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संसद की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ पर संसद के केन्द्रीय कक्ष में कल एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा दिये गए भाषण का विवरण इस प्रकार है: -
60वें वर्ष का लोगों के हृदय में बहुत विशेष महत्व है। हमारे पूर्वजों द्वारा तैयार किए गये पंचांगों में, जो अभी भी दुनिया में समय के बारे में जानकारी के लिए उपयोग में लाए जा रहे हैं, 60 वर्षों का चक्र होता है। इस प्रकार हर 60 वर्ष के बाद नये जीवन की शुरूआत होती है।
हम संसद की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। मुझे आशा है कि हमारी संसद और हमारी जनता के लिए यह एक नये जीवन की शुरूआत होगी। मेरी दुआ है कि आगे आने वाला वर्ष राष्ट्र के लिए लाभकारी, शांतिमय और खुशहाल होगा।
आज से 60 वर्ष पहले इसी परिसर में इतिहास रचा गया था। भारत की विशाल जनसंख्या की खामोशी को आवाज मिली थी। आजादी के संघर्ष में तपे हुए पुरुषों और महिलाओं की एक पीढ़ी ने हमारी महान सभ्यता के उच्च आदर्शों से प्रेरित होकर नये देश के निर्माण की इच्छा के साथ इस संसद में प्रवेश किया था।
इन 60 वर्षों में ये सभागार और दीवारें मानवजाति के इतिहास के इस अद्भुत प्रयोग की साक्षी रही हैं।
इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि इस प्रकार के भिन्न-भिन्न लोगों का समूह इतने दृढ़ निश्चय के साथ उभर कर सामने आया हो, जो ग़रीबी, अज्ञानता तथा रोगों से पीडि़त रहा हो, लेकिन जिसका उद्देश्य किसी को समाप्त करना नहीं बल्कि सृजन करना हो, नष्ट करना नहीं बल्कि निर्माण करना हो, किसी को दबाना नहीं बल्कि उसका प्रतिनिधित्व करना हो।
भारतीय संसद की गाथा स्वतंत्रता और गरिमा के लिए, सहिष्णुता और समानता के लिए तथा शांति और प्रगति के लिए किये गए मानव प्रयासों की कहानी है।
हमारी संसद ने केवल भारतीय जनता की चिंताओं और आकांक्षाओं को ही आवाज नहीं दी, बल्कि मानवजाति के सभी स्वतंत्रता प्रेमी लोगों की आकांक्षाओं को आवाज दी है, जो गरिमा और शांति का जीवन चाहते हैं।
हमारी संसद उन मूल्यों का अनोखा प्रतिनिधित्व करती है, जिसने विविधता में एकता, धर्म निरपेक्षता, बहु-समुदायवाद और कानून के शासन के गणराज्य की स्थापना की।
हम कैसा आचरण करते हैं, संसद किस तरह से चलती है, यह उन मूल्यों के प्रति और उन लोगों की स्मृति के प्रति, सम्मान व्यक्त करने का हमारा तरीका होगा, जिन्होंने स्वतंत्रता और गरिमा के इस प्रतीक का निर्माण किया। जिन्होंने हमें यहां भेजा, हम सब में से प्रत्येक की उन के प्रति भी यह जिम्मेदारी है कि हम उनके विचारों और हितों का, और वह भी गरिमा, सहृदयता और शालीनता के साथ प्रतिपादन कर सकें।
हमारा लोकतंत्र कई बड़ी कसौटियों से गुजरा है। हर बार भारत के लोगों ने बड़े उत्साह और उम्मीद के साथ देश के लोकतंत्रीय स्वरूप में फिर से अपने आस्था व्यक्त की है और राज्यतंत्र तथा समाज के बहुलवादी स्वरूप में विश्वास व्यक्त किया है। दुनिया में कई देशों में लोकतंत्र है, लेकिन भारत उन लोकतंत्रों में से एक है, जहां चुनाव में मतदाता सबसे अधिक संख्या में भाग लेते हैं।
हमें उन लोगों की बिल्कुल परवाह नहीं करनी चाहिए, जो हमारी उन लोकतंत्रीय संस्थाओं का मजाक उड़ाते हैं, जिनका विकास वर्षों के अनुभव से हुआ है। हमारा लोकतंत्र ऐसा नहीं है कि जिसमें कोई कमी न हो, लेकिन हमारा लोकतंत्र काम करने वाला लोकतंत्र है, जहां व्यवस्थाएं हैं और साथ ही सुरक्षा के पहलू भी हैं, जिससे विविध हितों और मतभेदों के बीच तालमेल बना रहता है। यह हमारे लोकतंत्र की सुदृढ़ता और जीवन्तता ही है, जिससे राष्ट्र एकजुट है और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।
मैं जानता हूं की कई लोग संसद के कामकाज में बाधाओं के चलते निराश हो जाते हैं। अपने –अपने तरीके से हर कोई इसके लिए दोषी है, लेकिन हमें इस बात पर गर्व है कि प्राय: संसद के दोनों सदनों ने भारत के लोगों और दुनिया से संबंधित कई अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार और बहस करने क लिए आधी- आधी रात तक भी काम किया है। यह बहुत ही गर्व की बात है कि हमारी संसद ने कई अत्यंत प्रगतिशील कानूनों पर चर्चा की है और उन्हें पास किया है, जैसे शिक्षा का अधिकार, ग़रीब ग्रामीण लोगों के लिए रोजगार की गारंटी का अधिकार, सूचना का अधिकार, स्त्री-पुरुष समानता का कानून, लड़कियों और महिलाओं के जीवन और रोजगार की सुरक्षा और वे कानून जिनसे अनुसूचित जातियों, जनजातियों अन्य पिछड़े वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए सामाजिक और आर्थिक अवसरों का विस्तार हुआ है।
इन सम्मानित सदनों में कई बड़ी बहसें हुई हैं, जिसने लोगों की सोच को प्रभावित किया है। सभी पक्षों के सदस्यों ने अपनी प्रतिभा, हास्य पटुता और भाषण पटुता का परिचय दिया है। उनके विचारों ने सदन के बाहर भी लोगों को प्रभावित किया है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हाल के वर्षों में संसद में गंभीर चर्चाओं में कमी आई है।
हमें वर्तमान महत्व के मुद्दों पर संसद में तार्किक और रचनात्मक बहस की इस परम्परा को पुनर्जीवित करना है। लोगों से सम्मान पाने का, जनमत को प्रभावित करने का और मीडिया को गंभीर विषय सामग्री उपलब्ध कराने का और सार्वजनिक विवेचना के स्तर को ऊँचा उठाने का केवल यही तरीका है, जैसा कि अन्य परिपक्व लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं में होता है।
अंत में मैं यही कहूंगा कि संसद सदस्य ही व्यक्तिगत तौर पर और सामूहिक रूप से सुनिश्चित कर सकते हैं कि संसद लोगों की आकांक्षाओं का कितने प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करती है और देश के भाग्य को दिशा देती है। आईये हम एकजुट, सुरक्षित और खुशहाल देश का निर्माण करने के लिए मिलकर काम करने का संकल्प करें, ताकि यह देश दुनिया के देशों के बीच अपना सर ऊँचा रख सके।
आप सब को मेरी ओर से शुभकामनाएं, जयहिन्द।