस क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश हैं। हमारे साझा मजहब, संस्कृतिऔर आध्यात्मिक विरासत शांति, सह-अस्तित्व और बहुलतावाद के सिद्धांतों पर आधारित है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम शांति, स्थिरता और योदगान का वातावरण तैयार करें, ताकि सुरक्षा और समृद्धि की मजबूत नींव रखी जा सके। मैं इस सम्बंध में तीन क्षेत्रों में सहयोग करने की सलाह देना चाहता हूं।
पहला, हमें क्षेत्रीय मंचों को मजबूत करना चाहिए, जिससे एक-दूसरे के साथ सलाह और सहयोग करने की आदतें विकसित होंगी, एक-दूसरे के मतभेदों को स्वीकृत सिद्धांतों के आधार पर हल करने, क्षेत्र में एकजुटता लाने और साझा चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।
दूसरा, हमें क्षेत्रीय आर्थिक एकता मजबूत करने और क्षेत्रीय सम्पर्कता को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ पूरे क्षेत्र में आर्थिक विकास को संतुलित आधार मिलेगा, बल्कि क्षेत्रीय सरंचना और अधिक संतुलित होगी।
तीसरा, क्षेत्रीय और वैश्विक समृद्धि के लिए जरूरी है कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच मौजूद क्षेत्रों में समुद्री सुरक्षा बढ़ाई जाए। इसके मद्देनजर हमें मुक्त नौवहन के सिद्धांतों को मजबूत करना होगा और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार व्यापार को निर्बाध बनाना होगा, सामुद्रिक मुदृों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करना होगा, समुद्र के बेहतर और अर्थपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करना होगा तथा समूद्री डाकुओं द्वारा पैदा की गई चुनौतियों का मिलकर सामना करना होगा।
इस क्षेत्र में भारत की सक्रिय भागीदारी इसी दृष्टिकोण पर आधारित है। हमारी 'लुक ईस्ट' नीति एक मजबूत आर्थिक दृष्टिकोण पर आधारित है और अब उसका सामरिक महत्व भी बढ़ गया है। आसियान जैसे समूहों और सभी देशों के साथ हमारे राजनीतिक सम्बंध गहन हुए हैं हमने व्यापार और आर्थिक समझौतों का एक तंत्र विकसित किया है।
सहयोग और सुरक्षा संबंधी पूर्व-एशिया शिखर वार्ता तथा आसियान क्षेत्रीय मंच जैसे क्षेत्र के अग्रणी समूहों के साथ हम सम्पर्कता और सक्रियता पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
जापान के साथ सम्बंध हमारी 'लुक ईस्ट' नीति की बुनियाद है। जापान ने एशिया को समृद्धि की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया है और वह एशिया के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जापान के तीव्र विकास और सफलता में पूरी दुनिया की हिस्सेदारी है। उद्यमशीलता, प्रौद्योगिकी और अभिनव प्रयोगों में आपका नेतृत्व तथा एशियाई पुनरूत्थान में आपकी प्रेरणा बहुत अहम है। जापान के साथ भारत के संबंध न केवल हमारे आर्थिेक विकास के लिए जरूरी हैं, बल्कि हम जापान को अपनी स्थिरता और शांति की खोज में एक स्वाभाविक और महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में भी देखते हैं, जो प्रशांत तथा हिंद महासागरों के लंबे-चौड़े एशियाई भू-भाग के लिए जरूरी है।
हमारे संबंधों को हमारी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक तथा सभ्यता संबंधी निकटता से मजबूती मिलती है। लोकतंत्र, शांति और स्वतंत्रता के आदर्शों के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता है। हमारा साझा विश्व-दृष्टिकोण है और हमारी समृद्धि एक-दूसरे पर आधारित है। सामुद्रिक सुरक्षा सम्बंधी हमारे साझा हित हैं और हमें समान रूप से सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हमारी अर्थव्यवस्थाओं के बीच समान संबंध है और इस बात की जरूरत है कि हम इस विकास के लिए नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहन दें। आज हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के नए ढांचे के लिए मिलकर प्रयास कर रहे हैं। हाल के वर्षों में हमारे राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग ने बहुत अहमियत प्राप्त की है। जापान अकेला साझेदार देश है जिसके साथ दोनों देशों के विदेश एवम् रक्षा मंत्रालयों के बीच 'आपसी संवाद' स्थापित किया गया है। हमने जापान की समुद्री आत्म-रक्षा बलों के साथ साझा अभ्यास शुरू किया है।
जापान भारत के आर्थिक विकास प्रयासों में हमेशा अहम भूमिका निभाता आ रहा है। भारत के औद्योगिक विकास में मारूति-सुजूकी सहयोग से तेजी आई है। दिल्ली मैट्रो भी जन-यातायात में इसी तरह की क्रांति ला रहा है। पश्चिम आधारित मालगलियारा और दिल्ली मुम्बई औद्योगिक गलियारा दोनों देशों की प्रमुख सरंचना परियोजनाएं हैं, जो अपने आकार में बेजोड़ हैं। हम चैन्नई और बेंगलूरू के बीच एक अन्य औद्योगिक गलियारे सम्बंधी नई परियोजनाओं की सम्भावनाएं खोज रहे हैं। वर्ष 2011 में हमने समेकित आर्थिक साझेदारी समझौता किया था और पिछले वर्ष हमने 'रेयर अर्थ' के क्षेत्र में सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
इन सब से यह साबित होता है कि हमारे संबंध बहुत प्रगाढ़ हैं। बहरहाल, इस संबंध को और आगे बढ़ाने के लिए हमने ऊंची महत्वाकांक्षा बना रखी है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए यह जरूरी है कि हम अपने राजनीतिक संवाद को और गहरा करें तथा क्षेत्रीय एवम् पारस्परिक हितों के मुदृों के संबंध में अपने सामरिक विचार-विमर्श को विस्तार दें।
व्यापार और निवेश के संबंधों को बढ़ाकर हम अपने संबंधों को और मजबूत कर सकते हैं। जैसा कि आज मैंने कैडानरेन के समारोह में व्यापारिक नेताओं से कहा था कि हम इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं और हमें पूरा भरोसा है कि हम पिछले दशक की तरह अपनी विकास दर को जल्द ही आठ प्रतिशत से अधिक कर लेंगे।
हमारा यह भरोसा हमारी आर्थिक बुनियादों की मजबूती, हमारे उद्योगों की मजबूती और बड़ी परियोजनाओं के तेज कार्यान्वयन तथा नीतियों के सुधार पर आधारित है।
भारत जैसे बड़े बाजार में जापानी कंपनियों का निवेश हमारे आर्थिक और सामरिक हितों के पक्ष में है। इससे उच्च-प्रौद्योगिकी आधारित व्यापार, स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा सुरक्षा और कौशल विकास में नजदीकी सहयोग के लिए भी मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री एबे और मैं महत्वपूर्ण मुदृों पर चर्चा करेंगे। हमने मिलकर वार्षिक शिखर वार्ताओं को शुरू किया है और ऐसे कई कदम उठाए हैं जिनसे हमारे संबंधों को प्रगाढ़ता मिली है। हम न केवल अपने संबंधों को और आगे बढ़ाएंगे बल्कि अपने संबंधों को नए आयाम भी देंगे, जो दोनों देशों, हमारे क्षेत्र और पूरी दुनिया के हित में हैं।
अंत में मैं आपको यह बात बताता हूं कि जब 1971 में मैं पहली बार इस सुंदर देश में आया था, उसी समय से जापान मेरे दिल के नजदीक है। मेरा सपना था कि मैं अपने संबंधों को बढ़ते हुए देखूं और इसी उद्देश्य से भारत का प्रधानमंत्री होने के नाते मैं पिछले नौ वर्षों से प्रयास कर रहा हूं। आज भारत -जापान के संबंधों में होने वाले बदलावों और इन संबंधों को मजबूत होता देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मुझे इस बात में कोई शक नहीं कि आप के प्रयासों और उठाए जाने वाले कदमों से हमारे सम्बंधों को हमेशा शक्ति मिलती रहेगी।