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नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित राज्यपालों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के संबोधन का अनुदित मूल पाठ इस प्रकार है:-
"गत दो दिनों के दौरान हम सभी इस सम्मेलन में किए गए प्रस्तुति और चर्चाओं से काफी लाभान्वित हुए हैं। इस तरह के अवसर अति राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को गहराई से समझने में न केवल मदद करते हैं बल्कि भविष्य के कार्यों के लिए प्राथमिकता तय करने के साथ-साथ योजना तैयार करने में भी मदद करते हैं। जो कार्य सूची हमारे सामने मौजूद हैं उनमें वैसे क्षेत्र शामिल हैं जो देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। मैं इस सम्मेलन के आयोजन के लिए आदरणीय राष्ट्रपति जी का धन्यवाद करना चाहूंगा।
पिछले दो दिनों के दौरान राज्यपालों द्वारा इस भागीदारी में किए गए योगदान के लिए मैं उनकी तहे दिल से सराहना करता हूं। आप सभी बहुत ही प्रतिष्ठित पुरूष और महिलाएं हैं और आपका ज्ञान, विवेक और अनुभव एक मूल्यवान धरोहर है, जिसे हमारे देश को इसका बखूबी इस्तेमाल करना चाहिए।
मैंने बहुत ही सावधानी से भाग लेने वाले सभी राज्यपालों को सुना है। विभिन्न क्षेत्रों के बारे में आपकी गहरी परख वास्तव में काफी प्रभावी है। मैं व्यक्त किए गए कुछ विचारों के संबंध में उत्तर देने का प्रयास करूंगा।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था में गत दो वर्षों के दौरान अधिक गिरावट आई है। चालू वित्त वर्ष के दौरान विकास दर लगभग आठ प्रतिशत के औसत विकास दर से काफी कम रहेगी जिसे हमने दो दशकों के दौरान प्राप्त किया है। जिन कारकों की वजह से अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है उनमें देश के बाहरी और आंतरिक दोनों कारण शामिल हैं। वित्त मंत्री ने कुछ विस्तार से इन कारणों का समाधान किया है। इसलिए मैं काफी संक्षेप में इस विषय के संबंध में चर्चा करूंगा। यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हम हर संभव प्रयास करेंगे तथा सरकार ने निवेश और विकास को पटरी पर लाने के लिए हाल के महीनों में संयुक्त और गंभीर प्रयास किए हैं।
केंद्र सरकार के स्तर पर निवेश प्रस्तावों से संबंधित स्वीकृति प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाने, पर्यावरण और वन की दृष्टि से स्वीकृति के प्रति विशेष ध्यान देने के साथ-साथ ढांचागत अवरोधकों को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि निवेश का वातावरण राज्य सरकारों के कार्यवाही के कारण भी प्रभावित होती है। कानून-व्यवस्था की स्थिति तथा भूमि अधिग्रहण से संबंधित आसान और कठिन प्रक्रिया तथा विद्युत कंनेक्शन जैसे कारकों का निवेश के वातावरण पर काफी प्रभाव पड़ता है।
चालू वर्ष के दौरान नीतिगत उपायों की घोषणा से एक आशा जगी है जो अक्तूबर-दिसंबर के तिमाही के दौरान व्यापार प्रत्याशा सूचकांक और खरीद प्रबंधक सूचकांक में बढ़ोतरी के साथ-साथ पूंजी बाजार में आए उछाल से परिलक्षित होता है। कॉरपोरेट क्षेत्र के आंतरिक संग्रहण में भी धीरे-धीरे सुधार आया है जो कि निवेश को बढ़ाने के लिए आवश्यक है। मुद्रास्फीति में भी थोड़ा ठहराव आया है। चालू वर्ष के दूसरे छमाही में जीडीपी विकास दर में बढ़ोतरी की ओर ये कारक इंगित करते हैं।
मौजूदा समय में उच्च स्तर का वित्तीय घाटा हमारे लिए परेशानी का एक विशेष कारण है। हमारी सरकार ने वृहत रूप से केलकर समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया है, जिसकी नियुक्ति वित्तीय समावेशन के लिए एक रूप-रेखा तैयार करने के लिए की गई थी। हम चालू वर्ष में वित्तीय घाटा को जीडीपी के 5.3 प्रतिशत तक सीमित रखने को इच्छुक हैं और इसे अगले वर्ष 4.8 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य है। इसके बाद प्रति वर्ष वित्तीय घाटा को 0.6 प्रतिशत की दर से कम करने का लक्ष्य रखा गया है। हमने रेलवे, सड़क, हवाई अड्डा, पत्तन, सिंचाई तथा जलापूर्ति के क्षेत्र में ढांचागत सुविधाओं की कमी को दूर करने के लिए कदम उठाए हैं, जो एक दशक के दौरान हमारे तीव्र आर्थिक विकास के कारण दबाव में थे। इन उपायों में निवेश पर मंत्रिमंडलीय समिति का गठन शामिल हैं, जिसका उद्देश्य वृहत परियोजनाओं के अनुमोदन और उनकी स्वीकृति के संबंध में जल्द निर्णय करना है।
वर्ष 2012 में जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर क्षेत्रों सहित नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों के आंतरिक सुरक्षा स्थिति में सुधार देखने को मिला है। हालांकि इस संदर्भ में बहुत कुछ करने की जरूरत है। आतंकवाद और नक्सलवाद जिसके बाहरी और आंतरिक दोनों आयाम हैं, इन चुनौतियों से निपटने के लिए कार्ययोजना के बारे में गृहमंत्री ने हमें जानकारी दी है।
इससे पहले कि मैं सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर आगे चर्चा करूं, मैं यह कहना चाहता हूं कि जम्मू एवं कश्मीर तथा पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपालों द्वारा सुरक्षा के मुद्दे पर की गई चर्चाओं पर मैंने विशेष ध्यान दिया है। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल श्री वोहरा ने सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से अधिक संगत कार्रवाई करने के प्रति कुछ सुझाव दिए हैं। जिसे मैं समझता हूं कि इस पर गौर किए जाने की जरूरत है। इसी प्रकार अरूणाचल प्रदेश के राज्यपाल, जनरल जे.जे. सिंह ने भी सीमा सड़क, पोर्टर ट्रैक तथा झूलने वाले पुलों के संबंध में अपने सुझाव दिए हैं। सीमावर्ती गांव में रहने वाले लोगों की जीवनशैली में सुधार लाने के लिए उचित ध्यान देने के संबंध में उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर भी गहराई से विचार किया जाएगा। उनके साथ-साथ अन्य राज्यपालों ने भी सीमा सड़क संगठन के सुदृढ़ीकरण और सीमावर्ती क्षेत्रों में ढांचागत सुविधाओं में सुधार लाने के संबंध में अपने सुझाव दिए हैं। असम के राज्यपाल और पूर्वोत्तर राज्यों के अन्य राज्यपालों ने भारत और बंगलादेश सीमा पर बाड़ लगाने की गति में तेजी लाने का सुझाव दिया है, जो कि उचित है। मुझे विश्वास है कि मेरे विशिष्ट सहयोगी रक्षा मंत्री एंटोनी और गृह मंत्री श्री शिंदे सुरक्षा से संबंधित इन सुझावों पर गौर करेंगे और यह देखेंगे कि इन पर किस तरह की कार्रवाई संभव हो सकती है।
सरकार ने आतंकवाद को रोकने के लिए तंत्र और प्रणालियों में सुधार लाने के कई उपाय किए हैं। इनमें बहु एजेंसी केंद्र (एमएसी), सहायक बहु एजेंसी केंद्र (एसएमएसी) के सुदृढ़ीकरण के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसडी) के चार नये केंद्र की स्थापना, तटीय पुलिस थानों का निर्माण और उच्च प्रौद्योगिकी वाली नौकाओं का प्रावधान, राष्ट्रीय जांच एजेंसी की स्थापना तथा एनएटीजीआईआरडी ग्रिड की स्थापना शामिल हैं। संसद में गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (संशोधन) विधेयक के पारित हो जाने से मौजूदा आतंकरोधी प्रावधानों को मजबूती मिली है और यह अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप है।
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राजव्यवस्था में साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की जरूरत को कम नहीं किया जा सकता। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए केंद्र और राज्यों को एक बेहतर समन्वित रणनीति को अपनाना होगा।
बाहरी मोर्चे पर, हम पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध और शांतिपूर्ण अस्तित्व के लिए कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि देश पर किसी भी तरह के खतरे से प्रभावित ढंग से निपटने के लिए हम अपने संकल्प पर अडिग है। वैसी घटना जो पिछले महीने एलओसी पर हुई, वह सभ्य अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के खिलाफ है और वह हमें कतई स्वीकार नहीं है। हमें यह भी समझना होगा कि हमारे पड़ोस में अस्थिरता और अनिश्चितता बढ़ी है।
सुरक्षा चुनौतियों के पूरे प्रकरण से निपटने के लिए अत्याधुनिक तकनीक और आधुनिक मंच के प्रावधान के जरिए सशस्त्र बल और पुलिस बल दोनों की क्षमताओं को लगातार बढ़ाया जा रहा है। सीमावर्ती क्षेत्रों में गतिशीलता और संपर्क बढ़ाने के लिए हम ढांचागत विकास कार्यक्रम भी चला रहे हैं।
जैसा मैंने पहले भी कई बार कहा है कि नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए हमारी दो आयामी रणनीति है। हमने हालांकि उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई में तेज़ी लाये हैं, लेकिन हमने नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों, जिसमें से कई जनजातीय आबादी है, में विकास और प्रशासन कार्य करने के प्रयास किए हैं। हमने जो कदम उठाए हैं उसमें अतिरिक्त केंद्रीय बल तैनात करना, विशेष बल बढ़ाना, थानों को मज़बूत बनाना और उपद्रव, जंगल में युद्ध तथा आतंकवादी रोधी गतिविधियों से निपटने के लिए राज्य पुलिस के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना शामिल है। नक्सलवादियों के खिलाफ कार्रवाई में अधिक अंतर राज्य समन्वय की ज़रूरत पर आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री ई.एस.एल नरसिम्हन द्वारा बल दिया गया था। हम उनके साथ पूरी तरह से सहमत हैं।
82 चयनित और पिछड़े जिलों जिसमें से अधिकतर नक्सलावाद से प्रभावित हैं, उनमें समेकित कार्य योजना के तहत उल्लेखनीय परिणाम दिखाई दिए हैं। इन जिलों में सड़कों को जोड़ने के काम में भी सुधार हुआ है। हमने अनुसूचित जनजातीय और अन्य पारंपरिक निवासी (वन अधिकार की मान्यता) अधिनियम के तहत अधिकर प्राप्त लोगों को वन अधिकार देने की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए भी कदम उठाए हैं।
इन प्रयासों के कारण नक्सलवाद में कमी आई है। इसके अतिरिक्त 2012 में नक्सली हिंसा में उसके पिछले वर्ष के मुकाबले कमी आई हैं। हालांकि इस संबंध में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है और हमे जो करना है उसे पूरा करने के लिए हम सारे प्रयास करेंगे। असम के राज्यपाल ने जैसे बताया है कि असम के ऊपरी और निचले क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियों का बढ़ना चिंताजनक है।
राष्ट्रपति जी ने इस सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण की शुरूआत दिल्ली के जघन्य सामूहिक दुष्कर्म मामले के उल्लेख के साथ की थी जिसने देश के हर व्यक्ति की अंतरआत्मा को झंझोड़ दिया था। सरकार ने महिलाओं के प्रति जघन्य यौन अपराधों से निपटने के लिए कानून को मज़बूत करते हुए अध्यादेश जारी कर न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशों पर तेज़ी से कार्रवाई की है। हमने विशेष सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए अनेक प्रशासनिक कदम भी उठाए हैं। हालांकि राष्ट्रपति जी ने कहा है कि देश में महिलाओं के दर्जे में वास्तविक और प्रभावी बदलाव तभी आ सकता है जब हमारे सामाजिक मूल्यों में बदलाव होगा। इसपर हम सभी को मिलकर काम करने की ज़रूरत है।
मैं यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों तथा बच्चों सहित हमारे समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति अपराधों से निपटने में विशेष सतर्कता दिखाते हुए पुलिस बलों को संवदेशनील बनाने की ज़रूरत है। साथ ही पुलिस बलों में ज्यादा महिलाओं की भर्ती की भी ज़रूरत है। मैं राज्यपालों से आग्रह करूंगा कि वे अपनी-अपनी राज्य सरकारों का इस दिशा में दिशा-निर्देश दें।
संविधान के तहत राज्यपालों को अधिसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष जिम्मेदारी दी गई है। इन इलाकों में विकास में तेज़ी लाने में उनकी सीधी और महत्वपूर्ण भूमिका है। इन संवैधानिक व्यवस्थाओं ने विशेषकर पूर्वोत्तर से संबंधित सभी जनजातीय भाई-बहनों की दीर्घकालिक मांगों और महत्वाक्षाओं को पूरा करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। छठी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों में निधि और कार्यों के अधिक अधिकार के साथ चुनावों की नियमित प्रक्रिया से जनजातीय परिषदों को मज़बूती मिली है। पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों में पंचायत (अधिसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पीईएसए) ने लोगों के लिए स्थानीय प्रशासन और सामुदायिक संसाधनों में हिस्सेदारी के लिए अधिक व्यवस्था सुनिश्चित की है। हालांकि लोकतांत्रिक प्रकियाओं को मज़बूत करने तथा अधिसूचित इलाकों में स्थानीय स्वयं प्रशासन के संस्थानों के लिए निधि, कार्यों और अधिकारियों के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए काफी कुछ किया जाना है। मैं राज्यपालों से पीईएसए और वन अधिकार के प्रावधानों के प्रभावी कार्यन्वयन पर पूरा ध्यान देने का आग्रह करूंगा। मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नरेश यादव ने आग्रह किया था पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों की संवैधानिक अनिवार्यता को पूरा करने के लिए राज्यपाल के कार्यालय को उपयुक्त रूप से लैस होना चाहिए। उन्होंने जनजातीय सलाहकार परिषद के गठन का मुद्दा भी उठाया है। इन मुद्दों पर विचार किया जाना चाहिए।
मेरे सहयोगी मंत्री श्री शरद पवार ने हमारी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने और खासतौर पर देश के पूर्वी इलाकों में फसल उत्पादकता को बढ़ाने के कदमों को रेखांकित किया है। यह बेहद खुशी की बात है कि ‘पूर्वी भारत में हरित क्रांति’ (बीजीआरईआई) लाने के कार्यक्रम के उत्साहवर्धक परिणाम आ रहे हैं। इस कार्यक्रम के ज़रिए आधुनिक कृषि प्रणाली को अपनाने से पिछले वर्ष की तुलना में चावल की रिकॉर्ड पैदावार हुई है। कुछ राज्यों में चावल का उत्पादन दोगुना हुआ है।
हमारी सरकार के लिए यह काफी संतोषजनक है कि कृषि और संबंधित क्षेत्रों में औसत वृद्धि दर दसवीं योजना में 2.4 प्रतिशत के मुकाबले ग्यारहवीं योजना के दौरान 3.7 प्रतिशत रही। हालांकि इस क्षेत्र में बहुत सी चुनौतियां हैं जिनसे जल्दी निपटने की ज़रुरत है। इसमें हरित क्रांति का साक्षी रहे देश के बहुत से भागों में पर्यावरणीय क्षरण, किसानों को किफायती और समयबद्ध ऋण सुविधाओं में परेशानी, अपर्याप्त खाद्य प्रसंस्करण सुविधाएं, कृषि शोध और विकास में कमी, अपर्याप्त खाद्य प्रसंस्करण सुविधाएं और कृषि उत्पादों तक आसान पहुंच में अवरोध शामिल हैं। राजस्थान की राज्यपाल श्रीमती मार्गेट अल्वा ने यह सुझाव दिया है कि कृषि विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी को विस्तार संबंधी प्रयासों में शामिल होना चाहिए। मैं कृषि मंत्री से अनुरोध करुंगा कि वे देंखे कि इस विषय में क्या कुछ किया जा सकता है।
इस सम्मेलन के एजेंडे में जलप्रबंधन और स्वच्छता भी शामिल है। इस क्षेत्र में कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनसे निपटने की ज़रूरत है। इसमें पानी की उपलब्धता और मांग में बढ़ता हुआ अंतर, भूजल स्तर में गिरावट, प्रदूषित जल स्रोत और अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं शामिल हैं। ये चिंताएं दिसंबर 2012 में राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद की बैठक में हुई चर्चा में भी शामिल थीं। आपको बताते हुए मुझे प्रसन्नता है कि व्यापक आम सहमति के आधार पर परिषद द्वारा राष्ट्रीय जल नीति 2012 को अपनाया गया है। नई जल नीति में पेयजल और स्वच्छता तक सभी की पहुंच, शहरी और गरीब लोगों के लिए समान नियम, जल की कीमतों के निर्धारण और इसके प्रभावी इस्तेमाल के लिए प्रभावी मानक तय करने के लिए स्वतंत्र वैधानिक जल नियामक प्राधिकरण जैसी महत्वपूर्ण सिफारिशें शामिल हैं। मैं राज्यपालों से आग्रह करूंगा कि वे अपने राज्य सरकारों को संबंधित राज्यों की जल नीतियों को राष्ट्रीय जल नीति के अनुरुप तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करें।
पिछले कई वर्षों में देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में साफ पानी उपलब्ध कराने में राज्यों को सहयता देने के लिए हमारी सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) कार्यान्वित कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 74 प्रतिशत ग्रामीण बस्तियों को पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया गया है। मुझे खुशी है चिन्हित और अब तक इसमें शामिल नहीं रही बस्तियों को पर्याप्त और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के भारत निर्माण के लक्ष्य को हासिल किया गया है। हालांकि हमें अब भी पेयजल स्रोंतों के दूषित होने संबंधी मुद्दे से निपटने की ज़रूरत है जिससे कई ग्रामीण बस्तियां प्रभावित हैं। हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गावों में जल आपूर्ति प्रणालियों की योजनाओं, उसके कार्यान्वयन और कार्रवाई तथा रख-रखाव में ग्राम पंचायत तथा स्थानीय समुदाय पूरी तरह से शामिल हों।
हम अब स्वच्छता पर पहले से भी अधिक ध्यान दे रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के काम में तेज़ी लाने के लिए पूर्ण स्वच्छता अभियान में बदलाव किया गया है जिसे अब 12वीं पंचवर्षीय योजना में 'निर्मल भारत अभियान' कहा गया है। हमारा लक्ष्य 2022 तक सभी ग्रामीण परिवारों में शत प्रतिशत स्वच्छता हासिल करना है।
स्वच्छता के विषय में मैं राज्यपालों को बताना चाहूंगा कि मैला ढ़ोने की प्रथा के उन्मूलन और ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए एक नए विधेयक को पिछले वर्ष संसद में प्रस्तुत किया गया। नए विधेयक में इस अमानवीय प्रथा को समाप्त करने की बात है। मुझे आशा है कि संसद जल्द ही इस प्रस्तावित कानून को लागू करेगी।
हमारे नागरिकों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच बेहद आवश्यक है। अगर हम अपने युवाओं को उचित प्रकार की शिक्षा और कौशल से लैस नहीं करते तो हमारा जनसांख्यिकी लाभ जल्द ही बोझ में तबदील हो जाएगा।
हमने अभूतपूर्व स्तर तक उच्चतर शिक्षा में निवेश किया है और इसकी पहुंच को विस्तारित किया है। ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान 16 नवीन केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त 7 नए भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), 8 नए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), 10 नए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), 5 भारतीय वैज्ञानिक शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईएसईआर), और योजना तथा वास्तुकला विद्यालय (एसपीए) का गठन किया गया। उच्चतर शिक्षा के संस्थानों में शिक्षा और शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने और समानता के मुद्दों को संबोधित करने के लिए कई कदम उठाए गए। हमारी पहल ने सकारात्मक परिणाम दर्शाए हैं। उदाहरण के लिए उच्चतर शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 2006-07 के 12.3 प्रतिशत से बढ़कर 18.1 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
बारहवीं योजना के दौरान ग्यारहवीं योजना के लाभों को आगे बढ़ाते हुए उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता पर अधिक बल के साथ विस्तार, समानता और उत्कृष्टता पर हम अपना ध्यान जारी रखेंगे। हमारा उद्देश्य 2017 तक उच्चतर शिक्षा में जीईआर को 25.2 प्रतिशत और 2020 तक 30 प्रतिशत तक पहुंचाना है। इसके साथ ही हम 12वीं योजना में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान की शुरुआत का प्रस्ताव भी करते हैं ताकि परिणाम आधारित तरीके से राज्य के संस्थानों को निधियन मुहैया कराया जा सके। इसके अलावा शिक्षकों और शिक्षण पर एक राष्ट्रीय मिशन की भी शुरुआत की गई है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी तथा ज्ञान नेटवर्क के जरिए राष्ट्रीय शिक्षा मिशन विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच संपर्क को और अधिक बढ़ाने में मददगार होगा। भारतीय भाषाओं में राष्ट्रीय अभियान के साथ ही अजा, अजजा, अल्पसंख्यकों, अपिव, लड़कियों और विकलांग व्यक्तियों के अधिक समावेशन के लिए राष्ट्रीय अभियान की योजना भी तैयार की गई है।
शिक्षा नीतियों को तैयार करने और इसके क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्य के विश्वविद्यालों के कुलपति होने के नाते राज्यपालों से मैं आग्रह करूंगा कि अपने राज्यों में उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता तथा प्रशासकीय कार्यों को बेहतरीन बनाने में वे सक्रिय रुचि दिखाएं तथा शोध और नवाचार के विषय में राज्य विश्वविद्यालयों का दिशानिर्देश करें। कुछ राज्यपालों ने कुलपतियों की भूमिका और कार्यों के बारे में स्पष्टता के अभाव की बात कही है। मैं मानव संसाधन विकास मंत्री से अनुरोध करुंगा कि वे इस पर विचार करें कि इन विषयों को स्पष्ट करने के लिए किस प्रकार दिशानिर्देश तैयार किए जा सकते हैं।
हमारी सरकार सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर काबू पाने और साथ ही शासन की प्रक्रियाओं के प्रति भी सजग है। हमारे राष्ट्र के विकास और प्रगति के लिए यह प्राथमिक शर्त है। हम लोकपाल और लोकायुक्त विधान को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें आशा है कि संसद इस विधेयक को जल्द ही पारित कर देगी। लोक हित प्रकटीकरण और प्रकटीकरण करने वाले व्यक्तियों के लिए विधेयक, विदेशी और सार्वजनिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने के संबंध में रोकथाम विधेयक और नागरिकों की शिकायत सुनवाई विधेयक सभी संसद में विचाराधीन हैं। श्री ई.एस.एल नरसिम्हन ने लोक सेवकों खास तौर पर वो जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं, की प्रभावी सुरक्षा की ज़रुरत के संबंध में बात कही । सरकार भ्रष्टाचार अधिनियम में संशोधनों पर विचार कर रही है ताकि न केवल दोषी लोक सेवकों को जल्द से जल्द सज़ा दी जा सकी बल्कि जो ईमानदार हैं उनको प्रभावी सुरक्षा भी दी जा सके।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना सरकार द्वारा उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है ताकि जन सुपुदर्गी प्रणाली की प्रभावात्मकता को बढ़कार लक्षित वर्ग तक पहुंच को सुगम किया जा सके, भ्रष्टाचार में कमी हो और अपशिष्ट में कमी आ सके। लाभार्थियों तक चुनिंदा योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए हम इस योजना को चुनिंदा जिलों से शुरु कर पूरे देश में लागू करेंगे। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी आधार संख्या प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना का अभिन्न अंग है। इस योजना द्वारा हमारे ग्रामीण लोगों में वित्तीय समावेशन की भी संभावना है।
राजस्थान की राज्यपाल श्रीमती मार्गेट अल्वा और नगालैंड के राज्यपाल श्री निखिल कुमार ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना लागू करने में सतर्कता बरतने की सलाह दी है। उनकी चिंता आधार के अपर्याप्त कवरेज और राज्य सरकारों के साथ असंतोषप्रद समन्वय से संबंधित है। मुझे विश्वास है कि वित्त मंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और श्री नंदन नीलेकणी ने इन चिंताओं को नोट कर लिया है और इसे संबोधइत करने के लिए काम करेंगे।
आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री ई.एस.एल नरसिम्हन दुर्लभ संसाधनों के प्रभावी इस्तेमाल और साथ ही लाभार्थियों तक बेहतर पहुंच पर बल दिया। आपको यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि सरकार केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं की संख्या में कमी लाने पर विचार कर रही है ताकि उन्हें अधिक केंद्रित और उपयोगी बनाया जा सके।
ये कुछ विचार थे जो मैं आप लोगों से साझा करना चाहता था। अंत में मैं एक बार फिर राष्ट्रपति जी का धन्यवाद करुंगा। इसके साथ ही मैं एक आधुनिक, सौहार्दपूर्ण और उदार भारत के निर्माण के प्रति राज्यपालों के प्रयासों की सफलता की कामना भी करता हूं।
धन्यवाद। जय हिन्द।"