भाषण [वापस जाएं]

February 16, 2013
नई दि‍ल्‍ली


बार काउंसि‍ल ऑफ इंडिया के स्वर्ण जयंती समारोह में प्रधानमंत्री का भाषण

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज नई दि‍ल्‍ली में विज्ञान भवन में बार काउंसि‍ल ऑफ इंडिया के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधि‍त कि‍या। इस अवसर पर दि‍ए गए उनके भाषण का वि‍वरण इस प्रकार है:-

"यह मेरे लि‍ए सौभाग्‍य की बात है कि ‍मुझे बार काउंसि‍ल ऑफ इंडि‍या की स्वर्ण जयंती के उदघाटन समारोह में भाग लेने का अवसर मि‍ला है।

अभी-अभी हमने उच्‍चतम न्‍यायालय के प्रधान न्‍यायाधीश सहि‍त देश की जानी-मानी कानूनी हस्‍ति‍यों को सुना। मैं हैरान हूं कि‍ उन्‍होंने कानून और हमारी कानून प्रणाली से संबंधि‍त मामलों पर जि‍स स्‍पष्‍टता के साथ सब कुछ कहा, मैं उसमें और क्‍या जोड़ सकता हूं। इसलि‍ए अपना भाषण शुरू करने से पहले मैं आपसे क्षमा चाहूंगा।

भारतीय बार काउंसि‍ल देश के पेशवर वकीलों की प्रमुख प्रति‍नि‍धि‍संस्‍था है। इसके सदस्‍यों ने राष्‍ट्र नि‍र्माण में जो शानदार योगदान दि‍या है, उसके लि‍ए यह संस्‍था उचि‍त रूप से गर्व कर सकती है। मैं बार काउंसि‍ल और इसके सदस्‍यों को उनकी उपलब्‍धि‍यों के लि‍ए बधाई देता हूं।

देश के स्‍वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाली कई प्रमुख हस्‍ति‍यों में जाने-माने वकील थे तथा स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ से पहले और उसके बाद उन्‍होंने राष्‍ट्रीय कार्यों में जो योगदान दि‍या, वह अब हमारे इति‍हास का हि‍स्‍सा है, बल्‍कि ‍मैं कहूंगा कि ‍हमारी वि‍रासत का हि‍स्‍सा है। महात्‍मा गांधी, सुरेन्‍द्र नाथ बैनर्जी, दादाभाई नारौजी, फि‍रोजशाह मेहता, सरदार वल्‍लभाई पटेल, पंडि‍त मोती लाल नेहरू, प्रधानमंत्री पंडि‍त जवाहर लाल नेहरू, डॉ. बी.आर. अम्‍बेडकर देश के उन महान सपूतों में थे, जि‍न्‍होंने एक आधुनि‍क और प्रगति‍शील भारत की नींव रखी।

संवि‍धान सभा के सदस्‍यों में भी बड़ी संख्‍या में उस समय की जानी-मानी कानूनी हस्‍ति‍यां थीं। इ‍नमें डॉ. बी.आर. अम्‍बेडकर भी थे, जि‍न्‍होंने देश के संवि‍धान के नि‍र्माण में वि‍शि‍ष्‍ट योगदान दि‍या, जो सदैव उज्ज्‍वल रहेगा।

भारतीय बार काउंसि‍ल को बहुत से दायि‍त्‍वों का वहन करना होता है। एक नि‍यामक के रूप में इसे पेशेवर आचरण और शि‍ष्‍टाचार के मानक नि‍र्धारि‍त करने होते हैं तथा बार की गति‍वि‍धि‍यों को अनुशासि‍त करना भी इसके अधि‍कार क्षेत्र में है। बार काउंसि‍ल कानून शि‍क्षा से संबंधि‍त वि‍श्‍ववि‍द्यालयों और संस्‍थाओं को भी मान्‍यता प्रदान करता है, जि‍नकी कानून की डि‍ग्री, वकील के रूप में काम करने की योग्‍यता मानी जाती है। इसके अन्‍य कार्यों में वकीलों के अधि‍कारों, वि‍शेष अधि‍कारों और हि‍तों की रक्षा करना तथा उनके कल्‍याण की योजनाओं को लागू करना शामि‍ल है।

समय गुजरने के साथ-साथ व्‍यावसायि‍क शि‍क्षा के रूप में कानून की शि‍क्षा काफी महत्‍वपूर्ण हो गई है, न केवल समाज में कानून की ऐति‍हासि‍क उपयोगि‍ता की दृष्‍टि‍से, बल्‍कि‍आज के वैश्‍वीकरण के संदर्भ में भी, जि‍समें सभी देश बहुत कुछ एक-दूसरे पर नि‍र्भर रहने लगे हैं। शि‍क्षा क्षेत्र, अभि‍योग, कंपनी कार्यों, सरकार और नागरि‍क समाज के लि‍ए पि‍छले कुछ वर्षों में प्रशि‍क्षि‍त कानून के पेशेवरों की आवश्‍यकता काफी बढ़ गई है। आगे आने वाले वर्षों में यह मांग और भी बढ़ने की उम्‍मीद है। मुझे प्रसन्‍नता है कि‍ बार काउंसि‍ल कानून की शि‍क्षा में उच्‍चतम मानदंडों को बढ़ावा देने के लि‍ए सक्रि‍यता से कार्य कर रही है, जि‍नकी तुलना दुनि‍या में कानून शि‍क्षा के श्रेष्‍ठ मानदंडों से की जा सकती है।

यह स्‍पष्‍ट है कि‍ भारतीय बार काउंसि‍ल और राज्‍यों की बार काउंसि‍लों के काम का बहुत हद तक जनता पर असर पड़ता है, क्‍योंकि‍बार काउंसि‍ल अपने कर्तव्‍यों और कार्यों को जि‍तना कारगर ढंग से अंजाम देती हैं, उससे हमारी न्‍यायप्रणाली की शक्‍ति‍और गुणवत्‍ता का नि‍र्धारण होता है। यदि ‍वकील हर समय अपने पेशेवर आचरण के उच्‍च मानदंडों को कायम रखें, तो इससे मुकदमों में उलझे लोगों के हि‍तों की रक्षा होती है। इसी प्रकार, यदि ‍हमारे कानूनवि‍दों के पास उच्‍च स्‍तरीय व्‍यावसायि‍क ज्ञान हो, तो इससे न्‍यायि‍क फैसले बेहतर ढंग से होते हैं।

मैं समझाता हूं कि‍ कानूनी समुदाय के सदस्‍यों को याद रखना चाहि‍ए कि‍अपने मुवक्‍कि‍लों के प्रति‍फर्ज अदा करने के साथ-साथ उन्‍हें न्‍याय के हि‍त में अदालत के अधि‍कारि‍यों के रूप में सार्वजनि‍क दायि‍त्‍वों को भी पूरा करना होता है। उन्‍हें सार्वजनि‍क नैति‍कता, सत्‍य और न्‍याय के आदर्शों को आगे बढ़ाने के व्‍यापक उद्देश्‍य को हमेशा ध्‍यान में रखना चाहि‍ए। इसी कारण से ही‍वकालत के पेशे की सार्वजनि‍क उपयोगि‍ता है और इसमें जन सेवा की भावना अंतर्निहित है। वकालत का पेशा प्रति‍ष्‍ठि‍त माना जाता है, इस नाते वकीलों पर बार काउंसि‍ल द्वारा नि‍र्धारित आचार संहि‍ता का नि‍ष्‍ठापूर्वक पालन करने की जि‍म्‍मेदारी भी आ जाती है।

हम तेजी से बदलते हुए जमाने में रह रहे हैं। जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था का वि‍स्‍तार हो रहा है और वैश्‍वि‍क अर्थव्‍यवस्‍था से इसका एकीकरण हो रहा है, देश के कानूनी समुदाय के लोगों के सामने नई चुनौति‍यां आएंगी। हमारे कानूनवि‍दों को एक-दूसरे पर नि‍र्भर वि‍श्‍व और वैश्‍वि‍क अर्थव्‍यवस्‍था की जटि‍लताओं को गहराई से समझना होगा। जैसे-जैसे बहुपक्षीय कानूनी और न्‍यायि‍क ढांचा उभरकर सामने आ रहा है, उसका देश के घरेलू कानूनों पर असर पड़़ता है और घरेलू कानूनों का नए ढांचे पर असर पड़ता है। इसकी समझ के साथ-साथ कानूनवि‍दों को सार्वजनि‍क और नि‍जी अंतर्राष्‍ट्रीय कानूनों के सि‍द्धांतों की भी गहरी से समझ रखनी होगी।

वि‍वादों को नि‍पटाने के क्षेत्र में नए कि‍स्‍म के मामले सामने आ रहे हैं, जि‍न्‍हें वकीलों को नि‍पटाना होगा। बौद्धि‍क सम्‍पदा अधि‍कारों और अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यावसायि‍क समझौतों को लागू करने से संबंधि‍त मामलों की संख्‍या बढ़ती जा रही है। द्वि‍पक्षीय नि‍वेश रक्षा समझौतों जैसे अंतर्राष्‍ट्रीय समझौतों और करारों के बारे में हमारे दायि‍त्‍वों और प्रति‍बद्धताओं से संबंधि‍त मामले अब कानूनी अदालतों में और मध्‍यस्‍थता ट्राइब्‍यूनलों में पहुंचने लगे हैं। मैं बार काउंसि‍ल के सभी सदस्‍यों से आग्रह करूंगा कि‍नए उभरते क्षेत्रों में पैदा होने वाले नए कि‍स्‍म के मामलों से नि‍पटने के लि‍ए वे आवश्‍यक वि‍शेषज्ञता वि‍कसि‍त करें।

हमारे संवि‍धान के अनुच्‍छेद 39ए में कहा गया है कि‍सरकार को इस बात का ध्‍यान रखना है कि‍देश में कानून प्रणाली से समान अवसरों के आधार पर न्‍याय को बढ़ावा मि‍ले और वि‍शेष रूप से मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्‍ध हो ताकि‍आर्थिक या अन्‍य कमजोरि‍यों के कारण कोई नागरि‍क न्‍याय प्राप्‍त करने से वंचि‍त न रह जाए। 1987 में कानूनी सेवा प्राधि‍करण अधि‍नि‍यम पास हुआ था, जो इन दायि‍त्‍वों की पूर्ति की दि‍शा में हमारे प्रयासों का एक हि‍स्‍सा है। समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवा उपलब्‍ध कराने के लि‍ए तथा वि‍वादों को सद्भावपूर्ण ढंग से नि‍पटाने के वास्‍ते लोक अदालतें आयोजि‍त करने के लि‍ए इस अधि‍नि‍यम के अंतर्गत राष्‍ट्रीय, राज्‍य, जि‍ला और तालुका स्‍तर पर कानूनी सेवा प्राधि‍करणों की स्‍थापना की गई है।

राष्‍ट्रीय कानूनी सेवा प्राधि‍करण ने कमजोर और वंचि‍त लोगों की न्‍याय तक पहुंच बढ़ाने के लि‍ए कई योजनाएं बनाई है। इनमें कैदि‍यों को मुफ्त कानूनी सेवा उपलब्‍ध कराना तथा महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को लागू करने में सहायता के लि‍ए बनाई गई योजनाएं शामि‍ल हैं। मैं कानूनी समुदाय के सभी स्‍तरों के सदस्‍यों से आग्रह करूंगा कि‍वे समाज के कमजोर लोगों के सशक्‍ति‍करण के लि‍ए शुरू की गई इन योजनाओं को लागू कराने में सक्रि‍यता से भाग लें और सहयोग दें।

यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण है कि‍पीठ और बार देश में कानून का शासन सुनि‍श्‍चि‍त करने के लि‍ए और हमारे संवि‍धान के लक्ष्‍यों को आगे बढ़ाने के लि‍ए मि‍लकर काम करें। जब तक ऐसा नहीं होता, हम देश के लाखों लोगों को और वि‍शेष रूप से समाज के गरीब और कमजोर लोगों को तेजी से और कम खर्च पर न्‍याय दि‍लाने में पर्याप्‍त सफलता प्राप्‍त नहीं कर पायेंगे। हमारा यह लक्ष्‍य एक वास्‍तवि‍कता बने, इससे पहले हमें कई चुनौति‍यों से नि‍पटना होगा और कई रूकावटों को पार करना होगा। चि‍न्‍ता का एक बड़ा मुद्दा अदालतों में बड़ी संख्‍या में मामलों का लंबि‍त रहना है, वि‍शेष रूप से नि‍चली अदालतों में। मैं समूचे कानूनी समुदाय से आग्रह करूंगा कि‍वे इस समस्‍या को हल करने के तरीके ढूंढने के लि‍ए अपने ज्ञान, बुद्धि‍मता और अनुभव का इस्‍तेमाल करें।

देश में एक मजबूत और प्रभावी न्‍याय प्रणाली स्‍थापि‍त करने के लि‍ए न्‍यायपालि‍का और अन्‍य सम्‍बद्ध पक्षों के साथ मि‍लकर काम करने के बारे में सरकार की जि‍म्‍मेदारि‍यों को मैं अच्‍छी तरह समझता हूं। मैं इस दि‍शा में सभी आवश्‍यक कदम उठाने और कानूनी समुदाय के कल्‍याण के लि‍ए काम करने के बारे में अपनी सरकार की प्रति‍बद्धता को दोहराता हूं।

इन शब्‍दों के साथ मैं भारतीय बार काउंसि‍ल और इसके सभी सदस्‍यों के लि‍ए एक बहुत उज्‍ज्‍वल पेशेवराना भवि‍ष्‍य की कामना करता हूं। काउंसि‍ल की स्‍थापना के पहले 50 वर्षों में आपने देश की बहुत अच्‍छी तरह सेवा की है लेकि‍न मैं उम्‍मीद करता हूं कि‍ भवि‍ष्‍य में आप और अच्‍छी तरह कार्य करेंगे।"