भाषण [वापस जाएं]

December 27, 2012
नई दिल्ली


राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की 57वीं बैठक में प्रधानमंत्री का उद्घाटन भाषण

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आज नई दिल्ली में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की 57वीं बैठक को संबोधित किया।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री के उद्घाटन भाषण का अनूदित पाठ इस प्रकार है:-

12वीं पंचवर्षीय योजना के मसौदे पर विचार के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में आप सभी का स्वागत करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है।

तीव्र, अधिक समावेशी और सतत् वृद्धि संबंधी योजना के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो मसौदा आपके समक्ष है वह हमारे देश के सामने मौजूद कई चुनौतियों का विस्तृत आंकलन प्रस्तुत करता है।

जैसा कि हम 12वीं पंचवर्षीय योजना शुरू कर रहे हैं, यह गौर करने वाली बात है कि हम उस अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा कर रहे हैं जहां कई क्षेत्रों में मजबूती परिलक्षित हुई है।

11वीं पंचवर्षीय योजना में हमने औसतन 7.9 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त की है, इस सत्य के बावजूद कि इस दौरान दो वैश्विक संकट आए। यह वृद्धि पिछली किसी भी अवधि के दौरान काफी समावेशी रही है।

वर्ष 2004-05 के बाद आधिकारिक गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले जनसंख्या के प्रतिशत में प्रतिवर्ष दो प्रतिशत की गिरावट आई है, जो कि 1993-94 और 2004-05 के बीच आई गिरावट दर से ढाई गुना तेज है। यदि गरीबी रेखा संशोधित होती है तब भी उसमें गिरावट दर अधिक रहेगी।

11वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास दर दसवीं पंचवर्षीय योजना के 2.4 प्रतिशत से बढ़कर 3.3 प्रतिशत हो गई। कृषि में वास्तविक मजदूरी हाल के वर्षों में प्रतिवर्ष बढ़कर 6.8 प्रतिशत हो गई है, जो कि 2004-05 के पहले की अवधि के दौरान प्रति वर्ष केवल 1.1 प्रतिशत थी। कृषि का बेहतर प्रदर्शन महत्वपूर्ण कारण रहा जिससे गरीबी में तेजी से गिरावट आई।

वैसै राज्य जिनकी पिछली अवधि के दौरान वृद्धि दर धीमी रहा करती थी उन्होंने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। पांच सबसे गरीब राज्यों की औसत विकास दर पहली बार किसी भी पंचवर्षीय योजना के राष्ट्रीय औसत से अधिक रही। मैं समझता हूं कि हम उस अवस्था की ओर बढ़ रहे हैं जब ‘बीआईएमएआरयू राज्य’ जैसे शब्द इतिहास बन जाएंगे।

जबकि ऐसे विकास हमारी आर्थिक क्षमता के संकेत हैं, यह भी सत्य है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति कठिन है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में चल रहे संकट के कारण हर जगह विकास में कमी आई है। यूरोजोन और जापान में इसके शून्य तक होने संभावना समझी जाती है और उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्था में भी गिरावट आई है।

वैश्विक आर्थिक मंदी जिसमें कुछ घरेलू बाधाएं भी जुड़ी हैं, उससे पता चलता है कि हमारे विकास में भी गिरावट आई है। हमारी पहली प्राथमिकता इस मंदी से उबरना होनी चाहिए। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था को बदल नहीं सकते हैं लेकिन हम घरेलू बाधाओं के लिए कुछ कर सकते हैं जिसका मंदी में योगदान रहा है।

क्रियान्‍वयन समस्‍याएं ऐसी समस्‍याएं हैं, जिन्‍हें जल्‍द हल करने की जरूरत है और उनके कारण बड़ी परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं। इनमें विशेषकर बिजली परियोजनाएं शामिल हैं, जो स्‍वीकृति न मिल पाने और ईंधन आपूर्ति समझौता में विलंब के कारण लम्बित हैं। हमने इस समस्‍या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें मेरी अध्‍यक्षता में निवेश पर नई मंत्रिमंडलीय समिति की स्‍थापना शामिल है।

मेरा विश्‍वास है कि इन कदमों का सराकात्‍मक प्रभाव पड़ेगा, लेकिन उनका पूरा प्रभाव पड़ने में वक्‍त लगेगा।

वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में राज्‍यों के ताजा आंकलन को ध्‍यान में रखते हुए उपाध्‍यक्ष ने यह संकेत दिया है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए समग्र वृद्धि दर आठ प्रतिशत रखी जा रही है। यह उचित बदलाव है, लेकिन मैं इस पर बल दे रहा हूं कि प्रथम वर्ष के दौरान छह प्रतिशत से कम विकास दर के बाद औसतन आठ प्रतिशत की दर प्राप्‍त करना अभी भी महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य है।

जैसा कि योजना दस्‍तावेज में स्‍पष्‍ट है कि उच्‍च विकास दर का परिदृश्‍य निश्चित रूप से तब लागू नहीं होगा, जब हम ‘पहले की तरह व्यापार’ नीति को अपनाते हैं। योजना में कई ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है जहां नई पहल और नीतियों में नवीनता लाने की आवश्यकता है। इनमें कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्रमुख जिम्मेदारी राज्यों की है। इन सुझावों पर मैं माननीय मुख्यमंत्रियों के विचारों को जानना चाहूंगा।

जबकि विकास दर को बढ़ाने की आवश्यकता है और इसमें हमें विकास तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। हमारा वास्तविक उद्देश्य आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार लाना होना चाहिए और इसलिए यही कारण है कि हमारा इस बात पर जोर है कि विकास समावेशी होना चाहिए।

अधिक समावेशी विकास को प्राप्त करने के लिए तीव्र वृद्धि की आवश्यकता क्यों है, इसके दो कारण हैं। पहला, हमारे कई समावेशी कार्यक्रमों को वित्त उपलब्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि राजस्व बढ़ाया जाए। यदि विकास दर में कमी आती है तो समावेशी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए न तो राज्यों और न ही केंद्र के पास पर्याप्त संसाधन होंगे। या तो हमें इन कार्यक्रमों को कम करने के लिए बाध्य होना होगा और या तो हमें उच्च वित्तीय घाटे को सहन करना होगा जिसका कोई अन्य नकारात्मक प्रभाव होगा।

तीव्र विकास सीधा समावेशिता में भी योगदान करता है क्योंकि इससे आय और रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। वैसी नीतियां जिनका उद्देश्य कृषि और मध्यम एवं लघु उद्योगों के विकास को बढ़ावा देना है और जो शिक्षा और कौशल विकास के उपायों से भी जुड़े हैं उनके कारण विकास प्रक्रिया मजबूत होगी और वह अधिक समावेशी होगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना की रणनीति में वैसे तत्व शामिल किए गए हैं जो यह सुनिश्चित करेंगे कि विकास संभवतः समावेशी हो। इस रणनीति पर मैं आपके टिप्पणियों का स्वागत करता हूं।

हमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों जैसे सामाजिक आर्थिक समूह के बीच के अंतर की ओर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यह समूह प्रमुख सामाजिक, आर्थिक सूचकांक में बाकी जनसंख्या से पीछे है। भाग्यवश, यह अंतर घट रहा है लेकिन जिस गति से यह हो रहा है वह संतोषजनक नहीं है और निश्चित रूप से हमारी आशाओं पर नहीं बैठता है। हमें इस बात पर विचार करना होगा कि इसे कैसे बेहतर किया जाए।

लैंगिक असमानता एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है जहां विशेष ध्यान देने की जरूरत है। महिलाएं और लड़कियां देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं और हमारा समाज इस आधी जनसंख्या के लिए अभी ईमानदार नहीं है। उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधर रही है लेकिन असमानता बरकरार है। सार्वजनिक स्थलों में महिलाओं निकलना सामाजिक आजादी का एक आवश्यक हिस्सा है लेकिन उनकी सलामती और सुरक्षा पर भी खतरे बढ़ रहे हैं। यहीं दिल्ली में कुछ दिनों पहले एक युवती पर हुआ क्रूर हमला और अन्य जगहों पर हुई ऐसी निंदनीय घटनाओं का मुझे स्मरण है। हमें इन समस्याओं पर गौर करना चाहिए जो हमारे देश के सभी राज्यों और अन्य क्षेत्रों में घटती हैं, जहां केंद्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

विशेषकर, इस मामले में आरोपियों को पकड़ा जा चुका है और कानून उनसे तेजी से निपटेगा। सरकार ने मौजूदा कानून की समीक्षा और बर्बर यौन अत्याचार के मामले में सजा के स्तर की जांच करने का निर्णय लिया है। इस उद्देश्य के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा की अध्यक्षता में प्रख्यात न्यायविदों की समिति का गठन किया गया है। मैं विस्तार से बताना चाहूंगा कि महिलाओं की सलामती और सुरक्षा हमारी सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का विषय है। राजधानी दिल्ली में इन मुद्दों की गहनता से समीक्षा करने के लिए एक जांच आयोग का भी गठन किया जा रहा है। इस आधी आबादी की सक्रिय भागीदारी के बिना विकास का कोई मतलब नहीं है और यह भागीदारी सरलता से तब तक नहीं हो सकता जब तक कि उनकी सलामती और सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती। राज्यों में इस गंभीर समस्या की ओर विशेष ध्यान देने के लिए मैं सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं।

हमारी अर्थव्यवस्था के कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनकी चर्चा विस्तार से इस योजना दस्तावेज में की गई है। मैं अपने भाषण में कुछ का जिक्र करना चाहूंगा।

कृषि एक गंभीर चिंता का क्षेत्र है। हालांकि जीडीपी में कृषि का योगदान घट कर 15 प्रतिशत तक आ गया है और कृषि लगभग आधी जनसंख्या का प्रमुख आय स्रोत है। कृषि में जो कुछ भी होता है वह समावेशी विकास की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। हमें कृषि के लिए भूमि उत्पादकता बढ़ाकर पिछली योजना कि सफलता की तरह आगे बढ़ना है ताकि हम केवल बढ़ते खाद्यान की मांग को ही पूरा न कर सकें बल्कि कृषि पर निर्भर लोगों की आय को भी बढ़ा सकें। विरोधाभासतः हमारा सिर्फ कृषि में ही कुल रोजगार बढ़ाने का लऱ्य नहीं होना चाहिए। वास्तव में गैर कृषिगत क्षेत्रों में लाभकारी रोजगार के अवसर प्रदान कर लोगों को कृषि से बाहर ले जाने की आवश्यकता है। यह तभी होगा जब कुछ लोग कृषि पर निर्भर होंगे जिससे कृषि में प्रतिव्यक्ति आय में जिससे कृषि में भी अच्छी वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप कृषि आकर्षक लाभ का पेशा बन सकेगी।

कृषि राज्य का विषय है और अधिकांश आवश्यक नीतिगत पहल राज्य सरकारों के तहत हैं। मेरे सहयोगी कृषि मंत्री श्री शरद पवार इन मुद्दों पर कुछ विस्तार से चर्चा करेंगे और इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर मुझे मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रिया की आशा है।

विनिर्माण में वृद्धि दहाई के आंकड़ों के स्तर में होनी चाहिए पर इसमें अभी समय है। योजना में बहुत सी नवीन पहलों का वर्णन है जिसका लक्ष्य विनिर्माण क्षेत्र में प्रदर्शन को सुदृढ़ करना है। छोटे और मझौले उद्योग खासतौर पर महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अधिक रोजगार का सृजन करते हैं। केन्द्र और राज्यों को एक ऐसी प्रणाली तैयार करने को वरीयता देनी चाहिए जिसमें उद्योग वृद्धि कर सके और पनप सके।

अर्थव्यवस्था की तीव्र वृद्धि के लिए बेहतर अवसंरचना सर्वोतम गारंटी है। बुनियादी ढांचे का विकास काफी हद तक पूंजी पर निर्भर है और केन्द्र तथा राज्य दोनों के पास संसाधनों की उपलब्धता का अभाव है। केन्द्रीय सरकार और बहुत सारे राज्य सरकार निजी सार्वजनिक साझेदीरी के ज़रिए अवसंरचना को प्रोत्साहन देने में सफल रहे हैं। भारत बुनियादी ढांचे के तहत निजी सार्वजनिक साझेदारी की परियोजना की दूसरी विशालतम संख्या वाला देश है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में इसे जारी रखना आवश्यक होगा।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में पूर्वोत्तर पर विशेष ध्यान दिया गया और मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि पूर्वोत्तर राज्यों ने अच्छी प्रतिक्रिया दी है। कई राज्यों में सकल घरेलू उत्पाद राष्ट्रीय औसत से अधिक रहा। खासतौर पर सड़कों, रेल, हवाई अड्डों, जलमार्गों और बिजली ट्रांसमिशन प्रणाली को समर्थन देने और हमारे देश के इस महत्वपूर्ण भाग में आर्थिक गतिविधि में तेजी के लिए हमारी योजना निवेश की गति बढ़ाने की है। मुझे आशा है कि हमारी पूर्वोन्मुख नीति के परिणामस्वरूप यह क्षेत्र ही हमारे पड़ोसी देशों के साथ वाणिज्य और आर्थिक गतिविधि का प्रमुख द्वार बन जाएगा।

मैंने इस बात का जिक्र किया है कि केन्द्र और राज्य दोनों संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं। इसके लिए आवश्यक है कि योजना का निधियन करने के लिए दोनों के द्वारा संसाधनों को गतिशील करने के प्रयास किए जाए। योजना दस्तावेज में इस बात को इंगित किया गया है कि कर सुधारों और बेहतर कर प्रशासन के ज़रिए हमें सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रुप में कर अनुपात बढ़ाने की ज़रुरत है। इस संदर्भ में वस्तु और सेवा कर का शीघ्र क्रियान्वयन आवश्यक है। मुझे आशा है कि वस्तु और सेवा कर को जल्द से जल्द लागू करने में हमें राज्यों का सहयोग मिलेगा।

योजना के तहत सब्सिडियों के नियंत्रण पर भी ध्यान दिया गया है। कुछ सब्सिडी सामान्य हैं और किसी भी सामाजिक रुप से न्यायसंगत प्रणाली का आवश्यक भाग हैं लेकिन सब्सिडियों को ठीक तरह से विकसित किया जाना चाहिए और प्रभावी रुप से लक्षित किया जाना चाहिए इसके साथ ही इसकी कुल मात्रा को राजकोषीय सततता की सीमाओं में रखा जाना चाहिए। इन सीमाओं में सब्सिडी को नियंत्रित कर पाने में अक्षम रहने का तात्पर्य केवल यह है कि अन्य योजना व्ययों में कटौती करनी होगी अथवा राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बढ़ जाएगा। इस संबध में वित्त मंत्री आपको संबोधित करेंगे।

सरकारी कार्यक्रमों के प्रति सामान्य शिकायत यह रहती हैं कि यह भ्रष्टाचार, देरी और कमजोर लक्ष्यों से जूझते हैं। केन्द्र सरकार इससे निपटने के लिए बड़ा कदम उठा रही है। इसके तहत लाभार्थी उन्मुख योजनाओं को आधार के इस्तेमाल से प्रत्यक्ष अंतरण प्रणाली के ज़रिए प्रयोग किया जाएगा। जनवरी 2013 के दौरान यह चुनिंदा जिलों में चयनित योजनाओं के साथ शुरु हो जाएगी। कुछ समय के भीतर विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति, बुजुर्गों के लिए पेंशन, स्वास्थ्य लाभ, मनरेगा पारिश्रमिक और साथ ही अन्य प्रकार के लाभ आधार के ज़रिए बैंक खाते में प्रत्यक्ष अंतरण के द्वारा पहुंचाए जाएंगे। यह एक अभिनव पहल है जिसे समूचे वैश्विक विकसित समुदाय में महसूस किया जाएगा। इसे सफल बनाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना होगा।

बहुत से राज्य सरकारों ने कहा है कि केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाएं अपने कडे दिशानिर्देशों के कारण कई बार प्रभावी नहीं होती। योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने पहले ही कहा है कि योजनाओं में अधिक लचीलेपन के प्रस्तावों के साथ ही बी. के. चतुर्वेदी समिति के सिफारिशों के अनुरुप केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं को ढ़ालने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। मुझे विश्वास है कि इन बदलावों का बड़े रुप में स्वागत किया जाएगा।

हमारी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बन सकने वाले दो क्षेत्र जिनका मैं उल्लेख करना चाहूंगा वे हैं- ऊर्जा और जल।

किसी भी विकास प्रक्रिया के लिए ऊर्जा महत्वपूर्ण कारक है और हमारे घरेलू ऊर्जा संसाधन हमारे देश की बढ़ती ज़रुरतों को पूरा कर पाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। हम तेल, प्राकृतिक गैस और हाल के वर्षों में कोयले का भी आयात करते हैं। अगर हम अपनी ऊर्जा आयात ज़रुरतों को उपयुक्त सीमाओं में रखना चाहते हैं तो हमें ऊर्जा दक्षता पर बल देना होगा और हमें ऊर्जा के घरेलू उत्पादन में वृद्धि करनी होगी। दोनों ही लक्ष्यों के लिए उर्जा की कीमत का निर्धारण करना आवश्यक है। अगर घरेलू उर्जा की कीमतें बहुत कम हैं तो उर्जा दक्षता को बढ़ावा देने का कोई लाभ नहीं।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में ऊर्जा की कीमतें काफी कम हैं। हमारा कोयला, पेट्रोलियम उत्पाद और प्राकृतिक गैस सभी कुछ अंतरराष्ट्रीय कीमतों से काफी कम है। इसका यह भी तात्पर्य है कि खास तौर पर कुछ उपभोक्ताओं के लिए बिजली की कीमत प्रभावी रुप से काफी कम है । मैं इस बात को समझता हूं कि इस अंतर को दूर करने के लिए कीमतों में तत्काल बदलाव ठीक नहीं है लेकिन चरणबद्ध तरीके से इसमें सुधार किया जाना आवश्यक है। इस बात पर उर्जा विशेषज्ञों की राय हैं कि यदि हम ऊर्जा कीमतों को वैश्विक कीमतों के अनुरूप लाने के लिए तैयार नहीं हैं तो हम तीव्र, समावेशी और सतत विकास की आशा नहीं कर सकते। केन्द्र सरकार और राज्यों को एक साथ मिलकर इस बारे में जनता को जागरुक करना होगा कि हमें ऊर्जा सब्सिडी की सीमा में कमी करनी चाहिए। इस जटिल मुद्दे पर मैं माननीय मुख्यमंत्रियों की राय जानने के लिए उत्सुक हूं।

हमारे जल संसाधनों का प्रबंधन एक बडी चुनौती है। हम तेजी से उस स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं जहां देश में पानी की कुल मांग को उपलब्ध आपूर्ति के द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता। उर्जा की तरह ही हमें पानी का इस्तेमाल सूझ-बूझ के साथ करना होगा और सतत तरीके से इसकी आपूर्ति का दायरा भी बढ़ाना होगा।

योजना दस्तावेज में इस समस्या से निपटने के लिए व्यापक नीति बनाई गई है। इसकी शुरुआत उपलब्ध भूजल के मानचित्रण के साथ की गई है। एक जल नियामक प्राधिकरण के द्वारा उपलब्ध पानी को अलग अलग इस्तेमाल के लिए आवंटित किए जाने की भी ज़रुरत है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर राज्य सरकारों को कार्यवाई करनी है।

हमारे देश के विकास में सभी का सहयोग आवश्यक है जिसमें बहुत से हितधारक शामिल हैं। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र, केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें सभी शामिल हैं। इसके साथ ही आम लोगों की सहभागिता भी शामिल है खासतौर पर उन लोगों की जो पुरानी समस्यों के निजात के लिए नए तरीकों को सामने रखने के लिए सक्रिय रुप से अपनी भागीदारी करते हैं।

हमने अब तक जो भी हासिल किया है उसमें पर्याप्त रुप से सफल रहे हैं पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अभी भी हम निम्न आय वाले देश हैं। इसे मध्य आय स्तर तक लाने के लिए हमें बीस वर्षों तक तीव्र वृद्धि की आवश्यकता है। यह यात्रा लंबी है और इसके लिए कठिन मेहनत और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। राष्ट्रीय विकास परिषद की यह बैठक हमें हमारे समक्ष दुष्कर कार्य के प्रति पुनः समर्पित होने का मौका देती है।

इस देश के नागरिकों ने हमारे ऊपर यह जिम्मेदारी सौंपी है कि हम ऐसी स्थितियों का निर्माण करें जिसमें वह अपने स्वप्नों और आकांक्षाओं को पूरा कर सके। अगर हम अपना काम करते हैं तो मुझे विश्वास है कि भारत के प्रतिभावान लोगों के पास इस महान देश को गौरव की ऊचाईयों पर ले जाने की पूरी क्षमता है। हमारे प्रति लोगों को बडी आकांक्षाएं हैं। मुझे विश्वास है कि सभी मुख्य मंत्री इस बात से सहमत होंगे कि हमें लोगों कि आकांक्षाओं को पूरा करने में पीछे नहीं हटना है।