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मेरे देशवासियो,
संसद का सत्र बेकार चला गया, जब दोनों सदनों को काम करने नहीं दिया गया। लगातार व्यवधान का कारण यह था कि हमें कोयला ब्लॉकों के आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट प्राप्त हुई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि आवंटन प्रक्रिया में खामियां रही हैं। लोक लेखा समिति में या तुरंत संसद में रिपोर्ट पर चर्चा करना एक सामान्य प्रक्रिया है। हमने इसका प्रस्ताव भी किया था, लेकिन विपक्ष के नेताओं ने संसद में रिपोर्ट पर विचार करने के पूर्व ही मेरा त्यागपत्र मांगना ज्यादा उचित समझा।
मेरा बहुत मजबूती के साथ यह मानना है कि इससे संसदीय लोकतंत्र का मखौल उड़ता है। हमें अपने संसदीय लोकतंत्र पर और वहां होने वाली मुख्य चर्चा की परम्परा पर गौरव है। कुछ महीने पहले ही संसद के 60 वर्ष पूरे होने के समारोह के दौरान मैंने कहा था कि भारतीय संसद की गाथा आजादी और सम्मान के लिए भारत के संघर्ष की, सहनशीलता और समानता की तथा शांति और प्रगति की गाथा है।
अगर हम संसद को काम करने नहीं देंगे, तो हम इन उच्च आदर्शों को कभी पूरा नहीं कर सकते। सरकार और विपक्ष दोनों का यह पवित्र कर्तव्य है कि हमारी संसदीय प्रणाली को मजबूत किया जाए। अगर हम राजनीतिक बढ़त प्राप्त करने के लिए संसद की कार्यवाही में बाधा डालते हैं, तो इससे हम भारत की संसद की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
जो लोग संसद को चलने नहीं देते, वे लोग जनता की आवाज को दबाते हैं। जनता का अधिकार है कि वे मुद्दों पर तर्कपूर्ण तरीके से चर्चा करते हुए अपने प्रतिनिधियों को सुनें, लेकिन जनता के इस अधिकार की, ये लोग अवहेलना करते हैं। ये लोग चाहते हैं कि जनता उनकी आवाज केवल सड़कों पर सुनें, जबकि तर्कपूर्ण चर्चा का सड़क कोई स्थान नहीं होता।
यह रास्ता हमें नकारात्मक राजनीति की तरफ ले जाता है, जो केवल विरोध की राजनीति पैदा करता है तथा देश को बांटता है और देश का मोहभंग करता है।
मैं सीएजी का एक संस्थान के तौर पर बहुत सम्मान करता हूं। मेरा मानना है कि लोक लेखा समिति और सदन में उसकी रिपोर्टों पर गंभीर चर्चा करके उसे और मजबूत बनाया जा सकता है। लोक लेखा समिति के सामने ऐसी रिपोर्टे आती हैं, जो जटिल मुद्दों पर होती हैं और जिन पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इन पर पूरी चर्चा होनी चाहिए। हम रिपोर्टों पर चर्चा में बाधा डालकर और कार्यवाही ठप करके सीएजी को एक संस्थान के तौर पर कभी मजबूत नहीं बना सकते।
मैं आप सबको यकीन दिलाता हूं कि सीएजी रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा रहा है। संसद में उन पर चर्चा होगी, जैसा कि होना चाहिए। सुधार करने की जो भी कार्रवाई जरूरी होगी, वह की जाएगी।
हमारे सामने अंदरूनी और बाहरी समस्याएं और चुनौतियां हैं। साम्प्रदायिक तनाव, नस्ली हिंसा और नक्सलवाद का खतरा संबंधी समस्याएं हैं। आतंकवाद एक गंभीर खतरा बना हुआ है। पूर्वोत्तर की घटनाओं के प्रति राष्ट्र को चिंतित होना चाहिए। वहां समुदायों को बांटने की कोशिश हो रही है, जिसके कारण हजारों लोग हमारे शहरों से भागने पर मजबूर हो रहे हैं। हमें कानून तोड़ने वाली ताकतों को रोकना होगा। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर संसद में चर्चा होनी चाहिए थी, ताकि हमारे देशवासी इन समस्याओं को और उनके हल के तरीकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।
आज आर्थिक मोर्चे पर भी हमारे सामने बड़ी चुनौतियां हैं। दुनिया इस समय अभूतपूर्व मुश्किलों के दौर से गुजर रही है। हमारी अर्थव्यवस्था को भी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, ताकि हम यह यकीनी बना सकें कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की दर ऊंची हो सके। मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि हम ऐसा कर सकते हैं।
हम बुनियादी ढांचा, ऊर्जा, सड़क निर्माण, बंदरगाहों, रेल और दूरसंचार में निवेश को बढ़ाकर उद्यमशीलता को बढ़ावा दे सकते हैं और विकास की गति को दोबारा बढ़ा सकते हैं। इससे पूरी दुनिया को यह साफ संदेश जाएगा कि भारत दोबारा विकास के रास्ते पर आ गया है। इससे विकास की तेजी दुबारा बढ़ेगी, रोजगार बढ़ेगा और हमें गरीबों और कमजोर वर्गों की सहायता करने के लिए और संसाधन मिलेंगे।
अगर सरकार का ध्यान उन लोगों की गतिविधियों पर लगा रहा, जो चर्चा में बाधा डालने को प्राथमिकता देते हैं, तब हम इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगे। जो लोग इस रास्ते पर चलते हैं, वे दुनिया में सबसे बड़ा संसदीय लोकतंत्र होने की भारत की प्रतिष्ठा पर बट्टा लगाते हैं। वे लोग अनचाहे ही उन लोगों का मतलब साधते हैं, जो भारत को और यहां की संस्थाओं को कमजोर करना चाहते हैं।
मैंने हमेशा कहा है कि सरकार का काम गरीबी, अनभिज्ञता और बीमारी जैसी समस्याओं से निपटना है, जिनसे हमारे लाखों-लाख लोग आज भी जूझ रहे हैं। हम इस कर्तव्य से नहीं हटेंगे।
एक सत्र बेकार चला गया। मुझे उम्मीद है कि संसद अगले सत्र में काम कर सकेगी। इस बीच, जहां भी संभव हो, बिना संसदीय मार्गदर्शन के भी सरकार काम करती रहेगी। मैं सभी मंत्रालयों को निर्देश दे रहा हूं कि जिन अहम मुद्दों पर निर्णय जरूरी हो, उन पर वे तुरंत विचार करें, ताकि हमारी अर्थव्यवस्था फिर आगे बढ़ सके।
मैं सभी सही सोच वाले भारतीयों से आग्रह करता हूं कि वे अराजकता और व्यवधान पैदा करने वाली ताकतों के खिलाफ एकजुट हो जाएं, ताकि बड़े संघर्षों के बाद प्राप्त होने वाले लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों की बुनियाद सुरक्षित रहे।