प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा
प्रबंधित कराई गई सामग्री
राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र
द्वारा निर्मित एंव संचालित वेबसाइट
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के स्वर्ण जयंती दीक्षांत समारोह में प्रधानमंत्री के भाषण का विवरण इस प्रकार है:-
मुझे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, के स्वर्ण जयंती दीक्षांत समारोह में आकर बहुत प्रसन्नता हुई है।
दीक्षांत समारोह आम तौर पर स्नातक छात्रों की सफलता को मनाने का अवसर होते हैं। मैं उन सभी छात्रों को बधाई देता हूं, जिन्होंने आज डिग्रियां प्राप्त की हैं और उन्हें विशेष रूप से बधाई देता हूं, जिन्होंने पदक और पुरस्कार प्राप्त किये हैं। मुझे विश्वास है कि सभी नये स्नातक, जिन्होंने इस उत्कृष्ट संस्था से जो ज्ञान और कौशल प्राप्त किया है, वे उसका उपयोग समाज और देश के हित में करेंगे।
विश्वविद्यालय ने आज मुझे जो डिग्री प्रदान की है, मैं उसके लिए भी विश्ववि़द्यालय का आभार प्रकट करता हूं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के शुरू के वर्षों से ही, जिस समय देश में अनाज की कमी थी, देश में कृषि के विकास में बहुत योगदान दिया है। नई कृषि प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों को विकसित करने में विश्वविद्यालय अग्रणी रहा है। यह पंजाब के प्रगतिशील किसानों की कड़ी मेहनत और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का उत्कृष्ट कार्य था, जिससे देश में पहली हरित क्रांति आई और देश को खाद्य सुरक्षा मिली।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय मुख्य रूप से पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरो के दूरदर्शी नेतृत्व को जाता है। मैं पंजाब के उस महान सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिसने पंजाब के कृषि और औद्योगिक विकास की नी्ंव रखी।
मैं उन सबको भी बधाई देता हूं, जिनका पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की उपलब्धियों और निरंतर उच्च मानदंडों की स्थापना में योगदान रहा है। यह विश्ववि़द्यालय पहली संस्था थी, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का सर्वश्रेष्ठ संस्था का पुरस्कार मिला था। इसके कई वैज्ञानिक पद्म पुरस्कारों और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार सहित प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्वर्ण जयंती समारोह पिछली उपलब्धियों पर गर्व करने का समारोह तो है ही, इसके साथ ही यह भविष्य के प्रति अपनी योजनाओं पर विचार करने का अवसर भी होना चाहिए। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने पंजाब की कृषि को पूरे देश के लिए गौरवपूर्ण बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है। अब इस विश्वविद्यालय को भविष्य की चुनौतियों का मुकाबला करने के वास्ते पंजाब की कृषि की सहायता के लिए आगे आना है, ताकि पंजाब नई ऊँचाईयों को छू सके। माननीय मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल ने इन चुनौतियों में से कुछ का जिक्र किया है।
भविष्य हमेशा भूतकाल की लीक पर नहीं चलता है। परिस्थितियां बदलती हैं और नई चुनौतियां सामने आती हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम आगे आने वाले भविष्य की चुनौतियों की पहचान करें और इनका मुकाबला करने के लिए अभी से काम करना शुरू कर दें। लगता है, पंजाब की कृषि में कुछ समस्याएं उभर कर सामने आई हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
कृषि के लिए पानी का उपयोग प्ंजाब में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। भूमिगत जल का जितना उपयोग होता है, उसी तेजी से उसकी भरपाई नहीं होती है, जिससे भूमिगत जल का स्तर धीरे-धीरे गिरता जा रहा है। निश्चित रूप से स्थिति को इस तरह नहीं रखा जा सकता। इसी तरह की समस्याएं देश के अन्य भागों में भी हैं। लेकिन पंजाब में यह समस्या बहुत ज्यादा है। यहां 80 प्रतिशत विकास खंड ऐसे हैं, जहां भूमिगत जल का दोहन ज्यादा हुआ है। इस समस्या से निपटने पर पंजाब कृषि के क्षेत्र में एक बार फिर अग्रणी स्थिति में आ सकता है और इसकी उपलब्धि कई अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल बन जायेगी।
चुनौती यह है, कि पानी के उपयोग में निरंतरता बनाये रखने की नीति के साथ कृषि से आमदनी को किस तरह अधिक से अधिक बढ़ाया जाये। निश्चित रूप से इसके लिए धान और गेंहू की फसल के चक्र में परिवर्तन करने की आवश्यकता है, जिनकी प्रदेश में 80 प्रतिशत से ज्यादा फसल होती है। हालांकि धान- गेंहू का फसल चक्र लाभकारी है, लेकिन जैसा कि सरदार प्रकाश सिंह बादल ने कहा, इसमें किसान के लिए कुछ समस्या भी है, क्योंकि भूमिगत जल के जरूरत से ज्यादा दोहन की लागत को मुनाफे की गणना में शामिल नहीं किया गया है।
पंजाब को अपनी धान की खेती के लिए भूमिगत जल का आवश्यकता से अधिक दोहन नहीं करना चाहिए और न ही वह कर सकता है। इसलिए धान की जगह किसी और किस्म की फसल उगाना जरूरी है। यह सौभाग्य की बात है के धीरे-धीरे किये जाने इस परिवर्तन से कुल मिलाकर देश की खाद्य सुरक्षा पर असर नहीं पडेगा, क्योंकि देश के पूर्वी और मध्यवर्ती भागों में धान की फसल की अच्छी संभावनाएं बन रही हैं और आगे आने वाले वर्षों में इन्हें और तेजी से बढाया जा सकता है। असम, बिहार, छत्तीसगढ और उत्तर प्रदेश में धान की मौजूदा पैदावार और वास्तविक क्षमता में 100 प्रतिशत से अधिक का अंतर है।
हमारी सरकार ने वर्ष 2007 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की शुरूआत की थी, जिसका उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाले बीजों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की रियायती दर पर उपलब्धता बढ़ाकर तथा फसल के बेहतर तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करके गेंहू, धान और दालों की पैदावार बढ़ाना था। इन प्रयासों के अच्छे परिणाम आ रहे हैं। इसलिए अनाज उत्पादन के बोझ को पंजाब के अलावा अन्य राज्य भी उठा सकते हैं।
पंजाब की कृषि नीति के अंतर्गत फसल विविधता की ऐसी योजना तैयार की जानी चाहिए, जिससे किसानों को कम से कम आर्थिक कठिनाई हो और उन्हें ऐसी वैकल्पिक फसलें मिलें, जिनसे आमदनी में भी बढ़ोतरी हो। ऐसी वैकल्पिक फसलें हैं, जो धान की जगह ले सकती हैं। जैसा कि मुख्यमंत्री ने बताया, इनमें मक्का, कपास, गन्ना, दालें, तिलहन और विशेष रूप से सोयाबीन, फल और सब्जियां शामिल हैं। इन फसलों की उत्पादकता में सुधार लाने में कृषि अनुसंधान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, ताकि किसान को इन फसलों से ज्यादा मुनाफा मिले। इनमें से कुछ फसलें जल्दी खराब हो जाने वाली हैं। इसलिए फसल उतरने के बाद इन्हें संभाल कर रखने और इनके विपणन की विशेष समस्याएं हैं, जिनका किसान की आमदनी पर असर पड़ता है। भारत में कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला समुचित और कुशल नहीं है, जिससे उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान पहुंचता है। उपभोक्ताओं को चीजों के ऊंचे दाम देने पड़ते हैं, लेकिन इसका फायदा उत्पादकों और किसानों को नहीं मिलता है। इसलिए कृषि में कुशल और समन्वित आपूर्ति श्रृंखलाओं के विकास से इस तरह की कुछ समस्याओं से निपटा जा सकता है, जिनका मैंने जिक्र किया है।
कृषि की दृष्टि से अधिक उन्नत राज्यों में ऐसी आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण की अधिक संभावनाएं हैं और पंजाब इस दिशा में रास्ता दिखा सकता है। जहां पैदावार होती है, वहां पर यानी ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के विकास से फसलों, विशेष रूप से जल्दी खराब होने वाली खाने की चीजों और सब्जियों के नुकसान को कम किया जा सकता है। मेरा सुझाव है कि पंजाब को फसल प्रबंधन तथा खाद्य सुरक्षा तथा स्वच्छता में सुधार की बेहतर प्रणालियों को अपनाकर मिसाल पैदा करनी चाहिए। कृषि उपज विपणन समिति कानून में आवश्यक परिवर्तन करके बाजार व्यवस्था में निवेश को बढ़ाया जा सकता है, जिससे प्रदेश में निजी क्षेत्र के बाजारों का भी विकास होगा।
खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के हमारे फैसले को पंजाब में किसान संगठनों से काफी समर्थन मिला है। कल संसद ने भी इस फैसले को मंजूरी दे दी है। मेरा विचार है कि इससे कृषि उपज की बिक्री व्यवस्था में निवेश को और नई टैक्नोलॉजी को बढावा मिलेगा। मैं समझता हूं कि इसके लिए भारत को खाद्य वस्तुओं के खुदरा व्यापार में बडी आपूर्ति श्रृंखला के संचालन और प्रबंधन के अनुभव तथा आधुनिक टैक्नोलॉजी का पूरा फायदा उठाना चाहिए। मुझे विश्वास है कि इससे हमारे देश के किसानों और उपभोक्ताओं को लाभ होगा।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय को बाजार संबंधी नई चुनौतियों से निपटने के लिए अनुसंधान पर आधारित हल ढूंढने चाहिए। फसलों की ऐसी नई किस्मों को विकसित करने में अनुसंधान बड़ी भूमिका निभा सकता है, जो विभिन्न बाजारों की आवश्यकता के अनुरूप हों और जो बहुत समय तक खराब न होती हों।
जैसे ही हम मुख्य खाद्य फसलों के अलावा अन्य विकल्पों के बारे में सोचेंगे, हमें अपने अनुसंधान प्रयासों को निजी क्षेत्र के साथ प्रभावी ढंग से जोडने की भी आवश्यकता होगी। क्योंकि निजी क्षेत्र बाजार प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होगा, इसलिए बाजार की मांग के अनुसार अनुसंधान की भावी दिशा और रास्ते को तय किया जाना चाहिए।
इस महान विश्वविद्यालय को, बल्कि हमारे सभी कृषि विश्वविद्यालयों को जलवायु परिवर्तन से कृषि को होने वाले खतरे का मुकाबला करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जलवायु परिवर्तन हमारी खाद्य सुरक्षा और हमारे किसानों, विशेष रूप से छोटे और बहुत छोटे किसानों की आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। बार-बार के सूखे और वर्षा की कमी से बिना सिंचाई वाले क्षेत्रों में कृषि पैदावार बहुत कम हो जाती है, क्योंकि खेती कम इलाके में होती है और इससे उत्पादकता भी कम हो जाती है। बढ़ती गर्मी का भी कृषि उत्पादकता पर और विशेष रूप से गेंहू की मौजूदा किस्मों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हमें इन प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए अपनी अनुसंधान क्षमताओं से विपरीत जलवायु परिस्थितियों का मुकाबला कर सकने वाली किस्मों को विकसित करना होगा। यह जानते हुए कि अनुसंधान शुरू करने और प्रमाणित किस्मों को जारी करने के बीच काफी समय लगता है, हमें सामने क्षितिज पर दिखाई देने वाले संभावित खतरों का मुकाबला करने के लिए अभी से कुछ करना होगा। पंजाब कृषि विश्ववि़द्यालय को इस क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान करना चाहिए। जैसा कि राज्यपाल श्री शिवराज पाटिल ने कहा है, नमी और गर्मी का प्रतिरोध कर सकने वाली किस्म को विकसित करने में सहायक तत्वों (जीन्स) की पहचान करने और इनका उपयोग करने में आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकी भविष्य में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। जैव-प्रौद्योगिकी को लेकर अक्सर सुरक्षा संबंधी चिंतायें वयक्त की जाती हैं। इनका वैज्ञानिक तरीके से मुकाबला करना होगा। लेकिन मुझे विश्वास है कि स्वास्थ्य संबंधी सभी उचित चिंताओं का निवारण हो सकता है और यह किया जाना चाहिए। हम इस संबंध में बेहतर नियामक व्यवस्था लाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिससे हमारे अनुसंधान वैज्ञानिक ऐसी प्रौद्योगिकी को विकसित कर सकेंगे, जिनके किसानों के लिए लाभकारी परिणाम निकलेंगे। देश के लिए और विशेष रूप से पंजाब के लिए कृषि अनुसंधान की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। बारहरवीं पंचवर्षीय योजना में हम कृषि अनुसंधान में होने वाले खर्च को बढाकर कृषि सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत तक करना चाहते हैं, जो ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 0.65 प्रतिशत है।
अब तक मैंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के बारे में बात की है कि विश्वविद्यालय क्या कर सकता है और इसे क्या करना चाहिए, जिससे कि राज्य में कृषि को मजबूती मिले। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पंजाब कृषि में अग्रणी रहने के साथ-साथ गैर- कृषि क्षेत्र के विकास में अनदेखी नहीं कर सकता, विशेष रूप से विनिर्माण के क्षेत्र के विकास को नजरअंदाज नहीं कर सकता। पंजाब का युवा कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार के उपयोगी अवसर ढूंढना चाहेगा। इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि युवाओं के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर हों। इसे प्राप्त करने का एक तरीका यह है कि पंजाब का कृषि क्षेत्र फसल कटार्इ के बाद के कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों से संबद्ध हो।
लघु उद्योग क्षेत्र में पंजाब की अच्छी साख है। पंजाब के कामगार परिश्रमी हैं और मौजूदा प्रौद्योगिकियों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप ढाल कर नई-नई तकनीकें विकसित करने में यहां के उद्योग माहिर हैं। केंद्र सरकार ने निवेश के फैसलों में उदारीकरण के लिए कदम उठाये हैं, जिसके परिणाम स्वरूप राज्य सरकारें देश के अन्य भागों से या विदेशों से निवेश आकर्षित करने के लिए आपस में स्पर्धा कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि पंजाब सरकार इस अवसर का पूरा फायदा उठायेगी और दिखायेगी कि इस राष्ट्रीय प्रयास में वह किसी से पीछे नहीं है।
इस संदर्भ में पंजाब कई तरह से लाभ की स्थिति में है। पंजाब प्रमुख राष्ट्रीय नेटवर्क और सड़क नेटवर्क से बहुत अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण के समर्पित माल ढुलाई कॉरीडोर का पंजाब तक विस्तार है। इससे माल ढुलाई की बेहतर कनेक्टिविटी पंजाब को हासिल होगी। पंजाब की सड़क कनेक्टिविटी भी बहुत अच्छी है और राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम से यह और भी बेहतर हो रही है। जहां तक बिजली आपूर्ति की बात है, पंजाब हमेशा बेहतर स्थिति में रहा है। जिन दो क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, वे हैं- शिक्षा और कौशल विकास। पंजाब के युवाओं को यदि समुचित शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण मिले, तो निवेशकों को बहुत ही उपयोगी और कुशल कामगार मिल जायेंगे।
बारहवीं योजना में देश में सकल घरेलू उत्पाद में औसतन 8.2 प्रतिशत विकास दर का और कृषि में 4 प्रतिशत विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि पंजाब इन दोनों क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन की कोशिश करेगा। मेरे विचार में राज्य सरकार, प्रदेश के किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और उद्यमियों को अपने ज्ञान, बुद्धि और अनुभव का संयोजन करके इस उपलब्धि को संभव बनाना होगा। मैं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, कर्मचारियों और छात्रों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं कि वे आगे आने वाले वर्षों में राज्य की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में और अधिक सक्रिय भूमिका निभायें।