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January 3, 2012
भुवनेश्‍वर


भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 99वें वार्षिक अधिवेशन में प्रधानमंत्री का भाषण

भुवनेश्‍वर में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 99वें वार्षिक अधिवेशन में आकर मुझे बहुत प्रसन्‍नता हो रही है। ओड़ीशा में इस अधिवेशन का आयोजन होना बहुत ही उचित है, क्‍योंकि इस वर्ष हम स्‍वर्गीय श्री बीजू पटनायक द्वारा स्‍थापित यूनेस्‍को- कलिंग पुरस्‍कार की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। भा‍रतीय विज्ञान का विकास हमारे पूर्व के राष्‍ट्र निर्माताओं की दूरदृष्टि की देन है, जिन्‍होंने हमारी विकास योजना की प्रक्रियाओं में विज्ञान को महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिया।

मैं प्रोफेसर गीता बाली को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि उन्‍होंने इस कांग्रेस के लिए - महिलाओं की भूमिका के विशेष संदर्भ में समग्र नवीकरण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का महत्‍व- जैसे विषय को चुना।

100 वर्ष पहले 20वीं शताब्‍दी की सबसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों में से एक मैडम मेरी क्‍यूरी ने अपना पहला नोबेल पुरस्‍कार जीता। उनकी उपलब्धियों के सम्‍मान में पिछले वर्ष को अंतर्राष्‍ट्रीय रसायन वर्ष घोषित किया गया।

मैडम मेरी क्‍यूरी ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए एक ज्योति जगाई। लेकिन उनके कार्य ने उनके इस विश्‍वास को भी उजागर किया कि अंतत: विज्ञान को सामाजिक कल्‍याण के लिए योगदान देना चाहिए। उन्‍होंने प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान एक्‍सरे केन्‍द्र स्‍थापित करने में सहायता की और क्‍यूरी फाउन्‍डेशन की स्‍थापना की, जो भंयकर कैंसर रोग के उपचार में बहुत बड़ा संबल बना।

मैंने देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के अपनी सरकार के संकल्‍प को अक्सर दोहराया है। इस उद्देश्‍य के लिए हमने कई कदम उठाए हैं।

·  हमने नई संस्‍थाओं की स्‍थापना करके विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए उच्‍च शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं का काफी विस्‍तार किया है।

· 11वीं पंच वर्षीय योजना से अनुसंधान और विकास में सार्वजनिक निवेश प्रति वर्ष 20 से 25 प्रतिशत बढ़ा है।

· विश्‍वविद्यालयों में अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्‍कृष्‍टता को प्रोत्‍साहन देने के लिए कई परियोजनाओं के लिए धन दिया गया है। हमने बड़ी संख्‍या में छात्रवृत्तियां शुरू की हैं। इनमें सबसे अधिक उल्‍लेखनीय है- निर्दिष्‍ट अनुसंधान के लिए विज्ञान में नवीकरण की योजना ‘इन्‍सपायर’ के लिए दस लाख विज्ञान छात्रों को पुरस्‍कार।

इस बात के प्रमाण मिल रहे हैं कि इन प्रयासों के अच्‍छे परिणाम निकलने शुरू हो गए हैं।

पिछले कुछ वर्षों में भारत में कार्यरत भारतीय वै‍ज्ञानिकों के प्रकाशित वैज्ञानिक आलेखों की संख्‍या में वैश्विक औसत 4 प्रतिशत के मुकाबले प्रति वर्ष 12 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि हुई है। पत्रिकाओं में वैज्ञानिक आलेखों की संख्‍या की दृष्टि से 2003 में भारत का स्‍थान 15वां था, जो 2010 में 9वां हो गया है।

विश्‍वविद्यालय अनुसंधान प्रणाली भी आगे बढ़ रही है। 2008 में विश्‍वविद्यालय अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्‍कृष्‍टता प्रोत्‍साहन (पर्स) योजना के अंतर्गत मैंने 14 वि‍श्‍वविद्यालयों को पुरस्‍कार दिये थे। उसी कसौटी पर 2010 में 30 और विश्‍वविद्यालय खरे उतरे हैं। अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग के अंतर्गत प्रति पत्र प्रशस्तियों में 50 शीर्ष भारतीय वैज्ञानिक संस्‍थाओं में से राजस्‍थान विश्‍वविद्यालय सबसे आगे है। मुझे बताया गया है कि हम विज्ञान और इंजीनियरी में प्रति वर्ष 8900 पीएचडी डिग्रियां देते हैं, जो पाँच वर्ष पहले की संख्‍या से तीन हजार अधिक हैं।

‘इन्‍सपायर’ योजना ठीक तरह से चल रही है और समग्रता के हमारे हितों के अनुकूल कार्य कर रही है। इस योजना में कमजोर वर्गों को स्‍थान मिलना अच्‍छी बात है। ‘इन्‍सपायर’ के पुरस्‍कार विजेताओं में 49.6 प्रतिशत महिलाएं हैं। ‘इन्‍सपायर’ योजना की फेलोशिप प्राप्‍त करके शोध कार्य करने वालों में 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं।

पिछले कुछ दशकों में विज्ञान जगत में भारत की स्थिति अपेक्षतया नीचे चली गई है और चीन जैसे देश ऊपर आ गये हैं। अब स्थिति बदल रही है, लेकिन जो कुछ हमने प्राप्‍त किया है, हम उससे संतुष्‍ट नहीं हो सकते। भारतीय विज्ञान की छवि बदलने के लिए हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है। विज्ञान क्षेत्र की आपूर्ति श्रृंखला को हमें मजबूत बनाना होगा। यह बात सही है कि विज्ञान और इंजीनियरी क्षेत्र हमारे अत्‍यंत प्रतिभाशाली छात्रों को आकर्षित करतें हैं, लेकिन इनमें से कई बाद में दूसरी नौकरियों की ओर चले जाते हैं, क्‍योंकि विज्ञान में आगे उन्हें कम उन्नति दिखाई देती है।

हमें अपने वै‍ज्ञानिक कार्यों को अपने विकास के चरण के अधिक अनुकूल बनाना होगा। कहा जाता है कि विज्ञान ज्‍यादातर समृद्ध लोगों की समस्‍याओं पर ध्‍यान देती है और बहुसंख्‍यक, ग़रीब तथा पिछड़े वर्गों की चुनौतीपूर्ण समस्‍याओं को नजरद अंदाज करती है।

हम 12वीं पंच वर्षीय योजना शुरू करने जा रहे हैं। लिहाजा, कुछ ऐसे उद्देश्‍य हैं, जिन्‍हें विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में प्राप्‍त करने की हमें पूरी कोशिश करनी होगी।

पहला, हमें उद्योग और महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों सहित अनुसंधान और विकास में निवेश को काफी बढ़ाना होगा।

दूसरा, हमें नवीकरण ईको प्रणाली के विकास को सुनिश्चित करना होगा।

तीसरा, हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी को देश की समग्र विकास की आवश्‍यकताओं के अधिक अनुरूप बनाना होगा।

चौथा, हमें वैज्ञानिक बुनियादी सुविधाओं का विकास करना होगा।

पाँचवाँ, हमें विश्‍वविद्यालयों और राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाओं के बीच अधिक अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देना होगा। इस उद्देश्‍य के लिए हम राष्‍ट्रीय नॉलेज नेटवर्क का उपयोग कर सकते हैं।

और अंत में, हमें अंतर्राष्‍ट्रीय संस्‍थानों के साथ भी सहयोग का विस्‍तार करना होगा। जहां तक संसाधनों की बात है, सकल घरेलू उत्‍पाद का जो थोड़ा सा हिस्‍सा भारत में अनुसंधान और विकास पर खर्च होता है, वह बहुत कम है और इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। अनुसंधान और विकास में इस समय लगभग एक प्रतिशत खर्च होता है, जिसे 12वीं योजना के अंत तक बढ़ा कर हमें कम से कम दो प्रतिशत करना होगा। यह तभी संभव है जब उद्योगों का इसमें योगदान बढ़े, क्‍योंकि अनुसंधान और विकास में जितना खर्च होता है उसमें लगभग एक तिहाई हिस्‍सा उद्योगों द्वारा खर्च किया जाता है। मेरा मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमियों को, जो विशेष रूप से ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, उन्‍हें इस विस्‍तार कार्यक्रम में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए।

हमें सरकारी-निजी भागीदारी को बढ़ाना होगा तथा सरकारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्‍थाओं और उद्योगों के बीच आदान-प्रदान में वृद्धि करनी होगी। यह विडम्‍बना है कि ‘जनरल इलैक्ट्रिक एंड मोटोरोला’ ने भारत में वैश्विक श्रेणी के टैक्‍नोलोजी हब विकसित किये हैं, जबकि संभवत: औषधि उद्योग को छोड़कर हमारे अपने अन्‍य उद्योग ऐसा नहीं कर सके हैं। इसलिए हमें भारतीय परिस्थितियों में निजी अनुसंधान और विकास के निवेश को प्रोत्‍साहित करने के उपाय करने होंगे।

इस समय सरकारी सहायता प्राप्‍त अनुसंधान और विकास कार्य मुख्‍य रूप से बुनियादी अनुसंधान के लिए किये जा रहे हैं, न कि प्रायोगिक अनुसंधान के लिए। प्रायोगिक अनुसंधान के क्षेत्र में उद्योगों से निवेश को, आकर्षित करना आसान है और हमें इसके लिए अनुकूल नियम बनाने होंगे तथा अनुसंधान और विकास में सरकारी – निजी भागीदारी को बढ़ावा देना होगा।

सिंगापुर में बायोपो‍लीस, सामूहिक प्रयास का एक ऐसा दिलचस्‍प उदाहरण है, जिसने जैव-विज्ञानों के क्षेत्र में सरकारी प्रयोगशालाओं और गैर-सरकारी उद्योगों से 2 हजार वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं को एक ही स्‍थान पर आकर्षित किया है। भारत में हमारा ओपन सोर्स ड्रग डिस्‍कवरी प्रोजेक्ट, वास्‍तव में एक सामूहिक प्रयास है, जो उपयोगी और प्रभावी हल दे रहा है, जो केवल परम्परागत तरीके के प्रयोगशाला अनुसंधान से संभव नहीं हो पाता।

अनुसंधान से नया ज्ञान प्राप्‍त होता है, लेकिन हमें इस नये ज्ञान का उपयोग सामाजिक लाभ के वास्‍ते उपयोगी ढंग से करने के‍लिए नई विधियों की आवश्यकता है। हमने 2010-20 के दशक को, नवीकरणों का दशक घोषित किया है। हमें नवीकरण को व्‍यावहारिक अर्थ देना होगा, ताकि यह मात्र शब्‍द ही बनकर न रह जाए।

मैं समझता हूं की राष्‍ट्रीय नवीकरण परिषद का भारत समग्र नवीकरण कोष स्‍थापित करने का प्रस्‍ताव है, जिससे उद्यमों, उद्यमशीलता और उद्यम पूंजी को प्रोत्‍साहन मिलेगा और साथ ही समाज के निचले वर्गों की समस्‍याओं के हल भी ढूंढे जाएंगे।

इस संदर्भ में यह महत्‍वपूर्ण है कि हम कृषि, वास्‍तु कला, हस्‍तशिल्‍प और कपड़ा क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में हमारे देश में उपलब्‍ध परम्‍परागत ज्ञान और पद्धतियों को खोंजे और उन्‍हें उन्‍नत करें। इसके लिए हमें बहुत दूर जाने की आवश्‍यकता नहीं है। मयूरभंज के घने वन क्षेत्रों में खारिया, संथाल, गोंड और कोल्‍हा जाति के आदिवासी समुदाय रहते हैं। उनके पास स्‍थानीय तौर पर उपलब्‍ध जड़ीबूटियों के उपयोग से उपचार के ज्ञान का भंडार है।

मैं कोरापुट के आदिवासी समुदाय को बधाई देता हूं, उन्‍हें जैव-विविधता को संरक्षित रखने में योगदान के लिए और जलवायु के अनुकूल कृषि पद्धतियां विकसित करने के लिए वैश्विक मान्‍यता मिली है।

आज जैसे अवसर पर हमें एक बुनियादी सवाल पूछना चाहिए : भारत जैसे देश में विज्ञान की भूमिका क्‍या है, इसका कोई सरल उत्‍तर नहीं है। लेकिन जो देश ग़रीबी और विकास की चुनौतियों से जूझ रहा हो, उसके लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवीकरण की व्‍यापक और सुविचारित नीति का सबसे बड़ा उद्देश्‍य त्‍वरित सतत और समग्र विकास के राष्‍ट्रीय लक्ष्‍य की प्राप्ति में सहयोग देना होना चाहिए।

इन उद्देश्‍यों की प्राप्ति के लिए वैज्ञानिक समुदाय बहुत कुछ कर सकता है। हमारे लोगों की खाद्य, ऊर्जा और जल सुरक्षा की समस्‍याओं के साधारण हल ढूंढना अनुसंधान का उद्देश्‍य होना चाहिए। विज्ञान से हमें यह समझने में मदद मिलनी चाहिए कि हम सतत विकास और हरित विकास की धारणा को मूर्त रूप कैसे दें। विज्ञान को हमारी सोच को बदलने में मददगार होना चाहिए, जिससे कि हम अपने संसाधनों को अधिक उपयोगी कार्य में लगा सकें। प्रौद्योगिकी और प्रोसेस इंजीनियरिंग से हमें मदद मिलनी चाहिए, जिससे कि विकास के लाभ उन तक पहुंच सके, जिन्‍हें इनकी सबसे ज्‍यादा जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन की राष्‍ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत हमारी सरकार ने सतत कृषि विकास, जल, ऊर्जा कुशलता, सौर ऊर्जा और वन विकास जैसे महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में आठ राष्‍ट्रीय मिशन शुरू किये हैं। इन सभी मिशनों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बड़ी भूमिका है। मैं वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह करूंगा कि वे अपने सम्मिलित ज्ञान और विवेक से इन महत्‍वपूर्ण मिशनों की सफलता में योगदान दें।

कई उपाय पहले भी किये जा चुके हैं। डॉ. अनिल काकोदकर की अध्‍यक्षता में भारतीय सौर ऊर्जा निगम की स्‍थापना की गई है, जो अब अच्‍छी तरह काम कर रही है। एक राष्‍ट्रीय जल नीति बनाने पर सक्रियता से विचार हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के लिए महत्‍वपूर्ण ज्ञान पर राष्‍ट्रीय मिशन, दो उत्‍कृष्‍टता केन्‍द्रों - आईआईटी मुम्‍बई और आईसीआरआईएसएटी हैदराबाद में जलवायु विज्ञान में क्षमता निर्माण के लिए शुरू किये जा रहे हैं।

खाद्य उत्‍पादन में वृद्धि और पौष्टिकता सुरक्षा अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है और हमारे कृषि वैज्ञानिकों को ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल करनी चाहिए, जिससे दूसरी हरित क्रांति एक वास्तविकता बन सके।

हम सुपरकंप्‍युटर के क्षेत्र में राष्‍ट्रीय क्षमता और योग्‍यता के विकास के एक प्रस्‍ताव का अध्‍ययन कर रहे हैं, जिसे भारतीय विज्ञान संस्‍थान, बंगलूरू द्वारा मूर्त रूप दिया जाएगा। इस पर पाँच हजार करोड़ रूपये के खर्च का अनुमान है।

तमिलनाडु में थेनी ज़िले में एक न्‍युट्रीनो वेधशाला स्‍थापित करने के प्रस्‍ताव पर सरकार विचार कर रही है। इस पर 1350 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्‍तावित है। भूविज्ञान विभाग ने भारतीय मॉनसून से संबंधित भविष्‍यवाणियों में सुधार के लिए एक मॉनसून मिशन की शुरूआत की है।

इस वर्ष नोबेल पुरस्‍कार समिति ने तीन विशिष्‍ट महिलाओं के योगदान को मान्‍यता दी है, जो अपने-अपने देशों में शांति, लोकतंत्र और मानव गरिमा के लिए संघर्ष में परिवर्तन की प्रेरणादायक सूत्रधार बनी।

भारत में भी परम्‍परागत पुरूष प्रधान समाज में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं और निर्णायक भूमिकाएं निभा रही हैं। अग्नि मिसाइल कार्यक्रम की प्रोजेक्‍ट डायरेक्‍टर प्रतिभाशाली महिला वैज्ञानिक डॉ. टेसी थॉमस हैं। पिछले वर्ष पहली बार तीन महिला वैज्ञानिकों को प्रतिष्ठित शांतिस्‍वरूप भटनागर पुरस्‍कार मिला, जबकि 1958 से लेकर पिछले वर्ष तक कुल 11 महिलाओं को पुरस्‍कार मिला।

मैं इन सृजनात्‍मक महिला वैज्ञानिकों को बधाई देता हूं। मुझे उम्‍मीद है कि उनके उदाहरणों से अन्‍य महिलाओं को भी विज्ञान में कॅरियर बनाने की प्रेरणा मिलेगी। इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्‍व कम है। मैं विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा महिला वैज्ञानिक योजना शुरू करने के लिए उसकी सराहना करता हूं। इसकी मदद से 2 हजार से अधिक महिला वैज्ञानिक फिर से अपने कॅरियर के साथ जुड़ गई हैं, जिससे वे अपने पारिवारिक दायित्‍वों के कारण पीछे हट गई थीं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ‘दिशा’ नाम से एक और योजना भी तैयार कर रही है, जिससे महिला वैज्ञानिक एक से दूसरे शहर में स्‍थानांतरित होकर जा सकेंगी। विभाग इस उद्देश्‍य के लिए सरकारी सहायता प्राप्‍त संस्‍थाओं में अनुबंध के आधार पर एक हजार पद सृजित करेगा। एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान जाने पर सेवारत महिला वैज्ञानिक को बराबर राशि की फेलोशिप दी जाएगी।

लेकिन, हमें पिछले वर्ष प्रकाशित एक अध्‍ययन के परिणामों पर भी गौर करना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि करीब 2 हजार भारतीय विज्ञान पीएचडी महिलाओं में से, जिनका सर्वेक्षण किया गया, 60 प्रतिशत बेरोजगार हैं। इसका मुख्‍य कारण रोजगार के अवसरों की कमी बताया गया। बहुत कम मामलों में इसके लिए पारिवारिक कारण बताए गए। इससे पता चलता है कि संस्‍थाओं में चुनाव प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता की आवश्‍यकता है और स्त्री पुरूष को बराबरी का दर्जा देना महत्‍वपूर्ण है।

इस वर्ष हम महान गणित शास्‍त्री श्रीनिवास रामानुजन की 125 जयंती भी मना रहे हैं। गणित में हमारे परम्‍परागत आधिपत्‍य को कायम रखने के महत्‍व को दर्शाने के लिए हमने वर्ष 2012 को राष्‍ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया है।

यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि एक और महान भारतीय वैज्ञानिक सत्‍येन्‍द्रनाथ बोस का नाम उस ‘प्रारंभिक कण’ की खोज के साथ जुड़ा हुआ है, जो उप-परमाणु भौतिकी के बारे में हमारी समझ में क्रांति ला सकता है।

अंतिम विश्लेषण के तौर पर कहा जा सकता है कि विज्ञान का ज्ञान पाने की प्रक्रिया मानव मस्तिष्क के खुलने की प्रक्रिया है। हम अपनी कल्‍पनाओं की सीमा को विस्‍तार देकर सृष्टि के रहस्‍य, सौंदर्य और पद्धति की खोज करते हैं। हमें अर्थशास्‍त्र और जीवन शैली के हर क्षेत्र में भी विज्ञान की शक्ति का उपयोग करने की आवश्‍यकता है।

अंत में, मैं इसाक असिमोव को उद्धृत करना चाहूंगा, जिसने कहा था – विज्ञान का केवल एक प्रकाश है, इसे कहीं भी प्रज्‍ज्‍वलित करना सभी स्‍थानों पर प्रज्‍ज्‍वलित करना है।