भाषण [वापस जाएं]

May 13, 2013
नई दिल्ली


आपदा जोखिम कम करने से संबंधित राष्ट्रीय मंच के प्रथम सत्र में प्रधानमंत्री का संबोधन

आपदा जोखिम कम करने से संबंधित राष्ट्रीय मंच के प्रथम सत्र में आज नई दिल्ली में दिए गए प्रधानमंत्री के संबोधन का अनूदित पाठ इस प्रकार है:-

"आज आप लोगों के बीच उपस्थित होने की मुझे बेहद प्रसन्नता है। आपदा जोखिम को कम करने के बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र में, हितधारकों के बीच समन्वय मुहैया कराने के लिए आपदा जोखिम कम करने से संबंधित राष्ट्रीय मंच के गठन की पहल के लिए मैं गृह मंत्री और उनकी टीम को बधाई देता हूं। यह आपदा जोखिम में कमी के लिए संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय नीति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को पूरा करता है। अब हम उन अस्सी देशों में एक हैं जिनके पास इस संबंध में राष्ट्रीय मंच है। मुझे विश्वास है कि यह मंच विचारों और अनुभवों के विनिमय के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण मंच के तौर पर उभरेगा और हमारे देश में आपदाओं को रोकने के लिए प्रणाली के निर्माण और आपदाओं से निपटने में काफी मददगार होगा।

आपदा प्रबंधन हमारे देश के लिए राष्ट्रीय महत्व का विषय है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत को समय-समय पर अनेक प्राकृतिक और मानव-कृत आपदाओं को झेलना पड़ता है। भूकंप, बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूस्खलन और औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण लोगों को काफी परेशानियां सहनी पड़ती है। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन ने नई चुनौती प्रस्तुत की है जिससे निपटने के लिए हमारी आपदा प्रबंधन नीति को सक्षम होना चाहिए। बाढ़, चक्रवात, और सूखे जैसी आपदाओं की संख्या और गहनता में हुई वृद्धि के रूप में जलवायु परिवर्तन को महसूस किया जा सकता है। इस बात का आकलन किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के क्रम में होने वाली मौजूदा बदलाव के कारण भविष्य की स्थिति, वर्तमान से भी अधिक विकट होगी। इसलिए हमें आपदा से निपटने की तैयारियों और पर्याप्त आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली के विकास को सुनिश्चित करना होगा।

मुझे खुशी है कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश ने इन क्षेत्रों में अच्छी प्रगति की है। पूर्व के राहत-केन्द्रित दृष्टिकोण की अपेक्षा आपदा प्रबंधन में अधिक समग्र दृष्टिकोण को अपनाया गया है। स्थानीय स्तर से लेकर केन्द्रीय स्तर तक अधिक संस्थागत रूप में हमने आपदा स्थितियों से निपटने के लिए कदम उठाए हैं।

आपदा प्रबंधन अधिनियम को 2005 में लागू किया गया। इसके उपरांत राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और अधिकांश राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों तथा जिला प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थापना हुई। इससे आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में संपूर्ण गतिविधियों के लिए पेशेवर और प्रभावी दृष्टिकोण की शुरूआत हुई। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान और राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल तथा कुछ राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य आपदा बलों की स्थापना की गई। आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई कोष, राज्य आपदा कार्रवाई कोष और क्षमता निर्माण अनुदानों के रूप में निधियन प्रणाली को भी संस्थापित किया गया है।

आज के सम्‍मेलन का विषय जोखिम कम करने में रोकथाम और शमन रणनीतियों को शामिल कर इन्‍हें हमारी विकास प्रकिया का मूलभूत भाग बनाना है। यह निश्चित रूप से एक सावधान संबंधी कर्रवाई है जिससे संभावित नुकसानों को कम किया जा सकेगा जो कि विनाशकारी तथा राज्‍य या किसी क्षेत्र के विकास में बाधा डाल सकते हैं । यह एक अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वीकृत नियम भी है क्‍योंकि कोई आपदा आने पर उस पर कार्रवाई करने से अच्छा यह ज्‍यादा किफायती है। संयुक्‍त राष्‍ट्र के सहस्राब्‍दी विकास लक्ष्‍यों में समग्र टिकाऊ विकास के लिए जोखिम कम करना एक वैश्विक प्रतिबद्धता के रूप में शामिल है।

आपदा जोखिम को विकासात्‍मक मुद्दा बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर सबसे पहले हमारी 10वी पंचवर्षीय योजना (2002 से 2007 की अवधि) में दिया गया था। 10वीं और 11वीं पंचवर्षीय योजनाओं दोनों में इस पर ज़ोर दिया गया था कि जोखिम शमन प्रयासों को शामिल किए बिना हमारी विकास प्रकियाएं टिकाऊ नहीं हो सकती। इस ज़रूरत ने सूखा, वनरोपण और स्‍वच्‍छता और पेयजल की व्‍यवस्‍था जैसे क्षेत्रों में अनेक योजना स्‍कीमों का मार्ग प्रशस्‍त किया है।

12वीं पंचवर्षीय योजना में इस प्रकिया को आगे बढ़ाया गया है। इसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली और संचार व्‍यवस्‍था बनाने सहित आपदा जोखिम को कम करने के क्षेत्र में नए विकास संबंधी कार्यों पर विशेष रूप से ध्‍यान दिया गया है। हमारी कुछ मुख्‍य विकासात्‍मक कार्यक्रमों में भी आपदा जोखिम शमन को जोड़ा गया है। उदाहरण के तौर पर महात्‍मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना में एक पात्र गतिविधि के रूप में सूखे को कम करने के प्रयासों को अब शामिल किया गया है।

मुझे लगता है कि हमारे विकासात्‍मक प्रयासों में आपदा जोखिम कम करने संबंधी रणनीतियों को जोड़ने में स्‍थानीय समुदायों को सक्रिय रूप से ज़रूर शामिल होना चाहिए। इस उद्देश्‍य को हासिल करने के लिए हमें हमारे पंचायत राज संस्‍थानों का पूरा उपयोग करना चाहिए। मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप इस महत्‍वपूर्ण पहलू पर विशेष ध्‍यान दें।

दूसरा क्षेत्र जिस पर विशेष ध्‍यान देने की ज़रूरत है वो है लोगों को धन उपलब्‍ध कराना ताकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुए नुकसान से वे उबर सकें। विशेष रूप से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मौजूदा व्‍यवस्‍था में संस्‍थागत प्रोत्‍साहन की कमी है और यह जोखिम बीमा और आकस्मिक ऋण सुविधाओं जैसी व्‍यवस्‍थाओं को बढ़ावा नहीं देते। ऐसे प्रत्‍याशित व्‍यवस्‍थाओं का विकास विशेष रूप से ज़रूरी है क्‍योंकि यह तत्‍काल निधि उपलब्‍ध कराने में एक प्राथमिक स्रोत के रूप में कार्य करते हैं जिससे प्राकृति आपदाओं में लोगों को कम कष्‍ट उठाना पड़ेगा , आर्थिक नुकसान कम होगा और राजकोषीय दबाव कम होगा। मैं उम्मीद करता हूं कि इस महत्‍वपूर्ण सम्‍मेलन के जरिए इस संबंध में कुछ बेहतरीन सुझाव सामने आएंगे।

आपदाओं का प्रबंधन आवश्‍यक रूप से सहयोगात्‍मक और जटिल प्रक्रिया है जिसमें केंद्र सरकार के न केवल विभिन्‍न विभाग बल्कि बड़ी संख्‍या में राज्‍य और स्‍थानीय सरकारें, नागरिक समाज संगठन, स्‍थानीय समुदाय और लोग शामिल होते हैं। मुझे लगता है कि हालांकि हमने हाल के कुछ वर्षों में आपदा रोकथाम और शमन के लिए संस्‍थानाओं और प्रणालियों की व्‍यवस्‍था में प्रगति की है लेकिन इसमें अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आपदा प्रबंधन के लिए हमारी क्षमताओं और सामर्थ्‍य को मज़बूत करने के तरीके ढ़ूंढने में आपके प्रयासों के लिए मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं।"