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December 31, 2011
नई दिल्ली

नव वर्ष के अवसर पर प्रधान मंत्री का राष्ट्र के नाम संदेश

प्यारे देशवासियों,
 
मैं आप सब के लिए एक शांतिपूर्ण, खुशहाल और सुरक्षित नव वर्ष की कामना करता हूं।
 
नए साल का दिन नए संकल्प लेने का दिन होता है। हम सभी अपने-अपने संकल्प करते हैं - अपने जीवन को स्वस्थ, ईमानदार, बेहतर और खुशहाल बनाने के लिए। मेरा आशा है कि इस नए साल में हम एक नए निश्चय के साथ अपने घरों, पास-पड़ोस, अपने गांवों और शहरों तथा अपने देश को बेहतर बनाने के लिए मिलजुलकर काम करेंगे।
 
अगर हम सब इस दिशा में मिलजुलकर काम करें, तो निश्चित रूप से दुनिया को भी एक बेहतर और सुरक्षित स्थान बना सकते हैं।
 
गुजरा साल पूरी दुनिया के लिए काफी मुश्किलों से भरा साल रहा है। बहुत से विकासशील देशों को आर्थिक तंगी, सामाजिक-आर्थिक तनाव और राजनैतिक उथल-पुथल के दौर से गुज़रना पड़ा और कुछ विकसित देशों को राजनैतिक गतिरोध का सामना करना पड़ा। इलेक्ट्रानिक मीडिया की असाधारण पहुंच और नए सामाजिक नेटवर्किंग प्लेटफार्म के जुड़ाव की क्षमता से बढ़ती हुई अपेक्षाओं की क्रांति को ऊर्जा मिली, जिससे दुनियाभर में सरकारों में एक हलचल दिखाई पड़ी।
 
हमारे देश की अपनी अलग समस्याएं रहीं।
 
भारत की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ी और महंगाई बढ़ी। भ्रष्टाचार का मुद्दा सर्वोपरि हो गया।
 
हमें इन घटनाओं से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। सभी देशों और अर्थव्यवस्थाओं में समय-समय पर इस तरह के दौर आते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि हर उतार के बाद चढ़ाव आता है। दरअसल, ऐा÷ दौरों में नई चुनौतियों का सामना करने की हमारी क्षमता की परीक्षा होती है।
 
हमारा मकसद साफ है। हमें देश को तेज, सर्वनिहित और टिकाऊ विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध रहने के साथ-साथ नई चुनौतियों का सामना भी करना है। मैं, आप सभी को, आज, नए साल के दिन यह यकीन दिलाना चाहता हूं कि मैं व्यक्तिगत तौर पर आपको एक ईमानदार और ज्यादा कुशल सरकार देने के लिए, एक ज्यादा उत्पादक, प्रतिस्पर्धी और मज़बूत अर्थव्यवस्था बनाने के लिए और एक ज्यादा न्यायपूर्ण और समानता पर आधारित सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था देने के लिए कार्य करूंगा।
 
मेरा यकीन है कि हमने उससे ज्यादा तरक्की की है, जितना कि आमतौर पर लोग समझते हैं। मुझे निजी तौर पर इस बात की खुशी है कि हमारी सरकार संसद में खाद्य सुरक्षा बिल, तथा लोकपाल और लोकायुक्त बिल पेश कर सकी। लोकपाल तथा लोकायुक्त विधेयक को लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया है लेकिन, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस विधेयक को राज्यसभा में पारित नहीं किया जा सका। फिर भी, हमारी सरकार एक प्रभावी लोकपाल अधिनियम बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। सूचना का अधिकार कानून, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, और शिक्षा का अधिकार कानून के साथ यह यू.पी.ए. सरकार की ऐााó विधायी विरासत है, जिसकी अहमियत हमारे देश की आने वाली पीढ़ियां समझेंगी और उससे फायदा उठाएंगी।
 
नए साल के इस पहले दिन, मैं गुजरे साल की ज्यादा बातें नहीं करना चाहता। इसके बजाय, मैं आने वाली चुनौतियों पर ध्यान देना चाहूंगा, ताकि हम सभी मिलकर उनका मुकाबला कर सकें।
 
आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती गरीबी, अशिक्षा और बीमारी को दूर करने की है। साथ ही, हमें एक ऐा÷ भारत का निर्माण करना है, जो हमारे उन लाखों लोगों की जिंदगी में खुशहाली ला सके, जिन्होंने गरीबी के दायरे से बाहर आना शुरू किया है। हमें साल 2012-13 से शुरू हो रही बारहवीं योजना की अवधि में इस बुनियादी काम पर ध्यान देते रहना होगा।
 
जब मैं भविष्य की ओर देखता हूं तो मुझे देश के सामने पांच बड़ी चुनौतियां नजर आती हैं। इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों, राजनैतिक दलों और सभी जागरूक नागरिकों की मिलीजुली कोशिशों की जरूरत है।
 
पहली चुनौती है- गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा मिटाना और सभी को फायदेमंद रोजगार मुहैया कराना। मैं इसे आजीविका सुरक्षा (Livelihood Security) की चुनौती का नाम देना चाहूंगा।
 
इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए हमें कई कदम उठाने होंगे। इनमें सबसे अहम है कि सभी लोगों को शिक्षित किया जाए। मैं यह पूरे यकीन के साथ कह रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरे लिए शिक्षा की कितनी अहमियत रही है।
 
मैं एक ऐा÷ परिवार में पैदा हुआ था, जिसके पास मामूली सुविधाएं थीं। एक ऐा÷ गांव में, जहां न कोई डाक्टर था, न कोई टीचर। न कोई अस्पताल था, न कोई स्कूल, और न ही बिजली थी। मुझे हर रोज स्कूल जाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता था। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं खुशनसीब रहा कि मैं हाईस्कूल की शिक्षा हासिल कर पाया और उसके बाद उच्च शिक्षा। इसी शिक्षा ने मेरी जिंदगी बदल दी और मुझे ऐा÷ नए मौके दिए, जिनके बारे में मेरी पृष्ठभूमि का कोई और व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता था।
 
मेरा पक्का विश्वास है कि अपने बच्चों को शिक्षित करना, उन्हें रोजगार के लायक हुनर दिलाना और उनको स्वस्थ रखना हमारा पहला महत्वपूर्ण काम होना चाहिए। हमारे बच्चों, हमारे परिवारों, हमारे समाज और हमारे देश के भविष्य को संवारने के लिए इससे बेहतर और कोई निवेश नहीं हो सकता है।
 
शिक्षा और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के साथ-साथ हमें एक ऐााó विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है, जिसमें सभी को फायदेमंद रोजगार मिल सके। केवल यही एक तरीका है, जिससे हम गरीबी को हमेशा के लिए खत्म कर सकते हैं।
 
चूंकि इस रणनीति के तहत आने वाले कई कामों का नतीजा मिलने में वक्त लगेगा, इस दौरान हमें उन लोगों पर ध्यान देना होगा, जिन्हें तुरंत मदद की आवश्यकता है। इसलिए ही सरकार ने सबसे ज्यादा जरूरतमंद लोगों को रोजगार दिलाने और उन्हें भोजन उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाए हैं।
 
मुझे यकीन है कि हमने शिक्षा और स्वास्थ्य, रोजगार-गारंटी, और खाद्य-सुरक्षा प्रदान करने के क्षेत्रों में जो कदम उठाए हैं, उनसे हमें आजीविका सुरक्षा (Livelihood Security) की चुनौती का बखूबी मुकाबला करने में मदद मिलेगी।
 
 
हमारे लिए दूसरी बड़ी चुनौती है- आर्थिक सुरक्षा। आर्थिक सुरक्षा का मतलब ऐााó अर्थव्यवस्था से है, जिसमें लोगों की ज़रूरतों और इच्छाओं के अनुरूप चीज़ों का उत्पादन हो और उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप उन्हें फायदेमंद रोज़गार मिले। इस मकसद को हासिल करने के लिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम तेज़ी से विकास करें और हमारे यहां पर्याप्त संख्या में रोज़गार के अवसर पैदा हों। तेज विकास इसलिए भी आवश्यक है, कि हम अपनी आजीविका सुरक्षा (Livelihood Security) की योजनाओं को चलाने के लिए जरूरी राजस्व प्राप्त कर सकें।
 
 
आठवें दशक के दौरान आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को इसलिए शुरू किया गया और नौवें दशक के दौरान उसमें इसलिए तेज़ी लाई गई, कि हमारे विकास की रफ्तार तेज हो सके। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को देखते हुए इन सुधारों को शुरू में धीरे-धीरे लागू किया गया ताकि इनके लिए व्यापक सहमति बन सके। हम अपने इस मकसद में कामयाब हुए हैं, यह इस बात से साबित होता है कि चाहे वह केन्द्र की अलग-अलग राजनैतिक सोच वाली सरकारें हों या राज्यों में अलग-अलग राजनैतिक दलों की सरकारें, सभी इन सुधारों की दिशा में ही कमोबेश आगे बढ़ी हैं। लेकिन, इस धीमी रफ्तार की वजह से इन सुधारों के पूरे नतीजे मिलने में कुछ वक्त लगा।
 
 
फिर भी, पिछले कई सालों से, इन सुधारों के अच्छे नतीजे साफ दिखाई पड़े हैं। 1980 के दशक से पहले हमारी औसत विकास दर 4% थी। यह 2004 के बाद की अवधि में बढ़कर 8% हो गई है।
 
 
हालांकि, यह विकास दर संतोषजनक है, फिर भी, यह मानना गलत होगा कि भारत अब तेज़ विकास के इस रास्ते पर अटल हो गया है। यह बात ज़रूर मानी जा चुकी है कि हममें तेज विकास की क्षमता है। अगर आने वाले सालों में, हम अपने विकास की दर को तेज रखना चाहते हैं, तो हमें बहुत-सी चुनौतियों का मुकाबला करना होगा।
 
 
लगातार तेज़ विकास बनाए रखने के लिए, हमें सबसे पहले, मंदी के मौजूदा दौर को खत्म करना होगा, हालांकि सिर्फ इतना करना ही काफी नहीं होगा। हमें, ग्रामीण आमदनी में पर्याप्त बढ़ोत्तरी करने के लिए कृषि के क्षेत्र में दूसरी क्रांति लाने की ज़रूरत है। इसके अलावा, हमें वह बहुत सारे सुधार लाने होंगे जिनसे औद्योगीकरण की गति तेज हो सके और वह बुनियादी ढांचा बनाया जा सके जो तेज़ औद्योगीकरण के लिए आवश्यक है।
 
 
तेज़ विकास से ढांचागत बदलाव भी आएंगे, खास तौर पर शहरीकरण की दर में। साल 2030 तक हमारी शहरी आबादी 38 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो जाने की उम्मीद है। बढ़ती हुई इस शहरी आबादी के लिए हमें गैर कृषि क्षेत्र में फायदेमंद रोज़गार मुहैया कराना होगा। इसके अलावा, हमें इस आबादी के लिए शहरी बुनियादी ढांचे का भी विस्तार करना होगा।
 
 
वर्ष 1991 में जब हमने अपनी अर्थव्यवस्था को लाइसेंस-परमिट राज से मुक्त करके उदार बनाया था, तब हमारा मुख्य उद्देश्य अपने हरेक नागरिक को अफसरशाही और भ्रष्टाचार के चंगुल से बचाना और उसकी सृजनशीलता को बढ़ावा देना था। आज के नौजवान, जिनकी पैदाइश 1980 और उसके बाद हुई है, उनको उस भ्रष्टाचार की जानकारी नहीं होगी, जो कंट्रोल और परमिट राज की वजह से फैला हुआ था। रेलवे टिकट अथवा टेलीफोन कनेक्शन प्राप्त करने के लिए किसी न किसी को घूस देनी पड़ती थी। एक स्कूटर की जल्द खरीदारी करने के लिए आपको किसी न किसी को घूस देनी पड़ती थी।
 
 
लेकिन, जहां हमारे लोगों की सृजनात्मक ऊर्जा मुक्त हुई है और भ्रष्टाचार के पुराने तरीक़े खत्म हो गए हैं, वहीं भ्रष्टाचार के बहुत से नये रूप सामने आए हैं, जिन्हें खत्म करने की ज़रूरत है। उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना ज़रूरी है। यह, उन आम नागरिकों की भी मांग है जिन्हें रोज़ाना के कामों में भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है।
 
 
यह एक ऐााó गंभीर समस्या है, जिसे हल करने के लिए हमें बहुत से क्षेत्रों में काम करना होगा।
 
 
लोकपाल और लोकायुक्त जैसी नई संस्थाएं इस समस्या को हल करने की दिशा में एक अहम भूमिका अदा करेंगी और हमने उनके गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लेकिन, यह समाधान का केवल एक हिस्सा है। हमें सरकारी कामकाज के तरीकों में भी बदलाव करने पड़ेंगे, ताकि पारदर्शिता बढ़े और विवेकाधीन अधिकारों में कमी आए। इससे कुशासन की गुंजाइश नहीं रहेगी। इस दिशा में कई उपाय किए गए हैं। हमने Citizens’ Charter पर एक बिल संसद में पेश किया है। यह बिल नागरिकों को सरकारी विभागों से उचित मानकों की सेवाएं मांगने का अधिकार देगा। हमने न्यायपालिका की जवाबदेही पर भी एक बिल पेश किया है।
 
 
इन पहलों का पूरा असर होने में कुछ वक्त लगेगा, इसलिए हमें धीरज रखना होगा। मगर, मेरा यह मानना है कि ये बड़े बदलाव की पहलें हैं, जिन्हें कुछ सालों के बाद इस रूप में पहचाना जाएगा।
 
 
आर्थिक सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए राजकोषीय स्थिरता बहुत ज़रूरी है। हमारे देश ने, विगत में, फिजूलखर्ची की भारी कीमत अदा की है। हममें से कई लोगों को 1990-91 के वे काले दिन याद होंगे, जब मदद मांगने के लिए हमें दुनियाभर में जाना पड़ता था। हमारी खुशनसीबी है कि हम कम समय में इस समस्या से निपटने में कामयाब रहे। पिछले दो दशकों में हम अपना सिर ऊंचा रख पाए हैं, क्योंकि हमने अपने राजकोषीय संसाधनों का प्रबंधन अच्छे तरीके से किया है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा देश फिर से पुरानी स्थिति में न जाने पाए।
 
 
मैं भविष्य की राजकोषीय स्थिरता के बारे में चिंतित हूं, क्योंकि पिछले तीन सालों में हमारा राजकोषीय घाटा बढ़ा है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमने वैश्विक मंदी से निपटने के उद्देश्य से वर्ष 2009-10 में बढ़ा हुआ राजकोषीय घाटा रखने का फैसला लिया था। यह उस वक्त के हिसाब से सही था। लेकिन, और देशों की तरह, जिन्होंने इस नीति का सहारा लिया, हमारे पास भी राजकोषीय गुंजाइश खत्म हो गई है और हमें एक बार फिर राजकोषीय घाटा कम करने का प्रयास शुरू करना होगा। यह इसलिए ज़रूरी है कि हमारी विकास प्रक्रिया रुकने न पाए और साथ ही साथ हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वाभिमान पर आंच न आए।
 
 
मध्यावधि में राजकोषीय स्थिरता लाने का सबसे अहम उपाय है- सामान और सेवा कर लागू करना। इससे हमारी प्रत्यक्ष कर प्रणाली आधुनिक बनेगी, आर्थिक कुशलता बढ़ेगी और कुल राजस्व भी बढ़ेगा। एक दूसरा महत्वपूर्ण उपाय है- चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी को कम करना। कुछ सब्सिडी, जैसे खाद्य सब्सिडी सामाजिक कारणों से तर्कसंगत है और खाद्य सुरक्षा विधेयक के लागू होने पर इसके बढ़ने की संभावना है। परंतु कुछ ऐााó सब्सिडी है, जो तर्कसंगत नहीं है और उसे कम किया जाना चाहिए।
 
 
आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी कुछ सुधार विवाद एवं चिंता पैदा करते हैं। इसे समझा जा सकता है। लेकिन हमें सुधारों के संबंध में अपने पिछले अनुभवों से सीख लेनी चाहिए। जिन बातों को आज हम स्वाभाविक समझते हैं,उनसे भी 20 साल पहले विवाद पैदा हुए थे। हमें यह याद रखना चाहिए कि विकास के लिए बदलाव जरूरी है। हमें बदलाव के लिए अपने को तैयार करना चाहिए और उसके कुप्रभाव से सबसे कमज़ोर लोगों को बचाना भी चाहिए। लेकिन, हमें बदलाव का आंख मूंदकर विरोध नहीं करना चाहिए। अगर हमें अपने आप पर विश्वास हो, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।
 
 
हमारे सामने जो तीसरी चुनौती है, वह ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती है। ऊर्जा विकास के लिए ज़रूरी है, क्योंकि ज्यादा उत्पादन करने के लिए ज्यादा ऊर्जा की ज़रूरत होती है। हमारी प्रति व्यक्ति ऊर्जा की उपलब्धता का स्तर इतना कम है कि हमें ऊर्जा उपलब्धता में काफी बढ़ोत्तरी की जरूरत है।
 
 
ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती भारत के लिए खास तौर पर बहुत बड़ी है, क्योंकि हम एक ऐा÷ माहौल में विकास करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां हमारे घरेलू ऊर्जा स्रोत सीमित मात्रा में हैं और दुनिया एक ऐा÷ दौर में आ रही है, जिसमें ऊर्जा की कमी होने और उसकी कीमतें बढ़ने की संभावना है।
 
 
सबसे पहले, हमें मौजूदा सभी घरेलू ऊर्जा स्रोतों का कुशलता से उपयोग करना चाहिए। दुर्भाग्य से, ऊर्जा के पुराने और नए स्रोतों का इस्तेमाल करने की हमारी कोशिशों के रास्ते में कई मुश्किलें आ रही हैं। चाहे वह कोयला अथवा जल विद्युत का क्षेत्र हो, चाहे तेल या परमाणु ऊर्जा का क्षेत्र, हमें नई चुनौतियों का मुकाबला करना होगा, ताकि इन स्रोतों को पूरी तरह से विकसित किया जा सके। हमें इन सभी घरेलू मुश्किलों की फिर से समीक्षा करनी चाहिए ताकि उनको दूर किया जा सके।
 
ऊर्जा सुरक्षा का घरेलू एजेंडा साफ है। हमें कोयला, तेल, गैस, जल विद्युत और परमाणु ऊर्जा जैसे पारंपरिक स्रोतों में नया निवेश करना होगा। हमें सौर-ऊर्जा तथा पवन-ऊर्जा जैसे नए स्रोतों में भी निवेश करना होगा। घरेलू आपूर्ति में विस्तार करने के साथ-साथ हमें ऊर्जा का समझदारी से प्रयोग भी करना होगा, ताकि तेज विकास की वजह से ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता पर कुछ अंकुश लग सके।
 
 
नए निवेश को बढ़ाने तथा ऊर्जा दक्षता हासिल करने के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को ज्यादा युक्तिसंगत मूल्य नीति बनानी होगी और अपनी ऊर्जा कीमतों को वैश्विक दामों के अनुरूप रखना होगा। इसे तत्काल नहीं किया जा सकता। लेकिन, ऐा÷ बदलाव के लिए चरणबद्ध योजना बनाने और उसके बाद बदलाव लाने के लिए समर्थन जुटाने की दिशा में हमें काम करने की ज़रूरत है। मैं जानता हूं कि यह आसान काम नहीं है, लेकिन जब तक हम यह बदलाव नहीं लाएंगे, तब तक हम ऊर्जा दक्षता को उतना बढ़ावा नहीं दे पाएंगे जितना हमें देना चाहिए। इसके अलावा, हम घरेलू ऊर्जा आपूर्ति के विस्तार के लिए ज़रूरी निवेश भी नहीं जुटा पाएंगे।
 
 
ऊर्जा सुरक्षा का एक वैश्विक आयाम भी है। बेहतर घरेलू कोशिशों के बावजूद, आयातित ऊर्जा पर हमारी निर्भरता बढ़ते जाने की संभावना है। हमें आयातित ऊर्जा की तय आपूर्ति और ऊर्जा से जुड़ी नई टेक्नॉलॉजी हासिल करनी होंगी। इसका मतलब यह है कि हमें ऐााó नीतियां बनानी होंगी, जो ऐा÷ देशों के साथ आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा दे,ं जिनके पास ऊर्जा के स्रोत और टेक्नॉलॉजी हैं। ऐा÷ स्रोतों और टेक्नॉलॉजी तक हमारी पहुंच बनाए रखने के लिए हमें सक्रिय विदेश नीति की भी जरूरत है।
 
 
आने वाले सालों में जिस चौथी चुनौती का हमें सामना करना है, वह है पर्यावरण सुरक्षा की। हमारे देशवासियों की भलाई के लिए आर्थिक विकास जरूरी है, लेकिन हम ऐा÷ विकास की इज़ाज़त नहीं दे सकते, जो हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए। आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारा यह दायित्व है कि हम उन्हें एक ऐाा पर्यावरण दें, जो आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने में उतना ही सक्षम हो जितना कि वह पर्यावरण, जो हमें अपने माता-पिता से मिला था।
 
 
हम अपनी नदियों के जल को अनुपचारित और गंदे पानी से प्रदूषित नहीं होने दे सकते। हालांकि, नियमों की कमजोरी और उद्योगों तथा शहरों पर ठीक से नियम लागू न किये जाने की वजह से आज यह सब कुछ हो रहा है। इसी तरह से, हम हवा के प्रदूषण को बे-रोकटोक नहीं बढ़ने दे सकते, क्योंकि इससे श्वास संबंधी बीमारियां बढ़ती हैं जिनका बुरा असर बहुत से लोगों पर पड़ता है, खास तौर पर गरीबों पर।
 
 
पर्यावरण सुरक्षा में जंगलों की हिफाज़त भी शामिल है। जंगल न केवल हवा में छोड़े गए कार्बन को सोखने में अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि हमें जल सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। वन, पानी के बेकार बह जाने को रोकते हैं और भू-जल की मात्रा को बढ़ाते हैं। कई बार, वन भूमि का उपयोग ऊर्जा, खनिज और जल विद्युत सहित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए करना पड़ता है। यह काम इस तरह से किया जाना चाहिए कि कम-से-कम वन भूमि का उपयोग हो। इसके बदले में पर्याप्त संख्या में पेड़ भी लगाए जाने चाहिए।
 
 
ये सभी समस्याएं हल की जा सकती हैं। दूसरे देशों में ये समस्याएं हल भी की गई हैं। इसके लिए मजबूत और पारदर्शी व्यवस्थापन की ज़रूरत होती है और इसकी अतिरिक्त लागत भी आती है। यह लागत उनको वहन करना चाहिए, जिन्होंने प्रदूषण फैलाया है। इस सिद्धांत को अच्छी तरह समझा जाना चाहिए और सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
 
 
आसन्न पर्यावरण चुनौतियों के अलावा जलवायु परिवर्तन की एक बड़ी चुनौती भी हमारे सामने है। दुनिया के जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें विकास का एक ऐाा रास्ता अपनाना चाहिए, जिसमें हम साल 2020 तक प्रति इकाई सकल घरेलू उत्पाद के अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20-25% तक कमी लाएं। यह लक्ष्य तर्क संगत ऊर्जा नीतियों से गहराई से जुड़ा हुआ है।
 
 
आखिर में, हमारे जीवंत लोकतंत्र की आंतरिक सुरक्षा और बाहरी सुरक्षा को खतरा है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती के रूप में देखा जा सकता है।
 
चरमपंथियों और उग्रवादियों द्वारा गंभीर रूप से उकसाए जाने के बावजूद, हमारे देशवासी एकजुट रहे हैं। बहुलवादी, धर्मनिरपेक्ष और सर्वनिहित लोकतंत्र में अभी भी उनकी आस्था बनी हुई है। दुनिया भर में लोग भारत से प्रेरणा लेते हैं। खुली सामाजिक व्यवस्था में सर्वनिहित विकास का हमारा मॉडल उन सभी का हौसला बढ़ाता है, जो अन्याय और उत्पीड़न से मुक्ति चाहते हैं।
 
आम जनता को सशक्त बनाने की मांग करने वाली लोकतंत्र की एक नई लहर दुनियाभर में फैल रही है। हमारा देश आज इस माहौल में एक कार्यशील लोकतंत्र के रूप में शान से खड़ा हुआ है। हमारा देश एक अरब से ज्यादा की आबादी वाला एक बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है, जहां दुनिया के सभी महान धर्मों का आजादी से पालन होता है। जहां बहुत सी भाषाएं और खान-पान हैं और बहुत सी जातियों और समुदायों के लोग एक खुले समाज में मिल-जुलकर रहते हैं। यह एक ऐााó कामयाबी है, जिस पर हरेक भारतीय गर्व कर सकता है।
 
दुनिया इस कामयाबी को मानती है। मैं समझता हूं कि विश्व यह चाहता है कि भारत और सफल हो, क्योंकि भारत दुनिया में उम्मीद जगाता है।
 
हमारे लोकतंत्र की अपनी कमियां हैं। हमारे लोग इन कमियों को जानते हैं और उन्होंने उन्हें दूर करने की क्षमता दिखाई है।
 
कई बार लोकतंत्र निराशाजनक उनके लिए होता है, जो सरकार में शामिल होते हैं और उनके लिए भी जो इसके और ज्यादा कुशल, प्रभावी तथा मानवीय होने की अपेक्षा रखते हैं। लेकिन हमारा लोकतंत्र हमारी ताकत है। यह हमारी एकता का आधार है। यह हमारी आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी सबसे अहम जरिया है।
 
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमारी सेनाओं को आधुनिक बनाया जाना भी उतना ही अहम है। दरअसल, भारत की आर्थिक तथा ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी इसकी आवश्यकता है। हमारी सेना, नौसेना तथा वायुसेना को आधुनिक बनाने और उनके कार्मिकों तथा प्रणालियों में सुधार करने की ज़रूरत है। यह सुनिश्चित करना प्रधान मंत्री के रूप में मेरा सबसे महत्वपूर्ण काम रहेगा।
 
आज, मैंने आप लोगों के सामने अपनी बात इसलिए रखी है, कि आप सभी यह समझ सकें कि नए वर्ष में प्रवेश करते वक्त किस तरह की चुनौतियां हमारे सामने हैं।
 
मैंने उन 5 महत्वपूर्ण चुनौतियों का ज़िक्र किया है, जो हमारे सामने हैं। इस साल ये चुनौतियां हमारे नीतिगत एजेंडे में सबसे ऊपर होंगी – आजीविका सुरक्षा, (शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य और रोजगार), आर्थिक सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा।
 
इन पांचों चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें एक राष्ट्र के रूप में एकजुट होकर काम करना होगा और साथ में विश्व में अपनी तरह की सोच रखने वाले देशों के साथ भी मिलकर काम करना होगा।
 
मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि इन सभी चुनौतियों का मुकाबला करने में कामयाब होने के लिए मैं अपनी पूरी शक्ति के साथ काम करुंगा।
 
आइए, हम सब इन चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर कार्य करें।
 
मैं आप सभी को इस साल और आगे आने वाले सालों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
 
जय हिन्द।