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प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज नई दिल्ली में भारत-आसियान स्मृति सम्मेलन के पूर्ण अधिवेशन का शुभारंभ किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री के भाषण का अनूदित पाठ इस प्रकार है:-
"भारत में आपका और आपके शिष्टमंडल का स्वागत करना मेरे लिए बड़े सम्मान और प्रतिष्ठा की बात है। यह पहली बार है जब आसियान के सभी दस देशों के नेता हमारे साथ दिल्ली में मौजूद हैं। हमारे और हमारे क्षेत्र के लिए यह ऐतिहासिक पल है। हम न सिर्फ संवाद भागीदारी के बीस वर्षों और भारत एवं आसियान के बीच वार्षिक सम्मेलन के दस वर्षों को याद कर रहे हैं बल्कि हम इससे भी बढ़कर चिरस्थायी एवं बहुमूल्य उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं।
भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के संबंध सदियों पुराने हैं। इस क्षेत्र में लोगों, विचारों, व्यापार, कला एवं धर्मों के बीच लंबे समय से आदान-प्रदान होता रहा है। हमारे सभी देशों के बीच सभ्यताओं का अनंत ताना-बाना बुना जाता रहा है। एक तरफ हममें से हर एक की अनोखी एवं समृद्ध विरासत है तो दूसरी तरफ कला एवं धर्म और सभ्यताओं, संस्कृति एवं रीति रिवाज के बीच स्थायी संबंध हैं तथा ये सब हमारे क्षेत्र में विविधता और बहुलता में एकता की भावना पैदा करते हैं। यही नहीं, कुल मिलाकर 1.8 अरब लोगों के समुदाय के रूप में हम धरती की एक चौथाई आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा 3.8 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के साथ यह स्वाभाविक है कि भारत आसियान के साथ अपने रिश्तों को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
हम आसियान के साथ अपनी भागीदारी को न सिर्फ पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों की पुन: पुष्टि के रूप में देखते हैं बल्कि एशिया और इसके आसपास हिंद महासागर एवं प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित एवं समृद्ध तथा स्थायी बनाने के रूप में भी देखते हैं।
दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत के प्रगाढ़ और गहरे रिश्ते किसी भी अन्य क्षेत्रीय संबंधों की तुलना में बेजोड़ हैं। हम वार्षिक रूप से सम्मेलन आयोजित करते हैं। हमारे अनेक क्षेत्रीय संवाद मंत्रि स्तर पर किये गये हैं और हमारे बीच संवाद एवं सहयोग के लिए करीब 25 व्यवस्थाएं हैं जिनके तहत मानव व्यवहार का प्रत्येक क्षेत्र कवर है।
यह संबंध विशेष रूप से व्यापार के क्षेत्र में फला फूला है। वार्षिक सम्मेलन की शुरूआत से भारत आसियान व्यापार 10 वर्षों में 10 गुणा से अधिक बढ़ गया है। वस्तुओं के क्षेत्र में हमारा मुक्त व्यापार समझौता लागू होने के बाद 2011-12 के भारतीय वित्तीय वर्ष में व्यापार में 41 प्रतिशत वृद्धि हुई। दो-तरफा निवेश से भी तेजी से वृद्धि को बल मिला और पिछले दशक में यह 43 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया। भारत में आसियान का निवेश बढ़ने से आसियान देश भी भारतीय कंपनियों के लिए निवेश का महत्वपूर्ण क्षेत्र बन कर उभरे हैं। उर्जा संसाधनों से लेकर कृषि उत्पादों, सामग्री से लेकर मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी तक सभी क्षेत्रों में भारतीय और आसियान कंपनियां व्यापार और निवेश की नई भागीदारी कर रही हैं।
इसलिए सेवाओं और निवेश में मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत के निषकर्ष के साथ आज इस स्मृति सम्मेलन के आयोजन को देख कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। यह हमारे रिश्तों में महत्वपूर्ण मील के पत्थर का प्रतिनिधित्तव करता है। मुझे विश््वास है कि इससे वस्तुओं में मुक्त व्यापार समझौते की तरह ही हमारे आर्थिक संबधों में भी तेजी से वृद्धि होगी।
भारत आसियान संबंध सशक्त आर्थिक प्रभाव के साथ शुरू हुए थे लेकिन अब यह रणनितिक रूप भी धारण कर चुके हैं। हमारा राजनीतिक संवाद बढा है, क्षेत्रीय मंचों पर विचार विमर्श तेज हुआ है तथा रक्षा के क्षेत्र और आतंकवाद के विरोध के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा है। स्वाभाविक रूप से यह भागीदारी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारा इतिहास आपस में गुंथा हुआ है। इसी तरह मैं महसूस करता हूं कि हमारा भविष्य परस्पर जुड़ा हुआ है और स्थाई, सुरक्षित एवं समृद्ध भारत प्रशांत क्षेत्र हमारी प्रगति और संपंनता के लिए महत्वपूर्ण है इसलिए इन पहलुओं में हमारी भागीदारी से हम सब को लाभ होगा।
क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए हमारी अर्थ व्यवस्थाओं के बीच ज्यादा समन्वय, सहयोग और एकीकरण की जरूरत है। आसियान ने सहयोग की क्षेत्रीय व्यवस्था और परस्पर सहमति बनाने के जरिए समूचे क्षेत्र को राह दिखाई है। ये व्यवस्था शांति और समृद्धि के लिए महान ताकत बन चुकी है। यह मुख्य वास्तुविद और आर्थिक एवं सुरक्षा ढांचे और उन सस्थाओं का परिचालक बन कर उभरा है जो हमारे क्षेत्र में उभर रही है। इन मंचों की सफलता के लिए आसियान का नेतृत्व् बहुत आवश्यक तत्व है तथा इन प्रयासों को बल देने के रूप में भारत आसियान का पूरा समर्थन करता है। हम 2015 तक आसियान के लक्ष्य को हासिल करने का समर्थन करते हैं तथा कनेक्टीविटी के बारे में आसियान एकीकरण और आसियान मास्टर फ्लान की पहल में सक्रिय भागीदारी जारी रखेंगे।
जहां तक आने वाले वर्षों में सहयोग के व्यापक क्षेत्रों की बात है तो मैं महसूस करता हूं कि हमें पूर्वी एश्यिा सम्मेलन, आसियान क्षेत्रीय मंच और आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक जैसे क्षेत्रीय मंचों सहित अपना राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी विचार विमर्श तेज करना चाहिए। हमें मुक्त, संतुलित, समावेशी, और पारदर्शी संरचना तैयार करने के लिए ज्यादा उद्देश्य पूर्ण ढंग से काम करना चाहिए। वैश्विक मामलों में आसियान और भारत की बढती भूमिका और जिम्मेदारियों के लिए भी अंर्तराष्ट्रीय घटना क्रम के व्यापक क्षेत्र में ज्यादा विचार विमर्श की जरूरत है।
समुद्र से जुड़े राष्ट्रों के रूप में भारत और आसियान देशों को मुक्त रूप से नौवहन के लिए समुद्री सुरक्षा और संरक्षा के लिए तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप समुद्र से जुड़े विवादों को शांति पूर्वक हल करने के वास्ते सहयोग बढाना चाहिए। हमें चोरी और नकल रोकने तथा प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए भी क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाना चाहिए।
यदि हम अपने संबंध और सहयोग को प्रगाढ़ बनाने में समर्थ रहें तो स्वाभाविक रूप से क्षेत्रीय और वैश्विक संदर्भो में मिलकर काम करने की हमारी क्षमता ज्यादा मजबूत होगी। इस संदर्भ में भौतिक सांस्थानिक, व्यक्ति से व्यक्ति, डिजिटल और समुद्र एवं हवाई मार्ग के रास्ते कनेक्टीविटी भारत और आसियान के बीच निकट संबंधों की कुंजी है। कल भारत आसियान का रैली कार रैली का आयोजन ना सिर्फ बहादुर पुरुष और महिलाओं के महत्वपूर्ण सफर का जश्न होगा बल्कि इस बात का भी प्रतीक होगा कि कनेक्टीविटी किस तरह क्षेत्र के लोगों को जोड़ सकती है, व्यापार को बढ़ा सकती है और समृद्धि ला सकती है। इसलिए हमें भारत-म्यांमा-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के तेजी से कार्यान्वयन और लाओ पीडीआर एवं कंबोडिया तक इसके विस्तार को सर्वोच प्राथमिकता देनी चाहिए। हमें दूसरा मार्ग भी शुरू करना चाहिए जो भारत से म्यांमा से, लाओ पीडीआर और कंबोडिया से वियतनाम को जोड़ेगा।
इसी तरह भारतीय नौ सेना जहाज आईएनएस सुदर्शनी ने न सिर्फ समुद्री संबंधों की तरफ बल्कि समुद्र आधारित कनेक्टीविटी की आर्थिक संभावनाओं की तरफ ध्यान खींचा है। 6 महीनों का यह अभियान नौ आसियान देशों में चलाया जा रहा है।
बुनियादी ढांचे की इन परियोजनाओं के लिए बहुत धन की जरूरत है। हमें इन परियोजनाओं के लिए पैसों की व्यवस्था और निषपादन के लिए नए तरिकों पर विचार करना चाहिए जिनमें निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता और संसाधनों के भी इस्तेमाल की बात शामिल है।
कनेक्टीविटी में सुधार होने से वाणिज्य का विस्तार होगा। मुझे आशा है कि 2015 तक हमारा व्यापार 100 अरब अमरिकी डॉलर को पार कर जाएगा तथा हमें अब से अगले दस वर्षों के लिए 200 अरब अमरीकी डॉलर के व्यापार का लक्ष्य बनाना चाहिए हमें वार्षिक भारत आसियान व्यवसाय मेला और कॉनकलेव तथा हमारी उभरते बिजनेस जैसी सराहनीय पहल पर भी ध्यान देना चाहिए। हमारी अर्थव्यवस्थओं के केंद्र बिदु छोटे और मझोले उद्यमों के बीच सम्पर्क को प्रोत्साहन देना चाहिए।
यहां उपस्थित हम में से बहुत से लोगों के समक्ष ऊर्जा एवं खाद्य सुरक्षा, तीव्र शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, शिक्षा एवं कौशल विकास के जरिए लोगों के सशक्तिकरण जैसी साझा चुनौतियां है। हमें परस्पर मिलकर इन चुनौतियां से निपटने के लिए उपलब्ध अवसरों का इस्तेमाल करना चाहिए। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि विविध क्षेत्रों में अपने सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए भारत आसियान कार्य योजना के अनुभव और भारत आसियान प्रतिष्ठित व्यक्ति समूह की सिफारिशों से हम आसियान इंडिया फंड, आसियान इंडिया ग्रीन फंड तथा आसियान इंडिया एसएंडटी फंड जैसी नूतन पहल के लिए समर्थन बढ़ाना होगा।
यह हमारे क्षेत्रों में विभिन्न अनसुलझे सवालों और मुद्दों के साथ व्यापक परिवर्तन और रूपान्तरण का दौर है। शांति के लिए कार्य करने के लिए हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई है । हमारे साझा मूल्यों, वैश्विक दृष्टिकोण और समानताओं से भारत आसियान संबंध को ज्यादा व्यापक बनाने में मदद मिलनी चाहिए तथा अगले दशक और उससे भी आगे के लिए रणनीतिक भागीदारी की जानी चाहिए।
इन शब्दों के साथ मैं एक बार फिर आप सबको दिल्ली आने के लिए धन्यवाद देता हूं। आपकी भागीदारी से यह सम्मेलन पहले ही यादगार बन चुका है। मैं अपने संबंधों के भविष्य के बारे में आपके विचार जानने के लिए बहुत उत्सुक हूं।
मैं अब कम्बोडि़या के प्रधानमंत्री और इस सम्मेलन के सहअध्यक्ष श्री हुन सेन को भारत आसियान भागीदारी के भविष्य पर विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित करता हूं।"