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मैक्सिको और ब्राजील के लिए रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री के वक्तव्य का अनूदित पाठ इस प्रकार है-
“मैक्सिको के राष्ट्रपति फिलिप कालड्रॉन के निमंत्रण पर जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए मैं आज मैक्सिको के लॉस काबोस के लिए रवाना हो रहा हूं। इसके बाद ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रॉसेफ के निमंत्रण पर सतत विकास (रियो+20) पर संयुकत् राष्ट्र के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मैं ब्राजील के रियो डी जेनेरियो की यात्रा करुंगा।
जी-20 देशों के नेता एक बार फिर यूरोजोन में आर्थिक संकट और डगमगाती वैश्विक अर्थव्यवस्था के साए तले मिलेंगे। यूरोप में यह स्थिति खासतौर पर चिंता का विषय है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में यूरोप की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है और यह भारत का भी महत्वपूर्ण व्यापार और निवेश साझेदार है। समस्याओं के जारी रहने से वैश्विक बाजार की स्थिति और खराब होगी और यह हमारे आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। हम आशा करते हैं कि यूरोप के नेता वित्तीय समस्याओं से निपटने के लिए उचित कदम उठाएंगे।
वैश्विक विकास में पुनः तेजी लाना भी महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह आवश्यक है कि जी-20 देश उन नीतियों को लागू करने के लिए समन्वय से काम करे जो सतत विकास को प्रोत्साहित करने वाली हो। “मजबूत, सतत और संतुलित विकास के लिए रुपरेखा” पर कार्यबल की सह-अध्यक्षता करते हुए भारत इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य कर रहा है। मैं, जी-20 की चर्चाओं में विकास के आयामों को प्रमुखता में रखने और वैश्विक विकास को बढ़ावा देने के माध्यम के रुप में अवसंरचना में निवेश पर बल को सुनिश्चित करने की ज़रुरत पर जोर दूंगा।
ब्रिक्स देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकास की नई धुरी हैं। नई दिल्ली में इस वर्ष मार्च मे आयोजित चौथे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स के नेता अंतरराष्ट्रीय नीति समन्वय को सुनिश्चित करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए वृहत् आर्थिक स्थिरता को बरकरार रखने के वास्ते साथ मिलकर काम करने पर सहमत हुए थे। ब्रिक्स का मौजूदा अध्यक्ष होने के नाते भारत जी-20 शिखर सम्मेलन की शुरुआत से पहले ब्रिक्स देशों के नेताओं के साथ अनौपचारिक बैठक का आयोजन करेगा ताकि शिखर सम्मेलन के एंजेडा पर आपसी विचारों को परस्पर साझा किया जा सके।
1992 में रियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के बाद से हम लंबा फासला तय कर चुके हैं। पर्यावरण संबंधी चिंता आज वैश्विक चर्चाओं का केन्द्र बिंदु है। फिर भी, हम सही मायनों में विकास की ओर सतत पथ पर चलने से काफी पीछे हैं। सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सतत विकास के परिप्रेक्ष्य को सार्थक रुप देने का एक ऐतिहासिक अवसर है। इसके हृदय में असंख्य लोगों को प्रभावित करने वाली कष्टकर गरीबी को दूर करने के लिए सतत और संतुलित विकास को सुनिश्चित करते हुए संसाधनों पर आधारित विकास से दूर होने की ज़रुरत कायम है।
रियो+20 सम्मेलन में हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास के लक्ष्य जैसे जटिल मुद्दों पर चर्चा की संभावना है। हमें 1992 के रियो के प्रमुख सिद्धांतो को कमज़ोर नहीं करना चाहिए खासतौर पर समानता किंतु विभिन्न उत्तरदायित्व और समता के सिद्धांत को, जो वैश्विक सतत विकास के प्रयासों का आधार है। यदि हमें पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करने के लिए एक वैश्विक समुदाय के रुप में मिलकर काम करना है तो हमें दुनिया में विकास के अलग-अलग स्तरों और विकासशील देशों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता के प्रावधान की ज़रुरत पर ध्यान देना होगा। इस बारे में आम राय बनाने के लिए भारत समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम करेगा।
मैं, अपनी यात्रा के दौरान राष्ट्रपति फिलीप कालड्रॉन, राष्ट्रपति पुतिन, चांसलर एगेला मार्केल, राष्ट्रपति, फ्रांकुस होलांदे, प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन, प्रधानमंत्री स्टेफेन हार्पर, प्रिमियर वेन जिया बाओ, राष्ट्रपति महिंदा राजपक्से, प्रधानमंत्री जिग्मी वाई. थिनली, प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई, राष्ट्रपति बोनी याई और अन्य नेताओं के साथ अलग से सार्थक चर्चा की आशा करता हूं।