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योजना आयोग की आज नर्इ दिल्ली में पूर्ण बैठक हुई। बैठक में वितरित प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के वक्तव्य का पूरा विवरण इस प्रकार है:-
12वीं पंचवर्षीय योजना के प्रारूप पर विचार करने के लिए मैं इस बैठक में आपका स्वागत करता हूं।
11वीं पंचवर्षीय योजना में हमारी कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां रहीं। इस दौरान औसत विकास दर 7.9 प्रतिशत रही। यह विकास दर 9 प्रतिशत से कम हैं, लेकिन 10वीं योजना की विकास दर 7.6 प्रतिशत से बेहतर है। इस दौरान 2008 और 2011 में विश्व में दो बार आर्थिक संकट आये, जिसे देखते हुए 7.9 प्रतिशत की विकास दर प्रशंसनीय है।
इस दौरान प्रगति भी समावेशी रही। 2004-05 से 2009-10 के बीच गरीबी की दर इससे पिछले 10 वर्षों के मुकाबले दोगुनी तेजी से कम हुई। अगर 2011-12 के आंकड़े शामिल किए जायें, तो 11वीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी के प्रतिशत में और भी कमी बैठती है। 11वीं योजना में कृषि विकास दर 3.3 प्रतिशत वार्षिक रहीं, जो 10वीं योजना की 2.4 प्रतिशत की दर से ज्यादा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के आंकड़ों से पता चलता है कि 2004-05 से 2011-12 के दौरान प्रति व्यक्ति ग्रामीण खपत की विकास दर इससे पिछली 1993-94 से 2004-05 की अवधि के मुकाबले दोगुनी रहीं।
ये सब सकारात्मक पहलू हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि हमारी 12वीं योजना एक ऐसे वर्ष में शुरू हो रही है, जब विश्व अर्थव्यवस्था कठिनाई के दौर से गुजर रही है और हमारी अर्थव्यवस्था भी मंदी के दौर में है। 2011-12 में अर्थव्यवस्था की विकास दर कम होकर 6.5 प्रतिशत हो गई और 2012-13 की पहली तिमाही में यह केवल 5.5 प्रतिशत रहीं।
ये अल्पकालीन समस्याएं हमारे सामने चुनौती हैं लेकिन हमें अपनी मध्यम अवधि की संभावनाओं के प्रति अनुचित रूप से निराश नहीं होना चाहिए। हमारी अर्थव्यवस्था कई क्षेत्रों में मजबूत हुई है, जिससे हमें उच्च विकास दर हासिल करने में मदद मिलेगी।
योजना के दस्तावेज से पता चलता है कि हमारी तात्कालिक प्राथमिकता चालू वर्ष की दूसरी छमाही में स्थिति को पलटने की होनी चाहिए। इसके बाद हमें इसमें धीरे-धीरे तेजी लाकर योजना अवधि के अंत तक 9 प्रतिशत विकास दर का लक्ष्य हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए।
इससे 12वीं योजना की अवधि के दौरान हमारी औसत विकास दर लगभग 8.2 प्रतिशत हो जायेगी। योजना के दृष्टिकोण पत्र में शुरू में 9 प्रतिशत की विकास दर का लक्ष्य दर्शाया गया था, लेकिन वैश्विक स्थिति को देखते हुए इसमें कुछ कमी करना यथार्थवादी होगा।
जैसा कि योजना दस्तावेज में कहा गया है कि हमारा उद्देश्य केवल सकल घरेलू उत्पाद बढ़ाना नहीं है बल्कि समावेशी और सतत् विकास है। जैसा मैंने जिक्र किया कि 11वीं योजना में समावेशी विकास का हमारा रिकार्ड अच्छा रहा है। 12वीं योजना में हमें इसे बेहतर बनाना चाहिए। अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जन जातियों, अन्य पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों - सभी की पूरी तरह से विकास की प्रक्रिया में भागीदार होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए योजना मे कई व्यवस्थाएं रखी गई हैं।
तुरंत कार्रवाई की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है कि हम बुनियादी परियोजनाओं को पूरा करने के काम में तेजी लायें। आपूर्ति की रूकावटों को दूर करने के लिए, जो अन्य क्षेत्रों के विकास में रूकावट पैदा करती हैं, यह बहुत जरूरी है। निवेशकों का उत्साह बढ़ाने के लिए भी यह महत्वूपर्ण है, ताकि निवेश की संभावनाएं बढ़ें। बुनियादी ढांचे से जुड़े मंत्रालयों को 12वीं योजना में अपने-अपने क्षेत्रों के लिए महत्वकांक्षी लक्ष्य रखने चाहिएं और उन्हें प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। बुनियादी ढांचों के लिए हमें 10 खरब डॉलर निवेश की आवश्यकता है और इसके लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी।
बाधाएं बहुत हैं। ईंधन आपूर्ति की कमी के कारण बिजली परियोजनाएं अटकी पड़ी हैं। पर्यावरण और वन क्षेत्र संबंधी स्वीकृतियों में देरी के कारण कोयला परियोजनाओं में देरी हो रही है। सुरक्षा संबंधी स्वीकृतियों में देर से बंदरगाह परियोजनाओं की प्रगति धीमी है। हमारे कई बुनियादी ढांचा क्षेत्रों के लिए धन की कमी आड़े आ रही है, जिसके लिए उपाय ढूंढ़ने होंगे।
इन रूकावटों को दूर करने के लिए हमें नई सशक्त व्यवस्थाएं करनी होगी। निवेश के साधन तलाशना, बड़े सार्वजनिक उद्यमों में निवेश की निगरानी रखना, सुरक्षा और अन्य मुद्दों से संबंधित स्वीकृतियों के बारे में जल्दी फैसला लेना और ऐसे अन्य उपाय रूकावटों को दूर करना के प्रयासों का हिस्सा हैं। कई समस्याएं ऐसी हैं, जिनके हल के लिए राज्य सरकारों के साथ निकट सहयोग से काम करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे सांझे लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
मैंने योजना आयोग से कहा है कि वह बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्यों को सामने रखते हुए किए जा रहे कार्यों का तिमाही मूल्यांकन करे। पहले छ: महीनों में जो काम होंगे, उनके आधार पर मैं स्वयं स्थिति की समीक्षा करूंगा। मुझे उम्मीद है कि इस समीक्षा के आधार हम समय सीमा का ध्यान रख सकेंगे और योजना के अनुसार परियोजनाओं को पूरा कर सकेंगे।
दीर्घावधि नीति की दृष्टि से योजना को तीन प्रमुख हिस्सों में बांटा जा सकता है-
पहला है सरकारी कार्यक्रमों की रूपरेखा, जिनका उद्देश्य विशिष्ट क्षेत्रों के उद्देश्यों को प्राप्त करना है। योजना में कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम, जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, जल संसाधन प्रबंधन, बुनियादी ढांचे का विकास तथा महात्मा गांधी मनरेगा, प्रधानमंत्री सड़क योजना, समन्वित बंजर भूमि विकास योजना और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन सहित समावेशी विकास के उद्देश्य वाले कई कार्यक्रम शामिल हैं। इन कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त धनराशि आबंटित की जा रही है। हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि क्या वास्तव में इनके लाभाकारी परिणाम निकल रहें है या नहीं, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और कमजोर वर्गों के लिए। इसके लिए हमें अपनी निगरानी व्यवस्था और मूल्यांकन के तरीके को बेहतर बनाना होगा तथा कार्यक्रम के स्वरूप में लचीलापन रखने के लिए भी तैयार रहना होगा।
बी.के.चतुर्वेदी समिति ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं में सुधार के लिए जो कुछ परिवर्तन सुझाएं हैं, उनसे कार्यक्रमों की प्रभावशीलता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
योजना का दूसरा हिस्सा व्यापक आर्थिक संतुलन से संबंधित है। योजना में पर्याप्त विकास की बात कही गई है। यह बहुत कुछ अर्थव्यवस्था में निवेश की दर बढ़ाने पर निर्भर है। इसलिए निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना जरूरी है।
अधिक निवेश के साथ-साथ घरेलू बचतों का स्तर भी ऊंचा रहना चाहिए। इसलिए हमारी बड़ी योजनाओं में बचतों को और विशेष रूप से दीर्घकालीन बचतों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। हाल के वर्षों में सरकारी बचतों में कमी आई है, जिसके कारण वित्तीय घाटा तेजी से बढ़ा है। इस प्रवृति को उलटना होगा।
हमारे वित्तीय घाटे में बहुत बढ़ोतरी हुई है और विश्लेषक इसकी आलोचना कर रहे है। अगले कुछ वर्षों में इसमें कमी लानी होगी, ताकि घरेलू संसाधनों को अर्थव्यवस्था के विकास में लगाया जा सके।
निर्यात में कमी रहने की संभावना को देखते हुए हमें उच्च वृद्धि दर और अधिक निवेश की नीति के मद्देनजर सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2.9 प्रतिशत घाटे के लिए धन की आवश्यकता होगी। मुख्य रूप से इसे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और अन्य निवेशों से पूरा करना होगा ताकि विदेशी ऋण पर निर्भरता कम हो। मेरा विश्वास है कि हम अपनी आवश्यकता के लिए धन जुटा सकेंगे, बशर्तें कि ऐसा दिखाई दे कि हमारा वित्तीय घाटा नियंत्रण में हैं और विकास ने फिर से रफ्तार पकड़ ली है।
योजना का तीसरा प्रमुख हिस्सा है वे नीतियां जिनसे अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यनिष्पादन में सुधार लाया जा सकता है। कई क्षेत्रों की नीतियों में जो कमियां है, उन पर ध्यान देने की आवश्यकता है और योजना में इन पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। मैं कुछ महत्वूपर्ण क्षेत्रों की प्राथमिकताओं का जिक्र करना चाहूंगा।
स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जिनसे मानव क्षमता में वृद्धि होती है और जो समावेशी विकास के लक्ष्य की प्राप्ति में मददगार हो सकते हैं। 12वीं योजना में इनको उच्च प्राथमिकता देनी होगी। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अतिरिक्त सरकारी संसाधनों की आवश्यकता होगी। लेकिन प्रणालियों में सुधार के जरिए सेवा आपूर्ति में अधिक कुशलता सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है।
कृषि विकास को बढ़ाकर लगभग 4 प्रतिशत तक लाना होगा। यह तभी संभव है, जब हम बेहतर तकनीकों और बेहतर बीजों के इस्तेमाल के साथ-साथ और अधिक कारगर जल प्रबंधन करें। हमारा ज्यादातर विकास ऐसी पैदावारों से होता है, जो जल्दी खराब हो जाती हैं (बागवानी, डेयरी, मत्सय पालन)। इनके लिए फसल उतरने के बाद कई आवश्यक उपाय करने जरूरी हैं। योजना में कृषि को आधुनिक बनाने के लिए राज्यों के लिए कई सिफारिशें भी की गई हैं।
विर्निर्माण को मौजूदा के मुकाबले और तेजी से बढ़ाना होगा, ताकि आवश्यकता के अनुसार रोजगार के अवसर पैदा हो सकें। योजना में विर्निर्माण के क्षेत्र मे तेजी लाने के लिए बहुसूत्री नीति दर्शायी गई है, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के लिए, जिनमें रोजगार की अधिक संभावनाएं हैं।
बुनियादी ढांचे के विकास से भारतीय उत्पादकों की स्पर्धा-क्षमता बढ़ती है, विशेष रूप से छोटे और मझौले उद्यमों की, जो आम बुनियादी सुविधाओं पर बहुत निर्भर करते हैं। दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंच के लिए भी बुनियादी ढांचे का विकास महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे कनेक्टिविटी में सुधार होता है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सरकारी निवेश और सरकारी-नीजि क्षेत्र भागीदारी की आवश्यकता है।
ऊर्जा एक जटिल क्षेत्र है, जिसमें हमारी नीति की व्यापक समीक्षा की आवश्यकता है। हमारे पास ऊर्जा की कमी है और आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है। हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम घरेलू उत्पादन बढ़ायें और अपनी ऊर्जा कुशलता भी बढायें। इसके लिए ऊर्जा के युक्तिसंगत दाम निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। योजना में कहा गया हैं कि हमारे ऊर्जा मूल्य विश्व मूल्यों के अनुरूप नहीं है। यह केवल पेट्रोलियम पदार्थों के मामले में ही नहीं है, बल्कि प्राकृतिक गैस, कोयला और बिजली के मामले में भी ऐसा ही है। इन मूल्यों को वैश्विक मूल्यों के अनुरूप बनाये बिना हम ऊर्जा कुश्लता नहीं प्राप्त कर सकते और न ही घरेलू उत्पादन बढ़ा सकते हैं। डीजल के मामले में हाल में जो बढ़ोतरी की गई है, वह सही दिशा में उठाया गया कदम है।
एक और क्षेत्र जल का है, जिसमें उपलब्धता की कमी और इस प्राकृतिक संसाधन के प्रभावी प्रबंधन की चुनौतियां आने वाले वर्षों में और बढ़ने की संभावना है। हमारे पास वास्तव में ऐसी संस्थागत और कानूनी व्यवस्थाएं नहीं हैं, जिनसे कुशल जल प्रबंधन हो सके।
शहरीकरण एक नई चुनौती है, जिससे निपटने के लिए हमें अतिरिक्त संसाधनों और सुधारों की आवश्यकता होगी।
इस योजना का केंद्रीय संदेश यही हैं कि हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं, अगर हम ऐसी नीतियां बनायें, जो हमारी कमजोरियों को दूर कर सकें। नीतियों की भूमिका के महत्व को दर्शाते हुए योजना में पहली बार वैकल्पिक परिदृश्य प्रस्तुत किए गए हैं।
पहला परिदृश्य हैं - सुदृढ़ समावेशी विकास, जो दर्शाता हैं कि क्या संभव हो सकता है, अगर योजना में उल्लेखित हमारे अनेक नीति संबंधी कार्यों को अच्छी तरह से लागू किया जाये। इससे कई ऐसी प्रक्रियाएं शुरू हो जाने की उम्मीद है, जो आर्थिक वृद्धि और समावेशी विकास दोनों के लिए अनुकूल परिणाम दे सकती हैं। हमें इस परिदृश्य के लिए काम करना चाहिए ।
दूसरा परिदृश्य है - अपर्याप्त कार्यवाही यह नीति के संबंध में अधूरी कार्यवाही और कमजोर क्रियान्वयन की स्थिति को दर्शाता है। पहले परिदृश्य के परिणामस्वरूप वृद्धि और विकास की प्रक्रियाएं शुरू होंगी, वे इसके कारण आगे नहीं बढ़ेगी और विकास दर कम होकर छ: से साढ़े छ: प्रतिशत आ सकती है। समावेशी विकास पर भी इसका प्रतिकूल असर होगा। अगर हम क्रियान्वयन में चूक करते हैं और आधे-अधूरे प्रयास करते हैं, तो यही परिणाम होगा। मैं उम्मीद करता हूं कि हम ऐसा नहीं करेंगे।
तीसरा परिदृश्य - नीति अवरोध का है। यह उस स्थिति को दर्शाता है, जहां एक या अन्य कारणों से परिदृश्य एक को प्राप्त करने के लिए अधिकतर नीतियों पर कार्य नहीं किया जाता है। अगर यह स्थिति लंबे समय चलती है, तो एक उल्टा चक्र शुरू हो सकता है, जिससे विकास दर पांच प्रतिशत वार्षिक तक आ सकती है और समावेशी विकास के परिणाम भी कमजोर होंगे, जो देश के भविष्य की चिंता करते है, मैं उन सबसे आग्रह करता हूं, कि वे इस परिदृश्य के परिणामों को अच्छी तरह समझें। निश्चित रूप से वे इस बात को समझ जायेंगे कि भारतीय जनता इससे बेहतर स्थिति की हकदार है।
मेरा विश्वास है कि हम पहले परिदृश्य को संभव बना सकते हैं। मैं कुछ साहसिक कदम और जोखिम उठाऊंगा। लेकिन हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि इन पर अमल हो।
देश की उपलब्धि इससे कम नहीं होनी चाहिए।
धन्यवाद।