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मेरे लिए इस वार्षिक आयोजन में शामिल होना हमेशा हर्ष का विषय रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि हम एक आधुनिक, औद्योगीकृत अर्थ व्यवस्था वाले भारत का तब तक निर्माण नहीं कर पायेंगे जब तक हमारे लक्ष्य तेज और समावेशी विकास के न हों। हमारे उद्योगों, श्रमिकों और सरकार को सद्भावपूर्ण वातावरण में और भागीदारी की भावना से काम करना है और ऐसा करके ही हम तेज और सर्वसमावेशी आर्थिक प्रगति का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे। इसी बात में इस भारतीय श्रम सम्मेलन का महत्व निहित है। हम सबको पता है कि इस सम्मेलन के पिछले अधिवेशनों से श्रम कल्याण के प्रोत्साहन और भागीदारी की भावना पैदा करने में बहुत मदद मिली है। सम्मेलन के इस 44वें अधिवेशन जो विचार-विमर्श होगा, उसके बारे में नि:संदेह इस अधिवेशन के शानदार रिकार्डों पर आप अमल करेंगे।
हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व हमेशा देश के श्रमिकों के कल्याण और उनमें स्वस्थ औद्योगिक संबंध को बढ़ावा देने को बहुत महत्व देता रहा है। 1942 से पहले भारतीय श्रम सम्मेलन का पहला अधिवेशन हुआ था उस समय इसे त्रिपक्षीय राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन कहा जाता था। तब से इस सम्मेलन की 43 बैठकें हो चुकी है और उनमें औद्योगिक संबंध, श्रम कल्याण और इससे संबद्ध मुद्दों जैसे सामायिक विषयों पर चर्चा होती रही है। प्रधानमंत्री के रूप में मैंने सबसे पहले 2005 में इसके 40वें अधिवेशन में भाग लिया था। उस समय मैंने कहा था कि यूपीए सरकार सभी श्रमिकों और खासतौर से असंगठित क्षेत्र के कामगारों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध रही है। तब से सचमुच ही हमारी सरकार ने हमारी इस प्रतिबद्धता को अमल में लाने के लिए कड़ी मेहनत की है और पिछले साढ़े सात वर्षों में हम ऐसा करते रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का, जिससे इस समय 2.5 करोड़ से ज्यादा असंगठित क्षेत्र के गरीबी रेखा से नीचे वाले कामगार और उनके परिवार इस कार्यक्रम से लाभान्वित हो रहे है, कार्य क्षेत्र बढ़ा दिया गया है और इसमें निर्माण श्रमिक, फेरीवाले, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के लाभार्थी बीड़ी श्रमिक और घरेलू श्रमिक शामिल कर लिये गये हैं। आम आदमी बीमा योजना के अंतर्गत ग्रामीण भूमिहीनों को मृत्यु और विकलांगता के मामले में लाभ दिया जा रहा है। महात्मा राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम से गांवों से शहरों की ओर पलायन में कमी आयी है और श्रमिकों की मजदूरी बढ़ गयी है। जहां तक ईएसआईसी से लाभ उठाने की बात है, इसकी सीमा घटाकर 20 से 10 व्यक्ति कर दी गई है। ईएसआईसी के जरिए इलाज की सुविधाएं भी परोक्ष व्यवस्था के जरिए दी जा रही है। इसके लिए डॉक्टरो का एक पैनल बनाया गया है। बड़े पैमाने पर मूल सूविधाएं बढ़ाकर और सूचना टेक्नॉलजी से आधुनीकीकरण करके विशेष रोगों के इलाज की सुविधाएं बढ़ाने से ईएसआईसी (एम्पलॉइज स्टेट इंशयोंरेस कारपोरेशन) सेवाओं के लाभार्थियों में वृद्धि हुई है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने इस निधि के लाभ कई अन्य वर्गों खासतौर से निर्माण श्रमिकों तक बढ़ाने के उद्देश्य से अपने 60 मिलियन लाभार्थियों के विवरण कम्पयूटरीकृत करने के उपाय किये है जिससे इन सेवाओं की गुणवत्ता में बहुत सुधार आयेगा।
हमारी सरकार ने सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक नए उपाय किये है जिनके अच्छे परिणाम सामने आ रहे है। पिछले कुछ वर्षों में बाल श्रमिकों की संख्या में काफी कमी आई है। भारतीय मानव विकास रिपोर्ट 2011 के अनुसार 6 से 14 वर्ष तक की आयु वाले बाल श्रमिकों की संख्या में 1994 के मुकाबले 2010 में 2 प्रतिशत की कमी आई। 1994 में यह 6.2 प्रतिशत थी। शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 जिसमें 14 वर्ष तक के बच्चों केा अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था है, के कारण बाल श्रमिक प्रथा पूरी तरह मिट जाने की उम्मीद है।
मैं समझता हूं कि इस सम्मेलन के विचारणीय विषयों में रोजगार और रोजगार पात्रता शामिल है। मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमारी सरकार ऐसे आर्थिक प्रबंधन की व्यवस्था सृजित करने के लिए वचनबद्ध है जिससे रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा होंगे। लेकिन रोजगार के अवसर तभी आ सकते हैं जब अर्थ व्यवस्था का विस्तार हो रहा हो और पर्याप्त विस्तार हो रहा हो। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हम विकास की दर तेज करने में सफल हुए हैं हमारी महत्वकांक्षा है कि देश के श्रमिक और उद्योग मालिक मिलकर काम करें ताकि विकास की कम से कम 9 प्रतिशत दर प्राप्त की जा सके। ऐसी विकास दर के साथ हम उम्मीद कर सकते हैं कि देश गरीबी, अज्ञान और रोगों से मुक्ति पा सकेगा जो अब भी करोड़ों लोगों को अपने चंगुल में जकड़े हुए हैं। मुझे उम्मीद है कि आप इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे।
मैं समझता हूं कि इस सम्मेलन के एजेंडे में एक विषय के रूप में रोजगार और रोजगार पात्रता भी शामिल है। यह ऐसा क्षेत्र हैं जिसे मैं बहुत महत्वपूर्ण मानता हूं। हमें बहुत बड़ी संख्या में उन युवकों को रोजगार के अवसर प्रस्तुत करने की जरूरत है जो हर साल कार्यबल में शामिल हो जाते है। युवकों केा रोजगार देना हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता वाले एजेंडे में शामिल है। ऐसा तभी हो सकता है जब हम अपने युवा वर्ग को उन कौशलों से लैस करें जिनकी तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था में मांग होती है।
भारतीय अर्थ व्यवस्था की 2004 से तेज प्रगति ने कौशल विकास की प्रक्रिया की खामियों को उजागर कर दिया है। आज कौशल की उपलब्धता संभवत: वह महत्वपूर्ण बाधा है जो औद्योगिक विकास में आड़े आ रही है। इस समस्या को देखते हुए हमने कौशल विकास मिशन शुरू किया है जिसके अंतर्गत पब्लिक प्राइवेट पाटर्नरशिप के जरिए औपचारिक रूप से प्रशिक्षित बड़ी संख्या में श्रमिकों की उपलब्धता बढ़ाई जायेगी। इसके लिए हम एक राष्ट्रीय व्यावसायिक योग्यता विकास और डिजाइन की प्रक्रिया चला रहे है ताकि प्रत्यायन तथा संबद्ध करने के मानकों का पालन हो सके। श्रम बाजार सूचना व्यवस्था को भी ठीक- ठाक किया जा रहा है। पहुंच के दायरे और अधिगम्यता बढ़ाने के लिए कौशल विकास में शामिल विभिन्न मंत्रालय और विभाग आपस में समन्वय स्थापित कर रहे हैं। मेरे मित्र खड्गे जी के नेतृत्व में श्रम और रोजगार मंत्रालय ने आने वाले तीन वर्षों में देश भर में 1500 नवीन औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान और 5000 कौशल विकास केन्द्र स्थापित करने का बीड़ा उठाया है। देश के चरमपंथ प्रभावित जिलो में प्रशिक्षण अवसंरचना विस्तृत करने के लिए विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
हालांकि कौशल विकास अवसंरचना विस्तृत करने की प्रक्रिया, जितना मैंने सोचा था उससे धीमी प्रगति कर रही है। हमें यदि इस बड़ी चुनौती से निपटना है तो निजी क्षेत्र को अपने प्रयासों में और अधिक सक्रियता से काम करना होगा। कौशल सीखने के लिए गरीब विद्यार्थियों के पास वित्तीय रुप से सक्षम स्थिति होनी चाहिए न कि बिना इसे ठीक से समझे हुए रोज़गार करना चाहिए। इस प्रकार के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त वित्तीय सहायता सुनिश्चित कराने के लिए उद्योग और सरकार को साथ मिलकर काम करना चाहिए।
हमारी सरकार श्रम कानूनों को मजबूती प्रदान करने और हमारे श्रमिक वर्ग के कल्याण की सुरक्षा के लिए इन कानूनों के पालन के वास्ते पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उदाहरण के लिए कारखानों में काम करने की स्थितियों और श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्रीय कानूनों में से कारखाना अधिनियम -1948, वर्तमान में संशोधन की प्रक्रिया में है। 1987 में इस अधिनियम में संशोधन किए जाने के बाद से बहुत से बदलावों के मद्देनजर कारखाना अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता महसूस की गई। इसमें भोपाल त्रासदी से उपजी चिंताओं खासतौर पर औद्योगिक आपदाओं में कमी लाने, औद्योगिक श्रमिकों और अन्य प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास और मुआवज़े से संबंधित चिंताएं शामिल हैं। अंतर-राष्ट्रीय श्रम संगठन के कुछ मसौदों की संपुष्टि के वास्ते भी इस अधिनियम में संशोधन किया जा रहा है।
कई बार यह विचार जाहिर किया जाता है कि भारतीय श्रम नीतियां संगठित क्षेत्र में रोज़गार विस्तार के विरुद्ध अनावश्यक रुप से मौजूदा कार्यरत श्रमिकों के हितों का संरक्षण करती हैं। हालांकि हाल के वर्षों में यह विचारधारा धूमिल हो रही है क्योंकि ज्यादा से ज्यादा राज्य सरकारें श्रम क्षेत्र के नवीनीकरण और पुनर्गठन के लिए लचीला रुख अपना रही हैं। हमारी सरकार हमारे श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, हमें समय-समय पर यह भी ध्यान देते रहना चाहिए कि क्या हमारे नियामक ढ़ांचे का कुछ हिस्सा श्रम कल्याण में योगदान दिए बगैर बेवजह रोजगार, उद्यम और उद्योग में बाधा डाल रहा।
अपने संबोधन को समाप्त करने से पहले मैं दो महत्वपूर्ण मुद्दों का ज़िक्र करना चाहता हूं जो मेरे हिसाब से बेहद आवश्यक है। महिलाएं हमारे देश का वह हिस्सा हैं जिनका ठीक प्रकार से उपयोग नहीं हुआ है। हमारे देश में महिला श्रमिक बल भागीदारी दर काफी धीमी है और पिछले कुछ दशकों में यह लगभग एक समान ही रही है। अधिक महिलाओं को कार्य बल में लाने के लिए यह जरुरी है कि हम उनकी बाधाओं को समझे जो उन्हें परिवार और काम के दायित्व के बीच संतुलन स्थापित करने में पेश आती है। हालांकि मनरेगा सहित हमारे नियामन में क्रेचों की स्थापना का प्रावधान शामिल किया गया है लेकिन साफ तौर पर यह काफी नहीं है। हमें अंश-कालीन काम के लिए भी प्रावधान करने की ज़रुरत है जिसके लक्षण पूर्णकालिक रोज़गार के समान हो। इसके लिए यदि कानून में बदलाव की ज़रुरत हो तो हमें इसके लिए तैयार रहना है और इसे वास्तविक्ता बनाने के लिए इसके खाके पर कार्य शुरु कर देना चाहिए।
अन्य मुद्दा जिसे मैं उठाना चाहूंगा वह है काम के सिलसिले में एक स्थान पर दूसरे स्थान पर जाने वाले श्रमिक। ऐसे श्रमिकों के कल्याण और बेहतरी को सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान में हमारी प्रणाली अधिक मज़बूत नहीं है। इस सिलसिले में हमें अपने ज्ञान, विवेक और अनुभव के साथ इसे मज़बूत करने की ज़रुरत है। इस संदर्भ में प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की सुवाह्यता के लिए आधार संख्या एक महत्वपूर्ण प्रणाली साबित हो सकती है।
मेरी उत्कट आशा है कि इस सम्मेलन में आपकी चर्चाएं लाभप्रद और सार्थक होंगी। भारतीय श्रम सम्मेलन के पिछले सत्र में उठाए गए कामों को आगे बढ़ाने में आपके उत्कृष्ट कार्यों के लिए मेरी शुभकामनाएं हैं।