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प्रधानमंत्री से 18 जनवरी 2012 को बिजली उत्पादकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने भेंट की थी। उस समय प्रधानमंत्री की जानकारी में बिजली क्षेत्र को प्रभावित करने वाले मुद्दे लाये गये थे। प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री को सूचित किया था कि बिजलीघरों की सबसे बड़ी समस्या है अपर्याप्त कोयले की सप्लाई। उन्होंने कहा कि कोल इंडिया लिमिटेड कोयले की सप्लाई से पहले करार पर समझौते की मांग करता है और सिर्फ पचास प्रतिशत आपूर्ति का आश्वासन देता है जिसके चलते अप्रैल 2009 से किसी करार पर हस्ताक्षर नहीं हो पाये हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर दी। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाया कि यह समिति इस संबंध में जल्दी ही कोई व्यावहारिक समाधान निकालेगा। इसके साथ ही, समस्या को तुरंत सुलझाने के लिए एक महीने के अंदर उपाय किये जायेंगे।
प्रधानमंत्री के निर्देश के अनुसार प्रमुख सचिव के नेतृत्व में समिति की एक फरवरी 2012 को बैठक हुई जिसमें इस बात पर सहमति हुई कि कोल इंडिया लिमिटेड उन बिजलीघरों के साथ करार पर हस्ताक्षर करेगा जिन्होंने विद्युत वितरण कंपनियों के साथ लंबी अवधि के समझौते कर लिये हैं। यह शर्त उन बिजलीघरों पर लागू होगी जो चालू हो गये हैं अथवा जिनमें 31 मार्च 2015 से पहले उत्पादन शुरू हो जाएगा। जो बिजलीघर 31 दिसंबर 2011 तक चालू हो चुके हैं उनके साथ ईंधन सप्लाई समझौते 31 मार्च 2012 को किये जाएंगे। यह समझौते कोयले की पूरी मात्रा के लिए बीस वर्षों की अवधि के लिए किये जाएंगे, जिनपर शर्ते लागू होंगी। समझौतो के अनुसार अगर कोई कमी होगी तो कोल इंडिया यह भरपाई कोयला आयात करके करेगा। उन राज्य/केन्द्र क्षेत्रक उपक्रमों से भी मदद ली जाएगी जिन्हें कोयले के ब्लॉक आवंटित किये जा चुके हैं। प्रधानमंत्री ने इसका अनुमोदन कर दिया है।
इस व्यवस्था से उन बिजलीघरों को राहत मिलेगी जिनकी अनुमानित क्षमता पचास हजार मेगावाट से ज्यादा है। इससे भारत के बिजली क्षेत्र में निवेश करने वालों का भरोसा बढ़ेगा। उम्मीद की जाती है कि इन उपायों के जरिये 12वीं योजना अवधि में बिजली उत्पादन क्षमता का लक्ष्य पूरा होगा और सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होगी।