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प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज नई दिल्ली में 7वें एशिया गैस भागीदारी सम्मेलन को संबोधित किया। उनके भाषण का विवरण इस प्रकार है:-
"7वें एशिया गैस भागीदारी सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में भाग लेने पर मैं वास्तव में प्रसन्नता महसूस कर रहा हूं। इस अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्मेलन के आयोजन के लिए मैं भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड और फिक्की को बधाई देता हूं। ऊर्जा के विविध स्रोतों के विकल्प के रूप में प्राकृतिक गैस का उपयोग अधिक आपूर्ति सुरक्षा प्रदान करता है और सतत आर्थिक उन्नति तथा विकास में भी सहायक है। अन्य हाईड्रोकार्बन स्रोतों की तुलना में गैस का प्रयोग न सिर्फ सस्ता है, बल्कि कई उपभोक्ता उद्योगों के लिए पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल है। बिजली उत्पादन के लिए गैस एक बेहतर ईंधन है, उर्वरक उत्पादन में उपयोगी है और परिवहन के लिए एक स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन है।
एशियाई देशों की उभरती अर्थव्यवस्थाएं तेजी से प्राकृतिक गैस का उपयोग बढ़ा रही हैं। पिछले पांच वर्षों में भारत और चीन में प्राकृतिक गैस की खपत में क्रमश: 14 प्रतिशत और 18 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से बढ़ोतरी हुई है। एशियाई अर्थव्यवस्था में गैस के उपयोग में यह वृद्धि इस बात को दर्शाती है कि यह क्षेत्र भविष्य में विश्व के गैस बाजारों के विकास में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
एशिया प्रशांत क्षेत्र और विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया तथा मध्य-पूर्व क्षेत्र, गैस आपूर्ति के मुख्य स्रोत के रूप में उभरा है। चीन और भारत के नेतृत्व में एशियाई क्षेत्र भी गैस आपूर्ति का मुख्य केन्द्र बनता जा रहा है। एशिया प्रशांत क्षेत्र दुनिया की कुल तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का लगभग 60 प्रतिशत आयात करता है। इसलिए एशियाई क्षेत्र में गैस क्षेत्र में व्यापार, निवेश, कौशल और सेवाओं को बढ़ावा मिल रहा है। वास्तव में हमें खरीदार और विक्रेता के परम्परागत संबंधों से ऊपर उठकर इस विशाल क्षेत्र में गैस और ऊर्जा के मामले में व्यापक भागीदारी की ओर बढ़ना चाहिए।
इस प्रकार की भागीदारी से क्षेत्र के गैस उत्पादक देशों को गैस क्षेत्र में पूंजी निवेश का ही नहीं, बल्कि इससे संबद्ध दीर्घकालिक खरीद समझौतों का भी लाभ मिल सकता हैं। इसी प्रकार इस क्षेत्र में तेजी से उभरते बाजार उचित दाम पर गैस की विश्वसनीय आपूर्ति से लाभान्वित हो सकते हैं।
एशिया के बड़े और उभरते बाजार लोगों को स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए संयुक्त अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के जरिए संयुक्त उद्यम का अवसर भी प्रदान करते हैं।
भारत में प्राकृतिक गैस के उपयोग का विस्तार, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन प्रबंधन की चुनौतियों का मुकाबला करने के महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है। भारत सरकार ने 1997-98 में ही नई खोज लाइसेंसिंग नीति की शुरूआत कर दी थी। इस नीति के परिणाम स्वरूप 14 अरब डॉलर से अधिक का निवेश हुआ है तथा 87 तेल और गैस खंडों का पता लगा है, जिनमें से तीन खंडों में उत्पादन शुरू हो चुका है। इस नीति का नौवां दौर अभी पूरा हुआ है, जिससे लगभग 88 हजार वर्ग किलोमीटर का तलछट क्षेत्र उपलब्ध हुआ है, जिसमें 8 विदेशी कंपनियों सहित 37 कंपनियों ने भाग लिया है।
तेल और गैस क्षेत्र को गैर-सरकारी उद्योगों की भागीदारी के लिए खोलने से घरेलू गैस की उपलब्धता बढ़ी है और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी में भी वृद्धि हुई है।
गैस की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत ने तरल प्राकृतिक गैस की पुनर्गैसीकरण सुविधाएं विकसित करने के लिए तेजी से निवेश किया है। कोच्चि और दाभोल में एलएनजी के नये पुनर्गैसीकरण केन्द्र स्थापित होने से वर्ष 2012-13 तक देश की 1.40 करोड़ टन वार्षिक एलएनजी आयात करने की क्षमता, दो करोड़ टन वार्षिक तक हो जाने की संभावना है।
हमने पाइपलाइन विकास का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम भी शुरू किया है। मैं समझता हूं कि अकेला भारतीय गैस प्राधिकरण ही पाइपलाइन लम्बाई का विस्तार करके अपनी पाइपलाइन लम्बाई को मौजूदा 9 हजार किलोमीटर से बढ़ाकर 2014 तक लगभग 14500 किलोमीटर कर लेगा। इस अवधि के दौरान निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा भी पाइपलाइन लम्बाई 5000 किलोमीटर बढ़ाए जाने की संभावना है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंतिम वर्ष 2017 तक देश में लगभग 30 हजार किलोमीटर लम्बी गैस पाइपलाइन प्राप्त करने का लक्ष्य है।
हाल ही में भारतीय गैस प्राधिकरण ने 2000 किलोमीटर लम्बी दाहेज-विजयपुर- बवाना-नंगल/भटिंडा पाइपलाइन का काम पूरा किया है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मैं आज इसे राष्ट्र को समर्पित कर रहा हूं। मैं समझता हूं कि इस गैस पाइपलाइन को पाकिस्तान की सीमा तक बढ़ाया जा सकता है। इसलिए मुझे यह पाइपलाइन आज देश को समर्पित करते हुए प्रसन्नता हो रही है।
हम गैर-परम्परागत गैस संसाधनों का विकास कर रहे हैं, जैसे शेल गैस और कोयला खानों से निकलने वाली मिथेन गैस। भारत में उपलब्ध शेल गैस स्रोतों का नक्शा बनाया गया है और 2013 के अंत तक इसके लिए लाइसेंस नियामक व्यवस्था स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। हम कोयला खानों से भी मिथेन गैस प्राप्त कर रहे हैं, जिसके लिए लाइसंसिंग के चार दौर हो चुके हैं और पश्चिम बंगाल में रानीगंज में इसका वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हो चुका है। क्योंकि भारत, विश्व के कोयले के सबसे बड़े भंडार वाले देशों में से एक है, इसलिए हम कोयला खानों से निकलने वाली गैस को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त अनुभव और विशेषज्ञता वाली कंपनियों के साथ काम करना चाहते हैं।
सरकार ने प्राकृतिक गैस के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए गैस मूल्य नीति में सुधारों की पहल की है। हम समझते हैं कि विस्तारित ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ऊर्जा के उचित दाम तय करना जरूरी है। क्योंकि तेल और गैस राष्ट्रीय संसाधन हैं, लिहाज़ा ये सरकार की व्यवस्था और नियामक संगठन की निगरानी में रहेंगे। इसलिए इन संसाधनों का आर्थिक दृष्टि से उपयोग करना निवेशकों और देश के लोगों, दोनों के लिए ही लाभकारी होगा।
इस अवसर पर मैं सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहता हूं कि गैस उद्योग की चिंताओं को दूर करने के व्यावहारिक उपाय ढूंढने के लिए सरकार सभी संभव कदम उठाएगी। हम अपनी नीति तथा निगरानी व्यवस्था की पारदर्शिता और आकलन को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जहां, गैस और तेल क्षेत्र में उपयोगी भागीदारी विकसित करने में सरकारी सहयोग से सहायता मिल सकती है, वहीं मैं चाहता हूं कि उद्योग भी नये तरीकों और साधनों के साथ आगे आएं, जिससे एशियाई क्षेत्र के लिए बेहतर और सतत ऊर्जा सुरक्षा का भविष्य निर्माण किया जा सके।
इन शब्दों के साथ मैं इस सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूं, धन्यवाद।"