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प्रधानमंत्री डॉ. मनमेाहन सिंह ने नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में भिलाई स्टील प्लांट को वर्ष 2009-10 के लिए और टाटा स्टील लिमिटेड को वर्ष 2008-09 के लिए देश के उत्कृष्ट एकीकृत इस्पात संयंत्र के लिए प्रधानमंत्री की ट्रॉफी प्रदान की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा दिये गए भाषण का मूल पाठ इस प्रकार है:
''वर्ष 2008-09 और 2009-10 के दौरान बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले एकीकृत इस्पात संयंत्रों को सम्मानित करने के अवसर पर मौजूद रहकर मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। मैं टाटा स्टील लिमिटेड, जमशेदपुर और स्टील आथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड के भिलाई स्टील प्लांट के प्रबंधन और समस्त कर्मचारियों को क्रमश: वर्ष 2008-09 और वर्ष 2009-10 में बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए मैं हार्दिक बधाई देता हूं।
इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत देश के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। वर्ष 2004-05 में हमारी इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत महज 34 किलोग्राम थी, जो वर्ष 2011-12 में बढ़कर 59 किलोग्राम हो गई। भारत इस समय दुनिया का चौथा सबसे बड़ा इस्पात निर्माता है। वर्ष 2011-12 में यहां इस्पात का 7 करोड़ 40 लाख टन उत्पादन हुआ। अंतर्राष्ट्रीय मानकों को हासिल करने पर ज्यादा बल देते हुए भारतीय इस्पात उद्योग धीरे-धीरे आधुनिक और प्रभावशाली उद्योग बन चुका है, लेकिन हम वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं हो सकते। हमें आने वाले वर्षों में और बेहतर परिणाम पाने के लिए प्रयास करना होगा।
इतनी प्रभावशाली प्रगति के बावजूद हमारी इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 215 किलोग्राम की वैश्विक औसत से अब तक काफी पीछे है। हमारे देश में उत्पादित और विक्रय होने वाले बहुत से महत्वपूर्ण इस्पात उत्पादों को लेकर बहुत से गुणवत्ता संबंधी मामले भी हैं। मुझे खुशी है कि एसएआईएल और आरआईएनएल के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात संयंत्रों ने व्यापक आधुनिकीकरण और विस्तार परियोजनाओं को अपनाया है, जिससे न सिर्फ उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ेगी बल्कि उत्पादकता के संबंध में उनकी दक्षता में भी सुधार आएगा। साथ ही, निजी क्षेत्र के इस्पात संयंत्रों का भी औसतन आकार बढ़ा है। इनमें से बहुत से संयंत्रों ने एक करोड़ टन की वार्षिक क्षमता हासिल की है और कई अन्य छोटे इस्पात संयंत्र भी अपनी क्षमताओं में विस्तार करने की प्रक्रिया में है। ऐसी अतिरिक्त क्षमता के साथ हमें आशा है कि हम जल्दी ही दुनिया में दूसरे बड़े इस्पात निर्माता बन जाएंगे।
पिछले छह वर्षों में हमारी इस्पात की खपत में हर साल आठ से नौ फीसदी की वृद्धि हुई है। इस्पात उत्पादन की वृद्धि जहां इस्पात की खपत में हुई वृद्धि से पीछे छूट गई है, ऐसे में देश इस्पात के अत्यन्त निर्यातक से इस्पात का शुद्ध आयातक बन गया है। मुझे बताया गया है कि हमारा आयात काफी हद तक विशेष ग्रेड और प्रकार के इस्पात से संबंधित है, जो हमारे देश में उत्पादित नहीं होता। उस तरह के विशेष ग्रेड वाले इस्पात को बनाने के लिए इस्पात उद्योग को वैसी तकनीकों को विकसित करने या खरीदने के व्यावहारिक तरीके तलाशने होंगे और आयात पर हमारी निर्भरता कम करनी होगी।
उच्च ग्रेड वाले लोह अयस्क और उत्तम गुणवत्ता वाले कोयले की सीमित उपलब्धता भी हमारे भारतीय इस्पात उद्योग के समक्ष एक बड़ी चुनौती है, जिससे उससे निपटने की जरूरत है। हमें इस मसले का समाधान तकनीकी परिवर्तन का प्रबंधन और नवरचना के माध्यम से करना होगा। इस्पात उद्योग की दीर्घकालिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम कम ग्रेड वाले लौह अयस्क के इस्तेमाल को बढ़ावा दें। इतना ही नहीं, आयरन ओर फाइन और नॉन कोकिंग कोयले को सीधा इस्तेमाल करते हुए इस्पात के निर्माण की नई तकनीकें विकसित करने और अपनाने की जरूरत है, ताकि आयातित और महंगे कोकिंग कोयले और ढेलेदार लौह अयस्क पर निर्भरता कम की जा सके। मुझे खुशी है कि इस्पात मंत्रालय उत्तम गुणवत्ता वाले इस्पात के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी विकसित करने के अलावा भारतीय लौह अयस्क और कोयले के इस्तेमाल से संबंधित स्थायी तकनीकी समस्याओं से निपटने के लिए इस सेक्टर में नये अनुसंधान और विकास कार्यक्रम लागू कर रहा है। इस्पात उद्योग को अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाकर इस दिशा में प्रयास बढ़ाने चाहिए।
लौह और इस्पात उद्योग काफी हद तक प्राकृतिक संसाधनों साथ ही साथ ऊर्जा पर निर्भर है। इस उद्योग को अत्यधिक पर्यावरण प्रदूषण और ग्रीन हाऊस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन के करने वाला भी माना जाता है। इसलिए हम सभी को मिलकर ऊर्जा, दक्षता को बेहतर बनाने तथा पर्यावरणीय प्रदूषण को सीमित करने के कारगर तरीके और रास्ते तलाशने होंगे साथ ही अपने इस्पात का उत्पादन भी बढ़ाना होगा। मैं इस्पात उद्योग से अनुरोध करुंगा कि वह आधुनिकीकरण और विस्तार कार्यक्रमों में नवीन ऊर्जा, दक्षता प्रौद्योगिकियों का अपनाया जाना सुनिश्चित करें। हमारी सरकार ने परिष्कृत ऊर्जा दक्षता राष्ट्रीय मिशन के तहत प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड यानी पीएट) योजना लागू की है। मुझे विश्वास है कि इस्पात उद्योग इस योजना के अधीन तय किये गये लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करेगा।
आखिर में मैं एक बार फिर से टाटा स्टील और भिलाई स्टील प्लांट को बधाई देता हूं जिन्होंने ये ट्रॉफियां जीती हैं। मैं इस्पात उद्योग और उससे जुड़े सभी लोगों को आने वाले वर्षों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।"