भाषण [वापस जाएं]

February 15, 2012
नई दिल्‍ली


प्रधानमंत्री का राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित कृषि सम्‍बन्‍धी कार्यशाला को सम्‍बोधन

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज यहां राष्‍ट्रपति भवन में कृषि के क्षेत्र में हितधारकों के बीच भागीदारी बढ़ाने के लिए नीतिगत पहल पर आयोजित कार्यशाला को सम्‍बोधित किया। इसमें विशेष रूप से वर्षा सिंचित/शुष्‍क-भूमि खेती का उल्‍लेख किया गया है।

कार्यशाला को सम्‍बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे समझते हैं कि यह कार्यशाला राज्‍यपालों की पिछले द्विवार्षिक सम्‍मेलन के निष्‍कर्षों के आधार पर तैयार की गई, कृषि सम्‍बन्‍धी पहल का एक हिस्‍सा है। हम अब 12वीं पंचवर्षीय योजना की तैयारी के अंतिम चरणों में हैं और यह उपयुक्‍त समय है कि हम कृषि क्षेत्र को सुदृ‍ढ़ करने के सभी प्रकार के उपायों पर चर्चा करें। उन्‍होंने विश्‍वास व्‍यक्‍त किया कि इस कार्यशाला में भाग लेने वाले विशेषज्ञ, जो अपने साथ विविध और विशाल अनुभव एवं विशेषज्ञता लाये हैं, उसका भारतीय कृषि के हित में बहुत ही सार्थक योगदान होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि का हमारे समाज और अर्थव्‍यवस्‍था के लिए महत्‍व वर्षों पर्यन्‍त असाधारण रहा है। सुदृढ़ कृषि क्षेत्र हमारी खाद्य और पौष्टिक सुरक्षा तथा हमारी आबादी के बहुत बड़े हिस्‍से के, जो अभी भी खेती करता है, कल्‍याण और खुशहाली के लिए आवश्‍यक है। उन्‍होंने कहा कि वास्‍तव में किसानों को आजीविका सुरक्षा प्रदान किये बिना हम समावेशी विकास के लक्ष्‍य को सच्‍चे अर्थों में प्राप्‍त नहीं कर सकते।

डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं समझता हूं कि हमारी सरकार ने पिछले लगभग साढ़े सात वर्षों में कृषि की ओर विशेष ध्‍यान दिया है। हम कृषि और सम्‍बद्ध क्षेत्रों में बैंकों के लगभग 4.75 लाख करोड़ रुपये लगा सके हैं। मुख्‍य कृषिगत जिंसों के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍यों में उल्‍लेखनीय वृद्धि हुई है। वास्‍तव में इतनी वृद्धि पहले कभी नहीं हुई। हमने कृषि में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया है और राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना शुरू किये जाने से राज्‍यों को कृषि के क्षेत्र में उनकी भागीदारी और निवेश बढ़ाने का प्रोत्‍साहन मिला है। परिणामस्‍वरूप कृषि और सम्‍बद्ध क्षेत्रों के लिए आबंटन राज्‍य योजना परिव्‍यय के अनुपात के रूप में 2006-07 के 4.88 प्रतिशत की तुलना में 2010-11 में बढ़कर 6.04 प्रतिशत हो गया है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्‍नता व्‍यक्‍त की कि हमारी कृषिगत नीतियों के सार्थक परिणाम निकले हैं। कृषि और सम्‍बद्ध क्षेत्रों में सकल पूंजी निर्माण 2004-05 में सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) के 13.1 प्रतिशत से 2010-11 में बढ़कर 20.1 प्रतिशत हो गया है। कृषि और सम्‍बद्ध क्षेत्र 11वीं योजना के दौरान 3.5 प्रतिशत की अनुमानित दर पर बढ़ा है, जबकि 10वी और 9वीं योजनाओं के दौरान विकास दर क्रमश: 2.4 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत थी।

उन्‍होंने कहा कि हमारे किसानों ने हमें इस वर्ष फिर गौरवान्वित किया है। 2011-12 के द्वितीय अग्रिम अनुमानों से पता चलता है कि खाद्यान्‍नों का उत्‍पादन 250 मिलियन टन से अधिक के रिकॉर्ड स्‍तर तक पहुंच जाएगा, जोकि आलोच्‍य वर्ष के लक्ष्‍य से 5 मिलियन टन अधिक है। 2011-12 में कपास का उत्‍पादन 34 मिलियन गांठे होने का अनुमान है, जो पुन: एक नया रिकॉर्ड होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा, लेकिन हमें अभी भी बहुत आगे जाना है। उन्‍होंने कहा कि मैं यहां उस बात को दोहराना चाहता हूं, जो मैंने पिछले वर्ष 16 जुलाई को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्‍थापना दिवस समारोह के अवसर पर कही थी। वह यह है कि चुनौतियां जिनका भारत के कृषि क्षेत्र को आने वाले वर्षों में सामना करना है, अभी भी विशाल बनी हुई हैं। उदाहरण के रूप में वर्ष 2020-21 में खाद्यान्‍न की कुल मांग को पूरा करने के लिए हमें खाद्य उत्‍पादन में कम से कम दो प्रतिशत वार्षिक की विकास दर प्राप्‍त करने की आवश्‍यकता है, जो कि इस समय मात्र एक प्रतिशत है। यह हमने 1995-96 से 2004-05 की दस वर्ष की अवधि में प्राप्‍त की थी। नि:संदेह खाद्य उत्‍पादन ने हाल के वर्षों में फिर गति पकड़ी है, लेकिन हम इससे संतुष्‍ट नहीं हो सकते, क्‍योंकि बागवानी और पशु उत्‍पादों की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है और इसके लिए कुछ क्षेत्र को खाद्यान्‍न के उत्‍पादन से हटाने की आवश्‍यकता होगी। इसलिए खाद्यान्‍न उत्‍पादन में कृषि उत्‍पादकता अत्‍यधिक बढ़ानी होगी। इसके लिए हमें विस्‍तार सेवाओं की प्रणाली, कृषि अनुसंधान प्रणाली को स़ुदृढ़ करने और किसानों को समय पर गुणवत्‍तापूर्ण अवयवों की उपलब्‍धता को सुनिश्चित करना आवश्‍यक होगा।

उन्‍होंने कहा कि हमें और अधिक कुशल उत्‍पाद मंडियों की भी आवश्‍यकता है, ताकि किसानों को अपने प्रयासों के ठोस लाभ दिखाई दें और वे अधिक उत्‍पादन के लिए प्रोत्‍साहित हों।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि निजी क्षेत्र द्वारा निवेश सार्वजनिक निवेश का पूरक है। इसलिए निजी क्षेत्र के निवेश को कृषि के विभिन्‍न क्षेत्रों में प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। हाईब्रिड और प्रमाणिकृत बीजों का एक बड़ा हिस्‍सा आज निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों से आता है और विपणन प्रचालन-तंत्र में निजी निवेश और जल्‍दी खराब होने वाले उत्‍पादों के साथ विशेष रूप से उप-क्षेत्रों में विकास के लिए महत्‍वपूर्ण होगा।

उन्‍होंने कहा कि इस सब कार्यो में राज्‍यों की निसंदेह महत्‍वपूर्ण भूमिका है। उन्‍होंने खासतौर पर कृषि विपणन में सुधार और देश के कृषि विश्‍वविद्यालयों के पुनरूद्धार के महत्‍व पर बल दिया।

डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि हमें वर्षा सिंचित खेती की आवश्‍यकताओं की ओर विशेष ध्‍यान देना चाहिए, जो मैं समझता हूं कि इस अत्यधिक महत्‍वपूर्ण कार्यशाला का विशेष केन्‍द्र बिन्‍दु है। वर्षा सिचिंत क्षेत्र हमारे देश में उगाये जाने वाले तिलहन और दलहन के 80 प्रतिशत से अधिक का और हमारे कुल कृषि उत्‍पादन के 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं। वे हमारे फसल वाले क्षेत्रों का लगभग 60 प्रतिशत है। हमारे देश के वर्षा सिचिंत क्षेत्रों में उत्‍पादन का स्‍तर कम बना हुआ है और इनकी वृद्धि न केवल कृषि उत्‍पादन बढ़ाने के लिए बल्कि, वर्षा सिंचित कृषि पर निर्भर बड़ी संख्‍या में किसानों के लाभ के लिए भी जरूरी है।

उन्‍होंने कहा कि मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि केन्‍द्र सरकार और राज्‍य सरकारों के संबद्ध मंत्रालयों, कृषक संगठनों और औद्योगिक घरानों सहित सभी मुख्‍य हितधारकों के प्रतिनिधित्‍व से यह कार्यशाला वर्षा सिंचित क्षेत्रों में कृषि के लाभ के लिए तकनीकी रूप से ठोस और प्रशासनिक रूप से लागू की जाने वाली सिफारिशों के साथ संपन्‍न होगी।

अंत में प्रधानमंत्री ने राष्‍ट्रपति महोदया का कृषि क्षेत्र में पहल करने के लिए आभार व्‍यक्‍त किया। इससे उनकी किसानों से संबंधित मामलों में गहरी और अटूट रूचि का पता चलता है। मैं यह भी कामना करता हूं कि इस कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी प्रतिनिधि भारतीय कृषि के इस नेक काम में उल्‍लेखनीय योगदान करेंगे।