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प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज कोलकाता में इंडियन साइंस कांग्रेस को संबोधित किया। इस अवसर पर उनके संबोधन का आलेख निम्नलिखित है:-
भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिऐशन का जनरल प्रेसिडेंट होने के नाते यह मेरे लिए गौरव की बात है कि मैं अपने मुख्य अतिथि, भारत के माननीय राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का स्वागत कर रहा हूं। हमारे राष्ट्रपति एक जाने-माने राजनेता हैं। उनकी बुद्धिमत्ता, ज्ञान और जन-जीवन का अनुभव हमारे लिए राष्ट्रीय संपदा के समान है। मैं इस अवसर पर उन महान विद्वानों, वैज्ञानिकों, नीति-निर्धारकों और विज्ञानप्रेमियों का भी स्वागत करता हूं जो आज भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्दी समारोह में शामिल होने के लिए यहां पधारे हैं।
कोलकाता को इस ऐतिहासिक समारोह के लिए चुनकर यह कांग्रेस अपने एसोसिऐशन के मूल गृहनगर की 100वीं जयंती मना रही है। आधुनिक भारतीय विज्ञान का पोषण यहीं बंगाल की धरती पर हुआ। कोलकाता की विज्ञान को देन सिर्फ संबंधित संगठनों की वह सूची नहीं है जो आज इस धरा पर मौजूद हैं, बल्कि वह जिज्ञासा, रचनात्मकता और उदारवाद है जिसे यहां के निवासी अनेक पीढि़यों से परिभाषित करते आये हैं। इसके लिए मैं पश्चिम बंगाल सरकार और खासतौर से यहां के राज्यपाल श्री नारायणन, मुख्यमंत्री कुमारी ममता बनर्जी और कोलकातावासियों को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने इस विज्ञान कांग्रेस के साथ निरंतर और बिना शर्त सहयोग किया।
मैं इस अवसर पर इस विज्ञान कांग्रेस की कार्यकारिणी और उसकी परिषद के सदस्यों का भी अभिनंदन करता हूं जिन्होंने अनेक उपायों को सफल बनाने के लिए पूरा साल काम किया। इन उपायों की चर्चा इसी नगर में मैंने सात महीने पहले की थी।
इस एसोसिऐशन के 100 वर्ष पूरे होने पर आइये हम लोग एक मिनट के लिए रुकें और दूरदृष्टि और उनके पक्के इरादों के लिए इसके संस्थापकों - श्री आशुतोष मुखर्जी, प्रो.जे.एल साइमनसेन और प्रो.पी.एस मैकमहोन की याद करें। इस अवसर पर हम आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय, सर आर.एन मुखर्जी, सर जगदीशचंद्र बोस, सर एम.विश्वेस्वरैया, सर सी.वी.रमन, सर एस.एन.बोस और प्रो. मेघनाद साहा जैसी प्रतिभाओं की समर्पण भावना को प्रणाम करते हैं, जिन्होंने इस संस्था को ज्ञान के प्रसार और भारतीय राष्ट्र की प्रगति का साधन बनाया। हमारी कामना है कि उनकी प्रतिबद्धता और सामाजिक चेतना आज के वैज्ञानिकों की मार्गदर्शक बने।
इस कांग्रेस का विषय रखा गया है भारत के भविष्य निर्माण के लिए विज्ञान जो हर पीढ़ी के भारतीय वैज्ञानिकों का सपना है। अगले कुछ दशकों के दौरान तेज प्रगति, खाद्यान्न एवं ऊर्जा पर आधारित सतत विकास एवं आर्थिक, सामाजिक समावेशिता से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सामाजिक सुविधाओं की त्वरित प्रगति संभव हो सकी है और ये भारत के भविष्य को परिभाषित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। विज्ञान, टेक्नोलॉजी एवं नवाचार-इन सभी को इन उद्देश्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी है।
विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विकास पिछले सौ वर्षों के दौरान संसाधनों के उपयोग के पर्याप्त विकास एवं कुशलता के मध्य बिंदु रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में परिवर्तन, वैश्वीकरण एवं नई टेक्नोलॉजी की गति तेज हुई है। लोगों ने आपसी सहयोग से ज्ञान तक पहुंच और परस्पर सहयोग से कार्य संपन्न करने की क्षमता बढ़ा ली है। इन युगांतरकारी प्रवृत्तियों को अपनाने से भारत लाभान्वित हुआ है।
तकनीकी परिवर्तन स्थापित संरचनाओं को सदैव मिटा देते हैं। अत: कई बार वे अपने आपको मजबूत बनाते हैं और समतामूलकता में प्रगति को रोकते हैं। आज भारत अपनी राष्ट्रीय आय के सतत विकास के लिए प्रयत्नशील है अत: हमें विज्ञान के साधनों का सहारा लेकर इस दिशा में प्रयास करने चाहिए ताकि हम वंचित और पिछड़े लोगों की जरूरतें पूरी कर सकें और अमीर-गरीब के बीच की खाई पाट सकें।
हमारे देश में लगभग 65 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। उनके जीवन स्तर में सुधार काफी हद तक कृषि उत्पादन और उत्पादकता की वृद्धि पर निर्भर करता है। 12वीं पंचवर्षीय योजना में यह कल्पना व्यक्त की गई है कि देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रति वर्ष 4 प्रतिशत की दर पर कृषि क्षेत्र की टिकाऊ वृद्धि आवश्यक है। इस वृद्धि में पानी और भूमि की वजह से बाधा आ रही है। खेती के लिए पानी बचाने संबंधी तकनीकों में नए उपायों, भूमि उत्पादकता बढ़ाने तथा जलवायु में विभिन्न लचीलेदार व्यवस्था के विकास की ज़रूरत है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीतियों सहित हमारी जन नीतियों की सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि क्षेत्र में परिवर्तन करना होना चाहिए।
इस सम्मेलन के विषय को ध्यान में रखते हुए यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि विज्ञान के जरिए अपने भविष्य –निर्माण के लिए हमें क्या करना चाहिए ? मैं इस संबंध में आपके साथ कुछ विचार बांटना चाहता हूं।
पहला यह कि हमें एक समाज के रूप में वैज्ञानिक प्रवृत्ति के संबंध में जैसा जवाहरलाल नेहरू कहते थे उस बारे में सबको बताना चाहिए। हमारी युवा पीढ़ी को विज्ञान की सुविधाओं का लाभ उठाने तथा अपने नष्ट हुए समय की पूर्ति के लिए विज्ञान- आधारित प्रणाली को अपनाना चाहिए। आनुवांशिक रूप से परिवर्तित (जेनेटिकली मोडिफाइड) खाद्य या परमाणु ऊर्जा या अंतरिक्ष के अन्वेषण जैसे जटिल मुद्दों को आस्था, भावनाओं और डर से हल नहीं किया जा सकता। इसे बहस, विश्लेषण और ज्ञान के जरिए सुलझाया जाना चाहिए। इन मुद्दों के बारे में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समझ उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि मुख्य वैज्ञानिक क्षमताएं।
इसके लिए हमें विज्ञान को न केवल स्कूलों और कॉलेजों में प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है जैसा कि हम इंस्पायर कार्यक्रम के जरिए कर रहे हैं बल्कि उच्च गति वाले ऑप्टिकल फाइबर राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क जैसे सभी संचार माध्यमों के जरिए अपने घरों, कार्यस्थलों और समुदायो में भी इसके बारे में जागरूकता लाने की आवश्यकता है। समावेशी समाज स्थापित करने में विज्ञान की मदद लेनी चाहिए जो विज्ञान अनुप्रयोगों के जरिए मुख्य सामाजिक सम्स्याओं को हल कर सके।
दूसरा, हमारी मूल सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं के प्रति जागरूकता के जरिए छात्रवृत्ति और अनुसंधान के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। सीमित संसाधनों के होते हुए हम एक राष्ट्र के रूप में वैज्ञानिक अनंसुधान में कार्य कर रहे हैं, यह ज़रूरी है कि हम उन चुनौतियों को भी प्राथमिकता दे जो हमारी अर्थव्यवस्था के परिवर्तन में आवश्यक हैं।
मैं पहले ही भारत के कृषि क्षेत्र के कायाकल्प की ज़रूरत के बारे में कह चुका हूं। लेकिन इसके साथ कई और अन्य मुद्दें भी हैं जिनपर भी उतना ही प्राथमिकता से ध्यान दिया जाना चाहिए। ऊर्जा सुरक्षा, स्वच्छता, साफ पेयजल की व्यवस्था, श्रम प्रधान निर्माण और किफायती दामों पर सभी के लिए स्वास्थ्य देखरेख ऐसे अन्य मुद्दे हैं जिन्हें भी सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हमारा प्रयास इन में से कुछ क्षेत्रों में भारतीय नेतृत्व को नया आयाम देना होगा। भारतीय उद्योग को भी अपने यहां शोध केंद्रों तथा खासतौर पर विद्वानों के सहयोग के जरिए इस संबंध में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
तीसरे, समग्रतापूर्ण संगठनात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है। एक समय था, जब विज्ञान ने अकेला रास्ता पकड़ा था, जिसके पीछे एक व्यक्ति की उद्यमशीलता होती थी, न कि कोई सामूहिक प्रयास। आज के नवोन्मेष और ज्ञान-बहुल विश्व की उम्मीदों से यह बहुत कम है, जो विकास की प्रक्रिया को सशक्त बनाने के लिए जरूरी हैं। इसके लिए हमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के परस्पर योगदान की और सभी पणधारियों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं में होने वाले अनुसंधान को सरकार द्वारा प्रायोजित अनुसंधान का पूरक होना चाहिए। शैक्षिक और अनुसंधान प्रणालियों को नवीनीकरण और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना होगा और जिनकी व्यावसायिक विकास में दिलचस्पी है, उनके साथ जोड़ना होगा।
पिछले कुछ वर्षों में हमने इस दिशा में कुछ नीतिगत उपाय किए हैं। अनुसंधान के लिए सरकार के पास जो जानकारी और डाटा है, हमने उसे उपलब्ध कराने और वहां तक पहुंच को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। विज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रहे विभिन्न वैज्ञानिकों और कंपनियों के प्रयासों के एकीकरण के लिए हमने नवोन्मेष परिसर, टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर और नवोन्मेष विश्वविद्यालयों जैसी नई व्यवस्थाएं भी की हैं।
चौथे, अत्यधिक साधनों की आवश्यकता पर आधारित आधुनिक विज्ञान में प्रगति के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है। पिछले कई वर्षों में आर्थिक उदारीकरण और आर्थिक विकास से ऐसी संभावनाएं पैदा हुई हैं, जिसमें हमारे वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में सार्थक रूप से और विश्वसनीय तरीके से सहयोग कर पा रहे हैं। मैं केवल दो बड़े उदाहरण देना चाहूंगा। लार्ज हैड्रान कोलाइडर से संबंधित अनुसंधान में यूरोपीय केंद्र के साथ भारतीय वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण सहयोग रहा, जिसकी परिणति हिग्स बोसोन कण की खोज के रूप में हुई। दूसरा उदाहरण अंतरराष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर में कुछ चुने हुए देशों के समूह के साथ भारत के मिलकर काम करने का है।
हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्थापित नेताओं के साथ न केवल भागीदारी करनी चाहिए बल्कि अन्य उभरते नवोन्मेष शक्ति केंद्रों के साथ भी सहयोग करना चाहिए, जिनमें से कई हमारे क्षेत्र में हैं। सामूहिक समृद्धि और उन्नति के लिए हमें अपने पड़ोसी देशों को भी हमारी विशेषज्ञता उपलब्ध करानी चाहिए।
अंत में मैं कहूंगा कि हमारी वैज्ञानिक संस्थाओं का स्तर इस बात पर निर्भर करेगा कि हम विज्ञान के प्रति सुयोग्य छात्रों को किस तरह आकर्षित करते हैं, वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उन्हें कितनी आजादी देते हैं और नेतृत्व चुनाव के लिए हम कैसी मानव संसाधन नीतियां अपनाते हैं। हमें केवल सर्वश्रेष्ठ को ही चुनना चाहिए और अपनी खोज के दायरे का विस्तार विदेशों में रह रहे अनेक भारतीय वैज्ञानिकों तक करना चाहिए, जो भारत आना चाहते हों, चाहे कुछ वर्षों के लिए सही।
मानव जाति की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं से संबंधित समस्याओं में से सबसे साधारण समस्या के हल के लिए भी कई बार उच्च स्तरीय बुनियादी अनुसंधान की आवश्यकता होती है। पिछले आठ वर्षों में हमने अपने वैज्ञानिक अनुसंधान और नवोन्मेष के बुनियादी ढांचे का विस्तार करके इस अंतर को दूर करने की कोशिश की है। हमने पांच नए भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, आठ नए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, 16 नए केंद्रीय विश्वविद्यालय, 10 नए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में छह नए अनुसंधान और विकास संस्थान तथा पांच संस्थान अन्य शाखाओं में स्थापित किए हैं। मुझे उम्मीद है कि ये सब हमारे देश के वैज्ञानिक अनुसंधान के स्तर को ऊंचा उठाने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
हम जानते हैं कि विज्ञान आधारित नवोन्मेष विकास की कुंजी है, इसलिए राष्ट्रीय नवोन्मेष परिषद ने नवोन्मेष के क्षेत्र को अग्रणी पंक्ति में रखा है ताकि ज्ञान का उपयोग व्यावहारिक समाधान ढूंढने में सहायक हो।
आज यहां प्रस्तुत विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष नीति, 2013 का उद्देश्य वर्ष 2020 तक भारत को पांच सबसे बड़ी वैश्विक वैज्ञानिक शक्तियों के बीच खड़ा करना है। यह एक महत्वकांक्षी लक्ष्य है। इसका उद्देश्य विज्ञान में प्रतिभाओं का सृजन करना और पोषण करना, हमारे विश्वविद्यालयों में अनुसंधान को उत्प्रेरित करना, विज्ञान के क्षेत्र में युवा नेतृत्व विकसित करना, सराहनीय कार्य को पुरस्कृत करना, अनुसंधान और नवोन्मेष में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाने के लिए नीति संबंधी पर्यावरण तैयार करना और राष्ट्रीय एजेंडे की पूर्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सहयोगों को सुदृढ़ करना है। राष्ट्रीय विकास परिषद ने कुछ दिन पहले 12वीं पंचवर्षीय योजना को स्वीकृति दी है। इस योजना में कई ऐसी पहलों का उल्लेख है, जिससे यह संभव हो सकेगा।
इस दिशा में 11वीं पंचवर्षीय योजना में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम था – स्व-वित्तपोषी राष्ट्रीय विकास और इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड की स्थापना। जैसा कि 12वीं योजना में कहा गया कि यह संस्था प्रमाणित अच्छे स्तर के अनुसंधानों में निवेश करेगी और 200 से 250 ऐसे केंद्रों की स्थापना करेगी, जिन्हें कार्य निष्पादन और पुरस्कार के आधार पर अनुदान दिया जाएगा।
मैं गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की उन अमर पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा जिसमें उन्होंने भविष्य में ऐसे भारत के लिए अभ्यर्थना की है, जहां अन्य बातों के अलावा तार्किकता के सिद्धांत का स्पष्ट महत्व हो। मुझे विश्वास है कि अगले पांच दिनों में यह अधिवेशन, जिसमें देश और विदेश के प्रमुख वैज्ञानिक जमा हुए हैं, ऐसे उपयोगी विचार सामने रखेंगे कि विज्ञान किस प्रकार भारत के भविष्य का निर्माण कर सकता है। जैसे ही इस अधिवेशन के साथ भारतीय विज्ञान कांग्रेस एक और मील के पत्थर को लांघती है, आइये हम संकल्प करें कि हम इसके निर्माताओं की अनादि और सुंदर सत्य के प्रति उत्कट भावना को तथा भारत को ज्ञान के उच्च शिखरों पर ले जाने के उनके सपने को जिंदा रखेंगे।
मैं इस अवसर पर आप सभी को, जो इस अधिवेशन में आए हैं, नव वर्ष की शुभकामनाएं देता हूं।