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आज नई दिल्ली में आयोजित भारत जल सप्ताह के उद्घाटन समारोह को भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने संबोधित किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का प्रारूप इस प्रकार है :-
मैं भारत जल सप्ताह के उद्घाटन के अवसर को पाकर बहुत प्रसन्न हूं, जो इस वर्ष तीन प्रमुख विषयों जल, खाद्य तथा ऊर्जा सुरक्षा पर केन्द्रित है।
विश्व की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या और उपयोग में लाए जाने वाले स्वच्छ जल की केवल चार प्रतिशत की उपलब्धता के साथ भारत में जल की कमी है। तीव्र आर्थिक विकास एवं शहरीकरण के कारण मांग और आपूर्ति के बीच का अन्तर काफी बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन देश में पानी की उपलब्धता को और प्रभावित कर सकता है, क्योंकि इससे जल चक्र प्रभावित होता है। हमारे जल संसाधन असंसाधित औद्योगिकी कचरों और गंदे नालों के कारण लगातार प्रदूषित होते जा रहे हैं। जल के अत्यधिक निकासी के कारण विभिन्न भागों में भू-जलस्तर घट रहा है, जिसके कारण दूषित करने वाले फ्लोराइड, आर्सेनिक तथा अन्य रासायनों की मात्रा बढ़ जाती है। खुले में शौच जाने की आदत निश्चित रूप से दु:ख की बात है और यह काफी भागों में फैला हुआ है जो पेयजल स्रोत के दूषित होने का कारण भी है ।
योजना आयोग ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान हमारे जल संसाधनों को तर्कसंगत और सतत तरीके से प्रबंध करने की चुनौतियों को गंभीर चुनौतियों में से एक माना है। इसके लिए कई मोर्चों पर कार्यवाई तथा हमारी आर्थिकी के विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर समन्वय की आवश्यकता होगी।
अपने जलवायु परिवर्तन की कार्य योजना के एक भाग के रूप में हमने राष्ट्रीय जल मिशन की शुरूआत की है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण, जल के दुरुपयोग को कम करना तथा विभिन्न राज्यों में इसका समान वितरण सुनिश्चित करके जल संसाधनों के एकीकृत प्रबंधन के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
इस मिशन ने राष्ट्रीय जल नीति के समीक्षा का प्रस्ताव दिया है और नई नीति का प्रारूप सार्वजनिक तौर पर सुझाव के लिए रखा गया है।
राष्ट्रीय जल नीति का प्रारूप जल संसाधनों की योजना और प्रबंधन के लिए इकाई के रूप में नदी घाटी/उप घाटी के सुझाव देता है तथा यह प्रस्ताव करता है कि केन्द्र और राज्य स्तर पर विभागों/संगठनों की पुनर्संरचना के साथ-साथ इसे बहुपक्षीय बनाया जाना चाहिए। यह प्रत्येक राज्य में जल नियामक प्राधिकरणों की स्थापना तथा विभिन्नराज्यों के बीच जल से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के जरिये सहमति,सहयोग और सामंजस्य बनाने के लिए एक राष्ट्रीय मंच की स्थापना का भी प्रस्ताव करता है।
बेहतर प्रबंधन के लक्ष्य को प्राप्त करने में आने वाली मुख्य समस्या यह है कि जल से संबंधित विषयों से निपटने के लिए जो हमारे देश में मौजूदा संस्थागत एवं कानूनी ढांचे हैं वह अपर्याप्त हैं तथा उसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। मौजूदा वास्तविकताओं के परिप्रेक्ष्य में जल संसाधनों की योजना, विकास एवं प्रबंधन की गति को बनाये रखना है।
इसके लिए एक सुझाव है कि जल पर सामान्य सिद्धांतों की एक वृहत राष्ट्रीय कानूनी रूपरेखा तैयार की जाए, जो सभी राज्यों में जल शासन पर आवश्यक विधान तैयार करने में मददगार हो सके।
हमें उक्त और अन्य प्रस्तावों पर ध्यान देने की जरूरत है जो कि संस्थागत कमियों को और एकीकृत एवं सुसंगत जल नीति के क्रियान्वयन को जोड़ने में मदद करेंगे।
बढ़ती आपूर्ति की तय सीमा के परिप्रेक्ष्य के तहत मांग एवं आपूर्ति के अंतर को पाटने के लिए किसी भी प्रयास का सबसे अहम केन्द्र बिन्दु को बढ़ाना जल उपयोग क्षमता होना चाहिए। राष्ट्रीय जल मिशन ने जल उपयोग क्षमता में 20 प्रतिशत सुधार का लक्ष्य रखा है। इसकी दशा सबसे अधिक कृषि क्षेत्र में दयनीय है, जो कि हमारे सभी जल संसाधनों का तीन-चौथाई हिस्सा इस्तेमाल करता है और जहां जल उपयोग क्षमता अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों की तुलना में कम है।
सिंचाई प्रणाली के लिए संकीर्ण अभियांत्रिकी-निर्माण केन्द्रित दृष्टिकोण से निकल कर हमें अधिक बहु-पक्षीय एवं भागीदारी वाला दृष्टिकोण अपनाना होगा। तैयार की गई सिंचाई की क्षमता और हो रहे उसके इस्तेमाल के बीच के अंतर को घटाने को प्रोत्साहन दिये जाने की जरूरत है। हमें अपनी सिंचाई परियोजनाओं के लिए समग्र रूप में नियंत्रण क्षेत्र विकास पर ध्यान देना होगा। जलापूर्ति के लिए प्राथमिक हितधारकों द्वारा कीमतों के निर्धारण में हमें अधिक पारदर्शी एवं सहभागी तंत्र की जरूरत है।
आपूर्ति पक्ष पर हम वाटरशेड प्रबंधन, वर्षा जल संचयन तथा भूमि जल स्तर को बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। अगले पांच सालों में जल से संबंधित सभी योजनाओं को और मजबूती देने की जरूरत है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम तथा जल निकायों एवं वर्षा क्षेत्र विकास कार्यक्रमों के लिए नवीकरण, मरम्मत एवं पुनर्बहाली कार्यक्रम (आरआरआर) के क्षेत्र में आने वाले मुद्दों को हल करने पर ध्यान देने की जरूरत है।
भू-जल का संरक्षण इस समय हमारी सबसे अहम प्राथमिकताओं में से एक है, क्योंकि हमारी कुल जरूरत के दो-तिहाई से अधिक निर्भरता भू-जल पर ही है। देश के सभी भागों में घटता जल स्तर एक गंभीर चिंता का विषय है। वर्तमान कानून प्रत्येक भू-मालिक को बोरवेल के द्वारा असीमित जल-दोहन का अधिकार देता है। भू-जल के दोहन और उसके प्रतिस्पर्धी इस्तेमाल के समन्वय के लिए अभी तक कोई नियामक नहीं है। बिजली एवं जल के लिए अपर्याप्त एवं कम कीमतों से भी इनके दुरूपयोग को बढ़ावा मिलता है। हमें ऐसी स्थिति का निर्माण करना है जहां भू-जल संसाधन को सार्वजनिक संपत्ति के रूप में स्वीकार किया जा सके।
जल स्रोतों के कारगर प्रबंधन की दिशा में पहले कदम के रूप में हमें भू-जल उपलब्धता संबंधी बुनियादी जानकारी का प्रारूप तैयार करने के लिए भारत के जलीय स्तर का पता लगाने की आवश्यकता है। यह कार्य 12वीं योजना में शुरू किया जाएगा। हमें जलीय स्तरों की भागीदारी प्रबंधन को प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है, ताकि जल के दोहन के तौर-तरीकों को बढ़ावा दिया जा सके और उनका टिकाऊ तथा समान उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। यह वास्तविक रूप में उपलब्ध भू-जल से जुड़ा है। हमें भू-जल के दुर्लभ स्रोतों के उपयोग योग संबंधी स्पष्ट कानूनी ढांचा तैयार करने के प्रस्ताव पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए।
सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल तक पहुंच और साफ-सफाई बुनियादी मानवीय आवश्यकताएं हैं। वे हमारे लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण से मूलभूत रूप में संबद्ध हैं। पेयजल की सार्वजनिक प्रणालियों और निजी सिंचाई के बीच जलीय स्तर संबंधी प्रतियोगिता के कारण पेयजल के भूतल स्रोत अक्सर असफल रहते हैं। पक्का कानूनी ढांचा न होने के कारण पेयजल प्रणालियां अक्सर प्रतियोगिता में हार जाती हैं। खुले मलत्याग के खिलाफ तथा स्वच्छता के लिए हमारा संघर्ष पानी की कमी के कारण अक्सर विफल रहता है। इसलिए जल की इन गंभीर आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हमारी नीतियों में इसे अनिवार्य रूप में तात्कालिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मैं समझता हूं कि पानी, भोजन और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने में खासकर विकासशील देशों के बीच सहयोग से काफी लाभ उठाया जा सकता है।
उदाहरण के रूप में, सूर्य विकासशील जगत की एक सम्पदा है और इसके बावजूद सौर प्रौद्योगिकीयां कम विकसित हैं। हमारे समाज की प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व में रहने की, उसकी उदारशीलता के संरक्षण और सामुदायिक रूप में समान स्रोतों के प्रबंधन की समृद्ध परम्पराएं हैं। हमारे पूर्वजों ने पानी को एकत्र करने के शानदार आधार तैयार किये, जो तकनीकी रूप से विविध और इंजीनियरी के सुदृढ़ सिद्धांतों पर निर्मित थे। ये स्थानीय परिस्थितियों के लिए तैयार किये गए थे और प्रत्येक जल व्यवस्था को स्थानीय भागीदारी और सामुदायिक नियंत्रण के जरिए प्रबंध किए जाते थे। हमें इस चातुर्य को अपनाने की आवश्यकता है, जो हमारे बीच विद्यमान थी और हमें मिलकर समाधान निकालने में सहयोग करना चाहिए, जिससे पानी के पुनर्चक्रीकरण, पुर्न उपयोग और रीचार्ज में सहायता मिलेगी। विश्व जल सप्ताह इन कार्यों के लिए शानदार मंच है और मैं इसमें व्यक्त किये जाने वाले विचारों की सफलता की कामना करता हूं।