भाषण [वापस जाएं]

February 18, 2013
नई दिल्‍ली


श्रीमती ईला रमेश भट्ट को वर्ष 2011 का शांति, निरस्‍त्रीकरण एवं विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्‍कार प्रदान किए जाने के अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन

नई दिल्‍ली स्थित राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में श्रीमती ईला रमेश भट्ट को वर्ष 2011 का शांति, निरस्‍त्रीकरण एवं विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्‍कार प्रदान किए जाने के अवसर पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंहे के संबोधन का अनुदित मूल पाठ इस प्रकार है:-

"पदम भूषण से सम्‍मानित श्रीमती ईला रमेश भट्ट को वर्ष 2011 का शांति, निरस्‍त्रीकरण एवं विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्‍कार प्रदान किए जाने के अवसर पर यहां उपस्थित होना एक सौभाग्‍य की बात है। उनकी कृतियों की इस तरह की सार्वजनिक मान्‍यता ईला-बेन के लिए नई नहीं है। महिला मुक्ति और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए अग्रणी प्रयास की वजह से उनकी विश्‍वभर में प्रशंसा हुई है। वास्‍तव में उनका जीवन कार्य उनके ही शब्‍दों में बेहतर ढ़ग से वर्णित है। टोक्‍यो में वर्ष 2010 का निवानो शांति पुरस्‍कार प्राप्‍त करते हुए ईला-बेन ने कहा कि उनकी कथा और दर्शन तीन सरल शब्‍दों- ‘’महिला, कार्य तथा शांति’’ में व्‍यक्‍त किये जा सकते हैं। बेहद सादगी तथा इस वैचारिक ढांचे का औचित्‍य जिसमें उनका उल्‍लेखनीय नैतिक कार्य भी जुड़ा है वह ईला-बेन द्वारा प्रस्‍तुत किए जाने वाले उस बल के लिए उत्‍तरदायी है जो भारतीय महिलाओं की समस्‍याओं को उजागर करने के समय आता है।

वह पुरस्‍कार जिससे आज ईला-बेन को सम्‍मानित किया जा रहा है वास्‍तव में उसका नाम एक बहुत ही उल्‍लेखनीय महिला श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया है। श्रीम‍ती इंदिरा गांधी ने गरीबी उन्‍मूलन और महिला सशक्तिकरण के लिए अथक रूप से कार्य किया और उसके लिए लड़ाई लड़ी। उनके द्वारा दिया गया ‘’गरीबी हटाओं’’ का नारा चार दशक पहले दिये गए अवधि के मुकाबले आज काफी प्रासंगिक है। आज यह कई प्रकार से हमारी सरकार के कुछ वैसे महत्‍वपूर्ण कार्यक्रमों के लिए प्रेरणास्रोत है जो गरीबों के सशक्तिकरण और भारतीय समाज के उपेक्षित वर्ग के लोगों के लिए तैयार किये गये हैं। गरीबी की केंद्रीयता हमारे देश में मौजूदा बड़ी सामाजिक बुराईयों में से एक है जिसे प्रमुखता से श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस रूप से रेखांकित किया था जिसमें उन्‍होंने कहा कि गरीबी बहुत बड़ा प्रदूषक है।

ईला-बेन के कार्य पर चर्चा करते हुए मुझे गरीबी से संघर्ष के इसी प्रकार के समान विचार के बारे में ज्ञात हुआ जो कि उनका मकसद प्रतीत होता है। यह कहकर कि गरीबी समाज की एक नैतिक विफलता है, ईला-बेन इस चुनौती को बड़े स्‍तर पर समाज के समक्ष रखती है। गरीब महिलाओं को संगठित करने के साथ-साथ उन्‍हें आर्थिक रूप से मजबूत करने हेतु गरीबी के खिलाफ उनके द्वारा किये गये प्रयास उसी क्षण गरीबी और लिंग विभेद की बुराई पर ध्‍यान केंद्रित करते हैं। उनके इस साहस में उनका उद्यम वर्णित होता है। मैं यह हिम्‍मत से कह सकता हूं कि आधुनिक भारत इस तरह के साहस से बहुत कुछ कर सकता है।

आश्‍चर्य की बात नहीं है कि महिला स‍शक्तिकरण की दिशा में ईला-बेन द्वारा चलाये गये अभियान से संबंधित प्रेरणा कुछ ऐसे है जो लगभग सौ वर्ष पुराने है और वह ठीक उसी प्रकार है जो भारत में ब्रिटिश हुकूमत की वैधता को चुनौती देने संबंध में हिम्‍मत दिखायी गई थी। मुझे विश्‍वास है कि स्‍वराज पर महात्‍मा गांधी का विचार ईला-बेन की कसौटी है जैसा कि उन्‍होंने अपनी यात्रा स्‍व-नियोजित महिला संगठन के निर्माण से शुरू की और इसे भारत के बहुत ही सम्‍मानित और प्रभावी सामाजिक उद्यम के रूप में निर्मित किया। हालांकि महात्‍मा गांधी ने भारत में राजनीतिक स्‍वतंत्रता लाने में सफलता प्राप्‍त की लेकिन वह अपने महत्‍वपूर्ण समकक्ष, आर्थिक स्‍वतंत्रता को देखने के लिए जिंदा नहीं रहें। इसलिए जब ईला-बेन एसईडब्‍ल्‍यूए में अपने सहयोगियों से कहती हैं, कि ‘’मेरी बहनों स्‍वराज हमारा है और इसे प्राप्‍त करना है’’, वह कई मायनों में आर्थिक स्‍वतंत्रता प्राप्‍त करने तथा देश की लगभग आधी जनसंख्‍या का निर्माण करने वाली भारतीय महिलाओं को आत्‍मनिर्भर बनाने संबंधी क्षेत्र में महात्‍मा गांधी के अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ती हैं।

मौजूदा संस्‍थानों को मजबूत कर, महिलाओं को बेहतर शिक्षा एवं स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा उपलब्‍ध कराने के साथ-साथ निर्णय प्रक्रिया में समान भागीदारी का अवसर सुनिश्चित करने के अलावा विकास प्रक्रिया में उनकी चिंताओं को मुख्‍य धाराओं में लाकर महिला सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दे के समाधान के लिए हमारी सरकार ने भी प्रयास किये है। हालांकि परिणामस्‍वरूप अधिक संख्‍या में महिलाएं औपचारिक अर्थव्‍यवस्‍था में शामिल हो रही हैं लेकिन उनकी सलामती और सुरक्षा का खतरा बढ़ गया है। वास्‍तव में यह शर्म की बात है कि हमारे विकास के बावजूद भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन अपराध की घटनाएं भी बढ़ रही है। इनसे निपटने के लिए सरकार ने संयुक्‍त रूप्‍ से विधायी, संस्‍थागत और प्रक्रियात्‍मक सुधारों को अपनाया है।

न्‍यायाधीश जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिशों की वजह से महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित आपराधिक कानून को संशोधित और मजबूत करने के लिए अध्‍यादेश लागू किया गया। हमें उम्‍मीद है कि संसद आवश्‍यक संशोधनों को जल्‍द पारित कर व्‍यापक कानून बनाएगी। कार्यस्‍थल पर महिलाओं का यौन शोषण विधेयक 2012 लोकसभा में पारित हो चुका है और राज्‍यसभा में पारित होना है। बलात्‍कार पीडि़तों को वित्‍तीय सहायता और समर्थक सेवाओं से न्‍याय दिलाने के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण के राष्‍ट्रीय मिशन के तत्‍वावधान में एक सौ सार्वजनिक अस्‍पतालों में 'एक संकट केन्‍द्र' और राष्‍ट्रीय हेल्‍पलाइन बनाने पर भी सरकार विचार कर रही है। हमारा यह लगातार प्रयास रहेगा कि महिलाओं को सुरक्षा का माहौल मिले, जिससे वे अपने सपनों को पूरा कर सके। सरकार के सशक्तिकरण के प्रयासों को सेवा के कार्यकलापों से मदद मिलेगी। यह राष्‍ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के संबंध में सच है, जो 6 लाख गांवों में महिलाओं सहित लगभग 7 करोड़ घरों के सदस्‍यों को स्‍व-सहायता समूहों में संगठित करता है।

ईला-बेन और सेवा की दास्‍तान केवल गरीब महिलाओं के आर्थिक स‍शक्तिकरण की दास्‍तान नहीं है। यह महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा की भी दास्‍तान है। यह महिलाओं को समय पर मिलने वाली सुविधाओं और सभी तरह के भेदभाव को रोकने और संविधान के तहत प्रदत्‍त समानता और अधिकारों की सुरक्षा की दास्‍तान है। सबसे ऊपर यह नेतृत्‍व की दास्‍तान है। इला-बेन ने जिन्‍हें कुछ लोग 'भद्र क्रांतिकारी' कहते हैं, यह दिखा दिया कि संघर्ष और रचनात्‍मक कार्य साथ-साथ चल सकते हैं। यह विकास के कार्य में उनका महान योगदान है। उनको केवल स्‍वीकारने की ही नहीं, बल्कि गहराई से विश्‍लेषण और अध्‍ययन कर व्‍यापक रूप से पुन: लागू करने की भी जरूरत है। उन्‍हें आज सम्‍मानित करके हम उन सिद्धांतों को मान्‍यता दे रहे हैं, जो देश को बहुत प्रिय हैं। मैं उन्‍हें उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई देता हूं और उम्‍मीद करता हूं कि अन्‍य लोग भी उनकी राह पर चलकर देश को बेहतर बनाने में योगदान देंगे।"