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आज नई दिल्ली में आयोजित स्वच्छ ऊर्जा संबंधी चौथी मंत्रिस्तरीय बैठक में प्रधानमंत्री के संबोधन का अनूदित पाठ इस प्रकार है:-
"नई दिल्ली में आज स्वच्छ ऊर्जा संबंधी चौथी मंत्रिस्तरीय बैठक का उद्घाटन करते हुए मुझे काफी खुशी है। यह पहली बार है कि भारत में इस मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन हो रहा है। इस अवसर पर मैं सभी प्रतिभागी मंत्रियों और प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों तथा इस महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों, निजी क्षेत्रों तथा गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों का भी स्वागत करता हूं।
स्वच्छ ऊर्जा की खोज दो कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है। पहला यह कि ऊर्जा कि काफी कमी है और यह महंगी होने के साथ ही विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अगर विकासशील देशों को अपने विकासात्मक लक्ष्यों को पूरा करना है तो उन्हें परंपरागत और गैर परंपरागत ऊर्जा सहित ऊर्जा आपूर्ति के सभी स्रोतों का विस्तार करना होगा। दूसरे यह कि, स्वच्छ ऊर्जा बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कार्बन डॉइ-ऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाली जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है।
स्वच्छ ऊर्जा के अधिक इस्तेमाल से जाहिर तौर पर विकास प्रक्रिया टिकाऊ होती है और आने वाले वर्षों में यह मुद्दा और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा। विकासशील देशों में विश्व जनसंख्या का 82 प्रतिशत भाग निवास करता है और वे ऊर्जा की उपलब्ध वैश्विक आपूर्ति का 55 प्रतिशत इस्तेमाल करते हैं। अपने नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के लिए उन्हें अपने सकल घरेलू उत्पाद में तीव्र वृद्धि की ओर ध्यान देना होगा जिससे ऊर्जा की मांग में और तेजी आएगी। अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए यदि वे औद्योगिक देशों की तरह जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे तो हम जानते हैं कि इससे वैश्विक जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा।
यह वैश्विक चुनौती को दर्शाता है। हम केवल दो प्रकार से इस चुनौती से निपट सकते हैं। पहला ऊर्जा दक्षता में सुधार कर हमें सकल घरेलू उत्पाद संबंधी ऊर्जा को सीमित करना होगा। दूसरा हम परंपरागत से गैर-परंपरागत अथवा स्वच्छ ऊर्जा की ओर रूख कर सकते हैं।
दोनों ही उत्सर्जन को कम करने में मददगार हैं और दोनों के लिए धन की आवश्यकता है। स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कदम उठाने वाले देश द्वारा इसका खर्च वहन किया जाता है जबकि लाभ पूरे विश्व को मिलता है। केवल वैश्विक रूप से समन्वय वाले कदम से ही सभी देशों द्वारा ऊर्जा ज़रूरतों के स्तर को कम किया जा सकता है। ऊर्जा इस्तेमाल में कमी और सहयोग की साझा बराबरी पर स्वीकार्य वैश्विक ऊर्जा नीति आधारित होनी चाहिए।
समानता के किसी भी सिद्धांत के अनुसार, औद्योगिक देशों को इस बोझ का बड़ा हिस्सा उठाना होगा। उनके विशाल उत्तरदायित्व को इस बात से ही समझा जा सकता है कि जीएचजी उत्सर्जन के फैलाव की भारी मात्रा के लिए वे ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार हैं। इसके अलावा उनकी प्रति व्यक्ति आय भी अधिक है जिससे वे इस बोझ को उठाने में ज्यादा सक्षम हैं। तकनीकी रूप से वे सर्वाधिक उन्नत हैं और इस लिहाज से वे न केवल स्वयं के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए अनुकूल समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रुपरेखा संबंधी सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन चर्चाओं के मुद्दों पर गहन चर्चा हुई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन चर्चाओं की प्रगति काफी धीमी है। स्वीकार्य स्तर तक वैश्विक तापमान को स्थिर करने का लक्ष्य अभी भी काफी दूर है।
हालांकि हमें इसके स्वीकार्य परिणाम की दिशा में कार्य करना होगा, देशों को अपने-अपने स्तर पर ऊर्जा दक्षता को बढ़ाने और स्वच्छ ऊर्जा के संवर्धन के लिए कदम उठाने होंगे। इस क्षेत्र में सूचनाओं के विनियम को बढ़ावा देने और गठजोड़ के संभावित क्षेत्रों की पहचान के लिए अंतर-देशीय परामर्श की आवश्यकता है और साथ ही एक दूसरे की समान समस्याओं को संबोधित करने के लिए एक दूसरे के अनुभवों से सीखना होगा। स्वच्छ ऊर्जा संबंधी मंत्रिस्तरीय बैठक ने इस प्रकार की चर्चाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अमेरिका के ऊर्जा मंत्री डॉ. स्टीवन चू ने इस बैठक के शुरूआत की पहल की। नोबेल पुरस्कार प्राप्त बेहद विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी डॉ. चू ने अकादमिक जीवन में वापस लौटने की अपनी आकांक्षा जताई है। इसलिए हमारे बीच आज उनका उपस्थित होना हमारे लिए सौभाग्य का विषय है और इस अवसर पर मैं उनके योगदान के लिए उनका धन्यवाद करना चाहूंगा तथा भविष्य के लिए उन्हें शुभकामनाएं देता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि वे उस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में अपना योगदान जारी रखेंगे जिसके लिए स्वच्छ ऊर्जा संबंधी मंत्रिस्तरीय बैठक प्रयासरत है।
इसके शुरू होने से तीन वर्षों के भीतर स्वच्छ ऊर्जा संबंधी मंत्रिस्तरीय बैठक ने स्वच्छ ऊर्जा संबंधी आपूर्ति के विस्तार क्षेत्र और किफायती ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकी के संवर्धन में अनेक पहल की है। मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी है कि भारत इनमें से कई पहलों का सक्रिय प्रतिभागी है।
हमारी बारहवीं पंचवर्षीय योजना समावेशी और टिकाऊ विकास के लिए कम कार्बन उत्सर्जन नीति के विकास पर बल देती है। हमने 2020 तक सकल घरेलू उत्पाद के 20 से 25 प्रतिशत तक की ऊर्जा कटौती के द्वारा ऊर्जा दक्षता में वृद्धि के लक्ष्य को निर्धारित किया है। पंचवर्षीय योजना के तहत पनबिजली ऊर्जा जैसे परंपरागत तथा सौर और पवन ऊर्जा जैसे गैर-परंपरागत स्रोतों सहित स्वच्छ ऊर्जा की भूमिका को बढ़ाने पर भी बल दिया गया है।
पनबिजली ऊर्जा का व्यापक तौर पर इस्तेमाल भारतीय ऊर्जा नीति का भाग है हालांकि इस संदर्भ में पर्यावरणीय सीमाएं हैं और प्रभावित आबादी के पुनर्वास की जरूरत है। हम इन समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करेंगे।
इसके अलावा हम सौर तथा पवन ऊर्जा जैसे गैर परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों और जैव ईंधन के समुचित प्रयोग के लिए भी कदम उठा रहे हैं। हमारे देश में अक्षय ऊर्जा क्षमता को 2012 में 25000 मेगावाट से 2017 में 55000 मेगावाट तक बढ़ाकर दुगुना करने का प्रस्ताव है।
इन नवीन ऊर्जा स्रोतों में विस्तार की गति इस वजह से सीमित है कि ये परंपरागत ऊर्जा से अधिक महंगे हैं। हालांकि इसकी कीमतों में कमी आ रही है। उदाहरण के लिए पिछले दो वर्षों में सौर ऊर्जा की कीमत लगभग आधी हुई है हालांकि यह जीवाश्म ऊर्जा आधारित बिजली की कीमत से अभी भी अधिक है। यदि कार्बन उत्सर्जन की लागत को ध्यान में रखा जाए तो सौर ऊर्जा अधिक किफायती है लेकिन फिर भी यह कीमती है। हालांकि आने वाले वर्षों में इसकी कीमतों में कमी की संभावना से जल्द ही इसका इस्तेमाल और अधिक आसान हो जाएगी।
इस क्षेत्र में गिरती हुई कीमतों की संभावना को देखते हुए हमने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन शुरू किया है। इसका उद्देश्य सौर फोटोवोलटेइक और सौर ताप का प्रयोग करते हुए वर्ष 2022 तक 22000 मेगावॉट सौर ऊर्जा विकासित करना है। कीमत के अंतर को विभिन्न प्रकार की सब्सिडी और क्रॉस-सब्सिडी से पूरा किया जाएगा। लगभग 1500 मेगावॉट की सौर क्षमता देश में पहले ही स्थापित की जा चुकी है और 2017 को समाप्त होने वाली 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक अतिरिक्त 10,000 मेगावॉट सौर ऊर्जा तैयार होने लगेगी।
सौर ऊर्जा का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसको विभिन्न प्रकार से तैयार किया जा सकता है, जो दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को लाभ पहुंचाने में सस्ती पड़ेगी, जबकि ग्रिड व्यवस्था का विस्तार करना कही महंगा पड़ता है।
सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने में हमारी रूचि सर्वोत्तम प्रौद्योगिकी को काम में लाना और आवश्यक उपकरणों का देश में ही उत्पादन करना है। भारत ऐसे उपकरणों के उत्पादन का एक बड़ा बाजार है। इसके साथ-साथ यह अन्य देशों को आपूर्ति करने के लिए प्रतिस्पर्धी और आकर्षक उत्पादन आधार भी है। इसलिए हम इस क्षेत्र में उत्पादन सुविधाएं स्थापित करने के लिए विश्व के निर्माताओं को प्रोत्साहित करते हैं।
सौर मिशन के हिस्से के तौर पर हम एक राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्था भी स्थापित कर रहे हैं, जो विश्वस्तरीय अनुसंधान और विकास केन्द्र का रूप लेगा। इसमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी प्राप्त किया जाएगा, ताकि सौर ऊर्जा की अधिक सस्ती और आसान प्रणालियां तैयार की जा सकें और टिकाऊ तथा दीर्घकालिक उपयोग के लिए सौर ऊर्जा के भंडारण के तौर-तरीके विकसित किये जा सकें। आशा है कि यह संस्था 2015 तक तैयार हो जाएगी।
तटवर्ती क्षेत्रों और समुद्र के दूरवर्ती क्षेत्रों में भारत की पावन ऊर्जा के बारे में फिर से जायजा लिया जा रहा है, ताकि ऊर्जा के इस स्रोत का दोहन करने की एक दीर्घकालिक योजना तैयार की जा सके। ऐसा प्रतीत होता है कि पवन ऊर्जा के दोहन की हमारी क्षमता पहले के अनुमानों के मुकाबले कहीं अधिक है। फिलहाल, पवन ऊर्जा का हमारे देश के कुछ खास हिस्सों में दोहन किया जा रहा है।
ग्रिड आधारित अक्षय ऊर्जा का विस्तार करने के लिए ग्रिड प्रबंधन की प्रौद्योगिकीयों में सुधार की आवश्यकता है, ताकि ऊर्जा के इन स्रोतों से बिजली तैयार करने में अपेक्षित उतार-चढ़ाव से निपटा जा सके। पवन ऊर्जा की तरह सौर ऊर्जा के मामले में भी उतार-चढ़ाव होता रहता है। तथापि, हमारी सरकार के लिए मुख्य कार्य ऐसी व्यवस्था तैयार करना है, जिससे इन उतार-चढ़ावों को कम किया जा सके। इसके लिए एक समाधान बैट्री भंडारण और दूसरा पम्प भंडारण है। ये भी महंगे पड़ते हैं, लेकिन उसे कम करने की गुंजाइश है। इस बारे में हम अंतर्राष्ट्रीय अनुभव से सीख सकते हैं।
सरकार ने परिष्कृत ऊर्जा क्षमता संबंधी राष्ट्रीय मिशन का भी गठन किया है, ताकि उपकरणों, भवनों, परिवहन और उद्योगों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा की बचत पर ध्यान दिया जा सके। यह मिशन मानकों की स्थापना और बाजार संबंधी प्रोत्साहनों पर भी ध्यान देता है। मानकों से बेहतर करने वाले चुनिंदा उद्योगों को पमाण-पत्र दिये जाते हैं।
मैं समझता हूं कि इस मंत्रिस्तरीय बैठक में भाग लेने वाले अन्य देशों में भी इसी प्रकार के प्रोत्साहन दिये जाते हैं। हम उनके अनुभव से सीखने में रूचि रखते हैं और अपने अनुभव उन्हें बताने में हमें प्रसन्नता होगी।
हम अपने परिवहन क्षेत्र में ऊर्जा की बचत के मानक तैयार कर रहे हैं। हमने गाडियों में इस्तेमाल किये जा रहे तेल में 5 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने का पहले ही निर्णय ले लिया है।
हम राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन भी गठित कर रहे हैं और मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार स्वच्छ ऊर्जा संबंधी मंत्रिस्तरीय बैठक के इलेक्ट्रिक व्हिकल इनिशियेटिव में शामिल होगी।
स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण मामला हरित ऊर्जा का वित्त पोषण है। हरित ऊर्जा में निवेश के मामले में प्रौद्योगिकी, व्यावसायिक और नियामक जोखिम है। फिलहाल, हरित ऊर्जा सब्सिडी अथवा नियामक प्रोत्साहनों के बिना अपने आप में व्यावहारिक नहीं है। निवेशक आश्वासन चाहते हैं कि ये प्रोत्साहन जारी रहेंगे। जब तक नीतिगत परिवर्तनों के जोखिमों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी जाती, बाजार के लोग पर्याप्त वित्त पोषण नहीं करेंगे। मुझे प्रसन्नता है कि मंत्रियों ने वित्त पोषण के बारे में एक अलग सत्र बुलाने का फैसला लिया है। हमें इस बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता है कि हममें से प्रत्येक क्या कर रहा है। यह मंत्रिस्तरीय बैठक विभिन्न देशों के बीच अनुभवों को समझने का एक उचित मंच है।
एक व्यावहारिक रणनीति तैयार करने की दिशा में हमारे प्रयास अपने शैशवकाल में हैं और इस बारे में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मुझे तनिक भी शंका नहीं है कि हमारी यह चर्चा विश्व में ऊर्जा की किफायत और स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार का व्यावहारिक एजेंडा तैयार करने में सहायक होगी।
मैं इन दो दिनों के दौरान आपके बीच होने वाले विचार-विमर्श की सफलता की कामना करता हूं और आशा करता हूं कि नई दिल्ली में आपका प्रवास सुखद होगा तथा आपको हमारे देश के कुछ हिस्सों को देखने का अवसर प्राप्त होगा।"