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आज नई दिल्ली में आयोजित सीआईआई के राष्ट्रीय सम्मेलन और वार्षिक आम बैठक में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के संबोधन का मूलपाठ नीचे दिया जा रहा है:-
मुझे यहां आकर और सीआईआई की वार्षिक आम बैठक 2013 को संबोधित करने पर बहुत खुशी हो रही है। मेरा हमेशा विश्वास रहा है कि सरकार और व्यापारी दोनों को ही इस प्राचीन देश की विकास गाथा लिखने में भागीदार बनना चाहिए। सीआईआई पिछले अनेक वर्षों से इस काम में हमारा बहुमूल्य साझीदार रहा है। आर्थिक सुधारों को लागू करने का जटिल कार्य संभालते हुए विभिन्न सरकारों ने अर्थव्यवस्था का संचालन किया है। सीआईआई लगातार सुधारों के मामले में व्यापारियों का पक्ष प्रस्तुत करता रहा है और इस तरह से उसने देश की सकल संभावित आर्थिक क्षमता का उपयोग करने में सहायता की है।
1990 से जब से मैं वित्त मंत्री बना था, मैं इस भागीदारी से बहुत लाभान्वित हुआ हूं और अब आज प्रधानमंत्री के रूप में इसका स्वागत कर रहा हूं। इसके लिए मैं अपने मित्र श्री अदी गोदरेज को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने यहां आकर मुझे आपके सामने अपने विचार रखने का अवसर दिया। वह भी, ऐसे समय जब पूरा व्यापार जगत देश की अर्थव्यवस्था की दशा दिशा जानने के लिए उत्सुक है।
सात वर्षों पहले 2007 में मैंने आखिरी बार आपके वार्षिक अधिवेशन को संबोधित किया था। वह ऐसा समय था, जब वैश्विक आर्थिक संकट शुरू भी नहीं हुआ था। उस समय दुनिया की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही थी, लेहमान ब्रदर्स का पतन हो चुका था और भारत नौ प्रतिशत प्रतिवर्ष की आर्थिक विकास दर का अनुभव ले रहा था। तब से परिस्थितियां सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में बदल गई हैं।
पिछली बार आपको संबोधित करते हुए मैंने कुछ विरोधी बाते कही थीं। उस समय सबकुछ ठीक चल रहा था और मैंने चेतावनी देकर सावधानकिया था। मैंने कहा था कि हालांकि हमने काफी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, लेकिन हमें अभी बहुत कुछ करना है और ऐसी विकास प्रक्रिया का सृजन करना है जो सचमुच समावेशी हो। मैंने ये भी कहा था कि हालांकि ऊपरी तौर पर भारतीय व्यापार जगत वृद्धि और समृद्धि की तरफ बढ़ रहा है और विदेशों में भी उसकी उपस्थिति है। यह उस समय भारत की उपलिब्धयों का प्रमाण था। लेकिन व्यापारियों को उनकी सामाजिक जिम्मेदारी की तरफ भी ध्यान दिलाने की जरूरत थी। उस समय खासतौर से मैंने वेतन भुगतान और बेतहाशा उपभोग के बारे में संयम से काम लेने की जरूरत बताई थी।
बाद में मेरे कुछ मित्रों ने मुझे बताया कि मेरी टिप्पणी को बेवजह ही निराशाजनक माना गया। लेकिन आप सहमत होंगे कि ये ऐसे मुद्दे हैं जो वैश्विक आर्थिक संकट के बाद दुनिया भर में लोगों की नजर में आने लगे।
मैं एक बार फिर वैसी ही बात कहने जा रहा हूं। अगर वर्ष 2007 में व्यापार जगत की स्थिति अनावश्यक रूप से आशावादी थी, तो आज मैं उसे जरूरत से ज्यादा निराशावादी मानता हूं। इसे ठीक करने की जरूरत है। मैं इसे स्पष्ट करता हूं।
वर्ष 2007 में मैं बार-बार सुनता था कि सरकार असंगत हो गई है, क्योंकि कोई भी सरकार कुछ भी करे, भारत की विकास दर नौ प्रतिशत बनी रहेगी। आज इस बात पर सभी लोग सहमत हैं कि जब तक सरकार तेजी से कार्रवाई नहीं करेगी, हमारी विकास गति जो पहले ही धीमी पड़ चुकी है, और धीमी हो जाएगी और पाँच प्रतिशत पर पहुंच जाएगी।
स्वभाविक है, और मैं व्यापार जगत की सरकार के प्रति इस नई खोज और नई राय का स्वागत करता हूं। मेरा विश्वास है कि सरकार की भूमिका हमेशा ही महत्वपूर्ण होती है। मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता कि भारत की आर्थिक विकास दर भविष्य में पाँच प्रतिशत रह जाएगी। पिछले दस वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था आठ प्रतिशत की औसत दर से बढ़ती रही है। हम वही विकास दर फिर प्राप्त कर सकते हैं। हम सबको मिलकर इसके लिए प्रयास करने चाहिए। लेकिन इसके लिए सरकार को तेजी से और निर्णायक कार्रवाई करनी होगी।
सरकार ही विकास की प्रमुख चालक नहीं होती। किसी प्राइवेट सेक्टर की अगुवाई वाली अर्थव्यवस्था में विकास का चालक वास्तव में प्राइवेट निवेश होता है। मैं एक बार फिर दोहरा रहा हूं कि हमारी अर्थव्यवस्था में 75 प्रतिशत निवेश प्राइवेट सेक्टर से आता है, जिसमें किसान, छोटे व्यापारी और कार्पोरेट सेक्टर शामिल हैं। इस तरह से हमारी अर्थव्यवस्था प्राइवेट सेक्टर की अगुवाई में चल रही है। लेकिन प्राइवेट सेक्टर को ऐसे माहौल की जरूरत होती है जिसमें उद्यम फल-फूल सकें, नौकरियों के अवसर सृजित किये जा सकें और विकास को बढ़ावा दिया जा सके। इसके लिए एक माकूल महौल की जरूरत है, जिसमें सर्व समावेशी प्रगति सुनिश्चित की जा सकेगी। आज जो महौल बना है वह आदर्श नहीं है और सरकार को इसमें सुधार लाना है।
किसी सुधारात्मक कार्य नीति का आधार समस्या का सही विश्लेषण होना चाहिए। हमारी विकास दर घटकर पाँच प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो निश्चय ही निराशाजनक है, लेकिन विकास दर में यह गिरावट हमेशा के लिए नहीं आई और दीर्घावधि में यह बढ़ेगी। जैसा कि मैं कह चुका हूं हमारी अर्थव्यवस्था पिछले दस वर्षों से आठ प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ती रही है। जबकि इससे 15 वर्ष पहले यह विकास दर औसतन 7.5 प्रतिशत रही है। इस प्रकार की गतिशीलता यों ही नहीं गायब हो जाती। लेकिन हमें उन लोगों को गलत साबित करना होगा जो निराशाजनक भविष्यवाणी कर रहे थे। मेरा विश्वास है कि अब इसके विपरीत स्थिति बन रही है। अगर हम अर्थशास्त्र की पुस्तकों के पन्ने पलटें तो पाएंगे कि व्यापार चक्र बार-बार लौटते हैं। मेरा भरोसा है कि हमने जो अस्थाई नकारात्मक विकास दर देखी है वह जब तक दिखाई देती है। हमें इसे मान्यता देनी होगी और इसमें सुधार के उपाय करने होंगे।
इस समस्या के एक हिस्से का कारण है विश्वव्यापी मंदी जिससे लगभग सभी देश प्रभावित हुए हैं। दुनिया 2008 के आर्थिक संकट से उबर चुकी है और अब दूसरे संकट की तरफ बढ़ रही है। इसका कारण यूरोजान की ऋण समस्या है। विकास नकारात्मक हो गया है और जापान में तो यह शून्य तक पहुंच चुका है। मैं अभी जल्दी ही ब्रिक्स सम्मेलन से लौटा हूं। ब्राजील का विकास 1.5 प्रतिशत की दर से दक्षिण अफ्रीका का 2.6 प्रतिशत और रूस का 3.7 प्रतिशत की दर विकास हो रहा है। इनकी तुलना में चीन ने बेहतर प्रदर्शन किया है जहां विकास दर 7.5 प्रतिशत रही है। लेकिन अब यह विकास दर चीन की पहले की विकास दर के मुकाबले काफी कम हो गई है। वैश्विक मंदी के बारे में हम कुछ खास नहीं कर सकते। हम सिर्फ उस स्थिति का इंतजार कर सकते हैं, जब दुनिया सामान्य स्थिति में लौट आएगी। इस बीच हमें यह मानना होगा कि हमारे आयात में कमजोरी आई है और हमारा व्यापार घाटा वर्तमान में बढ़ा है। यह उस स्तर से ज्यादा है जितना होना चाहिए।
लेकिन हमें उन घरेलू समस्याओं से प्रभावी तरीके से निपटना होगा जो उठ खड़ी हुई हैं। अगर अर्थव्यवस्था को पूरी क्षमता से बढ़ाना है तो इन समस्याओं का समाधान निकालना जरूरी है।
घरेलू समस्याओं से निपटने का पहला उपाय है कि हम अर्थव्यव्था में आर्थिक संतुलन बहाल करें। पिछले कई वर्षों से हमारा राजकोषीय घाटा बहुत बढ़ गया है जो स्वीकार्य नहीं है। आंशिक रूप से इसका कारण है राजकोषीय संप्रेरणा की नीति जिसका अनुपालन अनेक देश कर रहे हैं।
जो अनेक देश इस नीति पर चल रहे हैं वे अब इस प्रक्रिया को उलट रहे हैं। हमें भी ऐसा ही करना चाहिए। हमारे वित्त मंत्री ने लगभग यही करने की कोशिश की है। उन्होंने राजकोषीय घाटा कम करने का लक्ष्य रखा जो 2013-14 के सकल घरेलू उत्पाद के आधा प्रतिशत के बराबर होगा। उन्होंने हर वर्ष 2016-17 तक ऐसा ही करने का एलान किया है। हमें हर हाल में इस लक्ष्य को पूरा करना है।
मैं इस संदर्भ में यहां पर इस बात पर जोर दूंगा कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय विश्लेषकों को संतुष्ट करना ही काफी नहीं होगा। जरूरत इस बात की है कि हमारी अर्थव्यवस्था में वित्तीय बचत उपलब्ध हो जो निवेश का समर्थन करे। यह भी जरूरी है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाया जाए। यह एक बड़ी समस्या रही है और हालांकि अब यह नरम पड़ रही है, लेकिन इसे और नीचे लाना जरूरी है।
ईंधन सब्सिडी के मामले में हमने सोच-समझकर उपाय किये हैं। अब पेट्रोल पूरी तरह नियंत्रण से मुक्त है और दुनिया भर में इसकी कीमतों के घटने बढ़ने के साथ ही कीमतें घट बढ़ रही हैं। डीजल भी पिछले कुछ महीनों से बाजार आधारित मूल्य व्यवस्था के अनुरूप है। एलपीजी पर सब्सिडी कम हुई है। हमें उम्मीद है कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण का आधार मंच के अनुरूप बना देने से दूसरी सब्सिडियों और खासतौर से मिट्टी के तेल पर दी जाने वाली सब्सिडी का रिसाव रोका जा सकेगा।
इन सभी उपायों से राजकोषीय समेकन के प्रति हमारा गंभीर रवैया दिखा है और दुनिया भर में इसकी सराहना की गई है।
राजकोषीय घाटे के विस्तार से मौजूदा व्यापार घाटा बढ़ा है और अब यह सकल घरेलू उत्पाद के पाँच प्रतिशत के बराबर रहने की उम्मीद है। यह 2.5 प्रतिशत के परंपरागत स्तर का दुगना है, जो परंपरागत रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था में बना रहा है। वर्ष 2013-14 में हम इसमें कुछ कमी की उम्मीद कर सकते हैं। जिससे इस वर्ष के बजट में राजकोषीय घाटा कम करने का लक्ष्य रखा गया है और पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी भी घटाई जाएगी। लेकिन शुरू-शुरू में यह कटौती मामूली होगी। इसीलिए हमें अगले कुछ वर्षों में भुगतान संतुलन में सामान्य घाटे से ज्यादा की योजना बनानी पड़ेगी।
हमारे विदेशी रिजर्व में बगैर किसी नुकसान के 2012-13 में हमने 90 बिलियन डॉलर से भी अधिक के सीएडी का निधियन किया। अगले दो वर्षों तक पूंजी के अंतर्वाह की मजबूती को सुनिश्चित रखने के लिए हम हर संभव कदम उठाएंगे। मुझे विश्वास है कि उच्च वृद्धि की राह पर लौटती सुप्रबंधित भारतीय अर्थव्यवस्था इस तरह के पूंजी प्रवाह को आकर्षित करना जारी रखेगी।
वृहत आर्थिक संतुलन को बनाए रखना आर्थिक प्रबंधन का एक हिस्सा है और ऐसे माहौल का निर्माण जो निवेश को बढ़ावा दे वह इसका दूसरा हिस्सा है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर निवेश दर के साथ मजबूती से जुडी होती है। निजी क्षेत्र भारत में निवेश का प्रमुख स्रोत है। लेकिन हमारे सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के तौर पर 2011-12 में सार्वजनिक और निजी निवेश दोनों में गिरावट आई। निवेश में इस गिरावट को पलटने की आवश्यकता है।
घरेलू स्तर पर निवेश के माहौल में तेजी लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज जो हम कर सकते हैं वो है बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के क्रियान्वयन को प्रभावित करने वाली बाधाओं से निपटना। बहुत सी ऐसी परियोजनाएं हैं जो नियामक मंजूरी की वजह से अटकी हुई हैं तथा इसके अलावा विद्युत परियोजनाओ के मामलों में ईंधन आपूर्ति समस्याओं की वजह से भी योजनाएं लंबित हैं। बहुत से कारणों की वजह से अंतर सरकारी निर्णय-क्रम में सुस्ती है। इसका एक कारण अधिकारियों द्वारा महत्वपूर्ण निर्णय लेने के संबंध में हिचकिचाहट है।
इस समस्या से निपटने के लिए हमने निवेश पर केन्द्रीय समिति की स्थापना की। इसका ध्येय उद्योग और बुनियादी ढांचे के लिए नियामक मंजूरी में तेजी लाना तथा मंत्रालयों के बीच मतभेदों को मंत्रालयी स्तर पर सुलझाना है। इस समिति के कार्य द्वारा पिछले तीन महीनों में हमने जो प्रगति की है उससे मैं प्रोत्साहित हूं।
पेट्रोलियम क्षेत्र में, सुरक्षा मंजूरी के अभाव की वजह से 40 तेल ब्लॉकों में उत्खनन और उत्पादन गतिविधियों संबंधी 20 बिलियन डॉलर का निवेश अटका हुआ था। सीसीआई ने इसमें परिवर्तन किया है। पांच ब्लॉको के लिए मंजूरी दी जा चुकी है। अगले दो सप्ताह में अन्य 31 ब्लॉकों से संबंधित समस्याओं को सुलझाने की हमें आशा है।
मेरा मानना है कि जो प्रगति हमने की है वो खास तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि इन ब्लॉकों को कई वर्षों पहले आवंटित किया गया था पर क्लियरेंस न के कारण काम रुका हुआ था।
बिजली क्षेत्र में, झारखंड के उत्तरी करनपुरा क्षेत्र में 200 मेगावाट परियोजना के एनटीपीसी के प्रस्ताव से संबंधित मुद्दे को सुलझा लिया गया है। 14,000 करोड़ रुपए के लागत वाली यह परियोजना बिजली और कोयला मंत्रालयों के बीच मतभेद के कारण 13 वर्षों से लंबित थी।
सीसीआई ने मेगा परियोजाओं के लिए पर्यावरण और वन मंजूरी की प्रक्रियाओं को भी सरलीकृत किया है। 12 कोयला खदान परियोजाओं के लिए मंजूरी में तेजी लाई गई है। यह परियोजनाएं हमारे वार्षिक कोयला उत्पादन में 37 मिलियन टन का संवर्धन करेंगी। 25 प्रतिशत तक के एक बार क्षमता विस्तारण के लिए जन सुनवाई के संबंध में कोयला खदान परियोजाओं को छूट दी गई है बशर्ते पहले जन सुनवाई की जा चुकी हो। यह भी निर्णय लिया गया है कि अगर 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के तहत पहले मंजूरी प्राप्त हो तो खनन पट्टे के नवीनीकरण के समय खनन परियोजना के लिए किसी नई पर्यावरणीय मंजूरी की ज़रूररत नहीं होगी।
सड़क, रेलवे और ट्रांसमिशन लाइनों जैसी रेखीय परियोजनाएं कई गांवों से होकर गुजरती है। इस तरह की कई परियोजनाओं में देरी हो रही थी क्योंकि इसके लिए वन अधिकार अधिनियम के तहत प्रत्येक ग्राम सभा की सहमति आवश्यक है, जिसमें समय लगता है। इस तरह की परियोजनाओं के लिए अब ग्राम सभाओं की सहमति आवश्यक नहीं है बशर्ते आदिम जनजातीय समूहों और कृषि –पूर्व समुदायों के अधिकार प्रभावित न हों और राज्य सरकारें यह प्रमाणित करें कि वन अधिकार अधिनियम के तहत सभी अधिकारों की पूर्ति की गई है। इससे वन मंजूरी प्राप्त करने में लगने वाले समय में काफी कमी आएगी और साथ ही वनवासियों के अधिकार भी पूरी तरह से संरक्षित रहेंगे।
कुछ रेखीय परियोजनाओं के लिए वन भूमि के केवल कुछ हिस्से की ही आवश्यकता होती है। पहले गैर-वन क्षेत्र में भी काम शुरू नहीं किया जा सकता था जब तक की वन भूमि के लिए वन मंजूरी प्राप्त हो। अब कुछ शर्तों के अध्यधीन गैर-वन भाग में काम शुरू किया जा सकता है।
सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय के समक्ष जाने पर उच्चतम न्यायलय ने रेखीय परियोजनाओं के लिए पर्यावरण और वन मंजूरी को डीलिंक करने को मंजूरी दी है। निर्माण कार्य में तेजी के लिए प्रक्रियाओं को सरलीकृत किया गया है।
विशेष आर्थिक जोन के लिए पर्यावरणीय मंजूरी को विनिर्माण नीति के अनुरूप बनाया गया है जिससे राज्य सरकारें राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अधिकार दे सकेंगी और यदि विशेष आर्थिक जोन की समग्र रूप में जन सुनवाई हो चुकी हो तो व्यक्तिगत इकाइयों को जन सुनवाई का सामना नहीं करना होगा।
निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए इस वर्ष के बजट में भी कुछ महत्वपूर्ण कदम प्रस्तुत किए गए हैं। 100 करोड़ अथवा इसके अधिक के निवेश के लिए सामान्य से अधिक अवमूल्यन होने पर 15 प्रतिशत निवेश भत्ते का प्रस्ताव है। मुझे आशा है कि उद्योग द्वारा इस कदम का पूरा लाभ उठाया जाएगा।
बजट में सेमीकंडक्टर वेफर एफएबी के लिए संयंत्र और यंत्रों पर शून्य सीमा शुल्क का प्रस्ताव है और साथ ही सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के लिए उनके दवारा उच्च वर्ग में प्रवेश के बावजूद तीन वर्षों के गैर-कर लाभ की उपलब्धता का विस्तार किया गया है। हमें लघु और मझौले उद्योग को बढ़ावा देने के लिए और भी काम करने की आवश्यकता है क्योंकि यह क्षेत्र बड़े उद्योगों के लिए प्रमुख घटक समर्थन संरचना का कार्य करेगा और उत्पादक, सृजनात्मक रोजगार का मुख्य स्रोत होगा।
इन सभी निर्णयों का पूरा असर आने वाले कुछ महीनों में महसूस होगा और मुझे आशा है कि यह हमारे निवेश संबंधी विचारों में सुधार करेगा। हम इस प्रक्रिया को आगे ले जाएंगे और आने वाले वर्षों में और भी कदम उठाएंगे।
घरेलू निवेश को बढ़ावा देने के साथ ही हमने विदेशी निवेश के स्वागत का भी स्पष्ट संकेत दिया है जो आधुनिक तकनीक लाने और हमारी अर्थव्यवस्था के वैश्विकरण के लिए महत्वपूर्ण है। भारतीय उद्योग निवेश के लिए बाहर कदम बढ़ा रहे हैं , भारत में आने वाले विदेशी निवेश और भारत को उनकी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के रूप में इस्तेमाल का हमें स्वागत करना चाहिए । मल्टी ब्रांड खुदरा, नागरिक उड्डयन तथा अन्य क्षेत्रों में एफडीआई का उदारीकरण महत्वपूर्ण संकेत है। आने वाले महीनों में और क्या कुछ किया जा सकता है इसके लिए हम लगातार एफडीआई नीति की समीक्षा कर रहे हैं।
बैंकिग के क्षेत्र में हालिया नियामक कदमों ने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नए बैंकों के लाइसेंस प्रदान करने के लिए रास्ता तैययार किया है। यह एक बहुप्रतीक्षित कदम था।
राज्य वितरण कंपनियों के वित्तीय पुनर्गठन की योजना को अधिसूचित किया जा चुका है और कई राज्य सरकारें इस योजना का लाभ उठाने के लिए विद्युत मंत्रालय के साथ काम कर रही हैं। इससे बिजली क्षेत्र की वित्तीय स्थिति में काफी सुधार आएगा।
कोयला और गैस दोनों के संबंध में बिजली परियोजनाओं को ईंधन आपूर्ति की समस्या सामने आ रही है। समयबद्ध तरीके से इसके निपटान के लिए मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं। मुझे आशा है कि अगले तीन सप्ताह में इसका परिणाम प्राप्त होगा।
अन्य सुधार कार्य भी अपेक्षित हैं। वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार समिति ने कई संस्तुतियां दी हैं जिन पर ध्यानपूर्वक गौर किया जाएगा। भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास तथा पुनर्स्थापन विधेयक को मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी जा चुकी है और इसे जल्द ही संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
भारत एक युवा राष्ट्र है और यह हमें जनसंख्या संबंधी लाभांश प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है लेकिन इस लाभांश का अहसास करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा प्रशिक्षुता मे विस्तार कर हमें अपने मानव पूंजी को मजबूत करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय कौशल विकास प्राधिकरण तथा निजी क्षेत्रों के जरिए कौशलयुक्त प्रशिक्षण को बढ़ावा देने संबंधी हाल के बजट घोषणा से हमें अपने युवाओं को कार्य के लिए तैयार करने में मदद मिलेगी। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अच्छा रोजगार समावेशन का बेहतर तरीका है। मैं चाहता हूं कि कौशल विकास के संवर्धन में उद्योग भी सरकार के साथ मिलकर काम करें। मैं उद्योगों से यह भी आग्रह करुंगा कि वे पिछड़े समुदायों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों को उपयोगी रोजगार के अवसर प्रदान करने में विशेष ध्यान दें। अन्य शब्दों में सकारात्मक कार्यवाही केवल कागजी कार्यवाही तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि इसमें वास्तविकता होनी चाहिए।
मैंने संक्षेप में कई क्षेत्रों को रेखांकित किया है जहां सरकार हमारी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कदम उठा रही है। मैं भारतीय उद्योग से आग्रह करुंगा कि वे हमारे संकल्प में विश्वास करें और नकारात्मक अवस्था से प्रभावित न हों। लोकतंत्र होने का एक लाभ यह है कि हमारी त्रुटियों और कमियों को हमेशा जनता के समक्ष रखा जाता है और वास्तव में कई कमियां है। भ्रष्टाचार एक समस्या है। नौकरशाहसंबंधी जड़ता भी एक समस्या है। गठबंधन प्रबंधन भी आसान नहीं है लेकिन ये समस्याएं अचानक नहीं उठी हैं, ये पहले भी थी जब अर्थव्यवस्था प्रतिवर्ष 8 प्रतिशत के दर से बढ़ रही थी।
मेरे विचार में हम 8 प्रतिशत की वृद्धि दर को प्राप्त कर सकते हैं जैसा कि हम इन समस्याओं से निपटने के लिए अपने प्रणाली में दीर्घावधि बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं और अधिक से अधिक हम समावेशी विकास को प्राप्त कर सकते हैं।
11वीं पंचवर्षीय योजना जो 2011-12 में खत्म हुई है, उसके अनुभव का वास्तविक संदेश यह है कि हम न केवल 8 प्रतिशत के औसत विकास दर से आगे बढ़े हैं, बल्कि हमारा विकास पहले की अपेक्षा काफी समावेशी रहा है। गरीबी में काफी तेजी से कमी आई हैं, हमारी कृषि विकास दर बढ़ी है। वास्तविक मजदूरी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी तेजी से बढ़ी है। वास्तविक खपत ग्रामीण क्षेत्रों में काफी तीव्र गति से बढ़ी है और देश के पिछड़े राज्यों में भी काफी तीव्र विकास हुआ है। यह समावेशी परिणाम संरचना के साथ तीव्र विकास का सम्मिलित नतीजा है जिससे कई सरकारी कार्यक्रमों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों को लाभ पहुंचा है जिससे अत्यधिक समावेशन को बढ़ावा मिला।
यदि हमने इसे 11वीं पंचवर्षीय योजना में कर दिखाया तो है कोई कारण नहीं है कि हम 12वीं पंचवर्षीय योजना में इससे अच्छा नहीं कर सकते।
मैं यह कहकर अब समाप्त करना चाहूंगा कि हम स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक निर्णायक चरण में पहुँचे हैं यदि हम उस उच्च वृद्धि दर की राह पर वापस आ सकते है, जिस पर हम कुछ साल पहले थे, तो इससे 10 वर्षो में हमारी अर्थव्यवस्था में एक बदलाव आएगा जिससे हमारे युवाओं के लिए नये रोजगार के अवसरों का सृजन होगा साथ-साथ ही गरीबी भी काफी निचले स्तर पर आ जाएगी।
मुझे सचमुच विश्वास है कि हम सभी में से प्रत्येक का विश्व के एक बड़े समूह का बहुवादी, उदार और धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान हैं। उस समय जब हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया हमें विचलित करती है तब यह जरूर याद रखना चाहिए कि यह इस तरह का पहला लोकतंत्र है जहां बहुवादिता की प्रतिबद्धता और इन स्वतंत्रताओं की प्रतिबद्धता का हम लाभ उठाते हैं जो आधुनिक राष्ट्र में विकसित हुए प्राचीन देश की मजबूत आधारशीला हैं।
मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि आप विश्वास बनाएं रखें और आपसे यह भी आहवान करता हूं कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में निर्धारित पथ पर अर्थव्यवस्था को वापस लाने में सरकार के प्रयास में सहयोग दें। मैं इस सम्मेलन तथा सीआईआई की सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद।