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प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज यहां रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के पुरस्कार वितरित किए। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने डीआरडीओ के वैज्ञानिक के बीच उपस्थित होने और रक्षा अनुसंधान तथा विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वाले विशिष्ट वैज्ञानिकों और तकनीकविदो को पुरस्कृत करने पर अत्यधिक प्रसन्नता व्यक्त की। पुरस्कार पाने वालों को हार्दिक बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि समर्पण और राष्ट्रीय हितों के प्रति उनकी प्रतिबद्ध सेवा के लिए राष्ट्र उनका आभारी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अग्नि-5 प्रक्षेपास्त्र का हाल ही में किया गया सफल प्रक्षेपण विशेष रूप से उल्लेखनीय उपलब्धि है इससे हमारी तकनीकी कुशाग्रता और बड़ी तथा जटिल परियोजनाओं का प्रबन्ध करने की हमारी क्षमता का पता चलता है। उन्होंने इस विशेष उपलब्धि के लिए डॉ. सारस्वत और उनके समर्पित दल को बधाई दी।
हल्के लड़ाकू विमान तेजस के संचालन की प्रारम्भिक स्वीकृति और भारतीय विमानस्थ की पूर्व चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली (इंडियन एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) के लिए पूर्णत: संवर्धित विमान की पहली उड़ान भी उल्लेखनीय और सराहनीय उपलब्धियां हैं।
उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि आप सब इस बात से सहमत होगें कि हम इस उपलब्धि पर संतुष्ट होकर नहीं बैठ सकते। जैसे ही हम अपने आस-पास नजर घुमाते हैं हमें अंतरराष्ट्रीय सामरिक और सुरक्षा वातावरण में गिरावट स्पष्ट दिखाई देती है। हमारे तत्काल और विस्तारित पड़ोस में राजनीतिक अनिश्चितता, मध्यपूर्व में असैनिक विवाद और अशान्ति, आतंकवाद और साइबर सुरक्षा को खतरा, जटिल चुनौतियां हैं जिनका पारंपरिक और तकनीकी रूप से उत्तर ढूंढने की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार भारत की सशस्त्र सेनाओं को आधुनिक बनाने और हमारी सीमाओं की सुरक्षा करने के लिए उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि प्रश्न यह है कि हम किस प्रकार आवश्यक और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां तथा मंच प्राप्त कर सकते है। देश में ही विकसित ऐसी प्रौद्योगिकियों को भी बढ़ावा दे सकते हैं जो आवश्यक समय और गुणवत्ता के मानकों पर खरी उतरती हो। लेकिन वास्तविकता यह है कि रक्षा संबंधी वस्तुओं की आपूर्ति में स्वदेशी अंश कम बना हुआ है। हमें अपनी परियोजनाओं की पाइपलाइन पर गंभीरता से विचार करने और चुनिंदा क्षेत्रों में ऐसे समय और सामग्री पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है जहां हमने उचित समय और लागत पर परियोजनाओं को पूरा करने की क्षमता दिखाई है।
उन्होंने कहा कि दीर्घावधि के रूप में हमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में अपने स्वदेशी उद्योग को इस स्तर पर तैयार करना है जहां यह न केवल आधुनिक प्रौद्योगिकियों का विकास करने में बल्कि व्यावसायिक मापदंडों और ग्राहक संतुष्टि की दृष्टि से भी वैश्विक प्रतियोगियों को पछाड़ सकें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी कुछ कंपनियों के पास कुछ बड़ी उप-प्रणालियों का विकास करने की क्षमता है। अब चुनौती स्वदेशी उद्योगों को अधिक प्रोत्साहन देने की है ताकि वे प्रणाली समन्वय के लिए क्षमताओं का विकास कर सकें। यह विशेषता केवल कुछ कंपनियों के पास है। उन्होंने कहा कि हमें उद्योगों को बढ़ावा देने और विकास की गति को तेज करने की आवश्यकता है। इस बारे में डीआरडीओ की भूमिका वास्तव में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय लगभग 800 उद्दम ऐसे है जो इसकी परियोजनाओं और कार्यक्रमों को सहायता प्रदान कर रहे है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार इस समय नरेश चन्द्रा समिति की रिपोर्ट का अवलोकन कर रही है। इस समिति ने रक्षा साजो-सामान की आपूर्ति के बारे में अनेक महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। समिति ने निजी क्षेत्र के सहयोग और सलाह मशविरें से रक्षा उत्पादन में स्वदेशीकरण बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक नीति अपनाने को कहा है। उन्होंने कहा कि श्री रवीन्द्र गुप्ता के नेतृत्व में एक समिति इस विशिष्ट पहलू पर विचार कर रही है और आशा है कि इसकी रिपोर्ट जल्द ही प्राप्त हो जाएंगी।
उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर अत्धिक प्रसन्नता हुई कि डीआरडीओ ने फिक्की के सहयोग से एक जैव शौचालय विकसित किया है जो ग्रामीण भारत में खुले में शौच करने की समस्या को हल करने की है। यदि यह हरित और किफायती फ्लश एंड फोरगेट तकनीक सफल रहती है तो इससे हमारे पूर्ण स्वच्छता अभियान को काफी बढ़ावा मिलेगा। तकनीकी लाभ के कार्यक्रमों में प्रौद्योगिकी के प्रयोग का और विस्तार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मैं एक बड़ी प्रणाली संबंधी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय परियोजना को देखना चाहता हूं जिसमें डीआरडीओ अनुसंधान और विकास की अपनी विशेषज्ञता का प्रयोग कर सके और हमारे निजी उद्योग में उपलब्ध उत्पादन और परियोजना प्रबन्धन कौशल का समायोजन कर सके। इस प्रकार के सहयोग से डीआरडीओ के काम में अधिक दक्षता आएगी और यह अनुसंधान और विकास के अपने मुख्य कार्य पर ध्यान केन्द्रित कर सकेगा।
उन्होंने कहा कि डीआरडीओ को पुन: परिभाषित करने संबंधी रामाराव समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने कई उपयोगी अनुशंसाएं की है। उनमें से एक सिफारिश डीआरडीओ में अनुसंधान की संस्कृति को नया रूप देने की है। साथ ही, आरएंडडी गतिविधियों के लिए बजट का एक विशेष प्रतिशत निर्धारित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट ने एक अन्य मामले पर भी प्रकाश डाला है जो हमारे उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के विकास के लिए आदर्श योजनाओं की गति को धीमा कर सकता है। यह वैज्ञानिक जन-शक्ति की उच्च गुणवत्ता को आकर्षित करने और उसे बनाए रखने में बढ़ती हुई कठिनाई है। इस समस्या का कोई आसान समाधान नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह स्पष्ट है कि हमें वैज्ञानिक और तकनीकी विभागों के प्रशासन की मौजूदा नौकरशाही व्यवस्था को बदलना होगा। खासकर, यदि हमें भारत को वैज्ञानिक और तकनीकी पावरहाउस बनाने के कार्य में भाग लेने के लिए युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करना है। संगठन की दृष्टि से भी डीआरडीओ को लचीला बनाने का लक्ष्य अपनाना होगा और अपने मानवीय, वित्तीय तथा तकनीकी संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना होगा।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के अंत में विश्वास व्यक्त किया कि डीआरडीओ आने वाले वर्षों में श्रेष्ठता के साथ राष्ट्र की सेवा करना जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में विशिष्ट वैज्ञानिकों की आज यहां उपस्थिति मेरे इस विश्वास का प्रमाण है। उन्होंने पुरस्कार प्राप्तकर्ता सभी वैज्ञानिकों को उनके भावी प्रयासों के लिए अपनी और राष्ट्र की ओर से शुभकामनाएं दीं।