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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ. सी. रंगराजन ने आज नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में वर्ष 2011-12 की अर्थव्यवस्था की समीक्षा जारी की। इसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं :-
· 2011-12 की अर्थव्यवस्था की वृद्धिदर का अब 7.1 प्रतिशत का अनुमान है, जो अग्रिम अनुमानों के आकलन 6.9 प्रतिशत से कुछ अधिक है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने अग्रिम अनुमानों के मुकाबले कृषिऔर निर्माण क्षेत्र में वृद्धिदर थोड़ा अधिक रहने का आकलन किया है।
· निवेश गतिविधियां धीमी होने से 2011-12 के लिए सकल निश्चित पूंजी रचना 29.3 प्रतिशत पर आ गई है, जो पिछले चार वर्षों के मुकाबले लगभग 4 प्रतिशत कम है।
· वैश्विक आर्थिक और वित्तीय स्थितियों के वर्ष के दौरान दबाव में रहने की संभावना है।
· 2011-12 के लिए कृषिक्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धिदर औसतन 3 प्रतिशत रहेगी, जो चावल, गेहॅूं, बागवानी और पशुपालन क्षेत्रों में वृद्धिके कारण है।
· खनन और खदान क्षेत्र की वृद्धिदर नकारात्मक रहने की संभावना है, जिसका कारण कोयला उत्पादन में कमी, खनिज लौह उत्पादन पर लगे प्रतिबंध, प्राकृतिक गैस उत्पादन में कमी और खनिज तेल के उत्पादन में नकारात्मक वृद्धिहै।
· बिजली क्षेत्र का कार्य अच्छा रहा है। वर्ष 2011-12 के दौरान इसकी वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रहने की संभावना है।
· 2011-12 की पहली तीन तिमाहियों में विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र की विकास दर धीमी रही। चौथी तिमाही में इसमें तेजी आ सकती है। कुल मिलाकर विनिर्माण क्षेत्र के लिए वृद्धिदर 3.9 प्रतिशत और निर्माण क्षेत्र के लिए 6.2 प्रतिशत रहेगी।
· सेवा क्षेत्र में विकास दर में तेजी जारी है और 2011-12 के दौरान इसकी विकास दर 9.4 प्रतिशत रहने की संभावना है।
· कुल मिलाकर इस वर्ष भुगतान संतुलन की स्थितितंग रहेगी। इससे यही संकेत मिलता है किचालू लेखा घाटे को सीमा के अन्दर रखने की आवश्यकता है।
- चालू लेखा घाटे की स्थितिकमजोर हुई है, 2011-12 की पहली छमाही में इसकी औसत दर सकल घरेलू उत्पाद की 3.6 प्रतिशत (वार्षिक अनुमान के अनुसार) रहेगी।
- 2011-12 के लिए चालू लेखा घाटा 3.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
· मुख्य मुद्रास्फीतिदर नवम्बर, 2011 से कम हुई है और जनवरी, 2012 में और भी ज्यादा कम हो गई है। मार्च 2012 के अंत तक इसके करीब 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। लगता है कि मुद्रा नीतिऔर अन्य सार्वजनिक नीतियों का वांछित असर पड़ा है।
· विशेष रूप से फल, दूध, अंडे, मांस और मछली की लगातार बढ़ी कीमतों का असर विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ा है।
· विनिर्मित वस्तुओं की साल-दर-साल मुद्रा स्फीति की दर सितम्बर 2010 की लगभग 5 प्रतिशत से बढ़कर सितम्बर और अक्तूबर 2011 में 8 प्रतिशत हो गई।
· बजट के अनुसार वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.6 प्रतिशत रहने का अनुमान था, इसमें वृद्धिचिन्ता की बात है। सरकार को सब्सिडी के मामले में स्थितिको नियंत्रण में रखने और इसे सुधारने के लिए प्रयास करने होंगे।
2012-13 की संभावनाए़ं
· आर्थिक वृद्धि दर 7.5 से 8 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना है। पिछले वर्ष के मुकाबले 2012-13 में खनन और विनिर्माण के क्षेत्र में वृद्धिदर काफी बढ़ने की उम्मीद है।
· 2012-13 में मुद्रा स्फीतिका दबाव कम रहेगा और वर्ष के दौरान यह लगभग 5-6 प्रतिशत तक रहेगी।
· खाद्य कीमतों और उत्पादन पर नजर रखनी होगी तथा विभिन्न स्थलों पर पर्याप्त खाद्य सामग्री पर्याप्त मात्रा में पहुंचाने की व्यवस्था करनी होगी।
· कोयला, बिजली, सड़कों और रेलवे में क्षमता निर्माण और संचालन कुशलता के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश करने की अधिक आवश्यकता होगी।
· सब्सिडी के भारी बोझ को कम करने के लिए परिष्कृत पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री में समायोग की आवश्यकता होगी।
· 2012-13 में चालू लेखा घाटा लगभग 3 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
· मध्यावधिमें चालू लेखा घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत से 2.5 प्रतिशत के बीच रखने के प्रयास करने होंगे।
· विशेष रूप से इक्विटी के रूप में पूंजी प्रवाह को बढ़ाना होगा और साथ ही निवेश और वृद्धिके लिए घरेलू परिस्थितियों में सुधार करना होगा।
· वित्तीय सुदृढ़ीकरण हासिल करने के लिए सरकार को प्रभावी रूपरेखा बनानी होगी।
· सरकार के उधार लेने के कार्यक्रम का असर निजी क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताओं पर नहीं पड़ना चाहिए।
· व्यापक आर्थिक स्थिरता के लिए कीमतों, विनिमय दर और वित्तीय संतुलनों पर ध्यान देना होगा।