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प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने जी-20 शिखर सम्मेलन के सम्पन्न होने पर संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि जी-20 शिखर सम्मेलन बड़ी कठिन परिस्थितियों में आयोजित किया गया। यूरोजोन में अनिश्चितता का खतरा अधिकांश देशों के लड़खड़ाते आर्थिक विकास पर छाया रहा। यह खतरा बैंकिंग कमजोरी के साथ-साथ सावरेन मुद्रा के अत्यधिक ऋण से उत्पन्न हुआ। इस शिखर सम्मेलन ने जी-20 के नेताओं को अपनी चिंताए व्यक्त करने का बहुमूल्य अवसर प्रदान किया।
डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि जी-20 में मेरा भाषण वितरित किया गया है और इससे हमारे विचारों का पता चलता है। बैठक के बारे में कुल मिलाकर मेरा विचार है कि इस बात पर आम सहमति थी कि विकास को मजबूत करने के लिए सभी देशों में नीति बदलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे प्राप्त करने के लिए अनेक कदम उठाने होंगे। इस बात की भी आम सहमति थी कि हमारी तत्काल समस्या यूरोजोन में अनिश्चितता कम करने की है।
उन्होंने कहा कि यूरोजोन के नेताओं ने हमें आश्वस्त किया है कि वे यूरो क्षेत्र में अखंडता की सुरक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। वे बैंकों का एकीकृत निरीक्षण और सामान्य तथा प्रवर्तनीय वित्तीय नियमों को अपनाने के प्रति वर्तमान मौद्रिक संघ की ओर बढ़ने की आवश्यकता को समझते हैं। तथापि, यह निश्चित रूप से एक धीमी प्रक्रिया होगी। उन्होंने कहा कि यूरोजोन के मामले में 17 संसदों की संधियों में और यूरोपीय संघ के मामले में 27 संधियों में परिवर्तन करना समय की बर्बादी होगी। यूरोजोन के नेताओं ने यूरो क्षेत्र के संरक्षण के लिए सभी आवश्यक उपाय करने के प्रति अपनी जोरदार प्रतिबद्धता व्यक्त की ताकि वह दीर्घकालिक संस्था बनी रह सके। वे 28 या 29 जून को होने वाले यूरोपीय शिखर सम्मेलन के बाद अधिक स्पष्ट रूप से कह सकेंगे। उन्होंने प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए दोनों उत्पाद और श्रम बाजारों में संरचनागत सुधार लाने के प्रति अपने दृढ़ संकल्प का भी संकेत दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जी-20 के देशों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के संसाधनों केा बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है ताकि आईएमएफ मौजूदा स्थिति में अपनी भूमिका निभा सके। उन्होंने कहा कि भारत ने 10 बिलियन अमरीकी डॉलर का अंशदान किया है। ब्रिक्स और अन्य देशों ने भी अंशदान किये हैं। इस प्रकार अप्रैल में पहले की गई घोषणा सहित कुल अंशदान लगभग 460 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि भारत के अंशदान से हमारे इस विचार का पता चलता है कि वैश्विक जगत में हम एक जिम्मेदार देश हैं। उन्होंने कहा कि हमने जो अंशदान किया है वह इस रूप में पूर्णत: तरल है अर्थात जब कभी आवश्यकता होगी अन्य अंशदाता इसे प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार यह राशि हमारे संरक्षित संसाधनों का हिस्सा बनी रहेंगी।
उन्होंने कहा कि कई नेताओं ने आईएमएफ में प्रशासनिक सुधारों को तेज करने के महत्व पर जोर दिया। इनमें आर्थिक वजन को दर्शाने करने वाले कोटा फार्मूले को बदलना शामिल है।
शिखर सम्मेलन ने संरक्षण संबंधी नये उपायों पर यथा स्थिति बनाये रखने और उसे 2013-14 तक की प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाने पर भी जोर दिया। यह संरक्षणोन्मुख प्रवृतियों का प्रतिरोध करने के लिए जी-20 के नेताओं की मंशा का एक महत्वपूर्ण वक्तव्य है। यह एक प्रकार से उच्च बेरोजगारी और कम विकास की अवधि को बढ़ाना है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लॉस काबोस घोषणा पत्र हमारी इस पहल को पूरी तरह दर्शाता है कि विकासशील देशों में अवसंरचना में निवेश, विकास को सुदृढ़ करने और वैश्विक बहाली को गतिशील बनाने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। घोषणा पत्र से पता चलता है कि बहुपक्षीय विकास बैंकों को इस कार्य के लिए सुदृढ़ किया जाना चाहिए। हमें इस विशिष्ट कार्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को बदलने के लिए जी-20 देशों के साथ कार्य करना चाहिए। शिखर सम्मेलन में कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी चर्चा की गई। इनमें विशेष रूप से नियामक सुधार में प्रगति, खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता का मामला, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय और हरित विकास संबंधी मामले शामिल हैं।