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''हमने संसद के इस सत्र को बेकार कर दिया है। दोनों सदनों में काम ठप रहा क्योंकि सीएजी ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें सार्वजनिक काम-काज के बारे में शायद सही या गलत आरोप लगाए गए थे। हमारे मन में सीएजी के लिए बहुत सम्मान है लेकिन हम यदि इस संस्थान का सम्मान करते हैं तो हमें लोक लेखा समिति में या ससंद में इसके परिणामों पर बहस करने के लिए भी सदैव तैयार होना चाहिए।
विपक्ष ने सीएजी की रिपोर्टों पर निर्धारित संस्थागत कार्य-प्रणालियों को नहीं चुना तथा ससंद में गतिरोध बनाए रखा। यह लोकतंत्र का प्रतिवाद है। यदि इस तरह की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया गया तो इससे संसदीय कामकाज के नियमों का उल्लंधन होगा।
भारत कई समस्याओं से जूझ रहा है- सामुदायिक तनाव की बढ़ती समस्याएं, क्षेत्रीय और नस्लीय तनाव की परेशानियां, आतंवाद, नक्सलवाद की समस्याएं । संसद में इन सब पर बहस होनी चाहिए थी। लेकिन संसद में ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकी।
पूरा विश्व गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है, मंदी की स्थिति है तथा हम भारत को इन सबसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं। संसद में इन सब मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए थी-, इस वैश्विक तनाव के हालात से निपटने, वैश्विक विकास में हमारी क्या आर्थिक रणनीति है- लेकिन संसद में यह सब नहीं किया जा सका। इसका परिणाम यह हुआ कि जिस संसद में हम लोगों की ज़रूरतों पर ध्यान देते हैं वहां काम बिल्कुल ठप रहा।
मैं अपने देशवासियों से आह्वान करूंगा कि वे सोचें कि क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था को इस तरह से चलाना सही है। हमें इस बात पर गर्व है कि स्वतंत्रता के बाद हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। लेकिन इस सत्र में हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रतिवाद होते हुए देखा है । हमारे देश के सभी लोगों को इस पर आवाज़ उठानी चाहिए कि संसदीय संस्थानों को स्वतंत्रता के बाद निर्धारित नियमों के अनुसार ही कार्य करने की अनुमति होनी चाहिए।''