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प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज यहां अफ्रीकी एशियाई ग्रामीण विकास संगठन के स्वर्ण जयंती के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा किमैं अफ्रीका और एशिया के मित्र देशों के प्रत्येक विशिष्ट अतिथिका स्वागत करता हूं। उन्होंने कहा कि50 वर्ष से अधिक समय पहले भारत ने इस ऐतिहासिक शहर नई दिल्ली में ग्रामीण पुनर्निर्माण पर प्रथम अफ्रीकी एशियाई सम्मेलन की मेजबानी की पहल कदमी की। एशिया और अफ्रीका के दूर-दृष्टिवाले नेताओं ने दक्षिणी उप-महाद्वीप के नव-स्वतंत्र देशों के बीच कृषिऔर ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सहयोग की आवश्यकता को महसूस किया। इस ऐतिहासिक सम्मेलन के परिणाम स्वरूप अफ्रीकी-एशियाई ग्रामीण विकास संगठन की स्थापना की गयी जो आज दक्षिणी उप-महाद्वीप के देशों के बीच सहयोग का देदिप्यमान प्रतीक है।
उन्होंने कहा किपिछली शताब्दी के अधिकांश समय में एशिया और अफ्रीका के लोगों ने अपने आपको औपनिवेशिक दासता से मुक्त कराने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। आज जिन चुनौतियों का हमें सामना करना पड़़ रहा है वे एक-दूसरे से भिन्न अवश्य हैं लेकिन बराबर भयभीत करने वाली हैं। अंतर्राष्ट्रीय शांतिको खतरा है। वैश्वीकरण और विभिन्न राष्ट्रों के बीच बढ़ती हुई अंत:निर्भरता की प्रक्रियाएं हमारे आर्थिक टिकाऊपन के लिए मूलभूत नई चुनौतियां हैं। हमें अपने करोड़ों लोगों की बढ़ती हुई आकांक्षाओं का सामना करना पड़ता है जो पौष्टिक आहार, स्वच्छ पेयजल, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सस्ती स्वास्थ्य देखरेख की मांग करते हैं और वे इसके हकदार भी हैं।
प्रधान मंत्री ने कहा किभारत में हमने विकास कार्यक्रमों के द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण लाने का प्रयास किया है, जिसका उद्देश्य गरीबी उपशमन, रोजगार सृजन, मूलभूत विकास और सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान करना है। हाल के वर्षों में गरीबी उन्मूलन के हमारे कार्यक्रमों में बड़े पैमाने पर विस्तार के लिए त्वरित आर्थिक विकास ने धन उपलब्ध कराया है। हमने उन्हें कार्यान्वित करने की प्रक्रिया के दौरान महत्वपूर्ण सबक सीखे हैं और अपनी नीतियों को उनके अनुसार ढाला है। हमने स्थानीय निकायों का सशक्तीकरण और लोकतांत्रीकरण किया है ताकिउन्हें लक्षित योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने का प्रमुख यंत्र बनाया जा सके। हमने मानव विकास के अधिक संसाधन जुटाए हैं ताकिगरीब तबका आर्थिक सुधार और आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं से लाभांन्वित हो सकें। गरीबी की मार को कम करने के लिए हमने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर महत्वपूर्ण रोजगार गारंटी योजना शुरू की है जो प्रत्येक ग्रामीण परिवार के लिए एक सौ दिन का रोजगार सुनिश्चित करती है। अभी भी अनेक चुनौतियां बनी हुई हैं और हम देश के सर्वाधिक पिछड़े और दूर-दराज के क्षेत्रों तथा हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में गरीबों तक पहुंचने के नए विचार और नए साधनों का पता लगाना जारी रखे हुए हैं।
डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा किभारत ने 21वीं शताब्दी की इनमें से कुछ मिलती-जुलती चुनौतियों से निपटने के लिए अफ्रीका के साथ भागीदारी का विचार बनाया। यही कारण है किहमने वर्ष 2008 में भारत-अफ्रीकी मंच बनाने की प्रक्रिया शुरू की, जिसके दौरान भारत और अफ्रीका के नेता विकास में टिकाऊ और व्यापक भागीदारी के सहयोग के लिए एक ढांचा तैयार करने पर सहमत हुए। इस ढांचे के अंतर्गत चिन्हित किया गया सहयोग का पहला क्षेत्र कृषिथा। इस क्षेत्र में सहयोग के पहले चरण में क्षमता निर्माण पर जोर दिया गया। प्रधान मंत्री ने आशा और विश्वास व्यक्त किया किइससे अफ्रीकी एशियाई ग्रामीण विकास संगठन द्वारा किये जा रहे अच्छे कार्य में वृद्धिहोगी। यह संगठन सात सदस्यीय देशों में प्रशिक्षण के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का संचालन करता है।
प्रधान मंत्री ने कहा किभारत अगले कुछ वर्षों में खासकर कृषिविज्ञान के क्षेत्र में 500 से अधिक नई छात्रवृत्तियां प्रदान करेगा। हमने भारत के जाने-माने नोबल पुरस्कार विजेता सी वी रमन के नाम पर अफ्रीका के लिए 700 विज्ञान फैलोशिप निर्धारित की हैं। अफ्रीका के 150 छात्रों को पहले ही यह सम्मानित फैलोशिप दी जा चुकी है। हम जल संचय, पशु और मत्स्य पालन, फार्म यंत्रीकरण और फसल-बाद की प्रक्रिया और मूल्य संवर्धन जैसे क्षेत्रों में अल्पकालिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी संचालित कर रहे हैं। हमने विकास आयोजन के क्षेत्र में अपने बौद्धिक संसाधन जुटाने पर सहमतिव्यक्त की है। अफ्रीका में कपास उत्पादन में संयुक्त अध्ययन और अफ्रीका के पांच विभिन्न नदी थालों के समन्वित जल संसाधन विकास तथा प्रबंधन का भी आयोजन किया है।
डॉ. सिंह ने कहा किसंस्था निर्माण हमारे सहयोग का अन्य महत्वपूर्ण पहलू है। हमने कृषिऔर ग्रामीण विकास, भू-जल और टिशू जांच प्रयोगशालाओं, फार्म विज्ञान केन्द्रों, कृषिगत बीज उत्पादन एवं प्रदर्शन केन्द्रों तथा अफ्रीका के विभिन्न भागों में ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्कों के क्षेत्र में भारत-अफ्रीकी संस्था सहित विभिन्न संस्थाओं की स्थापना के लिए लगभग 100 मिलियन अमरीकी डॉलरों का आवंटन किया है। हमें आशा है किये उपाय विकास के लिए कृषिगत अध्ययन और अनुसंधान के बौद्धिक केन्द्र बनेंगे।
उन्होंने कहा किग्रामीण अर्थ व्यवस्थाओं में विकास और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए हमें विज्ञान, अभिनव और उद्यमशीलता को प्रयोग में लाना होगा। हम खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में उप-सहारा अफ्रीका के 350 व्यक्तियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए धन जुटा रहे हैं। हमने अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्रों में गन्ना उगाने, ग्रामीण विद्युत ट्रांसमिशन और कृषिगत मशीनरी के क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए लगभग एक मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य की ऋण व्यवस्था को मंजूरी दी है।
उन्होंने कहा किहमें एशिया और अफ्रीका के बीच अधिक पूंजी निवेश और कृषिमें कारोबार को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए निजी क्षेत्र की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की किविभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषिप्रसंस्करण, कृषिगत मशीनरी और पुष्प उत्पादन जैसे क्षेत्रों में भारतीय निवेश अफ्रीका की ओर आकर्षित हो रहा है। उन्होंने कहा किमैं समझता हूं कि भारत की कृषिप्रौद्योगिकियां और प्रणालियां अफ्रीका की परिस्थितयों के अनुकूल हैं और हमें इन प्रौद्योगिकियों और निवेश प्रवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी भारत की भेषज कंपनियां अफ्रीका में एड्स नियंत्रण में सहायता कर रही हैं।
उन्होंने कहा किपिछले वर्ष इथियोपिया के प्रधान मंत्री और मेरे मित्र मेल्स जेनावी ने अफ्रीका में ढांचागत परिवर्तन और हरित अर्थव्यवस्था विषय पर महत्वपूर्ण भाषण दिया था। उस ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने कहा था किअफ्रीका में कृषिके संसाधन आधार को गंभीर खतरा है और अफ्रीकी महाद्वीप में कृषिगत क्रांतिके लिए हरित विकास महत्वपूर्ण है। उन्होंने अफ्रीका में उपलब्ध अक्षय ऊर्जा के विशाल संसाधनों की भी चर्चा की जिसका दोहन अफ्रीका में कृषिक्रांतिलाने के लिए आवश्यक है।
प्रधान मंत्री ने कहा किमैं समझता हूं किभविष्य में हमारी अर्थव्यवस्थाओं के सामने अल्पकालिक और दीर्घकालिक पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता होगी। हमारे वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को अफ्रीका और एशिया में हमारी ग्रामीण परिस्थितियों के सर्वाधिक अनुकूल तकनीकों और प्रक्रियाओं पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।
उन्होंने कहा किविश्व के तीन चौथाई गरीब लोग एशिया और अफ्रीका में रहते हैं, इसलिए टिकाऊ और समावेशी विकास के लिए ग्रामीण पुनर्निर्माण और गरीबी उन्मूलन हमारी योजनाओं के लिए मूलभूत हैं। अफ्रीकी एशियाई ग्रामीण विकास संगठन में भुखमरी, बीमारी और निराशा, जिन्होंने भारत में और अफ्रीका में एक बड़ी आबादी को प्रभावित किया हुआ है, के खिलाफ हमारे सामूहिक संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है। मैं इस संगठन के आदर्शों और लक्ष्यों के प्रतिभारत की पूर्ण प्रतिबद्धता को दोहराता हूं और इस दृढ़ विश्वास के साथ भाषण समाप्त करता हूं कियह संगठन मिस्र के विशिष्ट नेतृत्व के अधीन नई ऊंचाइयां प्राप्त करेगा। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने अतिथियों का पुन: स्वागत करता हूं।