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प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने हैदराबाद में आज जैव विविधता सम्मेलन के 11वें संबद्ध पक्षों के उच्च स्तरीय खंड के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि वे हैदराबाद के इस ऐतिहासिक शहर में सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए खुश हैं। जैव विविधता पर संबद्ध पक्षों के सम्मेलन की मेजबानी का वास्तव में उसे विशेषाधिकार प्राप्त हुआ है। पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता दशक आरंभ किए जाने के बाद से यह इस तरह का पहला सम्मेलन है। प्रधानमंत्री ने कहा कि संबद्ध पक्षों का 11वां सम्मेलन एक महत्वपूर्ण समय में आयोजित किया जा रहा है। यह रियो द जनेरियो में हुए पृथ्वी शिखर सम्मेलन की 20वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित हो रहा है जब पूरी दुनिया ने एकजुट होकर कई दूरगामी दस्तावेज अपनाया था, जिसमें दो वैधानिक रूप से बाध्यकारी करार शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि पर्यावरण के मुद्दों पर आज मतैक्य प्राप्त करना लगातार दुष्कर होता जा रहा है। यह वास्तव में यह देखते हुए दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज पर्यावरण के खतरों और चिंताओं के प्रति अधिक वैश्विक जागरूकता है। उन्होंने कहा कि इसी जागरूकता के कारण मौजूदा आर्थिक मंदी के बावजूद हमें इस दिशा में और अधिक कार्रवाई के लिए प्रेरित होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे इस बात से खुश हैं कि जैव विविधता के बारे में वार्ता में उल्लेखनीय सफलता मिली है। भारत ने हाल ही में नागोया प्रोटोकॉल की पुष्टि की है और इसके प्रति प्रतिबद्धता को औपचारिक रूप दिया है। उन्होंने सभी संबद्ध पक्षों से ऐसा करने का आग्रह किया और कहा कि इसमें और अधिक देरी नहीं की जा सकती। प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक प्रयासों के बावजूद 2010 में तय किए गए जैव विविधता के लक्ष्य को पूरी तरह हासिल नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा आवश्यक वित्तीय, तकनीकी और मानव संसाधन जुटाने का है जिसमें विशेष तौर पर उष्मायन, साझा करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करना है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में जैव विविधता की संरक्षा और संवर्धन हमेशा ही लोकाचार और सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रहा है। उन्होंने कहा कि कृषि और चिकित्सा की हमारी पारंपरिक प्रणालियां पौधे और पशु जैव विविधता पर निर्भर करती हैं और यह हमारे लिए सर्वोपरि महत्व के विषय हैं। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में इस बात की चिंता उत्पन्न हुई है कि यह जन ज्ञान आधुनिक बौद्धिक संपदा व्यवस्था के कारण इस्तेमाल के स्तर पर निषिद्ध हो सकता है। भारत ने पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण के लिए पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी के गठन का विशिष्ट दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की है। इस डाटाबेस में पांच अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में 3 करोड़ 40 लाख सूचना पृष्ठ शामिल हैं जो पेटेंट परीक्षकों के लिए आसानी से उपलब्ध हैं। यह लाइब्रेरी आयुर्वेद जैसे संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान व्यवस्था के संरक्षण के मुद्दे पर नागोया प्रोटोकॉल के उद्देश्यों का संवर्धन करता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने नीम के इस्तेमाल तथा हल्दी के चिकित्सा गुण के यूरोप में पेटेंट कराने की वजह से अपना ज्ञान डाटाबेस तैयार करने का निर्णय लिया। इसके बाद इस डाटाबेस की वजह से जैव चोरी के एक हजार से अधिक मामलों का पता लगा और पेटेंट कार्यालयों द्वारा 105 अधिक दावे वापस लिए गए या रद्द कर दिए गए। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत को विश्वास है कि पारंपरिक ज्ञान का भंडार संपूर्ण मानव जाति के लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए ना कि निजी फायदे के लिए। उन्होंने कहा कि हम इस ज्ञान को दर्ज करने के लिए, इसके विज्ञान का आदर करने और उसके संरक्षकों को लाभ प्रदान करने के लिए अपनी संस्थाओं को मजबूत करने का प्रयास जारी रखेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय किसान हमेशा बीज के मुफ्त उपयोग की बात मान कर काम करते रहे हैं। पौधों की किस्मों का संरक्षण और भारत के किसानों के अधिकार अधिनियम ने बीज की किस्मों के पंजीकरण के जरिए किसानों को बौद्धिक संपत्ति का अधिकार प्रदान किया है। हमारे पेटेंट अधिनियम ने जैव विविधता पर आधारित आविष्कार के मूल के प्रकटीकरण की आवश्यकताओं को अपनाया है लेकिन इस दिशा में अभी और बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के सामने खाद्य समस्या एक प्रमुख चुनौती है, विशेष तौर पर तेजी से हो रहे जलवायु परिर्वतन के दौर में। उन्होंने कहा कि हमारे वनों और खेतों में पाए जाने वाली जैव विविधता भविष्य के लिए इसका हल प्रदान करने की कुंजी बन सकती है, इसलिए हमें फसलों की पारंपरिक किस्मों को संरक्षित करने के लिए आंदोलन के स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि घनी आबादी वाले भारत में भूमि पर दबाव के बावजूद 6 सौ संरक्षित क्षेत्र हैं जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5 प्रतिशत हैं। इनमें राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य और संरक्षण भंडार का नेटवर्क शामिल है। उन्होंने कहा कि बाघों तथा हाथियों जैसे उच्च लुप्त प्राय प्रजातियों के लिए हमारे विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। 2010 में बाघों के राष्ट्रीय स्तर के आकलन में बढ़ोत्तरी दर्शाई गयी है और 2006 के 1411 की उनकी संख्या के स्थान पर अब अनुमानित संख्या 1706 हो गयी है। लुप्त प्राय 16 प्रजातियों को फिर से पाने की पहल आरंभ कर दी गयी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि समावेशी संरक्षण के नए प्रारूप की चुनौती पर काम चल रहा है। भारत में वन्य अधिकार अधिनियम बनाया गया है जो वनों में रहने वाले लोगों को कानूनी अधिकार प्रदान करता है जो प्राय: जैव विविधता के प्रति प्रेम रखते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि मछुआरों की आजीविका के मुद्दों पर भी इसी तरह का रुख अनाया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सम्मेलन में उन्हें हैदराबाद शपथ आरंभ करने की घोषणा करते हुए उन्हें हर्ष हो रहा है। भारत सरकार ने जैव विविधता सम्मेलन में संबद्ध पक्षों की अध्यक्षता करते हुए 50 मिलियन डॉलर प्रदान करने की घोषणा की है ताकि भारत में जैव विविधता संरक्षण को संस्थागत व्यवस्था के रूप में मजबूत किया जा सके।