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माननीय अध्यक्ष महोदय, मैं इस गरिमापूर्ण सदन के सभी माननीय सदस्यों के साथ माननीय राष्ट्रपति के प्रबुद्ध संबोधन के लिए उन्हें धन्यवाद देता हूँ। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस बहुत व्यापक रही है। इस बहस में योगदान देने वाले सभी पक्षों के माननीय सदस्यों को भी मैं धन्यवाद देता हूँ।
एनडीए की ओर से अपने संबोधन में श्री वैंकैया नायडू ने उल्लेख किया कि राष्ट्रपति का अभिभाषण एक रूपरेखा (रोडमैप) प्रस्तुत नहीं करता। मैं श्री वैंकैया नायडू के इस पक्ष से सहमत नहीं हूँ और मैं राष्ट्रपति के अभिभाषण के परिच्छेद 10 की ओर उनका ध्यान खींचना चाहूँगा, और मैं इसका उद्धरण देता हूँ:
मेरी सरकार पाँच महत्वपूर्ण चुनौतियों पर कार्य करेगी जिनका सामना हमारा देश आज कर रहा है:
1. हमारी अधिसंख्य जनसंख्या के लिए आजीविका सुरक्षा हेतु प्रयास करना और अपने देश से गरीबी, भुखमरी और निरक्षरता को समाप्त करने की दिशा में कार्य जारी रखना।
2. त्वरित और व्यापक आधारित विकास के माध्यम से आर्थिक सुरक्षा को प्राप्त करना और अपने लोगों के लिए उत्पादक रोजगारों को सृजन करना।
3. हमारे त्वरित विकास के लिए ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
4. अपनी पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय सुरक्षा को खतरे में डाले बिना अपने विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करना।
5. एक न्यायसंगत, बहुल, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी लोकतंत्र के ढांचे के भीतर आंतरिक और बाहरी सुरक्षा की गारंटी।
2012-13 का बजट प्रस्तुत करते हुए, वित्त मंत्री अपने बजट संबोधन में हमारी अर्थव्यवस्था के समक्ष आगे आने वाली चुनौतियों का सविस्तार वर्णन कर चुके हैं। संसद के दोनों सदनों में पेश की गई आर्थिक समीक्षा में भी ये मुद्दे शामिल हैं और इसलिए जब देश की अर्थव्यवस्था के बारे में बात होगी मैं इस पर संक्षिप्त विचार व्यक्त करूँगा।
राष्ट्रपति ने परिच्छेद 9 में उल्लेख किया है कि वर्ष 2012-13 12वीं पंचवर्षीय योजना के प्रथम वर्ष का प्रतीक होगा जिसमें तीव्र, टिकाऊ और अधिक समावेशी वृद्धि के लक्ष्य निर्धारित किए गये हैं। इस दृष्टिपत्र में 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 9 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत वृद्धि दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। राष्ट्रपति के अभिभाषण में तीव्र, टिकाऊ और ज्यादा समावेशी वृद्धि के लिए मौजूदा कार्यक्रमों पर कार्य करने के साथ-साथ कुछ नई पहल भी रेखांकित की गई है जिनका सरकार ने प्रस्ताव किया है।
सबसे पहले मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि माननीय सदस्य इस बात को मानेंगे कि विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएँ अत्यधिक अनिश्चित दौर में हैं। 2008-09 में संकट के मद्देनजर औद्योगिक देशों में कमजोर वृद्धि दर्ज की गई। वर्ष 2011 में औद्योगिक देशों की वृद्धि दर 2010-11 में हासिल की गई वृद्धि दर की आधी थी। हम सब इस अर्थव्यवस्था के बाधित माहौल से प्रभावित है जिसका हम सामना कर रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक तरलता रही है। इससे वस्तुओं की क़ीमतों पर दबाव बना है। खासतौर पर अनाज, पेट्रोलियम उत्पादों और उर्वरकों की कीमतें बढ़ी हैं। इसलिए हमारे भुगतान संतुलन पर भी दबाव बना है। ऐसे हालात पैदा हुए जिनमें हमारी अर्थव्यवस्था को एक राह तलाशनी है। मैं यह कहने वाला आखिरी व्यक्ति हूंगा कि हम मुश्किलों का सामना नहीं करते। हम मुश्किलों का सामना करते है। यह मेरा विनम्र आकलन है कि हम जिन मुश्किलों का सामना करते है उनमें-चालू खाते पर भुगतान घाटे का संतुलन अब 3.6 प्रतिशत तक बढ़ गया है, राजकोषीय संतुलन खाते का घाटा 5.9 प्रतिशत शामिल है। ये कुछ ऐसी मुश्किलें हैं जिन्हें हम साल दर साल बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। इसलिए मैं इस सम्मानित सदन के सभी सदस्यों से अपील करता हूं कि आने वाले खतरों को पहचानें और समय पर राहत उपाय करने के लिए सरकार की मदद करें।
अनिश्चित माहौल के बीच हमारी अपनी अर्थव्यवस्था की वृद्धि करीब सात प्रतिशत रही, हालांकि यह हमारी उम्मीद से कम है लेकिन हमें इसे सराहनीय मानना चाहिए। यकीनन हम इसे स्वीकार्य परिणाम के रूप में नहीं देख सकते। हमें इसे अगले वर्ष सुधारने तथा जितनी जल्दी संभव हो तेजी के पथ पर लौटाने का प्रयास करना चाहिए। हमें ऐसा यह सुनिश्चित करते हुए भी करना चाहिए कि हम तार्किक मूल्य स्थिरता के साथ अपनी समावेशी वृद्धि के लक्ष्य को हासिल करने में प्रगति करें।
इसके लिए हमें अपनी संसद में सभी विचारों वाले राजनीतिक दलों के बीच व्यापक राष्ट्रीय सहमति की जरूरत है। यह ऐसा अवसर है जब हमें संकीर्ण मतभेदों को भुलाकर एक राष्ट्र के रूप में संयुक्त हो जाना चाहिए। 2008 से पहले हमने पांच वर्ष तक नौ प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की तथा मुझे विश्वास है कि हम वृद्धि के उसी पथ पर वापस लौट सकते हैं बशर्तें हम अनेक मुश्किल फ़ैसले करने के लिए सहमत हों। यदि हम उस उद्देश्य में सफल हुए तो हम सुनिश्चित करेंगे किभारत सदियों पुरानी गरीबी (जिससे हम पीडि़त रहे) को कम करने की आर्थिक क्षमता के साथ आर्थिक शक्ति के रूप में अपना उत्थान जारी रखें तथा स्वास्थ्य शिक्षा, कौशल विकास तथा स्वच्छ पेय जल और स्वच्छता के प्रावधान जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मौजूद अंतर (जिसके बारे में हम सब जानते हैं) को दूर करें। हमें खासतौर से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित समूहों जैसे हमारी आबादी के कमजोर वर्गों को प्रभावित करने वाले विकास के इस अंतर पर ध्यान देने की जरूरत है मैं माननीय सदस्यों को आश्वासन देना चाहूंगा कि हम इस अवसर पर एकजुट होंगे।
12वीं पंचवर्षीय योजना, जोकि इस साल के मध्य तक राष्ट्रीय विकास परिषद के समक्ष पेश किया जाएगा, इसमें तेज, सतत और अधिक समग्र विकास के लिए एक विश्वसनीय योजना की रुपरेखा प्रस्तुत की जाएगी। आर्थिक स्थिति से निपटने के बारे में विस्तृत जानकारी का प्रस्ताव मैं नहीं दूंगा। इसके बारे में वित्त मंत्री ने बजट भाषण में चर्चा की है। आम बजट पर बहस होगी। संसद के सम्मानित सदस्यों के लिए यह मौका होगा जब वह विचार रख सकते हैं और सरकार उनकी चिंताओं और सवालों का जवाब देगी।
मैं सिर्फ एक या दो मुद्दों को संबोधित करना चाहता हूं। पहला यह आरोप है कि सरकार देश के संघीय ढांचे को नष्ट कर रही है। सर, इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है। मैं सदन को यह आश्वासन देना चाहता हूं कि हमारी सरकार हमेशा की तरह संवैधानिक अनिवार्यता को सही अर्थों में बनाए रखना चाहती है।
आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद दो ऐसे मुद्दे है, जिसके बारे में मेरा मानना है कि देश को एक साथ समग्र और संयोजित रणनीति तैयार करने के लिए काम करना होगा, ताकि आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद से निपटा जा सके। इस सप्ताह के शुरु में उड़ीसा में इटली के दो नागरिकों का अपहरण वामपंथी उग्रवादियों ने कर लिया। यह हम सबके लिए चिंता का विषय है। अगर हम सब सजग और सावधान होकर वामपंथी उग्रवाद या आंतकवाद के गुस्से से नहीं निपटेंगे तो हमारे देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
हमारी सरकार देश के नागरिकों को पूर्ण सुरक्षित जीवन जीने का माहौल उपलब्ध कराने के प्रति प्रतिबद्ध है और वह आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए हरसंभव कदम उठाएगी। एनसीटीसी का गठन दरअसल इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस बात की चिंता जताई गई है कि एनसीटीसी के जरिए केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल देना चाहती है और यह सुझाव दिया गया है कि राष्ट्रीय आंतकवाद रोधी केंद्र को लागू करने से पहले उन्हें विश्वास में लेना चाहिए। पिछली सरकार द्वारा नियुक्त मंत्रीसमूह की रिपोर्ट और दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसा सरकार को प्राप्त होने के बाद राष्ट्रीय आंतकवाद रोधी केंद्र की स्थापना से जुड़े सवालों को लेकर विभिन्न स्तरों पर चर्चा हो चुकी है। बहु एजेंसी केंद्र, जिसे 2001 में स्थापित किया गया था, वह एनसीटीसी का शुरूआती स्वरुप था। पिछले दो सालों के दौरान आंतकवाद से निपटने के लिए एक इकलौती और कारगर संस्थान की ज़रुरत को लेकर मुख्यमंत्रियों की आंतरिक सुरक्षा को लेकर होने वाली बैठको में चर्चा हो चुकी है। जैसा कि कुछ सदस्यों ने कुछ बिंदु उठाए है, आदेश पारित होने के बाद कुछ मुख्यमंत्रियों ने भी इसे लेकर चिंता जाहिर की थी। मैंने उन्हें जवाब दिया है कि इस बारे में अगला कदम उठाने से पहले उनसे सलाह मशविरा किया जाएगा। इस बारे में 12 मार्च 2012 को विभिन्न राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों के साथ सलाह मशविरा किया गया। आंतरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों की बैठक असल में 15 फरवरी 2012 को बुलाई गई थी। लेकिन पांच राज्यों में विधान सभा के चुनाव की वजह से इसे स्थगित कर दिया गया। अब इसे 16 अप्रैल 2012 को आयोजित करने का फैसला किया गया है। एनसीटीसी को लागू किए के लिए अगला कदम उठाए जाने से पहले इस बैठक में व्यापक तौर पर सभी के साथ सलाह मशविरा किया जाएगा। मेरे ख्याल से एनसीटीसी का आइडिया और जिस तरीके से एनसीटीसी काम करेगा दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। एनसीटीसी के आइडिया को लेकर आप सभी निर्विवाद रुप से सहमत है।
जिस ढंग से एनसीटीसी कार्य करेगा, उस पर विभिन्न मत हो सकते हैं पर मुझे यकीन है कि बातचीत और विचार-विमर्श से इन मतभेदों को सुलझा लिया जाएगा तथा इस पर आम सहमति बन जाएगी। इस पर ईमानदारी से प्रयास किए जाएंगे तथा इस सदन को आश्वस्त किया जाता है कि हमारे संविधान के संघीय आदेश का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।
कुछ अन्य सदस्यों ने श्रीलंका के तमिलों की समस्या का प्रश्न उठाया था तथा मैं इस समस्या से निपटने के लिए हमारे द्वारा किए जा रहे कार्य के बारे में बताना चाहूंगा। कुछ सदस्यों ने श्रीलंका में तमिल समुदायों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। केंद्र सरकार सदस्यों श्रीलंका में तमिल समुदायों के कल्याण के संबंध में जताई गई चिंताओं और भावनाओं को पूरी तरह समझती है। श्रीलंका में संघर्ष के बाद हमारा ध्यान वहां के तमिल नागरिकों के कल्याण और उत्थान पर केंद्रित रहा है। उनका पुनर्वास हमारी सरकार की उच्च प्राथमिकता रही है। इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का ब्यौरा विदेश मंत्री के 14 मार्च, 2012 को दिए स्व संज्ञान बयान में उल्लिखित है। श्रीलंका सरकार के साथ हमारे रचनात्मक संबंध तथा महत्वपूर्ण सहायता कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप श्रीलंका के तमिल क्षेत्रों में जीवन सामान्य होना शुरू हो गया है। श्रीलंका सरकार द्वारा आपातकालीन नियमों को वापस लेने तथा श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में स्थानीय निकायों में चुनाव आयोजित करने से भी वहां प्रगति हुई है।सदस्यों ने श्रीलंका में लंबे समय तक चले संघर्ष में मानव अधिकारों के उल्लंघन तथा जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद के चल रहे 19वें अधिवेशन में अमरीका द्वारा श्रीलंका में फिर से सामंजस्य बैठाने तथा जवाबदेही पर प्रस्ताव के मुद्दे को भी उठाया। भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार को फिर सामंजस्य की महत्ता के बारे में बताते हुए ज़ोर दिया है कि वह तमिल समुदायों की शिकायतों को गंभीरता से ले। इस संबंध में हमने श्रीलंका सरकार द्वारा नियुक्त किए गए आयोग की सिफारिशों को लागू करने पर ज़ोर दिया है। इन सिफारिशों में संघर्ष के जख्मों पर मरहम लगाने तथा श्रीलंका में शांति और फिर से सामंजस्य कायम रखने के लिए विभिन्न उपाय सम्मिलित हैं।
हमने श्रीलंका सरकार से तमिल नेशनल अलाएंस सहित सभी दलों के साथ राजनीतिक प्रक्रिया के जरिए श्रीलंका के संविधान में 13 संशोधन को लागू करने की प्रतिबद्धता पर कायम रहने के लिए कहा है ताकि शक्तियों के हस्तातंरण और राष्ट्रीय सामंजस्य को वास्तविक रूप से हासिल किया जा सके। हमें आशा है कि श्रीलंका सरकार इस मुद्दे की महत्ता को समझेगी तथा इस पर गंभरता से कार्य करेगी। इस प्रक्रिया के जरिए हम उसके साथ संपर्क बनाए रखेंगे तथा उन्हें श्रीलंकाई तमिलों के मनोनीत प्रतिनिधियों के साथ इस पर चर्चा करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
जहां तक जेनेवा में चल रहे संयुक्त राष्ट्र अधिकार परिषद के 19वें सत्र में अमेरिका द्वारा पेश किए गए मसौदा प्रस्ताव के मुद्दे का सवाल है तो हमें अभी इस प्रस्ताव का अंतिम पाठ प्राप्त नहीं हुआ है। हालांकि मैं सदन को आश्वस्त करता हूं कि हम इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट करने के लिए प्रवृत्त हैं। यह आशा है कि श्रीलंका में तमिल समुदाय के लिए समानता, मर्यादा, आत्म-सम्मान और आत्म-सम्मान से परिपूर्ण भविष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य में हम आगे बढेंगे।
इसके अलावा और भी अन्य मुद्दे हैं जिन्हें उठाया गया है। कुछ सदस्यों ने हमारी शिक्षा की दशा के संबंध में चिंता जाहिर की है। किसानों की आत्महत्या के बारे में भी चिंता जाहिर की गई। इन सभी मुद्दों पर मैं भी चिंतित हूं। पिछले साढ़े सात वर्षों के अपने कार्यकाल में हमारी सरकार का प्रयास कृषि में नवसंचार और विकास प्रक्रियाओं में तेजी लाना रहा है। इस बात के संकेत पहले ही प्राप्त हो रहे हैं कि ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में हमारा कृषि उत्पादन लगभग तीन से साढ़े तीन प्रतिशत तक बढ़ेगा जो कि इसके पहले के पांच वर्षों में दो प्रतिशत से भी कम था। लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हम संतुष्ट हैं। हमारी कृषि में नवीन गतिशीलता लाने के लिए हम अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य करेंगे और हमने यह संकल्प लिया है, इस दिशा में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करेंगे।
विभिन्न अन्य मुद्दों जैसे काले धन पर चिंता जाहिर की गई। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में सरकार के दृष्टिकोण का वर्णन किया था कि किस प्रकार हम काले धन की समस्या से निपटेंगे। उन्होंने सदन में यह भी वादा किया था कि इस संबंध में सरकार श्वेत-पत्र लाएगी। इसलिए मुझे आशा है कि इन सभी मुद्दों से निपटने के लिए बाकी बचे सत्र में काफी संभावनाएं होंगी। इसलिए मैं सदन का और अधिक समय नहीं लूंगा। मैं सभी सदस्यों के साथ माननीया राष्ट्रपति को धन्यवाद देता हूं और मुझे पूर्ण आशा है कि धन्यवाद प्रस्ताव पारित कर दिया जाएगा।