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नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त कमांडर सम्मेलन को आज प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संबोधित किया। उनके संबोधन के मूल पाठ का हिन्दी रूपांतरण नीचे दिया जा रहा है -
''हमारे सशस्त्र बलों के नेताओं के इस वार्षिक सम्मेलन को एक बार फिर संबोधित करने में मुझे बहुत खुशी हो रही है। भारत वर्दीधारी पुरुषों, महिलाओं और अधिकारियों की उपलब्धियों पर गर्व करता है। चाहे वह गोलियों का सामना करना हो या राहत और बचाव गतिविधियों में नागरिक प्रशासन की मदद करना हो, हमारे सशस्त्र बलों ने हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन किया है और पूरे समर्पण के साथ अपना काम किया है। उनकी बहादुरी और उनके बलिदान के प्रति राष्ट्र हमेशा उनका ऋणी रहेगा।
जब हम पिछली बार मिले थे उस वक्त से लेकर अब तक भारत को बाहरी मोर्चे पर लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। विश्व आर्थिक संकट से उबरने में कामयाब नहीं हो पाया है। यूरोपीय और एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में अनिश्चितता और कमजोरी लगातार बनी हुई है, जिसने विकास की राह में बाधा पैदा कर दी है। इसके कारण भारत को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। भारत के विकास में बाधा आई, निर्यात कम हुए और घाटे में इजाफा हुआ।
सीमापार आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय अपराध और नशीले पदार्थों की तस्करी सहित भारत के सामने जो रक्षा चुनौतियां हैं, वे गंभीर बनी हुई हैं। इसमें अब नई चुनौतियां जुड़ गयी हैं, जैसे समुद्री और साइबर-आकाशीय चुनौतियां। भारत हमेशा अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और विकास के लिए हमेशा मजबूती के साथ प्रयास करता रहा है ताकि हमारे क्षेत्र में और अन्य जगहों पर स्थिरता कायम हो सके। हमारे देश का आकार, हमारी प्रौद्योगिक क्षमताएं और एक जिम्मेदार देश होने के नाते हम अपनी पूरी क्षमता के साथ मौजूदा तथा आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए क्षेत्रीय व पूरी दुनिया के प्रयासों में योगदान कर रहे हैं।
राजनीतिक क्षेत्र में भी हमारे पड़ोस में जटिलता और अस्थिरता बनी हुई है। हमारे चारों तरफ मौजूद विभिन्न देशों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्थाओं में उतार-चढ़ाव कायम है।
हम उस समय तक शांति के साथ विकास नहीं कर सकते जब तक हमारे पड़ोसी देश गरीबी, तनाव और पिछड़ेपन से संघर्ष करते रहेंगे। इसलिए हमारी विदेश नीति इस बात पर गौर देती है कि हम अपने पड़ोसियों के साथ मित्रता और सहयोग का संबंध बनाएं। हम दक्षिण एशिया और अपने पड़ोस में अधिक संपर्क बढ़ाने पर ध्यान देंगे ताकि माल, सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी के आवागमन को प्रोत्साहित किया जा सके। हम इस क्षेत्र में विकास की प्रेरणा बन सकते हैं। हमारी सेनाएं हमारे राजनयिक प्रयासों का अटूट अंग हैं और मैं उनसे उम्मीद करता हूं कि वे इस राष्ट्रीय प्रयास में संपूर्ण और प्रभावी भूमिका निभाएंगी।
हमारा समीपवर्ती भू-सामरिक वातावरण ऐसा है कि उसमें पारंपरिक, सामरिक और गैर-पारंपरिक रक्षा चुनौतियां सन्निहित हैं। भारत का सामरिक दायरा अदन की खाड़ी से आगे बढ़कर मलाक्का जलडमरूमध्य तक फैल चुका है। अभी हाल में हमने देखा कि ये क्षेत्र एक बार फिर नए टकरावों का केन्द्र बन गए हैं।
हमने हमेशा यह कहा है कि सारे मुद्दों का हल बातचीत के जरिए शांतिपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए। जहां कहीं भी जरूरी हो, वहां अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) और संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुस्तरीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
जब हम बाहरी और रक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयारी करें तो उस समय हमें अपनी राष्ट्रीय ताकत को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। हमारी राष्ट्रीय ताकत उसी समय बढ़ेगी जब हम अपनी गंभीर घरेलू समस्याओं को हल कर लेंगे। हमारे नागरिकों की क्षमता असीमित है। उसे बढ़ाने के लिए हमें अपने नागरिकों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा, बेहतर शिक्षा, बेहतर रोजगार और भरोसेमंद संरचना प्रदान करेंगे। ऐसा करने के लिए जिन संसाधनों की हमें जरूरत है, वे उसे समय पैदा हो सकते हैं जब हम आर्थिक विकास की गति आज की तुलना में और तेज करें।
हर साल हमारी श्रम शक्ति में एक करोड़ से अधिक लोगों का इजाफा होता है। उनके लिए नए रोजगार अवसर पैदा करने के लिए यह जरूरी है कि हम अपनी विकास दर को 8 प्रतिशत प्रति वर्ष करें। अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक वातावरण को देखते हुए, यह कोई आसान काम नहीं है। बहरहाल, अगर हम 3 वर्षों के पहले की तरह अपनी निवेश दर 37-38 प्रतिशत बढ़ाने के लिए जमकर कोशिश करें तो हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
हमें ऐसा वातावरण भी बनाना होगा जो निवेश और बचत दरों के लिए मददगार साबित होगा। इस नजरिए से हमें बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके साथ ही हमें अंदरूनी सुरक्षा के वातावरण को सुधारना होगा और सांप्रदायिक सौहार्द सुनिश्चित करना होगा तथा आतंकवाद, विद्रोह और वामपंथी उग्रवाद जैसी ताकतों पर काबू पाना होगा। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमारी सरकार की प्रतिबद्धता बनी हुई है।
जैसे-जैसे भारत का विकास होगा तो उस विकास को सुरक्षित बनाने के लिए हमारी जिम्मेदारियां भी बढ़ेंगी। मिसाल के लिए जब हमारा निर्यात बढ़ रहा है और उसकी मंजिलें भी बढ़ रही हैं तो उस समय हमें समुद्री डाकुओं जैसे खतरों से निपटने के भी उपाय करने पड़ेंगे। हमारी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और अन्य स्थानों पर मौजूद महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए यह जरूरी है कि हम अपने जल मार्गों की रक्षा करें। दूसरे देशों में रहने वाले भारतवंशी और हमारे विदेशी निवेश पूरी दुनिया में मौजूद हैं। उन्हें भी उनकी देखभाल के लिए आश्वस्त करना जरूरी होगा। इसलिए हमारी राष्ट्रीय शक्ति के लिए सुरक्षा अति आवश्यक है। सेनाएं हमारे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए उन्हें अपने आप को लैस करना होगा।
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एकजुटता, कौशल, प्रशिक्षण, सिद्धांत, रणनीतियों, सहमति से निर्णय लेने की समेकित संरचना और हथियार संबंधी मुद्दों को हल करने की भी जरूरत है। इसके लिए घरेलू अनुसंधान और उत्पादन क्षमताओं का समर्थन जरूरी है। इन मुद्दों के लिए सकारात्मक बहस की आवश्यकता है, जिसमें हमारे सामरिक विकल्प ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में क्षमताओं को बढ़ाना भी शामिल है।
कमांडर होने के नाते आप सब यह जानते हैं कि जटिलताएं बढ़ रही हैं, उनका सामना मिलकर ही किया जा सकता है। हमें अलग-अलग दृष्टिकोण को छोड़कर पूरी सेनाओं में एकरूपता विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने से हमारी तैयारी में विलम्ब होगा और उसका प्रभाव कम हो जाएगा।
खासतौर से हमें इस बात की जरूरत है कि हम उभरने वाले साइबर और आकाशीय क्षेत्रों में अपनी क्षमता बढ़ाएं। ये क्षेत्र नए खतरों का केन्द्र बन सकते हैं। इसलिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और ऐसा नजरिया पैदा करना होगा जिससे इन क्षमताओं का बेहतर नतीजा निकल सके। मैं उम्मीद करता हूं कि हमारे कमांडर इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे और अपने को केवल भौतिक क्षमताओं तक सीमित नहीं रखेंगे।
हमारे सुरक्षा अनुसंधान, उत्पादन और आवश्यक बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण तथा उन्हें घरेलू स्तर पर मजबूत करने का इरादा हमारी तैयारी से जुड़ा हुआ है। हमारी अभिग्रहण प्रक्रियाओं को दुनियाभर में चलने वाली संबंधित प्रक्रियाओं से परिचित होना चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों और हथियार बनाने वाले कारखानों के लिए भी यह जरूरी है कि वे नई प्रौद्योगिकियां अपनाएं तथा अपनी क्षमताएं बढ़ाएं। उन्हें यह भी सीखना होगा कि बदलती जरूरतों से निपटने के लिए और अपने उत्पादों को इस्तेमाल करने वालों का भरोसा बढ़ाने के लिए कैसे तुरंत काम किया जाता है।
सौभाग्य से भारतीय निजी क्षेत्र इस स्थिति में आ गया है कि वह रक्षा औद्योगिक आधार में योगदान कर सकता है। उसे राष्ट्र के हित में लगाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो समय और उत्पादों के महंगा होने के प्रति उपयोगकर्ताओं का असंतोष बढ़ेगा और प्रौद्योगिकियां पुरानी होती जाएंगी।
मैंने जिन मुद्दों का उल्लेख किया है उन पर एक बड़ी बहस और तहकीकात होनी चाहिए। जैसा कि आपको मालूम होगा कि रक्षा संरचनाओं और फैसले लेने की प्रक्रियाओं पर श्री नरेश चंद्रा के नेतृत्व में गठित कार्यबल के अलावा हमने श्री रवीन्द्र गुप्ता के नेतृत्व में गठित एक अन्य कार्यबल से आग्रह किया था कि वह रक्षा आधुनिकीकरण और आत्म निर्भरता जैसे मुद्दों पर विचार करें। दोनों कार्यबलों की रिपोर्टें आ गयी हैं और मैं समझता हूं कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण तथा प्रासंगिक सिफारिशें की हैं। ये हमारे राष्ट्रीय हित में जरूरी होगा कि हम उनकी सिफारिशों पर जल्द सहमति दें।
कमांडरों के इस मंच पर मुझे यह बताने की जरूरत नहीं है कि नेतृत्व एक ऐसा पारस-पत्थर है जिसके स्पर्श से किसी भी तनाव के नतीजे निर्धारित होंगे और ऐसे परिणाम मिलेंगे, जिन्हें हम प्राप्त कर सकते हैं। इस संबंध में तकनीकी उत्कृष्टता और कार्यक्षेत्र का ज्ञान जरूरी है। इसी तरह नेता होने के नाते आपका यह काम है कि आप और नेता तैयार करें। मुझे यकीन है कि इस पहलू पर समुचित विचार किया जाएगा और आप नेतृत्व की नई पीढ़ी तैयार करने में पूरा ध्यान लगाएंगे।
अंत में मैं इस बात पर दोबारा जोर देना चाहता हूं कि भारतीय सशस्त्र बलों की कर्मठता, सामर्थ्य और कर्तव्य निष्ठा के प्रति राष्ट्र को पूरा भरोसा है। यह राष्ट्र का सौभाग्य है, उसे आप जैसे सैन्य नेता मिले हैं। मैं आपकी चर्चाओं के सफल होने की कामना करता हूं।''