प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा
प्रबंधित कराई गई सामग्री
राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र
द्वारा निर्मित एंव संचालित वेबसाइट
दक्षिण अफ्रीका में डरबन में आयोजित पांचवे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में 27 मार्च को प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह द्वारा दिेये गए वक्तव्य का विवरण इस प्रकार है:-
"सबसे पहले मैं इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन के आयोजन के लिए दक्षिण अफ्रीका को मुबारकबाद देना चाहूंगा। भारत के बाद ब्रिक्स संगठन का अध्यक्ष पद दक्षिण अफ्रीका को सौंपते हुए मुझे इस बात का संतोष है कि पिछले वर्ष हमने कई उपलब्धियां प्राप्त की हैं। अध्यक्ष के रूप में भारत को अपना कर्तव्य निर्वाह करने के लिए ब्रिक्स के सदस्य देशों और सहयोगियों से जो निरंतर समर्थन मिला है, उसके लिए मैं उनका ह्दय से आभारी हूं। मुझे विश्वास है कि राष्ट्रपति जूमा के कुशल नेतृत्व में ब्रिक्स के देशों के बीच सहयोग और मजबूत होगा तथा वैश्विक गतिविधियों में इसकी भूमिका और प्रासंगिकता और बढ़ेगी।
पिछले वर्ष मंत्री और अधिकारी स्तर पर अनेक क्षेत्रों में गहन परामर्श हुए। जी-20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों में ब्रिक्स देशों के बीच तालमेल और परामर्श हमारी भागीदारी का अटूट अंग रहा है। इससे हमारी सांझी चिंताओं पर ध्यान देने के लिए हमारी आवाज और मजबूत हुई है। वैश्विक चुनौतियों से निपटने में हम और अधिक कारगर ढंग से भाग लेने के योग्य हो सके हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक् के जरिए शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देने के संबंध में हमारे प्रयास और सुदृढ़ हुए हैं।
ब्रिक्स के देशों के लोगों के बीच आपसी संपर्क, हमारे चिंतकों के बीच विचार-विनिमय और कारोबारी समुदायों के बीच संबंध मजबूत हुए हैं। हमने शहरीकरण की एक जैसी चुनौतियों से निपटने और कस्टम तथा राजस्व के मुद्दों पर सहयोग करने जैसे नये क्षेत्रों में आपसी विचार-विमर्श किया है। ब्रिक्स विकास बैंक की पहल से सहयोग की नई संभावनाओं के दरवाजे खुले हैं।
आज हम ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का पहला दौर पूरा कर रहे है। मेरा विश्वास है कि पिछले पांच शिखर सम्मेलनों से हमारा संगठन और सुदृढ़ तथा प्रासंगिक हुआ है। हमारी विविधताओं का और हमारी शक्तियों का एक दूसरे को लाभ मिला है। इसके अलावा हमारे मिलकर काम करने से और सामूहिक शक्ति से भी संगठन के सदस्य देशों को लाभ पहुंचा है।
जब हम भविष्य की ओर देखते हैं, तो पिछले पांच वर्षों की प्रगति हमें और ऊंची महत्वाकांक्षाओं के लिए, नये रास्ते चुनने के लिए और आपसी सहयोग के नये लक्ष्य तय करने के लिए उत्साहित करती है। लेकिन भविष्य की हमारी योजनाओं की रूपरेखा ऐसी होनी चाहिए, जिससे हमारे बीच मौजूदा सहयोग और मजबूत तथा गहरा हो। अपनी शक्तियों, अपने संसाधनों और अपने लोगों तथा विश्व के लिए हम जो कुछ कर सकते हैं, उसे ध्यान में रखते हुए हमें सावधानीपूर्वक मौजूदा और नये क्षेत्रों की प्राथमिकताएं तय करनी चाहिएं। इस संबंध में मैं पांच सुझाव देना चाहूंगा।
पहला, हमारी पहली चुनौती वैश्विक अर्थव्यवस्था में मौजूद कमज़ोरियों, आर्थिक संकट के प्रभावों और 2008 के बाद दुनिया में आये दीर्घावधि ढांचागत परिवर्तनों से निपटने की है। यह मानते हुए कि ब्रिक्स देशों को वैश्विक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, हमें आपस में व्यापार और निवेश बढ़ाने के व्यापक अवसरों का लाभ उठाते हुए अपने विकास को लगातार बनाये रखने पर ध्यान देना चाहिए। हममें से प्रत्येक के पास विशिष्ट प्रकार के संसाधन और शक्तियां हैं और आपसी हित के लिए हमें इनका उपयोग करना चाहिए। हमें विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाना चाहिए। आज जिन बातों पर सहमति हुई है, उनसे इन उद्देशयों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
दूसरा, बाहरी तौर पर हमारे अनुसंधान और विकास सहयोग का केंद्र मुख्यत: विकसित देश हैं। यह भी समान रूप से उपयोगी होगा कि हम ब्रिक्स देशों की संस्थाओं के लिए सहयोग को बढ़ावा दें, क्यों कि हमारे अनुभव और समाधान एक दूसरे के लिए प्रासंगिक होंगे, विशेष रूप से ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, सतत विकास और आईटी आधारित जन सेवाओं के क्षेत्रों में एक दूसरे के लिए उपयोगी होंगे।
तीसरा, हमें व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक तौर पर आर्थिक विकास को अधिक व्यापक तथा समावेशी बनाने के लिए काम करना चाहिए। यह न केवल नैतिक दृष्टि से जरूरी है, बल्कि व्यावहारिक दृष्टि से भी, ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था और मजबूत हो और विश्व के कमजोर भागों में राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बढ़े।
चौथा, सतत वैश्विक अर्थव्यवस्था बहाली के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए और व्यापार, सतत विकास तथा जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर संतुलित परिणाम प्राप्त करने के लिए हमें और एकजुट होकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों में इस तरीके से काम करना चाहिए, जिससे हमारे समान हितों और सभी विकासशील देशों की हितों की रक्षा हो।
पाँचवाँ, हमें आज के समय की वास्तविकताओं के अनुरूप् राजनीतिक और आर्थिक प्रशासन की विश्व संस्थाओं में सुधार के लिए मिलकर काम करना चाहिए और उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए उन्हें और प्रभावी बनाना चाहिए। विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र परिषद और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष में सुधार की तुरंत आवश्यकता है।
इन सभी क्षेत्रों में हमारे सामूहिक प्रयासों से अफ्रीका को बहुत लाभ होगा। लेकिन ब्रिक्स संगठन को भी इस समय अफ्रीका में चल रही विकास और परिवर्तन की प्रक्रिया में सीधे सहयोग देना चाहिए। इसलिए ब्रिक्स संगठन और अफ्रीका के बीच भागीदारी की शिखर सम्मेलन की थीम पूरी तरह से उचित है। इस शिखर सम्मेलन के निष्कर्ष इस संबंध में हमारी साझी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
विश्व आज अनिश्चिताओं, अशांति और परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे सामने कई तरह की आर्थिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। आतंकवाद, समुद्री डकैती और साइबर स्पेस से होने वाले खतरे हमारे लिए बहुत बड़ी सुरक्षा चिंताएं हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए तथा विश्वशांति, स्थिरता और सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए यह जरूरी है कि हम मिलकर आवाज उठाएं तथा प्रभावी और सार्थक योगदान दें।
अंत में मैं इस बात को फिर दोहराना चाहूंगा कि भारत ब्रिक्स संगठन को बहुत महत्व देता है, केवल हमारे लोगों के लाभ के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लाभ के लिए। मेरा यह विश्वास केवल हमारी क्षमता को ध्यान में रखकर नहीं है, बल्कि जिस तरह हम उद्देश्यपूर्ण तरीके से मिलकर काम कर रहे हैं, उसे देखते हुए मेरा यह विश्वास बना है। मुझे विश्वास है कि आगे आने वाले वर्षों में यह मंच नई ऊंचाईयों को छुएगा। मैं राष्ट्रपति जूमा को, जो आने वाले वर्ष में इस मंच का नेतृत्व करेंगे, हमारे पूर्ण समर्थन का विश्वास दिलाता हूं।"