साक्षात्कार[वापस जाएं]

इटार टॉस

प्रश्न: कई दशकों से हालांकि संपूर्ण विश्व में काफी बड़े परिवर्तन देखे गए, भारत और रुस के बीच मैत्रीपूर्ण एवं सुदृढ़ संबंध रहे हैं । क्या आपको लगता है कि आधुनिक युग की चुनौतियों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों में समायोजन की जरुरत है? और इस संदर्भ में भारत रुस संबंध की भूमिका क्या होगी?

प्रधानमंत्री हमने 11947 में सर्वप्रथम राजनयिक संबंध स्थापित किए तबसे भारत रुस द्धिपक्षीय संबंध सफलतापूर्वक सुदृढ़ होते जा रहे हैं। हम रुस के साथ अपने संबंधों को एक चिरस्थायी मित्रता के रुप में देख रहे है जो समय पर खरी उतरी है। रुस के साथ हमारे संबंधों को भारत में एक मजबूत राष्ट्रीय सर्वसम्मति मिली है। भारत के लोग उस सहायता एवं समर्थन को कभी नहीं भूल सकते जो हमने अपने इतिहास के कठिन समय में रुस से प्राप्त किया।

रुस की तरह, भारत ने विश्व के अन्य देशों के साथ अपनी भागीदारी को बढ़ाकर कई प्रकार से अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में परिवर्तन पर कुछ करने का प्रयास किया  है। हमारा उद्देश्य भारत में एक ऐसा बाह्य परिवेश तैयार करना है जो हमारे लोगों की विकासात्मक आकाक्षाओं को पूरा करने और अपने समय की मुख्य चुनौतियों-वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय संकट, उर्जा संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद एवं शासन की वैश्विक संस्थाओं के सुधार का समाधान करने के लिए सहायक हो । परंतु यह स्पष्ट हैं कि विश्व के अन्य देशों के साथ हमारी बढ़ती भागीदारी रुस के साथ हमारे समय-समय पर खरे उतरे संबंधों की कीमत पर नहीं हो सकती । रुस विश्व में शांति, स्थायित्व एवं सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण अभिकर्ता है।

जिन क्षेत्रीय एवं वैश्विक चुनौतियों का हम सामना कर रहे हैं, उसकी प्रभावपूर्ण प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए कि भारत और रुस अपनी नीतिगत भागीदारी को ओर प्रबल करें। जिस प्रकार दो बड़े बहुवादी जनतांत्रिक देशों में तीव्र आर्थिक परिवर्तन हो रहे है, हमारे कई समान हित हैं और वैश्विक मुद्दों पर समान दृष्टिकोण हैं । रुस दौरे के समय, मैं राष्ट्रपति मेदवेदेव के साथ उन उपायों पर चर्चा करुंगा जो हम अपनी नीतिगत भागीदारी को अगले स्तर पर ले जाने के लिए कर सकते हैं।

प्रश्न: हमारे देश पहले से ही व्यापक सहयोगात्मक कार्यक्षेत्रों में नीतिगत भागीदार रहे हैं। आप क्या सोचते हैं, ऐसे कौन से नए क्षेत्र हैं जिनका सहयोगात्मक अवसरों की दृष्टि से पता लगाया जाना चाहिए ? निकटम भविष्य में हमारे संबंधों की प्राथमिकताएं क्या होंगी जिन पर आप रुसी नेताओं के साथ चर्चा करने जा रहे हैं?

प्रधानमंत्री: भारत-रुस वार्षिक शिखर सम्मेलन हमारी नीतिगत भागीदारी का प्रमुख माध्यम है । ऐसे प्रत्येक शिखर सम्मेलन ने इस प्रक्रिया में योगदान दिया है । इसमें द्धिपक्षीय सहयोग से लेकर अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सहयोग के व्यापक विषयों पर और सामान्य हित के वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होंगी।

राष्ट्रपति मेदवेदेव और प्रधानमंत्री पुतिन के साथ मेरी बातचीत में मुझे विश्वास है कि हमारे संबंधों के समस्त पहलुओं पर गहन चर्चा होगी। कई वर्षों से भारत और रुस के बीच अब व्यापार एवं निवेश संबंध पीछे रह गए हैं, 10 बिलियन अमेरिकी डालर का व्यापार लक्ष्य  2010 में प्राप्त करने की संभावना है जो भारत और रुस की अर्थव्यवस्था को देखते हुए हमारी संभावना से काफी कम है। हमें अपने व्यापार क्षेत्र को बढ़ाना होगा, और एक दूसरे के देशों में ज्यादा निवेश बढ़ाने होंगे। फार्मास्यूटिकल, सूचना प्रोदयोगिकी एवं हीरा व्यवसाय भावी विकास के क्षेत्र बन सकते हैं।

मास्को में हमारे अंतर-सरकारी आयोग की हाल ही की बैठक में, उर्जा क्षेत्र को सहयोग के प्रभावी क्षेत्र के रुप में निर्धारित किया गया। हम विशेषकर हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में आगे प्रगति देखना चाहेंगे जो कुछ समय से विचाराधीन रहा है। भारतीय कंपनियों ने विश्व स्तर की क्षमताएं विकसित की हैं और विकासशील व अविकासशील दोनों क्षेत्रों में अपने रुसी प्रतिपक्षों के साथ कार्य कर सकती हैं। भारत की उर्जा संबंधी जरुरतें व्यापक हैं और लाभप्रद सहयोग के लिए इस क्षेत्र में काफी संभावनाएं है।

सिविल परमाणु सहयोग के क्षेत्र में, भारत और रुस का इतिहास काफी सहयोगपूर्ण रहा है। इस क्षेत्र में नए अवसर खुल रहे हैं और हम अपने परमाणु उर्जा विस्तार कार्यक्रम में रुस की अधिक भागीदारी देखना चाहेंगे। हमें विज्ञान एवं प्रोदयोगिकी, जैव प्रोद्योगिकी, नैनोटेक्नोलोजी एवं उच्च प्रोदयोगिकी के हस्तांतरण के आधुनिक दौर में सहयोग को ओर बढ़ाना  होगा। रक्षा सहयोग हमारे संबंधों का मुख्य आधार है। हमे इसे सुदृढ़ करना होगा और संयुक्त डिजाइन, अनुसंधान, विकास एवं विनिर्माण की ओर अग्रसर होना होगा।

हम क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों विशेषकर अफगनिस्तान की स्थिति, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के उपायों पर भी चर्चा करेंगे।

प्रश्न : संयोगवश रुस में आपका दौरा रुस में भारतीय समापन वर्ष के दौरान होगा जिससे अनेक रुसी लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के बारे में ओर ज्यादा जानने का अवसर मिलेगा । हमारे दो देशों के बीच संबंध बनाने में सामान्यत: संस्कृति एवं लोगों के आपसी संपर्क की भूमिका के बारे में आपके क्या विचार है?

प्रधानमंत्री: इस वर्ष रुस में भारतीय वर्ष और पिछले वर्ष भारत में रुसी वर्ष से दोनों देशों के लोगों को आधुनिक भारत एवं आधुनिक रुस को बेहतर ढंग से समझने का अवसर मिला।

भारत और रुस ने 1980 दशक के अंत तक लोगों  के आपसी आदान-प्रदान की सुदृढ़ परंपरा का लाभ उठाया। रुसी विचारकों, लेखकों, पेंटर एवं कलाकारों का भारत पर गहन प्रभाव पड़ा ठीक उसी प्रकार हमारे विद्धानों एवं कलाकारों का रुस पर प्रभाव पड़ा। हम अपने संसदविज्ञों, मीडिया कर्मियों, शिक्षाविदों एवं विद्धानों के बीच काफी संख्या में आदान-प्रदान को बढ़ाकर इस परंपरा को पुनरुज्जीवित करने के लिए आतुर है। हमें अपने युवाओं के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देने पर विशेष बल देना होगा जिन्हें एक दूसरे देशों की उपलब्धियों को ज्यादा से ज्यादा सामने लाने की जरुरत है। मेरे विचार से, यह अत्यधिक जरुरी है क्योंकि हमारे दोनों देशों में काफी तीव्र परिवर्तन हो रहे हैं और हमें पुरानी रुढ़ियों से नहीं बंधना चाहिए।

प्रश्न : भारत उक्त फार्मेट जैसे आर आई सी (रुस-भारत-चीन), बी आर आई सी (ब्राजील-रुस-भारत-चीन), जी-20 आदि में सक्रिय रुप से भाग लेता है। नवीन वैश्विक अवसंरचना में ऐसी बहुदेशीय कार्यप्रणाली का क्या महत्व है?

प्रधानमंत्री: इस प्रकार के बहुदेशीय समूह उस विश्व की बढ़ती हुई अंतरनिर्भरता को प्रस्तुत करते हैं जिसमें हम रह रहे हैं। यह लगातार स्पष्ट होता जा रहा है कि आज की वैश्विक चुनौतियों का सामना प्रमुख एवं उभरती हुई शाक्तियों एवं अर्थव्यवस्थाओं की पूर्ण एवं समान भागीदारी के साथ सहयोगात्मक प्रसास से ही किया जा सकता है। ऐसे समूह कई मायनों में उभरती वैश्विक अवसंरचना के निर्माणकारी तत्व होते हैं। भारत और रुस संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में काफी सहयोग करते हैं। अधिकांश वैश्विक मुद्दों पर हमारे विचार समान होने से, हम बी आर आई सी एवं जी-20 जैसे नए बहुदेशीय फार्मेट में भी ज्यादा सहयोग कर पाते हैं, मेरा मानना है कि हम आर्थिक मंदी एवं जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों के प्रति संतुलित प्रतिक्रिया करने में और वास्तव में एक ऐसी वैश्विक शासन प्रणाली की ओर कार्य करने में जो इक्कीसवीं सदी की वास्तविकताओं के अनुरुप हो, इन समहों के माध्यम से पर्याप्त योगदान करें।

प्रश्न: रुस में यह आपका पहला  दौरा नहीं है। इस यात्रा की तैयारी करते हुए किस प्रकार के विचार एवं भावनाएं आपके मन में आ रही हैं? रुस में आपके असंख्य दौरों के बाद आपके उपर अत्यधिक जीवंत प्रभाव क्या पड़ा?

प्रधानमंत्री: यह प्रधानमंत्री के रुप में रुस में मेरा छठा दौरा होगा। मेरे लिए प्रत्येक दौरा, हमारे बीच मौजूद मित्रता के ऐतिहासिक गठबंधन को और अधिक सुदृढ़ एवं मजबूत करने का सफर रहा है । हम दोनों देशों के बीच पूर्णत: परस्पर समझ और एक दूसरे की सफलता में परस्पर भागीदारी रही है। रुस में हुए मेरे सभी दौरों में जिस खुलेपन, गर्मजोशी और मित्रतापूर्ण ढ़ग से स्वागत किया गया, उसे देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया। मुझे यहां बिल्कुल घर जैसा माहौल लगता है । मैं इसका श्रेय भारत के साथ संबध तथा हमारे लोगों के बीच मौजूद सुदृढ़ परस्पर समानुभूति के लिए रुसी नेतृत्व की व्यक्तिगत प्रतिबद्धता को देता हूं।

यह बात सबसे पहले हमने 1955 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के पहले दौरे में देखी और उसके बाद कई दशकों तक देखी है। मैं व्यक्तिगत रुप से अत्यधिक आभारी रहूंगा यदि नया रुस और नया भारत उस अदभुत सदभावना के जरिए, जो विगत में एक दूसरे के प्रति हमारे लोगों में रही है, इस चिरकालिक भागीदारी को कायम रख सकें।

प्रश्न : क्या भारत और भारतीय लोगों की ओर से ऐसा कोई प्रमुख संदेश है जो आप हमारे देश से ले जा रहे हैं और राष्ट्रपति मेदवेदेव और प्रधान मंत्री पुतिन तक पहुंचा रहे हैं । हम जानते है कि आप हमारे देश के बहुत अच्छे और ईमानदार मित्र हैं। इसी कारण मैं यह पूछ रहा हूं।

प्रधानमंत्री: भाइयों एवं बहनों, मैंने पिछले पांच वर्ष में पांच या छ: बार रुस का दौरा किया है। जब भी मैं रुस गया हूं, मेरा हार्दिक स्वागत हुआ है तथा जिनसे भी मैं मिला उन सभी ने मुझे बेहद प्यार दिया। मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरा यह दौरा हमारे बीच मैत्री को और बढ़ाएगा तथा रुस के साथ हमारी नीतिगत भागीदारी और अधिक गहन तथा व्यापक होगी।

प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत प्रभावशाली विकास दर दर्शा रही है। तिमाही आंकड़े इसे प्रमाणित करते हैं। आप क्या समझते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था उस वैश्विक संकट से कब तक उबरेगी जिससे यह प्रभावित हुई है तथा नौ प्रतिशत वार्षिक दर के वांछित स्तर तक कब पहुंच जाएगी ?

प्रधानमंत्री : भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मंदी का काफी प्रभाव पड़ा है। वैश्चिक मंदी से पूर्व पिछले चार वर्ष में हमारी अर्थव्यवस्था नौ प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि कर रही थी । पिछले वर्ष, वैश्विक मंदी के कारण विकास दर में लगभग 6-7 प्रतिशत की गिरावट आई । इस वर्ष हमें 6-5 से 7 प्रतिशत विकास दर की उम्मीद है । मुझे विश्वास है कि दो से तीन वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था पुन: लगभग नौ प्रतिशत की वार्षिक विकास दर प्राप्त कर सकती है । ऐसा मैं कई कारणों से कह सकता हूं । हमारी बचत दर हमारे सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) का लगभग 35 प्रतिशत है । हमारी निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 37 प्रतिशत है । इस बचत दर तथा निवेश दर से हम बिना किसी कठिनाई के नौ प्रतिशत विकास दर को कायम रख सकते हैं । 37 प्रतिशत निवेश तथा 4:1 पूंजी उत्पादन अनुपात से हम आसानी से प्रति वर्ष नौ प्रतिशत की लक्षित विकास दर प्राप्त कर सकते हैं । मुझे उम्मीद है कि अगले दो तीन वर्ष में हम ऐसा कर लेंगे।

प्रश्न: पाकिस्तान की स्थिति के बारे में आपके क्या विचार है ? इस संदर्भ में रुस और अन्य मित्र राष्ट्रों सहित भारत क्या कर सकता है जिससे आपके क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को प्रभावकारी ढंग से नियंत्रित किया जा सके?

प्रधानमंत्री: रुस  हमारा बहुत अच्छा मित्र रहा है। इसने कठिन समय में हमारा साथ दिया है। हमने उपमहाद्धीप में आतंकवाद को पनपते देखा है जिसे हमारे पड़ोसी ने बढ़ावा दिया, भड़काया और उकसाया । भारत और रुस अपने आसूचना और सूचना तंत्र को समन्वित करके आंतक निरोधी प्रभावकारी कार्यनीतियां तैयार करने के लिए एक साथ कार्य कर सकते हैं । हम एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं क्योंकि भारत की तरह रुस भी आंतकवाद का शिकार रहा है । हमारा यह भी विश्वास है कि बड़ी शाक्ति होने के नाते, रुस पाकिस्तान के आचरण को प्रभावित कर सकता है । हमें उम्मीद है कि रुस के प्रभाव का प्रयोग पाकिस्तान को यह बात मनवाने के लिए किया जाएगा कि राज्य नीति के माध्यम के रुप में आंतक का इस्तेमाल करने की नीति संहारक है, यह अच्छे पड़ोसी की कार्यनीति के विरुद्ध है । यादि आंतकवादी पाकिस्तानी भूक्षेत्र का इस्तेमाल करना बंद कर देते हैं तो हमारी ओर से दोनों देशों के लिए एक-दूसरे के सहयोग से काम करने के अनेक अवसर हैं । हम दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी प्रवाह का विस्तार करने के असीम अवसर हैं।

प्रश्न : प्रधानमंत्री महोदय, विगत में रुस और भारत ने बहुत बड़े बड़े सौदे किए हैं लेकिन मुख्यत: रक्षा क्षेत्र में । आज हमें कुछ समस्याएं है विशेषकर रक्षा सौदों के संबंध में एडमिरल गोशकोव को लेकर और अन्य क्षेत्रों में ? क्या आप उन मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे और क्या आप परमाणु उर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिए परमाणु क्षेत्र में कदाचित नए व्यवसायों एवं दोनों देशों के बीच असैनिक व्यवसाय को बढ़ावा देने के संबंध में विचार करेंगे?

प्रधानमंत्री : रक्षा के क्षेत्र में सहयोग रुस के साथ हमारे सहयोग का एक बहुत महत्वपूर्ण पहलु रहा है । हमें रुस ने ऐसे उपस्कर और प्रौद्योगिकियां दी हैं जो हमें किसी अन्य देश से उपलब्ध नहीं हो सकती थी । साथ ही, रुस ने भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम के विकास में अपना योगदान देकर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, रुस ने हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में हमारा सहयोग दिया है तथा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के कई क्षेत्रों में हमने अपनी अर्थव्यवस्था और राज्यतंत्र के वृहत लाभ के लिए रुस को सक्रिय सहयोग दिया है । जब मैं रुस जाउंगा तो स्वाभाविक रुप से विविध क्षेत्रों में अपने संबंधों की समीक्षा करेंगे और विचार करेंगें कि रक्षा संबंध हम कैसे मजबूत कर सकते हैं, रक्षा के क्षेत्र में हम कैसे नई प्रौद्योगिकियां विकसित कर सकते हैं । निसंदेह, एडमिरल गोर्शकोव पर भी चर्चा की जाएगी और मुझे विश्वास है कि हम उत्पन्न समस्याओं का व्यवहारिक समाधान ढूंढ सकेंगे । रक्षा क्षेत्र में हम दोनों देशों के बीच सहयोग हमारे विकास का अत्यधिक महत्वपूर्ण पहलू है । आने वाले कई वर्षों तक यह सहयोग जारी रहेगा । परमाणु उर्जा के क्षेत्र में सहयोग रुस के साथ हमारे सहयोग का महत्वपूर्ण आधार रहा है तथा अब हमने परमाणु शाक्ति परियोजनाओं के लिए रुस के साथ सहयोग के नए क्षेत्रों का निर्धारण किया है। मुझे रक्षा क्षेत्र में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में, परमाणु उर्जा क्षेत्र में, अंतरिक्ष कार्यक्रम में तथा हमारे व्यापार एवं निवेश संबंधों के विकास में अत्यधिक संभावनाएं नजर आती हैं जो उतनी तेजी से नहीं विकसित हो पाई जितनी तेजी से हम दोनों उन्हें विकसित करना चाहते थे।

प्रश्न: प्रधानमंत्री महोदय, मैं एक छोटी समस्या की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा। भले ही समस्या छोटी हैं, लेकिन मेरे लोगों के लिए कम महत्वपूर्ण नहीं है। राष्ट्रपति मेदवेदेव आजकल हमारी जनता के लिए अच्छी क्वालिटी की सस्ती दवाईयों के उत्पादन के नए कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के प्रति बहुत रुचि ले रहे हैं। इस क्षेत्र में हम भारत के साथ बहुत सहयोगपूर्ण रहे हैं । रुस में औषधियों (ड्रग्स) के उत्पादन के लिए संयंत्रों के निर्माण  में प्रौद्योगिकी तथा वित्त क्षेत्र में भारतीय निवेश की संभावनाओं के बारे में आपकी क्या राय है ?

प्रधानमंत्री भारतीय फार्मास्युटिकल फर्मों ने औषधियों तथा फार्मास्युटिकल के क्षेत्र में वृहत् क्षमताओं का विकास किया है। पूरे विश्व में जेनरिक औषधियों के क्षेत्र में भारतीय कंपनियों ने अपना एक मुकाम हासिल किया है । मुझे पूरी उम्मीद है कि रुस और भारत सहयोग के ऐसे अवसरों का पता लगा सकते हैं जिनसे भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियां वहन करने योग्य लागत तथा कीमत पर रुसी जनता को, विशेषकर जेनरिक औषधियों की सप्लाई करके, अच्छी स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में सहायक हो सकती हैं।

प्रश्न : वर्ष 2006 से भारत में राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम कार्यान्वित किया जा रहा है जैसा कि आपने प्रस्तावित किया था । उस कार्यक्रम के वर्तमान परिणामों के बारे में आपके क्या विचार हैं?  क्या भारत इस क्षेत्र में रुस के अलावा अन्य देशों के साथ सहयोग कर रहा है?

प्रधानमंत्री : रुस हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में भारत का प्रमुख सहयोग कर्ता एवं सहभागी रहा है। चंद्रायान अंतरिक्षयान में हम दो देशों ने सहभागिता की थी । अब हम “मानव अंतरिक्ष वैसल” की योजना तैयार कर रहे हैं । यह योजना भी रुस और भारत के बीच सहयोग के असीम अवसर प्रदान करेगी । अब तक जो सहयोग हमारा रुस के साथ रहा है या जिस प्रकार हम रुस के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं मेरे विचार से जो सहभागिता हम अन्य देशों के साथ विकसित करना चाहते हैं, यह उससे कहीं अधिक है।

प्रश्न : दोनों देशों के बीच वीजा का मसला अभी भी रुस तथा भारत के अनेक व्यक्तियों के लिए एक समस्या है।  क्या आप अपने इस दौरे के दौरान या निकट भविष्य में दस-वर्षीय मल्टीपल वीजा बनाने के लिए वीजा की वैधता अवधि बढ़ाने पर विचार करेंगे।

प्रधानमंत्री: हम दोनों देशों के बीच व्यवसाय को अधिक से अधिक बढ़ावा देने और लोगों के बीच परस्पर घनिष्ठ संपर्क बढ़ाने के पक्ष में हैं। दोनों देशों के लोगों के बीच परस्पर संपर्क को बढ़ावा देने में जो भी अड़चने हैं, उन पर विचार किया जाना चाहिए और इसके कारगर उपाय किए जाने चाहिए। यदि वीजा एक समस्या है तो मेरे विचार से वीजा व्यवस्था को उदारीकृत करना होगा। हम लोगों के बीच परस्पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सभी संभावनाओं का पता लगाएंगे।