भाषण [वापस जाएं]

April 11, 2013
बर्लिन


‘डेज ऑफ इंडिया इन जर्मनी’ के समापन समारोह में प्रधानमंत्री का संबोधन

बर्लिन में ‘डेज ऑफ इंडिया इन जर्मनी’ के समापन समारोह में 11 अप्रैल 2013 को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के संबोधन का अनूदित पाठ इस प्रकार है:-

‘डेज ऑफ इंडिया इन जर्मनी’ के समापन समारोह में आपके बीच मौजूद होने की मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। चांसलर महामहिम एंगेला मेर्केल द्वारा मई 2011 में दिल्ली में शुरू किए गए इस खूबसूरत समारोह का समापन सौभाग्य की बात है। समारोह की यह श्रृंखला न केवल हमारे 62 वर्षों के राजनयिक रिश्तों की प्रतीक रही बल्कि इसने भारत और जर्मनी के लोगों के आपसी दीर्घकालिक जुड़ाव को भी व्यक्त किया।

देवियो और सज्जनों, हमारे वर्तमान द्विपक्षीय संबंध दोनों देशों के लोगों के बीच के सदियों के संपर्क की आधारशिला पर आधारित है। जर्मनी के महान सपूत प्रो. मैक्स मूलर ने एक सदी से भी पूर्व हमें दोनों देशों के रिश्तों को जोड़ने वाले विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया था। भारत में हम मैक्स मूलर के जीवन और उनकी सीख को अब तक संजोए हैं। भारत के प्रति उनके रूझान की वजह से राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने उन्हें काफी सराहा। मैक्स मूलर ने एक बार कहा था-“यदि मुझसे पूछा जाए कि धरती पर कहां के लोगो ने जीवन की समस्याओं पर गहराई से विचार किया है और इसका समाधान प्राप्त किया है तो मैं भारत की ओर इशारा करूंगा।”

आधुनिक रूप ग्रहण करने वाली हमारी प्राचीन भूमि में इस प्रकार के बौद्धिक विचारों ने हमें गर्व की भावना से भर दिया। ऐसा करने में मैक्स मूलर ने अपने समय के कई विद्वानों की भांति योगदान दिया जिसने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन और संघर्ष की आधारशिला के प्रति जनमानस में एक नया भाव भरा।

बेशक ‘डेज ऑफ इंडिया इन जर्मनी’ जैसे समारोह मनोरंजन के लिए होते हैं पर साथ ही जानकारी और शिक्षा प्रदान करना भी इनका उद्देश्य होता है। मुझे इस बात की भी खुशी है कि यह समारोह बर्लिन के ऐतिहासिक शहर में आयोजित किया जा रहा, एक ऐसा शहर जो बदलाव और पुनरूद्धार के विशिष्ट इतिहास और लक्षणों से परिपूर्ण है। एक महान विभाजक शहर से लेकर यूरोपीय एकीकरण के प्रतीक केन्द्र के रूप में यह जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय भूमिका और उत्तरदायित्व, महान यूरोपीय परियोजना में योगदान और भिन्नता की बजाय एकता द्वारा परिभाषित यूरोप के भविष्य का परिचायक है।

न केवल यूरोप के लिए बल्कि समूचे विश्व के लिए यह मुश्किलों से भरा समय है। पर मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय उपायों और सामूहिक प्रयासों से यूरोप वर्तमान आर्थिक चुनौतियों से उबरने में कामयाब रहेगा। विश्व को सफल और सौहार्द से परिपूर्ण यूरोप की आवश्यकता है। आर्थिक रूप से यूरोप के दोबारा पटरी पर आने, इसकी वृद्धि और वैश्विक मामलों में इसकी भूमिका के लिए भारत भी तत्पर है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रभाव भारत पर भी पड़ा है और साथ ही पिछले दो वर्षों में हमारी आर्थिक वृद्धि में गिरावट हुई है। विकास को दोबारा गति देने के लिए हमारी सरकार ने कई कदम उठाए हैं। भारत जैसे विशाल आकार, विभिन्नताओं और जटिलताओं वाले देश में नीतियों पर बहस होना स्वाभाविक है। पर इन बहसों की वजह से हम देश और लोगों के दीर्घावधि हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ मुश्किल निर्णय लेने से पीछे नहीं हटे हैं। बल्कि हम इन चर्चाओं का स्वागत करते हैं ताकि हमारी नीतियां अधिक सशक्त और टिकाऊ बन सके।

भविष्य में, बारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिए हमने अपने लिए आठ प्रतिशत से अधिक के वार्षिक विकास दर का लक्ष्य रखा है। भारत ने पिछले दशक में यह वृद्धि दर रिकॉर्ड की है और मुझे विश्वास है कि निकट भविष्य में भी यह हमारी वृद्धि दर बनी रहेगी। हमारी आर्थिक नींव सुदृढ़ है। भारत साहस, उद्यमिता और नवाचार की भावना से परिपूर्ण है। निवेश के सुअवसर खुले हैं। हमारी सरकार निवेश बढ़ाने, विदेशी निवेशकों को आकृष्ट करने और आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के लिए कृत संकल्प है। इसके लिए हमने घरेलू तथा विदेशी दोनों क्षेत्र के निवेशकों के लिए भारत को आकर्षक बनाने की ओर काम किया है और हमारे हृदय में जर्मनी के निवेशकों के लिए खास स्थान है।

हाल के महीनों में हमने राजकोषीय समेकन प्राप्त करने और वृहद आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। बुनियादी ढ़ांचे की विकास संबंधी कई प्रमुख परियोजनाओं के क्रियान्वयन की तेजी के लिए कदम उठाए गए हैं। विश्व को हमारा स्पष्ट संदेश है कि भारत विदेशी निवेश के स्वागत के लिए पूरी तरह से खुला है। हमारा लक्ष्य आने वाले पांच वर्षों में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित करने का है। मुझे विश्वास है कि जर्मनी और समूचे यूरोप की कंपनियां इस अवसर का लाभ उठाएंगी जिससे आपसी हितों की वृद्धि प्रक्रिया में तेजी आएगी।

भारत की चिंता केवल वृद्धि दर की नहीं बल्कि उस वृद्धि की गुणवत्ता और स्वास्थ्य तथा शिक्षा दोनों ही क्षेत्रों में हमारे लोगों की जीवन स्थितियों पर भी हमारा ध्यान है। हम चाहते हैं कि हमारी वृद्धि समावेशी और टिकाऊ हो। यह केवल सामाजिक और राजनैतिक अनिवार्यता नहीं है बल्कि टिकाऊ दीर्घावधि वृद्धि के लिए उपयुक्त आर्थिक आधार भी है। इसलिए हमने आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कौशल विकास और स्वच्छ तथा अक्षय ऊर्जा पर विशेष बल दिया है।

मजबूत और टिकाऊ विकास की हमारी राह में जर्मनी भारत के महत्वपूर्ण साझेदारों में एक है। ऐसा केवल इसलिए नहीं कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, उत्पादन और संगठन के संदर्भ में जर्मनी की श्रेष्ठता है बल्कि इसलिए कि हमारे बीच सुकूनप्रद और भरोसे पर आधारित संबंध है जो सदियों पुरानी हमारे दोनों देशों के बीच के बौद्धिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक विचारों पर आधारित है। बुनियादी ढांचे, विनिर्माण, स्वच्छ ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, उच्चतर शिक्षा और कौशल विकास संबंधी राष्ट्रीय विकास से जुड़े लक्ष्यों के सभी क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सार्थक साझेदारी के अनेक अवसर मुझे दिखाई देते हैं।

आज हस्ताक्षरित किए गए दस समझौतों में यह स्पष्ट प्रतिबिंबित होता है जिसमें भारत में विशिष्ट और सशक्त हरित ऊर्जा गलियारा और उच्चतर शिक्षा के लिए संयुक्त कोष शामिल है। बदले हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थान के लिए भारत और जर्मनी की साझा आकांक्षाएं हैं। दोनों ही बगैर किसी परमाणु हथियारों वाले विश्व के लक्ष्य का समर्थन करते हैं। भारत और यूरोपीय संघ के बीच हम विस्तृत व्यापार और निवेश समझौते में शामिल है और वैश्विक आर्थिक स्थिति में दोबारा सुधार के लिए जी-20 में काफी निकटता से परामर्श करते हैं। हम अफगानिस्तान में स्थिर और शांतिपूर्ण स्थिति चाहते हैं। इसके साथ ही हम तेजी से बदलते एशिया प्रशांत क्षेत्र में स्थिर वैश्विक स्थिति का लक्ष्य रखते हैं।

वर्तमान विश्व परस्पर सौहार्द पर आश्रित है और साझा समस्याओं से जूझ रहा है। यह गिरती अथवा उभरती शक्तियों का नहीं अपितु अवसरों और आशाओं के फैलाव का समय है। यह ऐसा समय है जब तेजी से बदलाव हो रहे हैं। यह आपस में जुड़ने, संपर्क स्थापित करने और एक दूसरे को मदद करने का समय है।

1956 में जर्मनी की अपनी पहली यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने अपने देश की आशाओं और जर्मनी में भरोसे तथा भारत-जर्मन संबंधों के प्रति विश्वास व्यक्त किया था। उस स्वप्न से लेकर अब तक हमने काफी लंबी दूरी तय की है। मुझे विश्वास है कि 21वीं सदी के अवसरों और चुनौतियो में भारत और जर्मनी अपने-अपने देश के नागरिकों और इस विश्व के लोगों के लिए परस्पर साथ निभाना जारी रखेंगे।

मैं भारत और जर्मनी तथा सरकार और इसके बाहर के प्रत्येक व्यक्ति का धन्यवाद करना चाहूंगा जिन्होंने इस समारोह और आयोजन के लिए कड़ी मेहनत की। आज शाम यहां मौजूद होने की मुझे काफी खुशी है और मुझे पूरा विश्वास है कि यह समारोह आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच के संबंधों की आधारशिला होगा। यह उम्मीद, आशा और विश्वास मुझे बर्लिन के इस ऐतिहासिक शहर लाया है।

देवियों और सज्जनों मैं आपको धन्यवाद देता हूं।