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12वें भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के दौरान संयुक्त मीडिया वार्ता में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज यहां निम्नलिखित वक्तव्य दिया :-
''मैं लिस्बन संधिलागू होने के बाद भारत में आयोजित पहले भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन में महामहिम श्री हरमेन वान रोमपुय और श्री जोस मैनुएल बैरोसो का स्वा्गत करते हुए प्रसन्नता का अनुभव करता हॅूं।
हमने अभी-अभी एक सुखद और मैत्रीपूर्ण वातावरण में काफी सकारात्मक और विभिन्न मुद्दों पर आधारित विचार-विमर्श का समापन किया है।
भारत और यूरोपीय संघ इस तेजी से बदलते हुए और जटिलतापूर्ण विश्व में रणनीतिक साझेदार हैं। यूरोप का राजनीतिक और आर्थिक एकीकरण वैश्विक स्थायित्व और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। यूरोपीय संघ के नेताओं ने मुझे यूरोजोन में ऋण संकट से निपटने के लिए यूरोप द्वारा उठाये गए कदमों के बारे में जानकारी दी है। मैने इस समस्या के शीघ्र और टिकाऊ समाधान की कामना करते हुए उन्हें अपनी शुभ कामनाएं दी हैं। यूरोप के साथ तेजी से बढ़ते संबंधों के दौर में यह भारत के हित में है। यूरोप की आर्थिक भरपाई वैश्विक अर्थव्यवस्था सुनिश्चत करने और बाजार का भरोसा पुन: स्थापित करने के लिए भी अनिवार्य है।
वर्ष 2011 में हमारा व्यापार 107 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया है। दोनों पक्षों ने व्यापार और निवेश् पर आधारित व्यापक समझौते की दिशा में भी काफी प्रगति की है। इसमें कई जटिल मुददे शामिल हैं, किन्तु हम दोनों में वार्ताओं में तेजी लाने पर सहमति हुई है ताकि हम बहुत जल्दी समझौते तक पहुंच सकें। हमारे लिए वैसे समाधानों की जरूरत है जो व्यावहारिक, परस्पर लाभदायक और दोनों पक्षों को स्वीकार्य हों।
मैंने यूरोपीय संघ के नेताओं को इस बारे में बताया है कि यूरोपीय संघ की हमारे विकास के एजेंडे में भागीदारी भारत के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, जिसमें बुनियादी सुविधा का विकास, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी, नवाचार, अनुसंधान और कौशल विकास शामिल है। दोनों पक्षों केलिए दोनों ओर से हो रहा अधिक निवेश प्रवाह काफी लाभदायक है।
अनुसंधान और अभिनव सहयोग पर आधारित संयुक्त घोषणा पत्र और सांख्यिकीय सहयोग पर आधारित सहमति पत्र हस्ताक्षर होने के बाद हमारी अर्थव्यवस्थाएं और भी अधिक मजबूती के साथ जुड् जाएंगी।
मैंने जनता से जनता के बीच आदान प्रदान बढ़ाने और पर्यटन, व्यापारियों, व्यावसायिकों तथा अन्य वर्ग के यात्रियों के आने जाने के मुद्दे उठाए। भारत के यूरोपीय संघ के साथ संबंध आर्थिक और व्यापारिक मुद्दों से बढ़चढ़ कर हैं। लोकतंत्र के सिद्धांत, नागरिक अधिकारों का सम्मान और कानून का शासन हमारे साझे मूल्य हैं। द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के सुरक्षा संबंधी और राजनीतिक मुद्दों पर हमारे बीच मुक्त और स्वस्थ आदान-प्रदान हुआ।
भारत और यूरोपीय संघ संयुक्त कार्य योजना की जिसे वर्ष 2005 में अंगीकार किया गया था, 2008 में समीक्षा की गई और उसमें हमारे पारस्परिक सहयोग और संबंधों का पूरा फलक शामिल हैं।
हमने अपने संबंधों के अन्य क्षेत्रों पर भी व्यापक चर्चा की। इनमें ऊर्जा सहयोग, विज्ञान और टेकनोलॉजी, संस्कृति, जवाबी आतंकवाद, समुद्री डकैती और साइबर सिक्योरिटी जैसे मुद्दे शामिल हैं।
हमने पश्चिम एशिया की स्थिति पर एक दूसरे के विचार जाने। खासतौर से सीरिया और ईरान तथा हमारे निकट पड़ोस स्थित अफगानिस्तान और पाकिस्तान के घटनाक्रमों पर चर्चा हुई। इन क्षेत्रों में स्थिरता प्रोत्साहित करने में हमारी एक जैसी रूचि है। हमने जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संकट और वैश्विक सुशासन सुधारों जैसी अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों पर चर्चा की। कोरिया में होने वाले आगामी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा सम्मेलन, मेक्सिको में होने वाली जी-20 शीर्ष बैठक, ब्राजील में रियो-20 सम्मेलन और भारत में होने वाले जैविक विविधता सम्मेलन में हम यूरोप के साथ मिलकर काम करना चाहेंगे।
आज की हमारी चर्चा से हमारे इस विश्वास को बल मिला है कि यूरोपीय संघ के साथ हमारी भागीदारी आगामी वर्षों में जारी रहेगी। भारत सभी मुद्दों पर यूरोपीय संघ के साथ मिलकर काम करने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है। यह ऐसी भागीदारी है, जो आगामी वर्षों में वैश्विक महत्व का रूप धारण करेगी।