भाषण [वापस जाएं]

January 31, 2013
नई दि‍ल्‍ली


दिल्‍ली टिकाऊ विकास शिखर सम्‍मेलन के अवसर पर प्रधानमंत्री का अभिभाषण

प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह ने आज यहां दिल्‍ली टिकाऊ विकास शिखर सम्‍मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। डॉ0 मनमोहन सिंह के भाषण का हिन्‍दी रूपान्‍तर निम्‍नानुसार है।

दिल्‍ली टिकाऊ विकास शिखर सम्‍मेलन 2013 के उद्घाटन सत्र के अवसर पर उपस्थित होने पर अत्‍यधिक प्रसन्‍नता व्‍यक्‍त की। उन्‍होंने कहा कि इस शिखर सम्‍मेलन में भाग लेने के लिए समुचे विश्‍व से आये अनेक विदेशी गणमान्‍य व्‍यक्तियों का मैं हार्दिक स्‍वागत करता हूं।

सन् 2001 से दिल्‍ली टिकाऊ विकास शिखर सम्‍मेलन ने वैश्विक टिकाऊ विकास केलेंडर में एक अद्वितीय रूप धारण किया है, जिसने समुचे विश्‍व से कुछ सर्वोत्‍तम मस्तिष्‍क वाले  नेताओं को आकर्षित किया है। उन्‍होंने हमारे ग्रह की दुर्बल पर्यावरण प्रणाली को सुरक्षित रखने को गंभीरता से लिया है। मैं इस पहल के लिए और टिकाऊ विकास के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता के लिए ऊर्जा और संसाधन संस्‍था तथा डॉक्‍टर पचौरी को बधाई देता हूं।

रियो में 1992 में हुए शिखर सम्‍मेलन की 20वीं वर्षगांठ के अवसर पर पिछले वर्ष विश्‍व समुदाय एकत्र हुआ था। रियो+20 इस बात का मार्मिक तकाजा है कि रियो भू-शिखर सम्‍मेलन में हमने अपने लिये जो आदर्श लक्ष्‍य निर्धारित किये थे, वे पूरे नहीं किये गए। ये हमें यह बात स्मरण भी कराते हैं कि पर्यावरणीय और वातावरणीय मुद्दों पर सार्थक सर्वसम्‍मति पैदा करना कोई 20 साल पहले की तुलना में आज संभवत: दुश्‍कर प्रतीत होता है।

लेकिन, इसका तात्‍पर्य यह नहीं है कि हमने इस अवधि के दौरान कुछ प्राप्‍त ही नहीं किया। हमनें विश्‍व में पर्यावरण के प्रति सजगता की आसाधरण और स्‍वागत योग्‍य वृद्धि देखी है और हम इस तथ्‍य से बड़ा संतोष प्राप्‍त कर सकते हैं कि टिकाऊ विकास आज अंतर्राष्‍ट्रीय चर्चा का स्‍वीकार्य और अभिन्‍न अंग बन गया है। वैश्विक पर्यावरणीय एजेंडा और वैश्विक विकास एजेंडा अब अत्‍यधिक रूप से एक -दूसरे से जुड़े हैं और टिकाऊ विकास के आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक स्‍तम्‍भ उसे सुदृढ़ ढांचा उपलब्‍ध करा रहे हैं। 1992 के रियो सिद्धांत अब भी प्रासंगिक और मूल के रूप में देखे जा रहे हैं और इसे रियो+20 में सुदृढ़ किया गया था।

भारत में हमें इस उपलब्धि पर उचित संतोष है। कोई 40 वर्ष पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी स्‍टॉकहोम सम्‍मेलन में शरीक होने वाले विकासशील जगत के चन्‍द नेताओं में से एक थी। उन्‍होंने पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति हमारी वचनबद्धता को स्‍पष्‍ट किया था, लेकिन उन्‍होंने यह भी कहा था कि हमारी चुनौती सभी के लिए विकास सुनिश्चित करना है। यह हमारे लिए किसी हद तक संतोष की बात है कि हाल में हुई चर्चा में यह निहित समझदारी रही कि जब तक हम कुछ चुने हुए लोगों की बजाए सभी का हित साधने वाले विकास का मार्ग नहीं ढूंढते, वैश्विक टिकाऊ विकास का हमारा लक्ष्‍य मृगतृष्‍णा बना रहेगा।

इस संदर्भ में टिकाऊ शिखर सम्‍मेलन के इस वर्ष का विषय है – संसाधन की वैश्विक चुनौती - कुशल वृद्धि और विकास की एक विशेष प्रतिध्‍वनी है। मानवता ने संसाधनों की किल्‍लत की समस्‍याओं का निदान करने के लिए प्रौद्योगिकी के विकास में अपना परम्‍परागत विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है। तथापि, अब यह महसूस किया जा रहा है कि कुछ संसाधनों, खासकर पर्यावरणीय संसाधनों के लिए कोई आसान विकल्‍प नहीं है। इसलिए संसाधन – कुशलता टिकाऊ विकास की आवश्‍यक शर्त हैं और निरंतरता के आर्थिक स्‍तंभ का मुख्‍य तत्‍व है।

इसके अलावा, इस बात की वास्‍तविक चिंता है कि एक असमान जगत में संसाधनों की किल्‍लत ग़रीबों को अधिक बुरी तरह प्रभावित करेगी और मुख्‍य संसाधन इस ग्रह के चंद चुने हुए लोगों की पहुंच में रहेंगे। परिणाम स्‍वरूप बड़ी संख्‍या में लोग ग़रीबी और निरंतर वंचना में रहेंगे। इसलिए संसाधन कुशलता समावेशी विकास के एजेंडे का महत्‍वपूर्ण तत्‍व है। इस प्रकार चुनौती लचीली और कुशल अर्थव्‍यवस्‍थाएं तैयार करने की है, जिससे ग़रीबी दूर होगी और पहले से जीवन की सीमाओं पर रहने वाले ग़रीब लोग और अधिक असुरक्षित नहीं बनते। परिणामस्‍वरूप हमें ऐसी तकनीकों का विकास करने के प्रयास बढ़ाने चाहिए, जो ऐसे कुशल लाभ सुनिश्चित करें कि उन उपलब्‍ध संसाधनों का अधिक न्‍यायसंगत वितरण और उपयोग हो सके। समावेशी और टिकाऊ वैश्विक विकास से विकासशील देशों को राष्‍ट्रीय विकास के अपने लक्ष्‍यों को पूरा करने में सहायता मिलेगी।

टिकाऊ विकास के हमारे प्रयास में जलवायु परिवर्तन हमारी मुख्‍य चुनौती बन गई है। यह समस्‍या समन्वित वैश्विक प्रयास से ही हल की जा सकती है। इसलिए यह महत्‍वपूर्ण है कि टिकाऊ विकास को मात्र राष्‍ट्रीय परिप्रेक्षय में देखने की बजाए वैश्विक परिप्रेक्षय में देखा जाए। फिर भी विश्‍व में विकास के विविध स्‍तरों को देखते हुए यह महत्‍वपूर्ण है कि हमारे प्रयास इक्‍वीटी और सामान्‍य, पर, विविध दायित्‍व के सिद्धांत पर आधारित होने चाहिए। मुझे इस बात पर प्रसन्‍नता है कि हाल ही में हुए दोहा जलवायु सम्‍मेलन में इन सिद्धांतों की पुन: पुष्टि की गई। वे 2020 के बाद की हमारी भावी व्‍यवस्‍थाओं का आधार बननी चाहिएं और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकास संबंधी अपेक्षाएं और ग़रीबी उन्‍मूलन के प्रयासों में बाधा न पड़े।

औद्योगिक जगत द्वारा उत्‍सर्जन में कमी के क्‍योतो समझौते के अधीन सन् 2020 तक प्रतिबद्धता की दूसरी अवधि को स्‍वीकार करना एक स्‍वागत योग्‍य घटना है। लेकिन वास्‍तविक प्रगति तब तक प्राप्‍त नहीं की जा सकती जब तक कि विकसित देश अपने आदर्श के स्‍तर को बढ़ाने के इच्‍छुक न हों।   

हमारा देश उत्‍सर्जन की मात्रा को 2025 के स्‍तर की तुलना में वर्ष 2020 तक सकल घरेलू उत्‍पाद के 20-25 प्रतिशतकम करने के लक्ष्‍य के प्रति वचनबद्ध है। हमने कार्बन उत्‍सर्जन को कम करने के लिए पहले ही कई कदम उठाए हैं। अब समय है अमीर औद्योगिक देश इस राह पर चलने की इच्‍छाशक्ति दिखाएं। अगर वे क्‍योटो प्रोटोकॉल और अन्‍य समझौतों के अंतर्गत होने वाली प्रतिबद्धताओं में उत्‍तीर्ण नहीं होते तो भारत और अन्‍य विकासशील देशों की सरकारों, उद्योग तथा आम जनता को इस संबंध में मनाना मुश्‍किल हो जाएगा । 

जब हम संसाधनों के कुशल इस्‍तेमाल की बात करते हैं तो हमें ऐसे कई अन्‍य क्षेत्रों पर भी ध्‍यान देना होगा जो पृथ्‍वी की पारिस्थितिक तंत्र की वहनीयता सुनिश्चित करने में महत्‍वपूर्ण हैं। विकासशील देशों के लिए जैव विविधता एक महत्‍वपूर्ण पर्यावरणीय संसाधन है जो आम लोगों के जीवन से जुड़ा है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह संरक्षित किए गए हैं और इनका ध्‍यानपूर्वक, लाभप्रद और निरंतरता पूर्वक इस्‍तेमाल होता है। पिछले साल भारत ने हैदराबाद में जैव विविधता पर संयुक्‍त राष्‍ट्र के 11 वें सम्मेलन की मेज़बानी की थी। इसके एक महत्‍वपूर्ण परिणाम में जैव विविधता को सतत विकास और पर्यावरणीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई तथा संस्‍थागत प्रणाली बनाने पर एक समझौता हुआ जो जैव विविधता को संरक्षित रखने के लिए विकासशील देशों को वित्‍तीय और तकनीकी सहयोग आसान करेगा। हमें आशा है कि लिए गए फैसलों पर पूरी तरह अमल होगा।

हम भारत में अपने संसाधनों के सही ढंग से इस्‍तेमाल करने के जरिए उन्‍हें संरक्षित रखने की ज़रूरत के लिए पूरी तरह सचेत हैं। हम मानते हैं कि संसाधनों का सार्थक उपयोग मानव संसाधनों के कुशल इस्‍तेमाल करके शुरू किया जाना चाहिए और इसके लिए निर्माण कौशल, क्षमताएं तथा प्रणालियों की ज़रूरत है जिससे देश प्रत्‍येक व्‍यक्ति में उच्‍च दक्षता सुनिश्चित कर सकते हैं। हैदराबाद में मैंनेभारत में जैव विविधता के संरक्षण के लिए संस्‍थागत प्रणालियों को मज़बूत करने के लिए हैदराबाद शपथ के भाग के रूप में 50 मिलियन डालर आवंटित करने की घोषणा की थी।

जलवायु परिवर्तन पर हमारी राष्‍ट्रीय कार्य योजना राष्‍ट्रीय और राज्‍य स्‍तर पर विकासात्‍मक रणनीति को अब एक महत्‍वपूर्ण हिस्सा है। इसके आठ मिशनों में से एक है अगले 10 वर्ष के अंदरसौर ऊर्जा के इस्‍तेमाल से 20,000 मेगा वॉट की बिजली पैदा करने की क्षमता हासिल करनी है। मुझे याद है कि 2008 में इस मंच पर मैंने 'अरबों जिंदगियों के जीवन में रोशनी लाना' नामक टेरी के एक कार्यक्रम की शुरूआत की थी। मैंने कहा था कि इस कार्यक्रम से अब देश के लगभग 2000 गांवों को लाभ पहुंचा है जिसमें परिवार सौर ऊर्जा से चलने वाले लांटेन का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। यह लांटेन स्‍वच्‍छ, विश्‍वसनीय और प्रदूषण मुक्‍त रोश्‍नी देता है। इस कार्यक्रम को अफ्रीका और एशिया के अन्‍य हिस्‍सों तक बढ़ाया गया है। निजी क्षेत्र के शामिल होने से बाज़ार आधारित सौर लांटेन प्रसार तथा फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकी पर आधारित विकेंद्रीकृत तरीके से प्रकाश व्‍यवस्‍था के अन्‍य रूपों के ज़रिए इस दृष्टिकोण को बढ़ाने में मदद मिली है। हम अपने अंतरराष्‍ट्रीय भागीदारों को हमारे देश में अक्षय ऊर्जा तकनीकों को संभावनाओं का उपयोग करने के लिए हमारे साथ कार्य करने हेतु आमंत्रित करते हैं।

भारत और कई अन्‍य विकासशील देशों में एक संसाधन जिसकी विशेष चिंता है वो है स्‍वच्‍छ जल का। भूजल का ह्वास भी हमारे देश के कई जिलों में एक बढ़ी समस्‍या बन चुका है। शहरों में स्‍वच्‍छ जल की बढ़ती मांग को पूरा करने का तात्‍पर्य बढ़ती कीमत है क्‍योंकि जल की आपूर्ति काफी दूर-दूर से होती है। पानी की मांग के अनुमान और उसकी उपलब्‍धता बढ़ती कमी की संकेतक तस्‍वीर पेश करते हैं। हमें इसलिए जल संरक्षण और उसके सही इस्‍तेमाल पूरा ध्‍यान देना होगा।

मैं यह भी बताना चाहूंगा कि पर्यावरण का संरक्षण और विकास करना आसान काम नहीं है। इसके लिए जिसकी ज़रूरत है वो है नियामक व्‍यवस्‍था जो पारदर्शी, जवाबदेही हो तथा जिसकी निगरानी और निरीक्षण हो। वास्‍तव में नियामक व्‍यवस्‍थाएं ये सुनिश्चित करनी हैं पर्यावरणीय और आर्थिक लक्ष्‍य एक के पीछे एक हासिल हों।

हमारे अनुभव ने दिखाया है कि सतत विकास प्रयासों में सफलता नवाचार प्रणालियों के इस्‍तेमाल पर निर्भर करती है। विशेष रूप से कमज़ोर और गरीब तथा हाशिए पर आए समुदायों की जरूरतों को ध्‍यान में रखते हुए विकासात्‍मक रणनीतियों और नीतियों में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की महत्‍ता और आर्थिक मूल्‍य  पर पर्याप्‍त ध्‍यान दिया जाना चाहिए। ग्रीन नेशनल अकाउंटिंग जैसे विषय उपयोगी हैं जो यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं कि वस्‍तुऐं और सेवाओं के उत्पादन से पारिस्थितिक और समाज पर न्‍यूनतम असर हो।

बढ़ती जनसंख्‍या, सेवन करने के पैटर्न में बदलाव तथा मूल्‍यवान प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ  हमारे आर्थिक वृद्धि और गरीबी उन्‍मूलन की कोशिश में हमारे सामने  वास्‍तविक चुनौतियां हैं। वैश्विक आर्थिक व्‍यवस्‍था में बनी वर्तमान वैश्विक असामना स्‍पष्‍ट रूप से स्‍थायी नहीं है। साथ ही हमें एक पृथ्‍वी की पारिस्थितिकी और अर्थव्‍यवस्‍था कोसाझा करना होगा। इससे हमारी अर्थव्यवस्‍थाओं को दोबारा से ऐसा बनाना होगा जो किफायती हो तथा अपने अपर्याप्‍त संसाधनों के इस्‍तेमाल में अभिनव हो। ये ऐसा क्षेत्र है जिसका हमें भविषय के हल तलाश्‍ने की ज़रूरत है। भारत वैश्विक समुदाय के साथ इस कार्य में काम करना चाहता है। इसके साथ मैं इस सम्‍मेलन को सफल होने की शुभकामनाएं देता हूं और कुश्‍ल संसाधन तथा सतत विकास रणनीति के लिए विशेष सिफारियों की आशा करता हूं।

आप सभी का ध्यान देने के लिए धन्यवाद।