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थ्रिशुर में केरल कलामंडलम में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा दिये गये भाषण का विवरण निम्नलिखित है:-
आज आप लोगों के बीच होने के कारण मुझे बेहद खुशी है। मैं केरल कलामंडलम और इस संस्थान से जुड़े सभी लोगों को इस सुंदर राज्य की समृद्ध और असाधारण संस्कृति को प्रोत्साहित करने वाले श्रेष्ठ कार्य के लिए बधाई देता हूँ।
सदियों से विशाल प्रभावों के संयोग से केरल की मिश्रित और विविधतापूर्ण संस्कृति और परिष्कृत हुई है। प्राचीन काल से इस भाग्यवान धरती के प्रति पर्यटक और प्रवासी आकर्षित होते रहे हैं जिन्होंने इस महान संस्कृति के विकास के लिए अपना योगदान दिया है। धार्मिक सहिष्णुता और विभिन्न दर्शनों के लिए सम्मान की परम्परा ने इस प्रक्रिया को और मजबूती प्रदान की है। यह महज एक संयोग नहीं है कि भारत के प्राचीनतम मस्जिद, चर्च और सिनगॉग (यहूदियों का पूजा स्थल) इस पवित्र भूमि पर उपस्थित हैं।
केरल अपनी अद्भूत विविध कला प्रदर्शनों पर गर्व करता है। दुर्लभ संस्कृत थियेटर कुट्टीयट्टम और धार्मिक नृत्य नाटक मुदीयेत्तू को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में स्थान मिला। कथकली और मोहिनीयट्टम जैसे शास्त्रीय नृत्यों को भी दुनिया में सराहा जाता है। केरल में लोक और जनजातीय कला रूपों की प्रभावशाली श्रृंखला है। इसने अपनी खुद की संगीत प्रणाली विकसित की, सोपानम संगीत शैली इसमें एक है। केरल कलामंडलम की स्थापना महान कवि वल्लाथल नारायण मेनन ने 1930 में की, जिसका संस्कृति के नक्शे पर न केवल केरल में बल्कि समग्र भारतवर्ष में अहम स्थान है। मैं समझता हूँ कि यह संस्थान केरल की पारम्परिक प्रदर्शन कलाओं विशेषकर कथकली, मोहिनीयट्टम, कुटीयट्टीयम और थुलाल की शिक्षा देने और प्रदर्शन का आयोजन करने में पहला सार्वजनिक संस्थान है।
मैं इस महान संस्थान के विकास से जुड़े सभी लोगों को बधाई देता हूँ। मुझे बताया गया है कि कलामंडलम 14 कलाओं में 500 छात्रों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है। यह संस्थान गुरूकुल शिक्षा प्रणाली के द्वारा भारतीय संस्कृति की सच्ची महक और भावना को मूर्त रूप देता है।
मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि बाहर के कई बड़े विश्वविद्यालयों और स्कूलों से इस संस्थान के संबंध हैं और जिनसे अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का विनिमय होता रहता है। इन सभी के जरिए भारतीय संस्कृति की समृद्धता का और अधिक विस्तार होगा। जैसे हमारे दूत और हमारे कलाकार हमारी महान सांस्कृतिक बुनावट के विभिन्न धागों और रंगों को उज्जवल रूप में प्रदर्शित कर सकते हैं।
प्रस्तावित दक्षिण भारतीय प्रदर्शन कला संग्रहालय से यह उम्मीद है कि इस क्षेत्र में कला और संस्कृति के प्रति लोगों की रूचि बढ़ेगी। दक्षिण भारतीय केन्वस को रिवाज़ों, लोक और शास्त्रीय जैसी विविध पारम्परिक कलाओं का वरदान है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ कलाएं विलुप्त हो गईं हैं जबकि कुछ कलाओं को सहयोग और संरक्षण की आवश्यकता है।
एक बार जब संग्रहालय स्थापित हो जाएगा तो वह दक्षिण भारत की चार राज्यों की समृद्ध और विविध प्रदर्शन कलाओं को संरक्षित और प्रोत्साहित करने का कार्य करेगा। आगे यह भारत की विविधतापूर्ण संस्कृतियों और उप-संस्कृतियों के सह-अस्तित्व और बहुलतावाद को मजबूती प्रदान करेगा। मुझे बताया गया है कि यह संग्रहालय अत्याधुनिक डिजिटल पुस्तकालय, पुरालेखन सुविधाओं के साथ-साथ स्टूडियो, रंगभवन और शोध आदि सुविधाओं से सुसज्जित होगा।
मैं अपनी बात कला, साहित्य, नृत्य, संगीत और नाटक आदि शानदार धरोहरों को अमर बना देने वाले पुरूषों एवं महिलाओं जैसे - वल्लाथल और टैगोर आदि को नमन करते हुए सम्पन्न करता हूँ। मैं कलामंडलम के अधिकारियों को दक्षिण भारतीय कला प्रदर्शन संग्रहालय भवन निर्माण का उल्लेखनीय कार्य अपने हाथ में लेने के लिए पुन: सराहता हूँ। मैं केरल कलामंडलम और इस अनुपम संस्थान से सभी लोगों को बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूँ।
धन्यवाद, जय हिन्द।