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प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज यहाँ योजना आयोग की पूर्ण बैठक को संबोधित किया। बैठक में प्रधानमंत्री के उद्घाटन भाषण के मूल पाठ का अनुवाद निम्नानुसार है:-
मैं 12वीं पंचवर्षीय योजना के प्रारूप पर विचार करने के लिए आयोजित इस बैठक में आपका स्वागत करता हूं।
हमने 11वीं योजना कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियों के साथ पूरी की। अर्थव्यवस्था औसतन 7.9 प्रतिशत की वार्षिक दर पर बढ़ी। यह उस अवधि के लिए सराहनीय है, जिसमें विश्व दो संकटों - पहला 2008 में और दूसरा 2011 में से गुजरा।
गरीबी में 2004-05 और 2009-10 अवधि के दौरान पिछले दस वर्षों की तुलना में दुगुनी गिरावट आई।
कृषि के क्षेत्र में 11वीं योजना में 3.3 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हुई, जबकि दसवीं योजना में 2.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।
यह सकारात्मक विशेषताएं हैं। तथापि, हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि 12वीं योजना एक ऐसे वर्ष में शुरू हो रही है जब विश्व की अर्थव्यवस्था कठिनाइयों के दौर से गुजर रही है और हमारी अर्थव्यवस्था में भी मंदी आई है।
ये अल्पकालिक समस्याएं एक चुनौती हैं, लेकिन इनसे हमें अपने मध्यावधि प्रस्तावों के बारे में अनावश्यक निराश नहीं होना चाहिए।
अर्थव्यवस्था काफी सुदृढ़ हुई है। हमारी तत्काल प्राथमिकता चालू वर्ष के उत्तरार्द्ध में प्रतिघात की योजना बनाने की होनी चाहिए। उसके बाद हमें योजनावधि के अंत तक लगभग नौ प्रतिशत तक विकास दर प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
इससे 12वीं योजना के अंत तक लगभग 8.2 प्रतिशत की विकास दर के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकेगा। यह मूल रूप से प्रायोजित 9 प्रतिशत से निःसंदेह कम है, लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए कुछ नीचे की ओर संशोधित करना वास्तविकता होगी।
जैसा कि योजना दस्तावेज में कहा गया है, हमारा उद्देश्य सकल घरेलू उत्पाद का मात्र विकास करना नहीं है, बल्कि ऐसा विकास प्राप्त करना है जो समावेशी और टिकाऊ भी हो। सभी, अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को विकास प्रक्रिया में पूरी तरह भाग लेना चाहिए। इस उपलब्धि को सुनिश्चित करने के लिए योजना में अनेक तत्वों को शामिल किया गया है।
तत्काल कार्यवाही के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र अवसंरचना संबंधी परियोजनाओं को लागू करने की गति को तेज़ करना है। यह आपूर्ति संबंधी उन बाधाओं को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है जो अन्य क्षेत्रों के विकास में रूकावट डालती हैं। यह कुल मिलाकर निवेश की दर बढ़ाने के लिए निवेशकों की भावना को भी प्रोत्साहित करेगी।
अवसंरचना मंत्रालयों को 12वीं योजना के लिए अपने क्षेत्रों के आदर्शपूर्ण लक्ष्य तय करने चाहिए। हमें अवसंरचना में एक ट्रिलियन डॉलर के आसपास निवेश की आवश्यकता है और इसे प्राप्त करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी।
मैं स्वयं पहले छह महीने के अंत में लक्ष्यों के साथ अवसंरचना मंत्रालयों के निष्पादन की तुलना करूंगा। मैं आशा करता हूं कि इस समीक्षा से हम बेहतर कार्यान्वयन के लिए एक एजेंडा तैयार कर सकेंगे।
दीर्घकालिक नीतिगत एजेंडे के लिए योजना में तीन बड़े घटक होने चाहिए।
पहला घटक विशिष्ट क्षेत्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के सरकारी कार्यक्रम है। योजना में समावेशी प्रक्रियाओं को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से स्वास्थ्य, शिक्षा, जल संसाधन प्रबंधन, अवसंरचना विकास आदि के कई आदर्शपूर्ण कार्यक्रम शामिल हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन हैं।
इन कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित किये जा रहे हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए हमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि वास्तव में ये कार्यक्रम विशेषकर अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और कमजोर वर्गो को लाभ भी पहुंचा रहे हैं। चतुर्वेदी समिति द्वारा केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में सुझाए गये कुछ परिवर्तन इन योजनाओं की प्रभावशीलता बढ़ाने में सहायक होंगे।
दूसरा घटक वृहत् आर्थिक संतुलनों से संबंधित है। हमें 8.2 प्रतिशत विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था में निवेश को फिर से ताजा करने की आवश्यकता है। इसलिए निवेश का वातावरण पैदा करना महत्वपूर्ण है।
हमारा वित्तीय घाटा बहुत बड़ा है और इसके बारे में विश्लेषक विपरीत टिप्पणियां कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था में उत्पादक निवेश के लिए घरेलू संसाधनों को मध्यावधि तक लाया जाना चाहिए।
निर्यात संभावनाओं के अधिक उत्साहवर्धक न होने के कारण योजना में सकल घरेलू उत्पाद का मौजूदा लेखा घाटा 2.9 प्रतिशत दिखाया गया है। इसे मुख्य रूप से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और विदेशी संस्थागत निवेश से वित्त पोषित किया जाना चाहिए, ताकि विदेशी ऋण पर निर्भरता को सीमित किया जा सके। मेरा विश्वास है कि हमें इससे हमारी आवश्यकतानुसार धन प्राप्त हो सकता है बशर्ते कि हमारा वित्तीय घाटा नियंत्रण में आता दिखाई दे और विकास की गति फिर बढ़ सके।
योजना का तीसरे घटक में कुछ ऐसी स्कीमें हैं जो एकल क्षेत्रों में निष्पादन बढ़ा सकती हैं। इस क्षेत्र की कुछ मुख्य प्राथमिकताएं इस प्रकार हें:-
· स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास ऐसे मुख्य क्षेत्र हैं जो मानव क्षमता बढ़ाते हैं और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लक्ष्य को प्राप्त करने में बड़ा योगदान कर सकते हैं। इन्हें 12वीं योजना में उच्च प्राथमिकता दी गई है।
· कृषि विकास को लगभग चार प्रतिशत तक बढ़ाया जाना चाहिए।
· विनिर्माण मौजूदा स्थित से अधिक तेजी से बढ़ना चाहिए ताकि हमारी आवश्यकतानुसार रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।
· अवसंरचना विकास महत्वपूर्ण है। इसके लिए सार्वजनिक निवेश और लोक तथा निजी भागीदारी के संयोजन की आवश्यकता है।
· ऊर्जा एक जटिल क्षेत्र है जहां हमारी नीति की व्यापक समीक्षा करने की आवश्यकता है। हमारे पास ऊर्जा की कमी है और आयात निर्भरता बढ़ती जा रही है। हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम घरेलू उत्पादन बढ़ाये और ऊर्जा की किफायत भी करें। इसी प्रकार ऊर्जा का युक्तिसंगत मूल्य निर्धारण भी महत्वपूर्ण है। ऊर्जा संबंधी हमारी कीमतें विश्व की कीमतों से मेल नहीं खातीं। डीजल की कीमतों में हाल में की गई वृद्धि सही दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
· जल एक अन्य क्षेत्र हैं जहां किल्लत की समस्याएं हैं और आने वाले वर्षों में इस संसाधन के कारगर प्रबंधन की चुनौतियों के बढ़ने की संभावना है।
· शहरीकरण अन्य चुनौती है जिसका हमें समाधान करना चाहिए।
योजना का मुख्य संदेश है कि हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं बशर्तें कि हम ऐसी नीतियां अपनाएं जो हमारी कमजोरियों को दूर कर सकें। योजना में पहली बार वैकल्पिक परिदृश्यों को शामिल किया गया है।
प्रथम परिदृश्य का नाम है– सुदृढ़ समावेशी विकास। इसमें बताया गया है कि यदि योजना में बताये गये नीतिगत कार्यों को पर्याप्त रूप से लागू किया जाता है तो उससे क्या संभव है। इससे विभिन्न चक्रों द्वारा काम करना शुरू करने की अपेक्षा कर सकते हैं, जिनसे विकास और समावेश के सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यह ऐसा परिदृश्य है जिस पर हमें पूरा ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
दूसरे परिदृश्य का नाम है – अपर्याप्त कार्यवाही। यह आंशिक कार्यवाही की स्थिति बताता है, जिसमें कार्यवाही पूरी तरह नहीं की गई। इससे प्रथम परिदृश्य में विकास को बढ़ाने वाले पवित्र चक्र काम नहीं करेंगे और विकास धीरे-धीरे कम होकर 6 से 6.5 प्रतिशत रह सकता है। समावेशिता पर भी विपरीत असर पड़ सकता है। यदि हम दिल से प्रयास न करें और कार्यवाही में कमी रखें तो इसके यही परिणाम निकलेंगे। मेरी पूरी आशा है कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।
तृतीय परिदृश्य का नाम है – नीतिगत कठिनाई। इससे ऐसी स्थिति का पता चलता है जहां किसी न किसी कारण से प्रथम परिदृश्य के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक अधिकांश नीतियों पर कार्यवाही नहीं की गई। यदि यह स्थ्िाति लंबे समय तक जारी रहती है तो दुष्ट चक्र आने शुरू हो सकते हैं और विकास आसानी से गिरकर लगभग पांच प्रतिशत वार्षिक हो सकता है। इसका समावेश पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए मैं देश के भविष्य में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति से आग्रह करता हूं कि वे इस परिदृश्य के परिणामों को पूरी तरह समझें। वे इस बात को जल्दी महसूस करने लगेंगे कि भारत के लोग इससे बेहतर के अधिकारी हैं।
मेरा विश्वास है कि हम प्रथम परिदृश्य को प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए साहस और कुछ जोखिम उठाने पड़ेंगे, लेकिन हमारा प्रयास सफलता सुनिश्चित करना होना चाहिए। देश इससे कम का अधिकारी नहीं है।