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भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग चैम्बर संघ-फिक्की की आज नई दिल्ली में हुई 85वीं आम वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण का विवरण इस प्रकार है:-
‘‘भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग चैम्बर संघ-फिक्की की 85वीं आम वार्षिक बैठक में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। इसी तरह के वार्षिक समारोह के लिए इस भवन में लगभग पांच वर्ष पहले आया था। भारत के लिए, बल्कि अगर मैं कहूं कि विश्व के अर्थव्यवस्था के लिए, ये पांच वर्ष बहुत चुनौतीपूर्ण रहे हैं। वर्ष 2008 में भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछले पांच वर्षों में अभूतपूर्व विकास हुआ था और लगभग 9 प्रतिशत वार्षिक विकास दर दर्ज हुई थी। इसलिए सब तरफ बहुत ही उत्साहपूर्ण और आशापूर्ण माहौल था और बहुतों ने भारत के इस उत्थान का स्वागत किया था।
लेकिन कुछ महीनों के बाद अधिकतर देश वैश्विक आर्थिक मंदी का शिकार हो गए थे। हमने समुद्र-पार के देशों से आये इस आर्थिक संकट के प्रभाव का बखूबी मुकाबला किया। भारत एक जिम्मेदार और अनुकूल प्रतिक्रियाशील आर्थिक प्रबंधन वाले देश की मिसाल बन गया। लेकिन, वक्त गुजरने के साथ कई देश इस आर्थिक मंदी के शिकार हुए और हम भी इससे प्रभावित हुए ।
आज हम देश के पिछले दो वर्षों के अत्यधिक निराशा वाले माहौल के बाद मिल रहे हैं, जिसने हमारी विकास प्रक्रिया पर असर डाला है। लेकिन मैं आपके सामने आपको फिर से विश्वास दिलाने के लिए खड़ा हूं कि हमारी सरकार आर्थिक विकास में तेजी लाने और विकास की इस प्रक्रिया को सामाजिक और क्षेत्रीय दृष्टि से अधिक समावेशी बनाने के लिए नीति परिवर्तन संबंधी हर संभव कदम उठाने के लिए दृढ़ संकल्प है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी भी संकटपूर्ण समय से गुजर रही है। यूरोप में अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय से चिंता का कारण रही है। अमरीका की अर्थव्यवस्था भी अभी संकट से पूरी तरह उबर नहीं पाई है। चीन में भी आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है। इस बारे में बहुत अनिश्चितता बनी हुई है कि वैश्विक आर्थिक स्थिति में कब सुधार होगा। लेकिन, जैसा कि आपने पिछले कुछ सप्ताहों में देखा है, हमारी सरकार ने निराशा के माहौल को बदलने और निवेश को बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं।
मैं इस अवसर पर आपके सामने तीन पहलुओं को रखना चाहूंगा- पहला, आर्थिक विकास में तेजी लाने और विकास के प्रक्रिया को सामाजिक और क्षेत्रीय दृष्टि से अधिक समावेशी बनाने के महत्व पर जोर, दूसरा, इस उद्देश्य के लिए हमने जो उपाय किये हैं उनकी ओर आपका ध्यान दिलाना और तीसरा, वे उपाय जिनके करने की आवश्यकता है और हमारा करने का इरादा है।
पिछले एक दशक में हम 8 प्रतिशत से अधिक की औसत विकास दर से अपने आर्थिक विकास में तेजी लाने में कामयाब रहे हैं। अभी भी हम तेजी से विकास के मामले में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं।
प्रति व्यक्ति उपलब्धियों के हमारे आंकड़े एक ऐसे स्तर पर पहुंच गए हैं कि भारत को जल्दी ही अंतर्राष्ट्रीय विकास एसोसिएशन के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा, जो कि विश्व बैंक की सस्ते दरों पर ऋण देने वाली संस्था है। जब मैं चालीस वर्ष पहले सरकार में आया था, तो धन प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विकास एसोसिएशन हमारे लिए एक बहुत महत्वपूर्ण स्रोत था। आज हम इस स्थिति में हैं कि हम दूसरे देशों को और विशेष रूप से अपने पड़ोसी देशों तथा अफ्रीका के देशों को सस्ती दर पर ऋण दे सकते हैं।
निश्चित रूप से यह एक संतोषजनक स्थिति है, लेकिन जब मैं देश के अंदर अभी भी मौजूद सामाजिक और क्षेत्रीय असमानताओं को देखता हूं, तो मुझे दुख होता है। आय और संपत्ति में असमानताओं को रातों रात या थोड़े समय के अंदर समाप्त नहीं किया जा सकता, लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, बिजली, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं और यहां तक कि बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच के मामले में भारत में जो असमानताएं हैं, वे नहीं होनी चाहिएं। पिछले दो वर्षों में मुद्रास्फीति की दर बहुत ही ऊंचे स्तर तक पहुंच गई है, जो स्वीकार्य नहीं है और हमें इसे कम करके ज्यादा से ज्यादा पांच से छह प्रतिशत वार्षिक तक लाना है।
उच्च विकास दर वाले वर्षों में हम ऐसे संसाधन जुटा पाएं हैं, जिनका उपयोग हमने अपने लोगों के जीवन-स्तर को सुधारने में किया है। लेकिन हमें अपने इस भाग्यवान देश से ग़रीबी, अज्ञानता और बीमारी को खत्म करने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें अपनी विकास की प्रक्रिया को ऐसा बनाना है, जो आज के मुकाबले सामाजिक और क्षेत्रीय दृष्टि से कहीं अधिक समावेशी हो। हमारी नीति और हमारे समाज की दीर्घकाल तक की स्थिरता के लिए भी यह बहुत जरूरी है।
विकास के सामाजिक आधार को व्यापक बनाने से, न केवल लोगों के जीवन में सुधार आता है बल्कि कारोबार के लिए घरेलू बाजार का भी विस्तार होता है। इस प्रकार, समतापूर्ण विकास से खुद बखुद और ज्यादा विकास होता है। हमारे कामगार अधिक शिक्षित और स्वस्थ होंगे, तो वे और अधिक उपयोगी और लाभप्रद होंगे। यदि ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं बेहतर होंगी, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था का और ज्यादा कारगर ढंग से व्यापक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में समन्वय होगा। बेहतर कृषि अर्थव्यवस्था से औद्योगिक विकास में तेजी आएगी। अगर लोग खुशहाल होंगे और आने-जाने के बेहतर साधनों से एक-दूसरे के साथ जुड़े होंगे, तो वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी और बाजार भी बढ़ेंगे।
यही कारण है कि हमारी सरकार सामाजिक और मानव संसाधनों के विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, ग्रामीण विकास, आवास और ग्रामीण ढांचागत सुविधाओं में अधिक पूंजी लगा रही है। हमारी कोशिश है कि सभी कमजोर और पिछड़े वर्ग तथा क्षेत्र, मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था की गतिशील विकास प्रक्रियाओं का हिस्सा बनें।
हालांकि चुनौतियों का हम अभी भी सामना कर रहे हैं, लेकिन यह भी देनखने योग्य बात है कि ग़रीबी के स्तर में बहुत तेजी से कमी आई है, जैसी कि पिछले दो सौ वर्ष में नहीं देखी गई। सामाजिक सुरक्षा की अधिक प्रभावी व्यवस्थाएं विकसित हो रही हैं। लोग अपने और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की ओर उम्मीद से देखते हैं।
हाल में हमने सीधे नकद हस्तांतरण का जो बड़ा अभियान शुरू किया है, उसे इसी संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए। इस अभियान का उद्देश्य सरकार द्वारा मिलने वाले लाभों को सीधे व्यक्तिगत लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंचाना है। इस विशाल परिवर्तन के लिए सभी निवासियों के लिए आधार संख्या वाला विशिष्ट पहचान कार्यक्रम इसका आधार होगा। सरकार आधार संख्या पर आधारित सेवाएं तेजी से देने की व्यवस्था कर रही है, ताकि छात्रों के लिए वजीफे, बजुर्गों के लिए पेंशन, स्वास्थ्य लाभ, मनरेगा की मजदूरी और इस तरह के कई अन्य लाभ, आधार व्यवस्था का इस्तेमाल करते हुए सीधे बैंक खातों में पहुंचा दिये जाएं। इससे हेराफेरी कम होगी, भ्रष्टाचार घटेगा, बिचौलिये नहीं रहेंगे, लाभार्थियों की बेहतर ढंग से सहायता होगी और लाभ पाने के पात्र लोगों को लाभ पहुंचाने में तेजी आएगी। इससे एक ही बारी में करोड़ों लोग हमारी बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा बन जाएंगे और हमारी अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जुड़ जाएंगे।
जहां एक ओर हम अपनी विकास प्रक्रिया को और अधिक समावेशी बनाने की कोशिश करेंगे, वहीं दूसरे ओर हम अपनी उन नीतियों को लागू करने में ढील नहीं आने देंगे, जो हमारी अर्थव्यवस्था में फिर से तेजी लाने में सहायक हैं। यह कार्य और भी कठिन हो गया है, क्योंकि विकास के लिए जिस तरह के वैश्विक वातावरण की आवश्यकता है, उसकी सहायता और समर्थन कम हो गया है। वर्ष 2003 और 2008 के बीच, जिन वर्षों में विकास दर 9 प्रतिशत रही, भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक अनुकूल वैश्विक वातावरण का लाभ मिला। वर्ष 2009 से यह वातावरण और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है। इसके कारण और कुछ अन्य घरेलू मजबूरियों के कारण आर्थिक विकास की दर 5.5 से 6 प्रतिशत तक आ गई है। हमारी निर्यात वृद्धि में भी कमी आई है और वित्तीय तथा मौजूदा खाता घाटों में बढ़ोतरी हुई है।
इसने हमारी अर्थव्यवस्था को झकझोरा है, जिससे आर्थिक विकास और निवेश के उत्साह में कमी आई है। हम इस समय 12वीं पंचवर्षीय योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 8-9 प्रतिशत वृद्धि की आवश्यकताओं के अनुरूप निवेश और बचतों को बढ़ाने की आवश्यकता से जूझ रहे हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार ने निवेशकों के उत्साह को फिर से कायम करने वित्तीय तथा मौजूदा खाता घाटों को नियंत्रण में रखने तथा ढांचागत सुविधाओं में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं।
हमने जो कुछ कदम उठाएं हैं, वे राजनीतिक दृष्टि से बहुत ही कठिनाई पैदा करने वाले हैं और इसके विरोधियों तथा आलोचकों ने हमें इन रास्तों पर आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश की है, लेकिन हमें अपने फैसलों पर विश्वास था और हमारे दिल में लोगों के हितों की चिंता थी।
अत्यंत ग़रीबी से जूझ रहे लोगों को कुछ राहत पहुंचाने में सब्सिडी की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन यह सही लोगों तक पहुंचनी चाहिए। लेकिन इसेक साथ ही हम सब के लिए यह समझना भी जरूरी है कि पिछले वर्षों में सब्सिडी की राशि में जिस तरह वृद्धि हुई है, उससे लोगों की आर्थिक खुशहाली और सशक्तिकरण के सरकार के प्रयासों में रुकावट पड़ रही है। ऊर्जा की कीमत निर्धारित करने के मामले में, विशेष रूप से बिजली और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें तय करने से, बुनियादी ढांचों और सामाजिक विकास में निवेश के लिए हमारे उपलब्ध संसाधन प्रभावित हुए हैं। अकेले पेट्रोलियम और डीज़ल पर दी जाने वाली सब्सिडी की राशि उस राशि से अधिक है, जो सरकार स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों पर खर्च करती है। हमें इन मुद्दों पर गौर करना है और साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि ग़रीब और कमजोर वर्गों के हितों की प्रभावी ढंग से सुरक्षा हो ।
पिछले वर्ष केन्द्र सरकार का वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 प्रतिशत के ऊंचे स्तर तक जा पहुंचा। निश्चित रूप से इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। वित्तमंत्री ने इस वर्ष इस घाटे को कम कर के 5.3 प्रतिशत और 2016-17 तक 3 प्रतिशत तक लाने के लिए कार्य की रूप रेखा तैयार की है। हमारी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने के प्रति गंभीर है। ऊर्जा की कीमत के मामले में ग़लतियों को ठीक करने तथा डीज़ल और एलपीजी पर सब्सिडी को कम करने के लिए हमारी कार्यवाही इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए की गई।
वित्तीय घाटे जैसी ही चुनौतीपूर्ण रही है भुगतान संतुलन में मौजूदा खाता घाटे में बढ़ोतरी की चुनौती। वैश्विक पर्यावरण के मद्देनजर निवेशक जोखिम से बचना चाहते हैं और वैश्विक व्यापार में मंदी आ गई है। इस चुनौती से निपटने के लिए हमने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर अपनी नीति को उदार बनाया है। मल्टी ब्रांड रिटेल, बिजली-व्यापार में आदान-प्रदान और प्रसारण के क्षेत्र में एफडीआई के हमारे फैसले को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। बैंकिंग और बीमा में एफडीआई सीमाओं को उदार बनाने से संबंधित विधेयक इस समय संसद के सामने है। इनमें से प्रत्येक फैसले के पीछे मजबूत आर्थिक तर्क हैं, लेकिन ये फैसले राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में हमारी बड़ी चिंताओं का भी ध्यान रखते हैं तथा अभी तक जारी वैश्विक आर्थिक मंदी के प्रभाव से भारत को मुक्त रखने की आवश्यकता पर भी गौर करते हैं। मुझे लगता है कि जो लोग हमारे इन कदमों का विरोध कर रहे हैं, वे या तो वैश्विक वास्तविकताओं से अनभिज्ञ हैं, या पुरानी विचारधाराओं से ग्रस्त हैं। उद्हारण के तौर पर, जब मैं रिटेल में एफडीआई के बहस को सुनता हूं, तो मुझे बड़े पैमाने पर संगठित रिटेल के विरोध में तर्क सुनाई देते हैं, न कि रिटेल में एफडीआई के विरोध में।
हाल में हमने जो कदम उठाए हैं, वे हमारी अर्थव्यवस्था के फिर से संभालने की प्रक्रिया की मात्र शुरूआत और इसे 8 से 9 प्रतिशत की आदर्श विकास दर पर लौटाने का प्रयास हैं। आईटी क्षेत्र में कराधान और सामान्य कर – बचाव रोधी नियमों (जीएएआर) से जो प्रक्रिया शुरू की गई थी, उसे पूरा करने की आवश्यकता है। परसों ही मंत्रिमंडल ने निवेश पर कैबिनेट समिति के गठन को मंजूरी दी है। इससे बड़ी परियोजनाओं के लिए निश्चित समय सीमा के अंदर स्वीकृतियां जारी करने के मामले में मदद मिलेगी। हम विनिवेश की प्रक्रिया में भी तेजी लाएंगे, जिससे हमारे पूंजी बाजार भी फिर से संभल जाएंगे।
हम फार्मा क्षेत्र में एफडीआई नीति में और अधिक स्पष्टता ला रहे हैं। रेलवे रेल किराया प्राधिकरण के गठन पर कार्य कर रहा है, जिससे किराया निर्धारण की प्रक्रिया और अधिक युक्ति संगत हो जाएगी। वितरण कंपनियों को बेहतर कार्य निष्पादन के वास्ते फिर से मजबूत करने के लिए हम पहले ही एक पैकेज तैयार कर चुके हैं। प्रत्यक्ष कर संहिता तथा वस्तु और सेवा कर के विधेयक हमारी प्राथमिकता में काफी ऊंचे हैं। श्री कनोडिया द्वारा व्यक्त शंकाओं के बावजूद मंत्रिमंडल ने हाल में जिस भूमि अधिग्रहण विधेयक को मंजूरी दी है, उससे भूमि अधिग्रहण के मामले में अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था कायम होगी। आपके अध्यक्ष श्री कनोडिया ने जो कुछ कहा है, मैंने उसे बहुत दिलचस्पी और सम्मान के साथ सुना है। अब समय आ गया है कि हम कारोबार, सरकार और समाज के बीच एक नई सामाजिक संविदा को कायम करें। हमारी सरकार उद्योग जगत के नेताओं के साथ निरंतर वार्ता का स्वागत करती है। पांच वर्ष पहले भारतीय कारोबार से संबंधित इसी तरह के सम्मेलन में मैंने कारोबार और सरकार के लिए एक दस सूत्री सामाजिक अधिकार- पत्र की बात रखी थी। मैं उन दस सूत्रों को आज दोहराना नहीं चाहता हूं, लेकिन सिर्फ इतना कहूंगा कि कॉर्पोरेट क्षेत्र को पिछड़े वर्गों, विकलांगताओं से प्रभावित लोगों और महिलाओं के लिए अवसर उपलब्ध कराने से संबंधित हमारी कार्य योजनाओं को समर्थन देने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। निजी क्षेत्र को अनुसंधान और विकास, शिक्षा और कौशल विकास, स्वास्थ्य तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में भी और अधिक भूमिका निभानी चाहिए।
मैंने हमेशा भारत के कारोबारियों की उद्यमशीलता की प्रशंसा की है। सदियों से हमारा उप-महाद्वीप शिक्षकों और व्यापारियों, शिल्पियों और किसानों, सम्पदा और ज्ञान के सर्जकों की भूमि रहा है। भारतीय उद्यम सही तौर पर अपना सर ऊंचा रख सकते हैं और अपनी उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं। हमारी सरकार देश की अर्थ व्यवस्था की छुपी हुई विकास क्षमता का उपयोग करने में उद्योग जगत की हस्तियों के साथ मिलकर काम करेगी।
आपकी एसोसिएशन फिक्की को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि आप के पास श्री राजू कनोरिया जैसे प्रतिभाशाली देश भक्त नेता हैं। मैं श्री कनोरिया को पिछले एक वर्ष में फिक्की को उत्कृष्ट नेतृत्व प्रदान करने के लिए बधाई देता हूं। उन्होंने बहुत ही अद्भुत काम किया है और समय – समय पर हमारी सरकार को भी अपना मूल्यवान परामर्श और समर्थन दिया है। हमारे नीति संबंधी प्रयासों को उन्होंने जो नि:संकोच समर्थन दिया है, उससे मैं उत्साहित हूं।
मुझे यह भी जानकारी मिली है कि पहली बार फिक्की की अध्यक्ष एक महिला बनने वाली है। इस वार्षिक आम बैठक के बाद श्रीमती नैना लाल किदवई फिक्की का अध्यक्ष पद संभालेंगी। वे हमारे देश में अनेक युवा महिलाओं के लिए एक आदर्श रही हैं और इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए वे महिलाएं उनसे प्रेरणा लेती रही हैं। मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्ष में वे फिक्की के कार्यकलापों को आगे बढ़ाएंगी।
जहां तक मेरी बात है, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि हमारी सरकार भारतीय उद्यमों को और सभी लोगों, श्रमिकों तथा समाज के अन्य वर्गों की भलाई को बढ़ावा देने के लिए अपना पूरा प्रयास करेगी। हम उद्योगों और श्रमिकों के साथ एक नये सामाजिक समझौते के लिए वचनबद्ध हैं। देश यही उम्मीद रखता है और इसी के लिए मैं अपनी सरकार की प्रतिबद्धता का वचन देता हूं।
अपना भाषण समाप्त करने से पहले मैं आप सब को एक खुशहाल और एक उद्देश्यपूर्ण नये वर्ष की शुभकामनाएं देता हूं।’’